फ़स्ल दोम
मौलवी सना-उल्लाह साहिब भी नजात
बिला- अमाल नहीं मानते
नाज़रीन आप ये देखकर निहायत ख़ुश होंगे कि मौलवी सना-उल्लाह साहिब ने निहायत दियानतदारी के साथ मगर ग़ैर मुतवक़्क़े तौर पर मेरे रिसाले के शक़्क़ अव्वल और दोम, व सोम और चहारुम, पंजुम को यानी मेरे रिसाले के तमाम दलाईल को बिलाकम व कासित तस्लीम किया है।
मौलवी सना-उल्लाह साहिब का हमारे रिसाला के आगे सरबसजूद होना चुनांचे आप इन अहादीस के जवाब में जिनसे हमने ये इस्तिदलाल किया था कि कोई फ़र्दबशर अपने आमाल के ज़रीये नजात हासिल नहीं कर सकता है। बल्कि ख़ुद आँहज़रत को भी उनके आमाल नजात नहीं दे सकते हैं। रक़म फ़रमाते हैं कि :—
"असल हक़ीक़त ये है कि इन्सान का ख़ुदा से जो रिश्ता है वो तक़ज़्ज़ी है कि इन्सान दम-भर ख़ुदा की याद से ग़ाफ़िल ना हो शेख़ सादी मरहूम ने गुलिस्तान के शुरू सी में इस राज़ को लिखा है कि "बरहर नफ़से दो नेअमत देर हर नेअमत शुक्र वाजिब" इस लिहाज़ से इन्सान के आमाल शरईयह भी इस की नजात के लिए काफ़ी नहीं हो सकते। क्योंकि इनमें भी बहुत सा वक़्फ़ा मिल सकता है कि इन्सान अपने सांस और कामों में ख़र्च करे और शुक्र वाजिब से ग़ाफ़िल हो जाए ये आरिफ़ाना नुक्ता समझाने को हुज़ूर पैग़ंबर ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने ये हदीस फ़रमाई है (सदक़ल्लाह व रसुला)
बे-शक आमाल शरईयह इतनी हैसियत नहीं रखते कि दुनियावी नेअमा का शुक्र अदा होने के बाद नजात उखरवी के लिए भी इल्लत हो सकें। हाँ मह्ज़ उस का फ़ज़्ल ही फ़ज़्ल है कि चंद लम्हों की इताअत को दाइमी राहत , ( नजात) का मूजिब बना दिया। ये तशरीह है हदीस मज़्कूर की। क्या वजह है कि पहले तो आमाल के मूजिब नजात होने से इन्कार किया। पीछे आमाल की ताकीद फ़रमाई। इस की वजह वही है जो हम बता आए हैं कि आमाल ज़ाती हैसियत से हरगिज़ मूजिब नजात नहीं। मगर बेकार भी नहीं" (अहले-हदीस अमृतसर मत्बूआ 9 नवम्बर 1929 ई. सफ़ा 3)
शुक्र अल्लाह कि मियां मन दाद सुलह फ़ताद कहो ईसा मसीह की जय
क़ुरआन-ए-मजीद ने किया ही ख़ूब कहा है कि :—
وَجَاعِلُ الَّذِيْنَ اتَّبَعُوْكَ فَوْقَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اِلٰى يَوْمِ الْقِيٰمَۃِ
यानी "ऐ ईसा मैं तेरे पैरौओं को क़ियामत के दिन तक उन लोगों पर जो तुझसे इन्कार करते हैं ग़ालिब रखूंगा।” फल-हम्दु-लिल्लाह अला ज़ालिक :—
नाज़रीन को याद होगा कि मैंने गुज़शता औराक़ में अपने रिसाले का (मैं क्यों मसीही हो गया) ख़ुलासा अज़ करा-ए-जे़ल लिखा था कि :—
- क़ुरआन शरीफ़ के रु से नजात आमाल सालेहा पर मौक़ूफ़ है।
- فَمَنْ يَّعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّۃٍ خَيْرًا يَّرَہٗ وَمَنْ يَّعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّۃٍ شَرًّا يَّرَہٗ फ़मययअमल मिस्क़ाल ज़र्रतिन खैरय्यरह व मय्यअमल मिस्क़ाला ज़र्रतिन शर्रयरह के रू से कोई फ़र्द बशर आमाल
सालेहा से नजात हासिल नहीं कर सकता है। - तमाम बनी-आदम गुनहगार हैं।
- अहादीस सहीहा के रू से आमाल सालेहा कोई चीज़ नहीं है। हत्ता कि ख़ुद आँहज़रत को उनके आमाल नजात नहीं दिला सकते हैं।
- अहादीस के रू से नजात सिर्फ़ ख़ुदा के रहम से हासिल हो सकती है लेकिन रहम बलामबादला कोई चीज़ नहीं है।
इन तमाम शक़ूं को तो मौलवी साहब ने अपनी इबारत बाला में तस्लीम कर लिया। अलबत्ता शक़्क़ सोम के मुताल्लिक़ आपने एक हर्फ़ भी नहीं लिखा है। जिससे साफ़ ज़ाहिर है कि आपको ये भी तस्लीम है कि तमाम अम्बिया और बाक़ी तमाम इन्सान गुनहगार हैं। लिहाज़ा अब हम में और मौलवी साहब में कोई उसूली इख़्तिलाफ़ नहीं रहा। सिर्फ आपको इन दो आयतों की तफ़्सीर करने में हमसे किसी क़दर इख़्तिलाफ़ है। जिनको हमने अपने रिसाला में लिखा था। वो दो आयतें ये हैं :—
- وَإِن مِّنكُمْ إِلَّا وَارِدُهَا كَانَ عَلَى رَبِّكَ حَتْمًا مَّقْضِيًّا
ثُمَّ نُنَجِّي الَّذِينَ اتَّقَوا وَّنَذَرُ الظَّالِمِينَ فِيهَا جِثِيًّا (सुरह मर्यम आयत 71, 72) - وَلَوْ شَاء رَبُّكَ لَجَعَلَ النَّاسَ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلاَ يَزَالُونَ مُخْتَلِفِينَ إِلاَّ مَن رَّحِمَ رَبُّكَ وَلِذَلِكَ خَلَقَهُمْ وَتَمَّتْ كَلِمَةُ رَبِّكَ لأَمْلأنَّ جَهَنَّمَ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ
कुरआन सुरह हुद आयत 120 (मैं क्यों मसीही हो गया सफ़ा 31,33)
इन दो आयतों की बाबत हम अगले सफ़्हों में अर्ज़ करेंगे।