फ़स्ल शश्म

मौलवी सना-उल्लाह साहिब अब क्या करेंगे

ख़ैर जब मौलवी साहब से आयत महुला-बाला का जवाब ना बन सका तो आपने बमिस्दाक़ डूबते को तिनके का सहारा। इस आयत को पेश किया कि :—

اَمَّا مَنْ ثَــقُلَتْ مَوَازِيْنُہٗ فَهُوَ فِيْ عِيْشَةٍ رَّاضِيَةٍ

बेचारे को इतना भी ख़्याल नहीं रहा कि इस आयत में और आयत महुला बाला में खुला इख़्तिलाफ़ है यानी आयत महुलाबाला में साफ़ तौर पर ये ऐलान है कि जो शख़्स ज़र्रा भर भी नेकी या बदी करेगा वो उसकी जज़ा या सज़ा को भुगतेगा। और اَمَّا مَنْ ثَــقُلَتْ مَوَازِيْنُہ   में ये ऐलान है कि नहीं ज़र्रा ज़र्रा का हिसाब ग़लत है बल्कि "जिसके आमाल में अक्सरीयत अच्छी होगी वो नजात पा जाएगा" इस मसअले को अच्छी तरह समझने के लिए फ़र्ज़ कीजिए कि ज़ेद के आमालनामा में सौ नेकी हैं और दस बदी हैं। ज़ाहिर है कि जै़द के "आमाल में अक्सरीयत अच्छी" है। लिहाज़ा मौलवी साहब के इंदीया की बिना पर जै़द की दस बदियों की बाज़पुरुस ना होगी और वो सीधा जन्नत को सिधारेगा। लेकिन ये आयत وَمَنْ يَّعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّۃٍ  अलख ये कहती है कि मौलवी सना-उल्लाह ग़लत कहते हैं बल्कि ज़र्रा ज़र्रा का हिसाब होगा। यानी जै़द को उन दस बदकारियों का भी मवाख़ज़ा होगा। जो जै़द से सरज़द हुई हैं।

मैं पूछता हूँ कि अगर ख़ुदा को यही मंज़ूर था कि "जिसके आमाल में अक्सरीयत अच्छी" हो "वो नजात पा जायेगा" तो आयत وَمَنْ يَّعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّۃٍ   अलख के नाज़िल करने की क्या ज़रूरत थी? क्या ये सिर्फ़ धमकी ही धमकी है जिसमें कोई हक़ीक़त नहीं। अगर यही है तो फिर सारे क़ुरआन शरीफ़ का ख़ुदा-हाफ़िज़ है।

मौलवी सना-उल्लाह साहिब की बुरहान तत्बीक़

इस आयत में एक और बड़ी क़बाहत है वो ये कि अगर मौलवी साहब ने दरोग़ मस्लिहत आमेज़ से काम नहीं लिया है तो अज़रूए क़ुरआन शरीफ़ हर एक इन्सान को कम अज़ कम वहां तक गुनाह करने की इजाज़त है। जहां तक उस के गुनाह एक डिग्री उस की नेकियों से कम हों मसलन बक़ौल मौलवी साहब अगर जै़द नमाज़ पढ़ता है और रोज़ा रखता है तो अगर वो ज़िना करे तो वो जन्नत में जाएगा। क्योंकि एक गुनाह के मुक़ाबला में दो नेकियों में "कसरत" अच्छी है इसी तरह अगर जै़द नमाज़ पढ़ता है और रोज़ा रखता है हज करता है तो अगर वो झूट बोले और चोरी करे तो वो सीधा जन्नत को सिधारेगा। क्योंकि दो गुनाह के मुक़ाबले में तीन नेकियों की "कसरत अच्छी" है। अला-हाज़-उल-क़यास अगर जै़द नमाज़ पढ़ता है रोज़ा रखता है हज करता है ज़कात देता है। अगर वो शराब पिए जुवा खेले, क़त्ल करे तो वो बिला शक सीधा जन्नत में जाएगा। क्योंकि तीन गुनाहों के मुक़ाबले में चार नेकियों में “कसरत अच्छी है।“ अगर आप मौलवी सना-उल्लाह साहिब के इंदीया के मुवाफ़िक़ अज़तरीक़ बिला-नेकियों और बदियों का मुक़ाबला करते जाएं तो वो शख़्स जिसकी नेकियों और बदियों में सौ और निनान्वें का भी फ़र्क़ हो यक़ीनन जन्नत में जाएगा।

पस हो जीयो बशारत वास्ते मौलवी सना-उल्लाह के है नाम जिनका मुख़्तलिफ़ और ज़बानों के मुख़्तलिफ़ लोगों की भी वास्ते उन के जो चलते हैं पीछे पीछे उन के साथ ख़िताब अहले-हदीस के कि जाओगे तुम बीच जन्नत के अगर हो ऊपर तुम्हारे गुनाहों के ज़्यादा एक नेकी भी। पस करो तुम गुनाहें और उड़ाओ तुम गुलछर्रे हो सकें जितने भी तुमसे। मगर साथ इस शर्त के रखियो हिसाब इस बात का कि रहे बीच आमाल तुम्हारे एक दर्जा ज़्यादा ऊपर तुम्हारे गुनाहों के।

फ़ल्सफ़ा की किताबों में बहुत से बराहीन हैं जिनमें से एक नाम "बुरहान तत्बीक़ है। मुतकल्लिमीन इस से ये इस्तिदलाल करते हैं कि दुनिया महदूद है। लेकिन मौलवी साहब ने ये इस्तिदलाल किया है कि अगर गुनाह बमुक़ाबला नेकी के महदूद हो तो इस पर मुवाख़िज़ा ना होगा। ख़्वाह कितने ही ज़्यादा क्यों ना हो। ये है इस्लाम की नजात जिस पर हमारे अहले-हदीस दोस्त को बहुत कुछ नाज़ है।

शायद इसी आयत बाला की बिना पर मौलवी सना-उल्लाह साहिब ने गुर्दासपुर की अदालत में हल्फ़ीया बयान दिया था कि "दरोग़ गो, जालसाज़, बोहतान बाँधने वाला, इफ़्तिरा बाँधने वाला, दग़ा देने वाला एक मअनी से मुत्तक़ी है। बशर्ते के तौहीद पर क़ायम हो।” हम नाज़रीन की दिलचस्पी के लिए मौलवी साहब के हल्फ़ीया बयान की नक़्ल अख़्बार बद्र क़ादियान मौरखा 16 जून 1910 ई. से जे़ल दर्ज करते हैं। ताकि नाज़रीन को इस्लाम की नजात अच्छी तरह समझ में आ जाए वो ये है :—

" नक़्ल हल्फ़ीया बयान मौलवी सना-उल्लाह साहिब अमृतसरी दर अदालत लाला आत्मा राम साहिब साबिक़ मजिस्ट्रेट दर्जा अव्वल गुर्दासपुर

नमाज़ पढ़ने वाला, ज़िना करने वाला एक किस्म का मुत्तक़ी है। क़ुरआन का कोई हुक्म तोड़ने वाला भी मुत्तक़ी हो सकता है। दरोग़ गो में अगर औसाफ़ शरईयह हैं तो वो एक मअनी में मुत्तक़ी हो सकता है (क़ुरआन हमाइल तर्जुमा नज़ीर अहमद) इस के 80 सफ़े पर जिन मुत्तक़ियों का ज़िक्र है वो ये हैं सब्र करने वाले, सच्च बोलने वाले और ख़ुदा की ताबेदारी करने वाले और अल्लाह की राह में ख़र्च करने वाले और सुबह के वक़्त बख़्शिश मांगने वाले, ये तमाम सिफ़ात इस मुत्तक़ी में होनी चाहिए जिसका ज़िक्र इस आयत में है। ये ख़ास मुत्तक़ी हैं अगर इन सिफ़तों में से कोई सिफ़त जाती रहे तो इन मअनो में मुत्तक़ी ना होगा। ये तारीफ़ क़ुरआन के ख़ास इस किस्म के मुत्तक़ियों की है, जिनका ज़िक्र इस में है। क़ुरआन की पहली आयत में जो मुत्तक़ी हैं और इस आयत में जो मुत्तक़ी हैं इन में फ़र्क़ है। एक शख़्स झूट बोल कर पहली आयत के माअनों में मुत्तक़ी हो सकता है, बशर्ते के और अहकाम का पाबंद हो। अगर हमें उस के दीगर अहकाम की पाबंदी का इल्म नहीं है तो हम उसे मुत्तक़ी से अलग नहीं कर सकते। झूट बोलना हर हालत में एक मअनी से मना है यानी गुनाह है। फ़ासिक़ एक मअनी से मुत्तक़ी हो सकता है। झूट फ़जोरी यानी गुनाह फ़ासिक़ एक मअनी से मुत्तक़ी हो सकता है, झूट फ़जोरी यानी गुनाह फ़ाजिर का माद्दा फ़जोरी काज़िब एक मअनी में क़ासिर है। एक शख़्स बुरा असल तक़्वा हासिल करके करीम शरीयत में कहला सकता है। मैं शरई हैसियत से कहूंगा एक शख़्स शरीफ़ अल-तरफ़ीन तक़्वा छोड़कर मेरे इल्म में लमीम नहीं है, शरई लिहाज़ से करीम नहीं होता, शरई अहकाम के लिहाज़ से लईम होगा, बशर्ते के इस में कुल ऐब शरई पाए जाएं। दरोग़ गो , जालसाज़ , बोहतान बाँधने वाला , इफ़्तिरा बाँधने वाला , दग़ा देने वाला एक मअनी से मुत्तक़ी है बशर्ते के ख़ुदा की तौहीद पर क़ायम हो।”

यानी जो कुछ चाहो सो करो, सिर्फ़ ला-ईलाहा-इल्लल्लाह पढ़ो तो सीधे जन्नत में जा बसोगे। यही वोह बात है जिसके मुताल्लिक़ मैंने अपने रिसाला "मैं क्यों मसीही हो गया" में लिखा था कि इस्लाम में नेक-आमाल सिर्फ़ हाथी के दिखाने के दाँत हैं और एक हदीस को बतौर सनद के नक़्ल किया था। जिसके जवाब से मौलवी साहब ऐसे क़ासिर रहे हैं कि गोया वो हदीस मेरे रिसाला बाला में है ही नहीं और वो हदीस ये है :—

وعن ابی ذر قال اتیت النبی صلی اللہ وسلم ثوب بیض دھوتائمہ ثمہ اتیتہ وقد استقیط فقال مامن عبد قال لا الہ اللہ ثمہ مات علےٰ ذالک الادخل الجنتہ قلت وان زنی وان سرق قال وان زنی وان سرق قلت وان زنی وان سرق قال وان زنی وان سرق قلت وان زنی وان سرق قال وانی زنی وان سرق علےٰ رغمہ انف ابی ذرٍ وکان ابوذر اذا حدث بھذا قال وان رغمہ انف ابی ذر متفق علیہ۔

तर्जुमा: " अबू ज़र ने कहा मैं हज़रत सलअम के पास आया आप सो रहे थे और आप पर सफ़ैद कपड़ा था। जब मैं फिर आया तो आप जागते थे। आपने फ़रमाया कि हर एक बंदा जो ला-इलाहा इल्लल्लाह कहे और उस पर मर जाये वो जन्नत में दाख़िल होगा। मैंने कहा कि अगरचे वो चोर या ज़िनाकार हो। आपने कहा अगरचे चोर या ज़ानी हो, फिर मैंने कहा कि अगरचे वो चोर या ज़ानी हो। आपने फ़रमाया अगरचे चोर या ज़ानी हो, फिर मैंने कहा अगरचे वो चोर या ज़ानी हो, आपने कहा अगरचे वो चोर या ज़ानी हो I अगरचे ये बात अबू ज़र को नागवार मालूम होती है" (मैं क्यों मसीही हो गया सफ़ा 35)