फ़स्ल सोम
मौलवी सना-उल्लाह साहिब की क़ुरआन फ़हमी व
हदीस दानी
आयत नंबर अव्वल यानी :—
وَإِن مِّنكُمْ إِلَّا وَارِدُهَا كَانَ عَلَى رَبِّكَ حَتْمًا مَّقْضِيًّا ثُمَّ نُنَجِّي الَّذِينَ اتَّقَوا وَّنَذَرُ الظَّالِمِينَ فِيهَا جِثِيًّا (सुरह मर्यम आयत 72, 73, मैं क्यों मसीही हो गया सफ़ा 31) के मुताल्लिक़ आप लिखते हैं कि :—
"आयत मौसूफ़ा में सिर्फ एक लफ़्ज़ तहक़ीक़ तलब है "यानी वारिद (وَارِدُ) ये लफ़्ज़ उसी सूरत (इस्म फाइल ) में सुरह यूसुफ़ में आया है :—
وَجَاءتْ سَيَّارَةٌ فَأَرْسَلُواْ وَارِدَهُمْ فَأَدْلَى دَلْوَهُ (सुरह यूसुफ़)
यानी जब मुसाफ़िरों का क़ाफ़िला आया तो उन्होंने अपना वारिद भेजा (ताकि पानी लाए) उसने अपना डोल कुवें में डाला"
यही लफ़्ज़ सुरह क़िसस की आयत 28 में बसफ़ा माज़ी आया है ग़ौर से सुनिए :—
وَلَمَّا وَرَدَ مَاء مَدْيَنَ وَجَدَ عَلَيْهِ أُمَّةً مِّنَ النَّاسِ يَسْقُونَ
“हज़रत मूसा मदयन के पानी के पास आए तो वहां देखा कि एक क़ौम पानी पिलाती है”
इन दोनों मौक़ों पर इस लफ़्ज़ से पानी के अंदर घुंसना मुराद नहीं वर्ना उस के बाद अदलादलवहु (ادلےٰ دلوہ) और वजद अम्मह (وجد امد) सही ना होगा। पस वारिद (وَارِدُ) के मअनी हैं पानी के पहुंचने वाला। इन दो शहादतों से आयत ज़ेर-ए-बह्स के मअनी ये हुए कि हर एक इब्न-ए-आदम नेक हो या बद जहन्नम के पास से गुज़रेगा जिसकी बाबत हदीसों में ऊपर का लफ़्ज़ आया है ना कि अंदर। फिर वो अपने अपने आमाल के मुवाफ़िक़ जहन्नम से दौड़ाते जाएंगे और ज़ालिम बद-किर्दार जो जहन्नम ही के लायक़ होंगे जहन्नम में छोड़ दिए जाएंगे" (अहले हदीस मत्बूआ 19 अक्तूबर 1928 ई सफ़ा 2)
फिर आप लिखते हैं कि :—
"मुख़्तसर ये कि लफ़्ज़ वारिद (وَارِدُ) के माअनी समझने में आपको ग़लती हुई है। हम उस का तर्जुमा करते हैं पास पहुंचने वाला पास से गुज़रने वाला। आप करते हैं आग में दाख़िल होने वाला हमारे तर्जुमा की शहादत ख़ुद क़ुरआन देता है आपकी नहीं" (अहले हदीस मत्बूआ 19 अक्तूबर 1928 ई सफ़ा 2)
मैं तो इस पीर जवाँ नमांया जान-बूझ कर अंजान बनने वाले की क़ुरआन फ़हमी का क़ाइल उस वक़्त हो चुका था जबकि आपने क़ुरआन शरीफ़ की इस आयत की बिना पर :—
وَلَا تَنْكِحُوْا مَا نَكَحَ اٰبَاۗؤُكُمْ
ये फ़तवा दिया था "कि दादी से पोते का निकाह जायज़ है" और फिर एक हैदराबादी वहाबी के समझाने पर रुजू कर लिया" (अल-फ़क़ीयह अमृतसर 21 मई 1926 ई सफ़ा 8) हमें कामिल उम्मीद है कि अगर हमारे समझाने पर नहीं तो किसी और वहाबी के समझाने पर आप फिर अपने इस क़ौल से रुजू करेंगे कि वारिद (وَارِدُ) के मअनी "पास पहुंचने वाला। पास से गुज़रने वाला के हैं। चुनांचे आप लिखते हैं कि हम इसका तर्जुमा करते हैं। पास पहुंचने वाला पास से गुज़रने वाला" आप करते हैं दाख़िल होने वाला हमारे तर्जुमा की शहादत ख़ुद क़ुरआन देता है। आपकी नहीं" (अहले हदीस 19 अक्तूबर 1928 ई सफ़ा 2) जिसका साफ़ मतलब ये है। कि अगर हम भी क़ुरआन शरीफ़ से "शहादत पेश करें तो आप बिला चोन व चरा हमारे तर्जुमें को तस्लीम करेंगे। लिहाज़ा हम क़ुरआन शरीफ़ से चंद ऐसी आयतें पेश करेंगे जिनमें ये लफ़्ज़ ज़ेर-ए-बह्स दख़ूल के मअनी में आया है और ऐसी वाज़ेह सूरत में कि अगर तमाम दुनिया के नज्दी या वहाबी इकट्ठे हों तब भी दूसरे माना ना कर सकें और इस के बाद हम अपनी ताईद के लिए अशआर अरब से भी चंद शवाहिद पेश करेंगे कि इस फ़ाज़िल वहाबी को कम अज़ कम क़ुरआन शरीफ़ की किसी आयत के तफ़्सीर करने का ढंग तो मालूम हो जाए वो आयतें ये हैं :—
क़ुरआन की शहादत कि आयत ज़ेर-ए-बह्स में "वारिद" (وَارِدُ) के मअनी दाख़िल के हैं
- إِنَّكُمْ وَمَا تَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ حَصَبُ جَهَنَّمَ أَنتُمْ لَهَا وَارِدُونَ (सुरह अम्बिया 21:98, 99)
तर्जुमा : तहक़ीक़ तुम और जो कुछ तुम पूजते हो अल्लाह के सिवाए ईंधन हो दोज़ख़ के और तुमको इस में दाख़िल होना है।” - لَوْ كَانَ هَؤُلَاء آلِهَةً مَّا وَرَدُوهَا وَكُلٌّ فِيهَا خَالِدُونَ (सुरह अम्बिया 21:100)
तर्जुमा : "अगर ये लोग ख़ुदा होते तो दोज़ख़ में दाख़िल ना होते और यह सब दोज़ख़ में हमेशा तक रहेंगे।” - يَـقْدُمُ قَوْمَہٗ يَوْمَ الْقِيٰمَۃِ فَاَوْرَدَہُمُ النَّارَ۰ۭ وَبِئْسَ الْوِرْدُ الْمَوْرُوْدُ (सुरह हूद 11:10)
तर्जुमा : क़ियामत के दिन (फ़िरऔन ) अपनी क़ौम के आगे आगे होगा और दाख़िल
करेगा (अपनी क़ौम को ) दोज़ख़ में और दोज़ख़ दाख़िल होने की बुरी जगह है।” - يَوْمَ نَحْشُرُ الْمُتَّقِينَ إِلَى الرَّحْمَنِ وَفْدًا وَنَسُوقُ الْمُجْرِمِينَ إِلَى جَهَنَّمَ وِرْدًا (सुरह मर्यम 19:89)
तर्जुमा : "जिस दिन हम इकट्ठा करेंगे परहेज़गारों को रहमान ख़ुदा के पास मेहमानी के लिए और हांक ले जाएंगे गुनहगारों को दोज़ख़ की तरफ़ दाख़िल होने के लिए।”
इन क़ुरआनी शवाहिद के देखने के बाद अगर इस फ़ाज़िल वहाबी के दिल में कुछ भी क़ुरआन शरीफ़ की इज़्ज़त बाक़ी है तो ज़रूर अपनी इस राय फ़ासिद से "हम उस का तर्जुमा करते हैं पास पहुंचने वाला, पास से गुज़रने वाला।” इसी तरह रुजू करेगा जिस तरह अपने इस फ़तवा से रुजू किया कि "दादी से पोते का निकाह जायज़ हैI" आपकी लिखी हुई तफ़्सीर भी इस किस्म की लग़ूयात से भरी हुई है। जिनकी बिना पर आप पर कुफ़्र का फ़तवा लग चुका है। लेकिन सुनते हैं कि इब्ने मसऊद के समझाने पर आपने इस किस्म के काबिल एतराज़ मुक़ामात को अपनी तफ़्सीर से ख़ारिज कर दिया है नेअयारत दीगर उन से रुजू किया है।
अशआर अरब की शहादत कि "वारिद" (وَارِدُ) बह मअनी दाख़िल है
हमने वाअदा किया था कि क़ुरआन शरीफ़ के शवाहिद के इलावा अशआर अरब में से भी चंद शवाहिद पेश करेंगे ताकि क़ुरआन शरीफ़ के लफ़्ज़ ज़ेर-ए-बह्स के मअनी अच्छी तरह समझ में आ जाऐं ये भी सुन लीजिए :—
وردن دوار عاذ خرجن شهثا کا مثال الرصاع قد بلین
(मबा मोअल्लक़ात माक़ला पंजुम)
तर्जुमा: लड़ाई में वो ज़िरह पहन कर दाख़िल होते हैं। और परागंदा हो निकलते हैं इन लगामों की मानिंद जिनकी गाँठ पुरानी हो चुकी हों।”
بانا نورد التوایات بیضا ونصد رھن حمرا قدروینا
(सबअ मोअल्लक़ात मुअल्लक़ा पंजुम)
तर्जुमा: हम वो लोग हैं जो अपने सफ़ैद नेज़ों को अपने दुश्मनों के सीनों के अंदर दाख़िल कर देते हैं और जब उनको निकाल लेते हैं तो ख़ून से सेराब और सुर्ख़ होते हैं।"
رعو اظما ھمہ حتی اذا تم وارد غمارا تفرے بالسلاح وبالدم
(सुबह मोअल्लक़ात मुअल्लक़ा सोम)
तर्जुमा: कुछ देर तक दोनों फ़रीक़ लड़ाई से बाज़ रहे। जब मियाद ख़त्म हुई। फिर लड़ाई के गहरे पानी में आपने उनको किस तरह दाख़िल किया कि उनके हथियारों और ख़ून से पानी शक़्क़ हो गया।
हमने मह्ज़ इस ग़रज़ से क़ुरआनी और अरबी शवाहिद पेश किए ताकि इस फ़ाज़िल वहाबी की क़ुरआन फ़हमी की हक़ीक़त वाज़ेह हो जाए। वर्ना ख़ुद आयत ज़ेर-ए-बह्स, इस क़दर वाज़ेह है कि जिसकी वज़ाहत के लिए और "शहादत की" मुतलक़ ज़रूरत ही नहीं है। आपकी क़ुरआन फ़हमी की लियाक़त मुलाहिज़ा हो आप फ़रमाते हैं कि "आयत ज़ेर-ए-बह्स के मअनी ये हुए कि हर एक इब्न-ए-आदम नेक हो या बद जहन्नम के पास से गुज़रेगा। जिसकी बाबत हदीसों में ऊपर लफ़्ज़ आया है ना कि अंदर फिर वो अपने आमाल के मुवाफ़िक़ जहन्नम से दूर हटते जाएंगे। और ज़ालिम बदकिर्दार लोग जहन्नम में छोड़ दीए जाएंगे I" हम कहते हैं कि क्यों "हर एक इब्न-ए-आदम नेक हो या बद "जहन्नम के पास से गुज़रें, जन्नत के पास से क्यों ना गुज़रे। और फिर ज़ालिम बदकिर्दार लोग जन्नत के पास से हटते जाएं और नेक लोग जन्नत में दाख़िल होते जाएं ताकि बदकिर्दारों को और नीज़ उस शख़्स को जिसका ज़िक्र "निशानात मिर्ज़ा बजवाब इल्हामात मिर्ज़ा" में है। जन्नत का नज़ारा देखकर अपने क़ुबह अफ़आल का और ज़्यादा एहसास हो जाए कि अगर वो बदकिर्दार ना होता तो ऐसी दिलफ़रेब जगह में दाख़िल हो जाता।
शायद आपकी तफ़्सीर के बमूजब अल्लाह मियां को ये मंज़ूर है कि बदकिर्दारों को जन्नत की हवा तक ना लगनी पाए। ख्वाह नेक किरदारों को दोज़ख़ के पास से गुज़रना पड़े उस की बला से। ये आपने ख़ूब कहा कि "फिर वो अपने आमाल के मुवाफ़िक़ जहन्नम से दूर हटते जाएंगे।” आमाल का यहां क्या दख़ल है। क्या आप इस क़दर जल्द भूल गए कि आमाल हरगिज़ मूजिब नजात नहीं। ” जब "आमाल हरगिज़ मूजिब नजात नहीं हैं" तो फिर वो अपने आमाल के मुवाफ़िक़ किस तरह जहन्नम से हटते जा सकेंगे? हालाँकि ये जुम्ला कि "फिर वो अपने आमाल के मुवाफ़िक़ जहन्नम से दूर हटते जाएंगे" आयत ज़ेर-ए-बह्स के किसी लफ़्ज़ का तर्जुमा नहीं है। बल्कि ये एक वहाबी के फ़र्सूदा दिमाग़ का इख़्तिरा है जो बज़अमे ख़ुद अल्लाह मियां की इस्लाह कर रहा है। मौलवी साहब आपका मुक़ाबला उस शख़्स से पड़ा है जो आपकी आख़िरी उम्र तक आपको क़ुरआन पढ़ा सकता है। ये सिर्फ़ तअल्ली के तौर पर नहीं कहता बल्कि मैं इस को बारहा साबित भी कर चुका हूँ। इस लिए इस किस्म के मन-माअनी तर्जुमों से आप कामयाब नहीं हो सकते। अगर आपका कामयाब होना चाहते हैं तो मैं इस की सूरत आपको बतलाता हूँ। वोह ये है कि आख़िर तो आप अहले हदीस हैं जहां हदीसों के रू से सदहा आयतों को मंसूख़ मानते हैं वहां इस आयत को भी इनमें इज़ाफ़ा करके उस को भी मंसूख़ कह दें यानी यह कि अल्लाह ने अपने क़ौल से रुजू किया है और अपना पीछा छुड़ाइए।
आपने ये भी ग़लत लिखा कि "जिसकी बाबत हदीसों में ऊपर का लफ़्ज़ आया है ना कि अंदर" मैंने आयत ज़ेर-ए-बह्स की तफ़्सीर के लिए अपने रिसाला में एक हदीस नक़्ल की है जिसमें यही लफ़्ज़ वरिदु (وَارِدُ)। बह-मअनाए दख़ूल वारिद हुआ है। जिसके जवाब में आप माही बे आब की तरह तड़प रहे हैं। लेकिन बनता कुछ नहीं हाँ एक ज़िमन में आपने ये लिखा कि "क़ुरआन-ए-मजीद और हदीस शरीफ़ की तशरीह तो हमने बशहादत-ए-क़ुरआन आपको बता दी" हमने भी आपकी इस तशरीह की वह तशरीह की जिसकी धज्जियाँ क़ियामत तक आपकी आँखों के सामने उड़ती फिरेंगी।
नाज़रीन जिस हदीस को हम ने बतौर तफ़्सीर नक़्ल किया है इस में एक ऐसा लफ़्ज़ वारिद है जो मौलवी साहब की तमाम उम्मीदों पर पानी फेर देता है। वो लफ़्ज़ यसदून (یصدون) है जिसके मअनी निकलने के हैं। और लफ़्ज़ "वरूद" का ज़द है। चुनांचे अल-मिस्बाह-उल-मुनीर में जो निहायत मोअतबर लुग़त की किताब है लिखा है कि :—
فاالورد خلاف الصدود۔ و الایرااوخلاف الاصدار
(फ़स्ल अलवाद-मअ-अलराअ)
यानी वरूद (ورود) सददर (صدور) और एरादो असदार (ايرادر أصدار) एक दूसरे के ज़िद हैं। पस हदीस ज़ेर-ए-बह्स में चूँकि सदूर के मअनी निकलने के हैं। लिहाज़ा वरूद के मअनी दाख़िल होने के हैं। आप तो निरे वहाबी हैं जिनके नज़्दीक बजुज़ क़ुरआन व हदीस के बाक़ी उलूम का पढ़ना बिद्दत है। आपके ठोकर पर ठोकर खाने का यही सबब है। वर्ना अगर आप कम-अज़-कम लुगात की तरफ़ रुजू करते तो आपको इस क़दर ख़जालत नसीब ना होती। सिर्फ यही नहीं बल्कि हदीस माफ़ौक़ में हर एक निकलने वाले की कैफ़ीयत बतलाई गई है कि बाअज़ तो बिजली की चमक की तरह और बाअज़ घोड़े की दौड़ की तरह और बाअज़ सवार की तरह और बाअज़ इन्सान की दौड़ की तरह और बाअज़ पियादा चलने की तरह दोज़ख़ से निकलेंगे। पस अगर वरूद के मअनी यहां "पास से गुज़रने के होते तो निकलने और फिर इस तरह निकलने के क्या मअनी?
ख़ैर इन तमाम बातों को जाने दीजिए। अगर हम आपको एक से ज़्यादा हदीसें ऐसी बतला दें जिनमें साफ़ तौर पर वरूद के मअनी दख़ूल के हों तब तो हमें यक़ीन कर लेना चाहिए कि आप फ़ील-फ़ौर इस्लाम छोड़कर मसीहीय्यत के दायरे में दाख़िल होंगे। नाज़रीन हदीस जे़ल को ग़ौर से पढ़ें :—
अहादीस की शहादत कि वारिद के मअनी दाख़िल के हैं
- ان عبداللہ بن رواحتہ قال خبر اللہ عن الورود ولمہ یخبر بالصد ورنقال علیہ السلام یا ابن رواحتہ اقراما بعد ہاثم ننجی الذین اتقو
(तफ़्सीर कबीर जिल्द पंजुम सफ़ा 556 मत्बूआ मिस्र)
तर्जुमा: अब्दुल्लाह बिन रवाहा ने आँहज़रत सलअम से कहा कि ख़ुदा ने दोज़ख़ में दाख़िल होने की ख़बर तो दी लेकिन इस से निकलने की ख़बर ना दी आँहज़रत ने कहा कि ए रवाहा के बेटे उस के बाद का जुम्ला पढ़ो कि सुम्मा ननजी अल-लज़ीन उत्तकवा। (ثم ننجی الذین اتقوا۔) - ام مبشرہ لایدخل النانشاء اللہ من اصحاب الشجرہ احد الذین بالیعوا تحتھا فقالت حفصتہ بلی یار سول اللہ فانتھر ھافقالت حصفتہ وان منکم الاوارد فقال النبی صلی اللہ وسلم فقد قال اللہ تعالیٰ ثم ننجی الذین اتقوا ونذر الظالمین فیھا جثیا
(मशारिक़ अल-अनवार हदीस नंबर 638)
तर्जुमा: "किताब मुस्लिम में उम्म मुबश्शिर से रिवायत है कि हज़रत ने फ़रमाया कि अगर ख़ुदा ने चाहा तो ना होगा दाख़िल दोज़ख़ में दरख़्त वाले अस्हाब से कोई जिन्होंने उसके नीचे बैअत की तो हज़रत हफ़्सा ने कहा क्यों ना दाख़िल होंगे या रसूल-अल्लाह सो हज़रत ने उनको झिड़का। फिर हज़रत हफ़्सा ने कहा कि ख़ुदा क़ुरआन में फ़रमाता है कि "तुम में से हर एक दोज़ख़ में दाख़िल होगा।” आँहज़रत ने फ़रमाया कि ख़ुदा इस से आगे फ़रमाता है कि "फिर हम बचाएँगे परहेज़गारों को और बद्किर्दारों को घुटनों के बल इस में पड़े रहने देंगे।
कहो मौलवी साहब ! अब भी कुछ उज़्र बाक़ी है ? हक़ीक़त ये है कि आप सिर्फ नाम के अहले हदीस हैं। आपको अहादीस पर उबूर हासिल नहीं। वर्ना कभी ये तअल्ली ना करते कि जिसकी बाबत हदीसों में ऊपर का लफ़्ज़ आया है ना कि अंदर। अगर आप ये नामाक़ूल उज़्र करें जैसी आपकी आदत है कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाहा और हज़रत हफ़्सा ने वरूद के मअनी दख़ूल के किए हैं ना कि आँहज़रत ने तो हम ये कहते हैं कि अगर हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाहा और हज़रत हफ़्सा ने वरूद के मअनी ग़लत बतलाए तो आँहज़रत पर फ़र्ज़ था कि इन को बतलाते कि तुमने ग़लत माने किए हैं। इस के मअनी दख़ूल के नहीं हैं बल्कि "पास से गुज़रने के हैं।” लेकिन आँहज़रत का ख़ामोश रहना साफ़ बतला रहा है कि आयत ज़ेर-ए-बह्स में वारिद के मअनी दाख़िल होने के हैं ना कुछ और I
ये लीजिए हम आपको एक और ऐसी हदीस बतला देते हैं जिसमें ख़ुद आँहज़रत ने वरूद (وَارِدُ) के मअनी दख़ूल के बतलाएं हैं।
وعن جابر انہ سل عن ھذا الایتہ فقال سمعت رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم یقول الورود الدخول لایبقی برولا فاجرا وخلھا فتکون علےٰ المومنین برداً اوسلاماً حتی ان الناس صنجيجا من بودھا
(तफ़्सीर कबीर जिल्द पंजुम सफ़ा 556 मत्बूआ मिस्र)
तर्जुमा: हज़रत जाबिर बयान करते हैं कि किसी ने इस (आयत ज़ेर-ए-बह्स) के मुताल्लिक़ उन से सवाल किया तो हज़रत जाबिर ने कहा कि मैंने आँहज़रत को ये कहते हुए सुना है कि वरूद (وَارِدُ) के मअनी दख़ूल के हैं और कोई ऐसा नेक और बदकिर्दार शख़्स बाक़ी ना रहेगा जो दोज़ख़ में दाख़िल ना हो। लेकिन नेक किरदारों पर वो ठंडा और बे ज़ररिबन जाएगा। यहां तक कि उस की सर्दी से लोग चिल्ला उठेंगे।
लो अब तो फ़ैसला हो गया कि आयत ज़ेर-ए-बह्स में वारिद (وَارِدُ) के मअनी दाख़िल के हैं।
अब आप ही इन्साफ़ से कह दें कि आपके इस मनक़ूला शेअर का कि :—
गदाईयाँ राज़ाएं मअनी ख़बर नीस्त | कि सुल्ताँ जहां बामासत इमरोज़ |
मिस्दाक़ कौन है। हम या आप ?
पस साबित हो गया कि आयत ज़ेर-ए-बह्स में वारिद (وَارِدُ) के मअनी दाख़िल के हैं। क्योंकि ख़ुद क़ुरआन शरीफ़ की शहादत "अशआर अरब की "शहादत" और अहादीस की "शहादत" हमारे हक़ में है ना कि आपके हक़ में।
मौलवी साहब ! मैं फिर कहता हूँ कि आप बेचारे क्या अगर तमाम मुसलमान इकट्ठे हों और आप जैसे करोड़ों शेर क़ालीन उनकी मदद में हों तब भी वोह इस्लाम में नजात साबित नहीं कर सकेंगे I