बाब अव़्वल
"सबसे पहले मसीह मस्लूब हुआ"
Three Crosses |
मुक़द्दस पौलुस कुरन्थियो की कलीसिया के पहले ख़त में यूं रक़म तराज़ है:—
"मैंने सबसे पहले तुमको वही बात पहुंचा दी जो मुझे पहुंची थी कि मसीह किताब-ए-मुक़द्दस के बमूजब हमारे गुनाहों के लिए मुआ।
ग़ौर व तवज्जोह से मुताला करने वाला क़रीने से मालूम करेगा (जैसे डाक्टर माफ़ट ने अपने तर्जुमें में बख़ूबी ज़ाहिर कर दिया है) ये हक़ीक़त पौलुस रसूल के पैग़ाम का लब्बे-लुबाब उसकी तालीम का मर्कज़ और उस की ख़ुशख़बरी का ख़ास मौज़ू थी।
उस के तर्जुमा में "ख़ुशख़बरी" का लफ़्ज़ चार मर्तबा इस्तिमाल किया गया है ताकि उस बशारत के मआनी को रोशन करे। पौलुस रसूल फ़रमाता है कि उस ने ये ख़ुशख़बरी फ़क़त क़दीमी कलीसिया के शुरका से ना सुनी थी। बल्कि उसका इल्हाम उस पर बराह-ए-रास्त हुआ। (ग़लतीयों 1: 15 ता 19)
पस कलीसिया और ख़ुद मुक़द्दस पौलुस का ये एतिक़ाद था कि मसीह का हमारे गुनाहों के लिए अपनी जान देना मसीही दीन की असल बुनियाद है। पौलुस रसूल ने मसीह की मौत के बाद सात साल के अरसा के अंदर ही अंदर उस हक़ीक़त का एहसास क्या होगा। और उस की मुनादी की होगी। बल्कि बाअज़ बयानात के मुताबिक़ तो शायद उस से भी पेशतर।
जिस यूनानी लफ़्ज़ का तर्जुमा "सबसे पहले" किया गया है उस का मतलब "इब्तिदा में" या तमाम सच्चाई का “शुरू” भी किया जा सकता है। यही अल्फ़ाज़ सीपटवाजनट में भी मुस्तअमल हैं। जहां याक़ूब ने दो लौंडियों और उन के बेटों को "सबसे आगे" रखा (पैदाइश 23:2) और उस मुक़ाम पर भी जहां दाऊद ने उस शख़्स के लिए भारी इनाम का वाअदा किया जो यबोसीयों को "सबसे पहले" मारे (2 सामुएल 5:8)
मुक़द्दस पौलुस के नज़दीक मसीह की सलीबी मौत सबसे अहम तरीन वाक़ेया उसके ईमान का सबसे अफ़्ज़ल वगरानक़दर अक़ीदा और उसका बुनियादी उसूल है और सच्चाई की हैकल के महिराब का दर्मयानी पत्थर और कोने के सिरे का पत्थर है।
इस अम्र की तस्दीक़ इससे भी होती है कि कुतुब-ए-मुक़द्दसा पैग़ाम रसुल और जुमला कलीसियाओं में हर दो साकरीमन्टों के अदा करने के क़वाइद व क़वानीन और पुराने और नए गीतों की किताब में इस हक़ीक़त को सबसे अफ़्ज़ल व आला-तरीन जगह हासिल है।
इस हक़ीक़त के इस कदर सबूत मौजूद हैं कि हैरत होती है। सलीब मसीहीयत का फ़क़त आलमगीर निशान ही नहीं बल्कि लारेब और पुरुज़ोर कलाम है जो दोधारी तल्वार से ज़्यादा तेज़ है। क्योंकि फ़क़त सलीब यही है जो लोगों को गुनाह से क़ाइल कर सकती है। सलीब के पास आकर हम मसीह के चेहरे के जल्वे में अपने पोशीदा गुनाहों को देख सकते हैं जिसकी आँख आग के शोला की मानिंद रोशन हैं।
ज़रा आप ग़ौर तवज्जा से सुनिए कि बिशप लीनसी लाट एंड्र्यूज़ (Lancelot Andrews) अपनी शख़्सी इबादत के वक़्त सलीब के पास आकर किस रिक़्क़त और दिल सोज़ी के साथ अपने दिली जज़्बात का इज़्हार करता है:—
"ऐ तू कि जिसने अपने जलाली सर को मेरी ख़ातिर ज़ख़्मी किया जाना गवारा किया। जो गुनाह मेरे सिर के हवास के ज़रीया से सरज़द हुए हैं। उन्हें अपने उस मुबारक सर की ख़ातिर माफ़ फ़र्मा।"
"ऐ तू कि जिसने अपने पाक हाथों को मेरी ख़ातिर ज़ख़्मी किया जाना क़बूल किया। जो गुनाह मेरे इन हाथों से नापाक अश्या को छूने से सरज़द हुए हैं उन्हें अपने पाक हाथों की ख़ातिर बख़्श दे।"
"ऐ तू कि जिसने अपने क़ीमती और मुक़द्दस पहलू में भाला खाना मेरी ख़ातिर मंज़ूर किया। मेरे तमाम गुनाह जो नफ़्सानी ख़ाहिशात और ख़्यालात के ज़रीया से सरज़द हुए हैं इसे अपने ज़ख़्मी पहलू की ख़ातिर माफ़ फ़र्मा।"
"ऐ तू कि जिसने अपने मुबारक पांव का मेरी ख़ातिर तोड़ा जाना गवारा किया जो गुनाह मेरे पांव के बदी की जानिब तेज़ रफ़्तारी से जाने के बाईस सरज़द हुए हैं उन्हें अपने इन पाक पांव की ख़ातिर माफ़ फ़र्मा।”
"ऐ तू कि जिसने अपने तमाम बदन का मेरी ख़ातिर घायल किया जाना क़बूल किया। जो गुनाह मेरे आज़ा से सरज़द हुए हैं उन्हें अपने उस जिस्म अतहर की ख़ातिर माफ़ फ़र्मा।”
"ऐ मेरे ख़ुदा ! मेरी रूह निहायत ही ज़ख़्मी और बे हाल है। तू मेरे ज़ख़्मों की ज़्यादती और उन के तूल व अर्ज़ और उन की गहराई पर नज़र कर और अपने ज़ख़्मों की ख़ातिर मेरे ज़ख़्मों का इंदिमाल कर।”
मसीह की सलीब ख़ुदा का वो ज़बरदस्त नूर है जो ख़ुदा की मुहब्बत और इन्सान के गुनाह को ख़ुदा की क़ुदरत और इन्सान की आजिज़ी को ख़ुदा की पाकीज़गी और इन्सान की नजासत को ज़ाहिर करता है।
जिस तरह अहद-ए-अतीक़ में मज़बह और क़ुर्बानी "सबसे पहले" हैं। इसी तरह सलीब और कफ़्फ़ारा अह्दे-जदीद में "सबसे पहले" हैं। जिस तरह दायरा के हर एक नुक़्ता से मर्कज़ की जानिब एक ख़त-ए-मुस्तक़ीम खींचा जा सकता है। बईना अहद-ए-अतीक़ व जदीद के अक़ाइद व तालीम नजात और तमाम ऐसी अश्या जो उन से मुताल्लिक़ हैं मसलन एक नया दिल एक नई जमात और एक नया आस्मान के वसीअ दायरे से एक ख़त-ए-मुस्तक़ीम मर्कज़ की जानिब खींचा जा सकता है। यानी उस बर्रे की जानिब जो बनाए आलम से पहले ज़बह किया गया।
ज़रा ग़ौर कीजिए कि अहद-ए-जदीद में मसीह की सलीबी मौत के बयान को कैसी अहमीयत हासिल है। ये बयान तीन मुख़्तसर ख़ुतूत के सिवा इंजील जलील की तमाम कतुब में मर्क़ूम है। यानी सिर्फ फ़लीमोन और यूहन्ना के दूसरे और तीसरे ख़ुतूत में इसका ज़िक्र नहीं।
इजमाली अनाजील मसीह की तालीम और उस की ज़िंदगी के इस पहलू पर बमुक़ाबला दीगर पहलूओं के कहीं ज़्यादा ज़ोर देती हैं। मुक़द्दस मत्ती (उन मुक़ामात के इलावा जहां मसीह की मौत की पेशीनगोई की गई है) उस अफ़सोसनाक और अंदोहनाक बयान को दो तुल तवील अबवाब में तहरीर करता है जिनकी आयात शुमार में एक सौ इक्तालीस 141 हैं।
मुक़द्दस मरकुस इसको 119 आयात में बयान करता है। यानी 16 सोलह अबवाब की किताब में से दो बड़े अबवाब में।
मुक़द्दस लूक़ा ने भी मसीह की गिरफ़्तारी और उसकी सलीबी मौत के बयान के लिए दो बड़े अबवाब वक़्फ़ कर दिए हैं।
मुक़द्दस यूहन्ना की किताब का नस्फ़ से ज़्यादा हिस्सा मसीह के दुख उठाने और सलीब पर खींचे जाने के हाल से पर है।
आमाल की किताब में मुनादी और बशारत का मर्कज़ मसीह की मौत और उसका ज़िंदा होना है "यही ख़ुशख़बरी" है उसने अपने दुख सहने के बाद अपने आपको ज़ाहिर किया (आमाल1:3)
पिन्तिकोस्त के दिन मुक़द्दस पतरस के वाअज़ का लब्बे-लुबाब ये था कि:—
"जब वो ख़ुदा के मुक़र्ररा इंतिज़ाम और इल्मे साबिक़ के मुवाफ़िक़ पकड़वाया गया तो तुमने बे-शरा लोगों के हाथ से उसे सलीब दिलवाकर मार डाला।”
"ख़ुदा ने उसी येसु को जिसे तुमने सलीब दी ख़ुदावंद भी किया और मसीह भी" (आमाल 2:36)
फिर हैकल में भी पतरस वही पैग़ाम देता है। "तुमने दरख़्वास्त की कि एक ख़ूनी तुम्हारी ख़ातिर छोड़ा जाये मगर ज़िंदगी के मालिक को क़त्ल किया।”
पतरस का दावा ये था कि "ख़ुदा ने सब नबियों की ज़बानी पेशतर ख़बर दी थी कि उसका मसीह दुख उठाएगा" लेकिन "ख़ुदा ने अपने ख़ादिम को उठाकर पहले तुम्हारे पास भेजा। ताकि तुम में से हर एक को उस की बदियों से फेर कर बरकत दे" (आमाल 3:18, 26) दूसरे दिन फिर उसने उसी मज़मून पर वाअज़ किया यानी "येसु नासरी जिसे तुमने सलीब दी" (आमाल 4:10)
कलीसयाए साबिक़ की पहली रस्मी दुआ में "तेरे सादिक़ बंदे येसु" की मौत और उस के दुख उठाने का हवाला है (आमाल 4:27) ऐसे पैग़ाम का नतीजा ऐसे सरीह अल्फ़ाज़ में बयान किया जाता है जिनसे उस के मतलब और मआनी के मुताल्लिक़ कोई शक व शुब्हा बाक़ी नहीं रहता।
यानी "तुमने तमाम यरूशलेम में अपनी तालीम फैलादी और उस शख़्स का ख़ून हमारी गर्दन पर रखना चाहते हो" (आमाल 5:28) रसूलों ने इस के जवाब में यूं फ़रमाया "जिसे तुमने सलीब पर लटका कर मार डाला था। उसी को ख़ुदा ने मालिक और मुनज्जी ठहरा कर अपने दहने हाथ से सर-बुलंद किया......I"
इस्तफ्नस की तक़रीर का ख़ुलासा मसीह की सलीबी मौत का बयान था जिसका नतीजा उस की शहादत हुई (आमाल 7:51 ता 54) फिलिप्पुस ने अपनी ज़बान खोल कर हब्शी ख़ोजा को यशायाह नबी के 53 बाब में से येसु की मौत की ख़ुशख़बरी दी (आमाल 8:35) कुर्लिनियुस को भी इसी का पैग़ाम पहुंचाया गया। "जिसे उन्होंने सलीब पर लटका कर मार डाला। उस को ख़ुदा ने तीसरे दिन जिलाया और ज़ाहिर भी कर दिया।” (आमाल 10:40) मुक़द्दस पौलुस ने आन्ताकिया में वाअज़ करते हुए ख़ुदावंद मसीह की ख़बर मुंदरजा जे़ल अल्फ़ाज़ में दी:—
"उन्होंने पिलातुस से उस के क़त्ल की दरख़्वास्त की और जो कुछ उस के हक़ में लिखा था जब उस को तमाम कर चुके तो उसे सलीब पर से उतार कर क़ब्र में रखा लेकिन ख़ुदा ने उसे मुर्दों में से जिलाया" (आमाल 13:28 ता 29)
थिस्सलुनी में पौलुस मुतवातिर तीन सबतों तक किताब-ए-मुक़द्दस के हवाले देकर उन के साथ बेहस करता रहा । और दलीलें पेश करता रहा कि "मसीह को दुख उठाना और मुर्दों में से जी उठना ज़रूर था" (आमाल 17:3)
अथने में पौलुस ने मसीह की मौत और उस के जी उठने की मुनादी की । (आमाल 17:31) करंथियुस में पौलुस ने ये इरादा कर लिया था कि उनके दरमियान येसु मसीह बल्कि मसीह मस्लूब के सिवा और कुछ ना जानूंगा"...वह “खुशखबरी” मेरे एतबार से मस्लूब हुई और और मैं दुनिया के एतबार से” मसीह वो "अज़ीज़" है जिसके ज़रीये से "हमको उसके ख़ून के वसीले से मख़लिसी यानी क़ुसूरों की माफ़ी...हासिल है।”
येह ज़मानों का भेद और ख़ुदा की चंद-दर-चन्द और गौना गौन हिक्मत है। जो रियासतों और हुकूमतों और इख़्तयारात पर कलीसिया के ज़रीया से ज़ाहिर हुई। पौलुस रसूल हमें रो-रो कर बताता है कि वो जो "मसीह की सलीब के दुश्मन हैं" वो अपनी शर्म की बातों पर फ़ख़र करते हैं और उनका अंजाम हलाकत है।
सब बातों में मसीह का अव़्वल दर्जा होना चाहिए। क्योंकि "वो अपने उस ख़ून के सबब से जो सलीब पर बहा।” हमारे गुनाहों की माफ़ी और हमारी नजात है। (कुलुस्सियों 1:18)
सलीब दुनिया और उस की तारीख़ का मर्कज़ है। वो वक़्त ज़रूर आएगा जब ख़ुदा उस के ख़ून के सबब से जो सलीब पर बहा सब चीज़ों का अपने साथ मेल करेगा ख़्वाह वो ज़मीन की हों ख़्वाह आस्मान की (कुलुस्सियों 1:2)
इब्रानियों के ख़ुतूत में मसीह (जो ख़ुद काहिन, क़ुर्बानी और कुर्बानगाह है) की मौत का ऐसा वाज़िह और रोशन बयान पाया जाता है कि हवाले पेश करने की कोई ज़रूरत नहीं। वो एक ऐसा आला सरदार काहिन है जो ज़मानों के आख़िर में "एक-बार ज़ाहिर हुआ ताकि अपने आपको क़ुर्बान करने से गुनाह को मिटा दे ।"
मसीह का ख़ून अह्द का ख़ून है। मसीह हमारे ईमान का बानी और उस का कामिल करने वाला है। क्योंकि उस ने सलीब पर दुख उठाया। उस का छिड़काओ का ख़ून हाबिल के ख़ून की निस्बत ज़्यादा बेहतर बातें कहता है। वो एक अज़ली अह्द का ख़ून है जो उस बुज़ुर्ग चरवाहे ने अपनी भेड़ों के लिए बहाया।
मुक़द्दस पतरस के ख़ुतूत में उस की इब्तिदा तालीम की सदा गूंजती हुई सुनाई देती है और वो मसीह के दुख उठाने के हवालों से भरपूर है:—
“वो आप हमारे गुनाहों को अपने बदन पर लिए हुए सलीब पर चढ़ गया...और उस के मार खाने से तुमने शिफ़ा पाई” (1पतरस 2:24)
आख़िर में जब हम मुक़द्दस यूहन्ना के ख़ुतूत और मुकाशफ़ात तक पहुंचते हैं तो हमको मालूम होता है कि वहां भी सलीब को सबसे आला और अफ़्ज़ल दर्जा हासिल है। उसके ज़रीये से मसीह येसु “हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा है और ना सिर्फ हमारे गुनाहों का बल्कि तमाम दुनिया के गुनाहों का भी” उसने हमारे वास्ते अपनी जान दी और हम पर भी भाईयों के वास्ते जान देनी फ़र्ज़ है।” जिसने अपने ख़ून के वसीले से हम को गुनाहों से ख़लासी बख़्शी......उसका जलाल और सल्तनत अबदालाबाद रहे।” देखो वो बादलों के साथ आने वाला है और हर एक आँख उसे देखेगी और जिन्होंने उसे छेदा था वो भी देखेंगे।
इन दोनों साकरीमन्टों में जो मशरिक़ी और मग़रिबी हर दो कलीसियाओं में मक़्बूल हैं इस अम्र के मुताल्लिक़ साफ़-ओ-सरीह इशारात मौजूद हैं कि मसीह की मौत हमारे गुनाहों के लिए लाज़िमी थी ये ना सिर्फ उन क़वानीन और उस तालीम से ज़ाहिर होता है जो इंजील शरीफ़ में उन के मुताल्लिक़ दर्ज है बल्कि उन मुख़्तलिफ़ आदाब नमाज़ से भी अयाँ है जो उन से इलाक़ा रखते हैं यहां भी हम ये कह सकते हैं कि "सबसे पहले" वो मसीह की मौत और कफ़्फ़ारा की तालीम देते हैं।
बपतिस्मा और इस्तिबाग़ मसीही कलीसिया में शामिल होने की एक रस्म है। अहद-ए-जदीद में ग़ैर इस्तिबाग़ याफताह मसीहीयों का ज़िक्र कहीं नहीं पाया जाता और उन अव्वलीन मसीहीयों को बख़ूबी मालूम था कि मुक़द्दस पौलुस की क्या मुराद थी। जब उसने फ़रमाया:—
"जितनों ने.....बपतिस्मा लिया तो उस की मौत में शामिल होने का बपतिस्मा लिया ।
वो उस से ख़ूब वाक़िफ़ थे कि गुनाहों की माफ़ी और इस्तिबाग़ और उस आब और ख़ून में बहुत क़रीबी मुनासबत और ताल्लुक़ था जो मसीह के ज़ख़्मी पहलू से बहे थे।
दोनों साकरीमन्टों की मुराद ये थी कि इंजील का पैग़ाम सही अलामात व निशानात के ज़रीये से पहुंचाया जाये। जब तक वो कलीसिया में मौजूद रहेंगी तो बावजूद इन रसूम और तुहम्मात के जिनका इज़ाफ़ा उन पर किया गया है वो हमेशा मसीह की मौत की नजात बख़्श तासीर उसकी तिब्बी रास्ती, उस की ज़रूरत और उस की मर्कज़ी ख़ासीयत की शहादत देती रहेंगी।
इब्तिदाई कलीसिया के शुरका "रोटी तोड़ने में मशग़ूल रहे क्योंकि उस के ज़रीये से वो मसीह की मौत और उस के ख़ून के सबब गुनाहों की माफ़ी का इज़्हार करना चाहते थे। ये जिस्म और ख़ून की शराकत (1 कुरन्थियो 10:16) उस की रूह में शरीक होना (1 कुरन्थियो 12:13) गुनाहों की माफ़ी (मत्ती 26:28) क़र्ज़ की दस्तावेज़ मिटा डालना (कुलुस्सियों 2:14) और दिलों को मुर्दा कामों से पाक करना है (इब्रानियों 9:14) उसी ने इब्तिदाई कलीसिया और उस के माबाद की कलीसियाओं के लिए रोटी तोड़ने को उन्नीस सदीयों तक इस क़दर गिरां बहा और अहम बना दिया।
जब हम रस्मियात से ग़ज़लियात की तरफ़ मुतवज्जा होते हैं तो वहां भी हम इस की तस्दीक़ पाते हैं। अगर हम इब्तिदाई लातीनी और यूनानी ग़ज़लों और अर्मनी और क़िबती कलीसियाओं बल्कि उस के इलावा इस्लाह दीन के ज़माना की कलीसियाओं के गीतों को देखें तो मालूम हो जाएगा कि वहां सलीब को सबसे अफ़्ज़ल और आला दर्जा हासिल है।
और हमारे ख़ुदावंद की मौत और रूहों को तहरीक देने वाली है। हम कलीसिया के गीतों में वो यगानगी पाते हैं और अल-हयात के उस उमुक़ का मुलाहिज़ा करते हैं जो बाज़-औक़ात हमें अक़ाइद में भी नज़र नहीं आता।
"ज़बह किया हुआ बर्रा ही क़ुदरत और दौलत और हिकमत और ताक़त और इज़्ज़त और तम्जीद और हम्द के लायक़ है"
बर्रा तख़्त के दरमियान है। हर एक मख़्लूक़ हल्लेलुयाह के नारे बुलंद करने में मशग़ूल होती है। हर एक सर-ज़मीन और हर एक मुल्क के बच्चे मुख़्तलिफ़ ज़बानों में निहायत ख़ुश अलहाफ़ी से इंजील की मर्कज़ी तालीम के गीत गाते हैं।”
येसु मुझको करता प्यार | मुझ पर हुआ जान-निसार | |
वो गुनाह मिटाता है | बच्चों को बुलाता हे |
कलीसिया के गीतों और ग़ज़लों का ज़्यादातर हिस्सा मसीह की मौत के बयान से मुताल्लिक़ है या सलीब पर मसीह के कफ़्फ़ारा होने के ख़्याल को ज़ाहिर करता है । कौन उस ख़ूबसूरत गीत के अल्फ़ाज़ को Haupt voll Blut und Wunden भूल सकता है जो मुख़्तलिफ़ ज़बानों में तर्जुमा हो चुका है या कौन है जिसने जर्मन मसीहीयों को ये गीत एक मर्तबा गाते सुना हो और उस के सुरों की दिलसोज़ी और दिल गुदाज़ी को भूल जाये।
इसी मज़मून का एक और गीत Stabat Mater Dolorosa है जो लातीनी ज़बान में है। लेकिन वो फ़क़त लातीनी कलीसिया ही की मिल्कियत नहीं बल्कि तमाम ईमानदारों को मर्यम के हमराह मसीह की सलीब के पास आते हैं। इसी क़िस्म के ये गीत हैं:—
“मैं जैसा हूँ , ना उज़्र कर” | “एक चशमा शाफ़ी जारी है” | |
“एक चशमा शाफ़ी जारी है” | और | “येसु तू है मेरी आस” |
वग़ैरा वग़ैरा सब के सब जिनसे क़रीबन तमाम मसीही जमात वाक़िफ़ है। मसीह की मौत के बयान से मुताल्लिक़ हैं। इसी तरह के और गीत भी हैं मसलन:—
दाग़ दिल के धोए कौन | लहू जो क्रूस से जारी" और | |
"ख़ाली हाथ मैं आता हूँ | क्रूस पर तकिया करता हूँ | |
नंगा हूँ फ़क़ीर बदहाल | मुझ नाचार को कर निहाल | |
दे तू मुझे साफ़ पोशाक | कर तू मेरे दिल को पाक" |