बाब दोम
"हमने दग़ा-बाज़ी की घड़ी हुई कहानीयों की पैरवी नहीं की"
वो जो ख़ुदा के इन बयानात पर यक़ीन लाते हैं जो उस ने अपने बेटे के मुताल्लिक़ अनाजील में रूह की हिदायत से लिखवाए हैं। इन की सदाक़त के मुताल्लिक़ अपने दिलों में किसी क़िस्म के शक व शुबहा को जगह नहीं देते। इन के पास रूह की गवाही मौजूद है कि जो कुछ लिखा है वो वाक़ई सच्च है। वह मुक़द्दस पतरस के साथ उस बात पर ईमान लाते हैं कि मसीह की मौत और उस के दुख उठाने के तमाम वाक़ियात और उस का जलाली तौर से ज़िंदा होना “दग़ाबाज़ी की घड़ी हुई कहानियां नहीं हैं”
पतरस मसीह की मुसीबत और उस के दुख उठाने का चशम-दीद गवाह था और मरकुस उस का शागिर्द था। मुक़द्दस यूहन्ना ने उस का बयान किया जो उस ने ख़ुद सुना। अपनी आँखों से देखा। बल्कि ग़ौर से देखा और अपने हाथों से छुवा था। (1 यूहन्ना 1:1)
मुक़द्दस मत्ती बारह शागिर्दों में से एक था। मुक़द्दस लूक़ा बताता है कि किस तरह उस ने अपने बयान के लिए निहायत एहतियात के साथ चशमदीद गवाहों की तलाश की ताकि "हमें असल हक़ीक़त मालूम हो जाएगी।”
उस पुर-तज़बज़्ब, शक व शुबहा और नुक्ता चीनी के ज़माने में ऐसे लोगों से वास्ता पड़ता है जो ना सिर्फ इन्जीली बयानात का बल्कि उन के मोतबर होने और उनकी सदाक़त का भी इन्कार करते हैं । बाअज़ हमें अलैहिदह बताते हैं कि येसु मसीह महिज़ एक फ़र्ज़ी और ख़्याली शख़्सियत है और उसकी ज़िंदगी की दास्तान दरहक़ीक़त "दग़ाबाज़ी की घड़ी हुई कहानियां हैं।” जिनकी इब्तिदा-ए-इब्तिदाई और वक़्ती रूमी, यूनानी और मिस्री तुहमात से हुई थी।
क़दीमी मुल्हिदीन ने अपने अक़ाइद की बिना पर मसीह की मौत का इन्कार किया है। क़ुरआन में बह मुफ़स्सील यह बयान पाया जाता है कि:—
मसीह ना तो क़त्ल किया गया और ना मस्लूब हुआ "अल्लाह ने उन पर (यानी अहले यहूद पर) उन की बेईमानी की मुहर लगा दी उस वजह से कि उन्होंने कहा था यक़ीनन हमने मसीह येसु इब्ने मर्यम और ख़ुदा के रसूल को क़त्ल किया। लेकिन फ़िल-हक़ीक़त ना तो उन्होंने उसे क़त्ल किया और ना इसे सलीब दी। बल्कि उन की ख़ातिर उस का हम-शक्ल भेजा गया था" (4:156)
रासिख़-उल-एतक़ाद मुसलमान महिज़ उलमाए दीन और मुफ़स्सिरीन के इस बयान से मुताल्लिक़ तशरीहों और तफ़सीरों को अपनी बेएतिक़ादी की बिना क़रार देकर हमेशा मसीह की तसलीब की तर्दीद करते रहे हैं। इनके दरमियान उमूमन ये ख़्याल राइज है कि ख़ुदा ने उसके सताने वालों पर जादू डाल कर मसीह को इस होलनाक मौत से बचा लिया और उसके इव्ज़ यहूदा इस्करियुती को ये सज़ा उठानी पड़ी।
इसके मुताल्लिक़ मुख़्तलिफ़ तशरीहात मौजूद हैं। लेकिन इस अम्र पर सब मुसलमान मुत्तफ़िक़ हैं कि मसीह सलीब पर नहीं मारा गया। उसने हमारे गुनाहों की ख़ातिर अपनी जान फ़िद्या में नहीं दी। वो मुर्दों में से हरगिज़ ज़िंदा नहीं हुआ। और उसने इस जहान से दूसरे जहान की जानिब सलीब की राह से इंतिक़ाल ना किया।
स्टरास (Strauss) और दीगर अक़्ल परस्तों के इस नज़रिया को कि ऐन मौत से पेशतर मसीह का जिस्म सलीब पर से उतार लिया गया था। और कि वो क़ब्र में मुख़्तलिफ़ मसालों के ज़ेर-ए-असर ज़िंदा और ताज़ा-दम हो गया था। पंजाब के अहमदिया फ़िर्क़ा ने फ़ौरन तस्लीम कर लिया और उस फ़िर्क़ा के बानी मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादयानी ने भी नज़रिया मज़कूर को एक रुसी क़िस्सा नवीस नोनोविच (Nonovitch) की किताब "मसीह की नामालूम ज़िंदगी" से अख़ज़ किया। इस किताब के बयान के मुताबिक़ मसीह सफ़र करता हुआ हिन्दुस्तान में आया और यहां तालीम देता रहा। कुछ अरसा बाद मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने कश्मीर में मसीह की क़ब्र दर्याफ़्त की और अपने आपको मसीह-ए-सानी मशहूर किया।
इस जमात ने निहायत चालाकी और सरगर्मी से तमाम इस्लामी दुनिया को इस नए मुख़ालिफ़-ए-मसीह की तालीम से भर दिया है। मुल्क आयरलैंड का फ़सानानिगार जॉर्ज मोर (George Moore) तो अपनी किताब "दी ब्रूक केरीथ" (The Brook Kerith) में यहां तक कह जाता है कि मसीह फ़िल-हक़ीक़त सलीब पर नहीं मरा बल्कि बेहोश हो गया था और बादअज़ां वो होश में आकर और ताज़ा-दम हो कर अपनी सोशियल ख़िदमत को ज़्यादा वसीअ पैमाना पर अंजाम देता रहा।
पस मग़रिब में इस नज़रिये के पेश करने वाले और मशरिक़ में आँहज़रत के सैंकड़ों मोअतक़िद कि जिनके एतिक़ाद की बुनियाद ईलाही मुकाशफ़ा पर क़ायम है हमारे पैग़ाम की सबसे आला तरीं और अफ़्ज़ल हक़ीक़त का इन्कार करते हैं।
लिहाज़ा हम अपने इस ईमान और उम्मीद के मुताल्लिक़ जिसके हम क़ाइल हैं क्या जवाब दे सकते हैं? क्योंकि हम उस के चशमदीद गवाह नहीं हैं। ज़बान अंग्रेज़ी में एक गीत है जिस के एक बंद का तर्जुमा कुछ यूं किया जा सकता है:—
"हमने ग़ौग़ाइयों और वहशी लोगों के दरमियान तुझे सलीब पर चढ़ाए जाते हुए। बचश्म ख़ुद नहीं देखा। ना हमने वो तेरी हलीम और पुर-मिन्नत सदा अपने कानों से सुनी कि ऐ बाप ! उन्हें माफ़ कर क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या करते हैं। ताहम इतना ज़रूर मानते हैं कि ये शर्मनाक फे़अल फ़िल-हक़ीक़त ज़हूर में आया कि जिससे कुल ज़मीन मुतज़लज़ल हुई और सूरज पर पर्दा ज़ुल्मत छा गया।”
हम क्यों इस के मोतक़िद हैं? ईमान सबूत पर मबनी होता है और यहां हैरत-अंगेज़ सबूत मौजूद हैं। अगर हम इस का बग़ौर मुताला करें तो इस से हमारा ईमान और भी ज़्यादा पुख़्ता और मज़बूत हो जाएगा।
सबसे पेशतर अगर हम ग़ौर करें तो ये मालूम हो जाएगा कि मसीह की मौत कोई ग़ैर मुतवक़्क़े बात ना थी। बल्कि इस का ज़िक्र वाज़िह तौर पर यहूदी पेशीनगोइयों के ज़रीया से किया गया था। और "एक ऐसे रास्तबाज़ आदमी" की क़िस्मत का बयान अफ़लातून ने भी इशारतन किया था। यशायाह नबी के सहीफ़ा का "यहोवाह का मुसीबतज़दा बंदा" दाऊद का ज़बूर जिसमें मसीह की मौत का नक़्शा खिचा है और दीगर मुक़ामात जहां मसीह की गिरफ़्तारी और उस की मौत के मुताल्लिक़ पेशीनगोई मर्क़ूम हैं। ये सब किताब मुक़द्दस के मुताअला करने वाले के लिए आम बातें हैं। इस आने वाले अहम वाक़ेअ की ख़बर मुद्दतदराज़ से दी जा रही थी।
यूहन्ना इस्तबाग़ी फ़रमाता है "देखो ख़ुदा का बर्रा" ये चंद अल्फ़ाज़ अह्देअतीक़ की तमाम तालीम का मजमूआ हैं। यानी बग़ैर ख़ून बहाए गुनाह की माफ़ी नहीं हो सकती । पस ज़रूर था कि ख़ुदा का बर्रा ज़बह किया जाये ताकि दुनिया के गुनाहों की माफ़ी हो। अगर हम इस हक़ीक़त से इन्कार करें कि "किताब मुक़द्दस के बमूजब मसीह हमारे गुनाहों के लिए मरा" तो अहदे अतीक़ एक मुअम्मा सा मालूम होगा जिसका हल मुम्किन नहीं।
बल्कि ख़ून की क़ुर्बानियां जो हर एक ज़माना और क़ौम में इन्सान के गुनाह की माफ़ी के लिए लाज़िमी तसव्वुर की जाती हैं एक ऐसा राज़ बन जाती हैं जिसके मआनी और मक़ासिद इन्सानी अक़्ल से बईद हो जाते हैं:—
"वो हमारे गुनाहों के सबब घायल किया गया और हमारी ही बदकारियों के बाईस कुचला गया। हमारी ही सलामती के लिए उस पर सियासत हुई ताकि उस के मार खाने से हम चंगे हों"
अल्फ़ाज़ माफ़ौक़ मसीह से 429 बरस पहले अफ़लातून के ज़माना से ज़रा पेशतर लिखे गए । अफ़लातून अपनी किताब पोलीशीह (Politia) जिल्द चहारुम में एक ऐसे क़ुर्बान होने वाले नजातदिहंदा का ज़िक्र करता है जिसकी अज़हद ज़रूरत थी ताकि दुनिया की रास्तबाज़ी को अज़ सर नो बहाल करे।”
एक कामिल रास्तबाज़ बंदा जिसके साथ निहायत बे इंसाफ़ी का सुलूक रवा रखा जाये बल्कि जो कोड़े खाए सताया जाये बाँधा जाये जिसकी आँखों की बसारत भी जाती रही और उन तमाम मुसीबतों के बर्दाश्त करने के बाद सतून से बाँधा जाये वही इस दुनिया की असली और हक़ीक़ी रास्तबाज़ी को बहाल कर सकता है हमें उस से कुछ सरोकार नहीं कि अफ़लातून ने एक बेगुनाह शख़्स का गुनाहगारों के लिए दुख उठाने और ख़ुदा से फिर उनका मेल कराने का ख़्याल कहाँ से लिया। हमारे मतलब के लिए यही काफ़ी है कि ये ख़्याल मौजूद है। और क़रीब क़रीब इसी क़दर वाज़िह और रोशन है जिस तरह यशायाह नबी की किताब में ईलाही पैग़ाम ।
ये मुम्किन ही नहीं कि कोई “मर्दे ग़मनाक” और ज़लील व ख्वार हुए बग़ैर या मस्लूब हुए बग़ैर कामिल रास्तबाज़ी की ज़िंदगी बसर कर सके।
सलीबी मौत खुद ख़ुदावंद मसीह के लिए भी कोई नागहानी और ग़ैर मुतवक़्क़े आफ़त ना थी इस से उस की उम्मीदें शिकस्ता व मादोम ना हुई थीं। बल्कि बरअक्स इस के उसे ये ख़ूब मालूम था कि ये बात अटल है । उसने इस होलनाक वाक़ेअ का यक़ीनी तौर से वक़ूअ में आने का बारहा ज़िक्र किया था। अपनी ख़िदमत के आग़ाज़ ही में उस ने इस मुसीबत के अक्स को देख लिया था। अपने बपतिस्मा के वक़्त उसने जो गुनाह से बिल्कुल नावाक़िफ़ था अपने आपको गुनेहगारों के साथ शुमार किया। अपनी ख़िदमत के आग़ाज़ ही में उस ने शागिर्दी की तारीफ़ करते हुए इस की मिसाल सलीब बर्दारी से दी थी।
अपनी मसीहाई का इक़रार करने के बाद "येसु अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर करने लगा कि मुझे ज़रूर है कि यरूशलेम को जाऊं..........और क़त्ल किया जाऊं चुनांचे आपने फ़रमाया कि:—
"इब्ने आदम आदमीयों के हाथ में हवाले किया जाएगा और वो उसे क़त्ल करेंगे और तीसरे दिन वो ज़िंदा हो जाएगा"
इजमाली इंजील के बयान के मुताबिक़ हमारे ख़ुदावंद कि ज़िंदगी के आख़िरी अय्याम बिलख़सूस अपने कम फ़ह्म शागिर्दों को अपनी होलनाक मौत की ख़बर देने और उन्हें उसका यक़ीन दिलाने में सर्फ़ हुए ।
मसीह के सलीब पर खींचे जाने का मुफ़स्सिल बयान जो अक्सर औक़ात चशमदीद गवाहों की शहादत पर मबनी है। ऐसा साफ़ और सरीह है कि इस में शक व शुबहा की हरगिज़ गुंजाइश नहीं रहती। उन्होंने उसकी शहादत ऐसे संजीदा और साफ़ अल्फ़ाज़ में दी है कि गोया उन्हें पहले ही से ये ख़्याल मद्द-ए-नज़र था कि इस हक़ीक़त के मुताल्लिक़ किसी क़िस्म के शक की कोई गुंजाइश बाक़ी ना रहे "येसु बड़ी आवाज़ से चिल्लाया और दम दे दिया......और जो सूबादार उस के सामने खड़ा था उसने उसे यूं दम देते हुए देखकर कहा ये आदमी बे-शक ख़ुदा का बेटा था" (मरकुस 15:37)
मुक़द्दस यूहन्ना बयान करता है “उन में से एक सिपाही ने भाले से उस की पसली छेदी और फ़ील-फ़ौर उस से ख़ून और पानी बह निकला” फिर आगे चल कर यूं फ़रमाता है:—
जिसने ये देखा उसने गवाही दी है और उस की गवाही सच्ची है और वो जानता है कि सच्च कहता है ताकि तुम भी ईमान लाओ।”
ये अल्फ़ाज़ किसी ऐसे शख़्स के नहीं जो सादा-लौह और ज़ूद एतिक़ाद हो या जिसने धोका खाया हो। उस सूबादार ने बाक़ायदा अपनी मंसबी हैसियत में पिलातुस को इस अम्र की ख़बर दी और उसे मसीह की मौत का यक़ीन दिलाया। (मरकुस 15:44)
अरमतीयह के यूसुफ़ ने मसीह की लाश को क़ब्र में दफ़न किया जहां मर्यम मगदलीनी और मसीह की वालिदा ने उसे क़ब्र में मुर्दा देखा।(मरकुस 15:47)
अहद-ए-जदीद के तमाम मुसन्निफ़ीन ने मसीह की मौत का असल वाक़ेअ सुपुर्द-ए-क़लम किया है। आमाल की किताब में किसी मुक़ाम पर भी कोई आवाज़ मसीह के मस्लूब होने का इन्कार करती हुई सुनाई नहीं देती । बहुत सी सदीयां बीत जाने के बाद हज़रत-ए-इन्सान को ये जसारत और दिलेरी होती है कि उस तारीख़ी वाक़ेअ के मुताल्लिक़ शक को जगह दे और अपनी दग़ाबाज़ी की घड़ी हुई कहानीयों को मुश्तहिर करे।
क़दीम तहरीरात का ज़बरदस्त मुताअला करने वाला और नुक्ता संज जोज़फ़ कलासनर अपनी जदीद तस्नीफ़ "नासरत का येसु" में लिखता है कि इजमाली अनाजील मोतबर हैं और येसु उन के बयान के मुताबिक़ दुनिया में पैदा हुआ और मर गया चंद साल का अरसा गुज़रा कि सामुएल ई स्टोक्स (Samuel E. Stokes) ने मसीही बयानात की सदाक़त का इज़्हार करने के लिए यहूदी और बुतपरस्त मुसन्निफ़ीन की शहादतों को फ़राहम किया।
मुम्किन है कि बहुत से लोग इस इंजील की ताईद व तस्दीक़ के मुताल्लिक़ जिस पर वो शक करते हैं । प्लीनी Pliny, टेकीटस (Tacitus), लोशीयन (Lucian) , युसिफस (Josephus) बल्कि सेल्सस (Celsus) की अरा को सुनना चाहें क्योंकि ये लोग मसीही जमात के दायरे से बाहर थे। टेकीटस रुम की आतिशज़दगी का ज़िक्र करते हुए बताता है कि किस तरह नीरू ने अपने ऊपर से शुबा मिटाने की कोशिश की और लिखता है कि:—
"पस इस ख़बर को फुर्र करने के लिए नीरू ने अपने इव्ज़ उन लोगों को मुजरिम ठहराया जिनसे अवामुन्नास उन के पोशीदा जराइम के बाईस नफ़रत करते हैं। उन्हें मसीही कह कर पुकारते हैं मसीह जिसके नाम से वो नामज़द हैं क़ैसर तबरईयास के अह्द में पनतुस पिलातुस हाकिम के हुक्म से मारा गया था। और वो मुज़िर तुहमात कुछ अरसा के लिए दब गए थे फिर कुछ अरसा के बाद वो अज़-सर-नूं सिर्फ़ यहुदियाह में जहां उस बिद्दत का आग़ाज़ हुआ था बल्कि रुम में फूट निकले जहां हर क़िस्म के क़त्ल और नजिस बेशर्मियाँ और क़बायह बाहम मिलकर राइज हो जाते हैं पस सबसे पहले उन में से बाअज़ को गिरफ़्तार किया और उन से जबरन इक़रार कराया फिर उन के इत्तिला देने पर एक अनबोह-ए-कसीर मुजरिम क़रार दिया गया। महिज़ इसलिए नहीं कि उन पर जुर्म-ए-आतशज़दगी साबित हुआ था बल्कि ज़्यादा-तर इस लिए कि वो इन्सानी नसल से नफ़रत रखने जुर्म के मुर्तक़िब थे वो ना सिर्फ क़त्ल ही किए गए। बल्कि निहायत बेइज़्ज़ती के साथ मारे गए यानी उन में से बाअज़ को जंगली दरिंदों की पोस्तीनें पहनाई गईं और फाड़ डालने वाले कुत्तों से फड़वाए गए। या सलीब पर लटकाए गए और फिर उन को आग लगादी गई। अक्सर औक़ात ग़ुरूब-ए-आफ़्ताब के बाद उन के जिस्मों को जलाया गया ताकि रात के वक़्त रोशनी का काम दें (अनलिज़ 15:44) (Annales 15:44)
सामोसटा कालूशैन Lucian of Samosata जो 100 ई. में पैदा हुआ था। अपनी किताब "परीगरीयन्स की वफ़ात" (Death of Peregrinus) में यूं कहता है:—
मसीही अब तक उस बुज़ुर्ग शख़्स की परस्तिस करते हैं जो मुल़्के फ़लस्तीन में मस्लूब किया गया था। इसलिए कि वही दुनिया में इस नए मज़्हब का बानी था। इन कमबख़्तों को ये यक़ीन-ए-वासिक़ है कि वो ग़ैर-फ़ानी हैं और ताअबद ज़िंदा रहेंगे। चुनांचे इसी सबब से वो मौत की चंदाँ परवाह नहीं करते। बल्कि बहुत से उन में से ख़ुशी के साथ अपने आपको मौत के हवाले कर देते हैं। इन के पहले शरीयत दहिंदा ने उन्हें यक़ीन दिलाया है कि जब वो एक मर्तबा यूनानी देवताओं का इन्कार कर देते हैं और अपने उस मस्लूब सोफ़सती पर ईमान ले आते हैं और उस के अहकाम वफ़र अमीन के मुताबिक़ अपनी ज़िंदगीयां गुज़ारते हैं तो वो एक दूसरे के भाई बन जाते हैं ।
युसीफ़स की किताब एनटीकोटीज़ (Antiquities) के दो मशहूर मुक़ामात से सब वाक़िफ़ हैं और ग़ालिबन वो असली और सही हैं। बहर-ए-हाल युसीफ़स की तमाम तारीख़ इंजील की ताईद करती है। हेरोदेस आज़म, उस का बेटा आरकैलास, हेरोदेस अनतीपास, हेरोदियास और उस की बेटी सलोमी, यूहन्ना इस्तबाग़ी, हन्ना काइफ़ा, पनतूस पिलातुस, फेलिक्स और उस की बीवी ड्रोसला जो यहुदन थी। हेरोदेस अगरपा, बरनीकी, फ़रीसी और सदुती येह तमाम युसीफ़स की तारीख़ में मज़कूर हैं। बल्कि उनका ज़िक्र और उन का बाहमी ताल्लुक़ भी बईना वही है जो अहद-ए-जदीद में मर्क़ूम है।
सेल्सस 170 ई. में एक एपीकीवरीन फिलासफर गुज़रा है जो मसीहीयत का एक निहायत ज़बरदस्त मुख़ालिफ़ था। उस की तस्नीफ़ "दी ट्रू डिस्कोर्स" (The True Discourse) के जवाब में ओरीजन लिखता है कि सेल्सस मसीह की जानकनी की तरफ़ इशारा करते हुए उस का मुज़हका उड़ाता है और उस के सबूत में मसीह का ये कलिमा पेश करता है "ए बाप अगर मुम्किन हो तो ये पियाला मुझसे टल जाये" वो मसीह "मस्लूब मसीह" कहता है और उन की बाबत जिन्होंने उसे सलीब दी थी यूं कहता है "तुम जिन्होंने अपने ख़ुदा को सलीब पर खींचा" वो मसीही अक़ीदा यानी उस पर कि “मसीह ने ये मुसीबत बनीनौ इन्सान के फ़ायदे के लिए उठाई” हमला करता है और मसीह के ज़िंदा होने की हक़ीक़त को ग़लत साबित करने की कोशिश करता है। वो फ़रिश्तों की तरफ़ इशारा करता है जो मसीह की क़ब्र पर ज़ाहिर हुए और जिन्होंने क़ब्र पर से पत्थर लुढ़काया था। वो जिस्म के ज़िंदा होने के मुताल्लिक़ मसीहीयों के ईमान की बेवक़ूफ़ी ज़ाहिर करने की कोशिश करता है और उन की तज़हीक करता है। इसलिए कि उन्होंने कहा कि "दुनिया मेरे एतबार से मस्लूब हुई और मैं दुनिया के एतबार से।” हमारे ख़ुदावंद की मौत और ज़िंदा होने के मुताल्लिक़ इंजील के एक मुख़ालिफ़ की ये शहादत एक निहायत अहम बात है।
इक़तिबास "यहूदीयों और बुतपरस्तों के मुताबिक़" सामुएल स्टोक्स सफ़ा 48 Samuel E. Stokes, The Gospel according to Jews and Pagans.
हमें ये तस्लीम करना पड़ता है कि अगर इन्सानी तारीख़ में कोई ऐसा वाक़ेया है जिसका सबूत मौजूद है तो वो ख़ुदावंद मसीह की मौत का बयान है। अशाए रब्बानी के मुक़र्रर किए जाने और ख़ुदावंद के पाक दिन के माने जाने से भी इस अम्र की ताईद व तस्दीक़ होती है।
रोटी का तोड़ना और पियाले में से पीना उसी रात से शुरू होता है। जिस रात येसु पकड़वाया गया था। उस ने ख़ुद उस साकरीमन्ट को मुक़र्रर किया और मसीही कलीसिया में आम तौर पर मक़बूलियत हासिल करना भी एक क़िस्म से मसीह की मौत का यक़ीनी और माक़ूल सबूत है ख़्वाह इस रस्म के मुताल्लिक़ मुख़्तलिफ़ तशरीहात क्यों ना की जाएं या तरीक़ इबादत एक दूसरे से मुतफ़र्रिक़ क्यों ना हो। ऐसी मुसलसल रिवायत एक क़िस्म का तारीख़ी सबूत है जिससे इन्कार करना नामुम्किन है। बईना जिस तरह दीन इस्लाम में मुहर्रम के होलनाक वाक़ेअ की रसूम को तारीख़ी तहरीरात की अदमे मौजूदगी में हज़रत इमाम हुसैन शहीद कर्बला की शहादत का सबूत तस्लीम करते हैं।
येसु मसीह ने फ़रमाया था कि "वो सबत का मालिक" है। और उस ने इस हक़ीक़त का सबूत यूं दिया कि उस की मौत और उस के फिर ज़िंदा होने के बाद कलीसिया ने फ़ौरन यहूदीयों के सातवें रोज़ के बजाय हफ़्ता के पहले दिन को पाक मानना शुरू कर दिया। पस ख़ुदावंद का दिन बज़ात-ए-ख़ुद मसीह की मौत और उस के जी उठने का सबूत है। ग़ैर-मसीही मज़ाहिब में से हर एक का जुदागाना निशान है मसलन कनुल की कली, स्वास्टीका और हिलाल के निशानात वग़ैरा। सलीब मसीही मज़्हब का निशान है। पस वो जो पहले ज़िल्लत, शर्म रुस्वाई जुर्म व खता और इंतिहाई बेचारगी और दरमांदगी का निशान थी अब क्योंकर अज़मत विस्र फ़राज़ी, शुजाअत, शफ़क़त और रहमत का निशान बन गई । इस का जवाब बजुज़ इस के और कुछ नहीं कि ये उस के ज़रीये से हुआ जो सलीब पर खींचा गया था। उस ने हमें और सलीब दोनो को उस लानत से मख़लिसी बख़्शी।
आख़िर में अगर अब भी कोई अस्हाब ऐसे हों जिन्हें अह्दे-जदीद की तालीम की मर्कज़ी हक़ीक़त के तारीख़ी बयान के मुताल्लिक़ कुछ शक व शुबहा हो तो हनूज़ इब्तिदाई मसीही यादगारें और आसार और तहखाने मौजूद हैं जो ज़बाने हाल से अपने मख़्सूस निशानात और सलीब की जानिब अपने इशारात से ये सदा बुलंद कर रहे हैं कि मसीह किताब मुक़द्दस के मुताबिक़ हमारे गुनाहों के वास्ते क़ुर्बान हुआ।
कार्लाइल (Carlyle) और एमर्सन (Emerson) की बाहमी ख़त-ओ-किताबत में हम देखते हैं कि आख़िर-उल-ज़िक्र ने एक मर्तबा कार्लाइल के वो अल्फ़ाज़ याद किए जो उस ने अपनी मुलाक़ात के मौक़ा पर कहे थे। यानी "मसीह ने सलीब पर अपनी जान दी और उस के उस फे़अल से इस सामने के गिरजाघर यानी डनसर कोरकिर्क की बुनियाद रखी गई और उस ने हम दोनों को बाहम मिला दिया। इमत्तीदाद-ए-ज़माना तो फ़क़त बाहम मिलाने वाला रिश्ता है।”
हमें ईमान के सबूत के लिए और किस शहादत की ज़रूरत है? बे-एतिक़ादी की हद इस से ज़्यादा और क्या हो सकती है कि उसने ऐसे नज़रीए पेश किए हैं जो मसीह की ज़िंदगी और उस की मौत और उस के जी उठने की तारीख़ी हक़ीक़त की तर्दीद करते हैं !
मसीह किताब-ए-मुक़द्दस के बमूजब मरा और दुबारा जी उठा। अम्बिया ने उस की मौत की पेशीनगोई की। रसूलों ने उसे क़लम-बंद किया । तमाम दीनी कुतुब कफ़्फ़ारा पर मर्कूज़ हैं और मस्लूब और ज़िंदा नजातदिहंदा की गवाही देती हैं वो बुनियादी और आलमगीर मौज़ूअ जो बाइबल शरीफ़ के पैग़ाम का मर्कज़ है इस सवाल का जवाब है कि गुनहगार इन्सान फिर ख़ुदा के हुज़ूर क्योंकर रास्तबाज़ ठहर सकता है। यानी मसीह की मौत के ज़रीये से जो हमारा कफ़्फ़ारा है बजुज़ उस के कोई दूसरा तरीक़ा नहीं। कोई और ख़ुश-ख़बरी नहीं। अगर ये बातिल है तो हमारा ईमान भी जिस पर मसीहीयत का दार-ओ-मदार है। बेफ़ाइदा है क्योंकि हमारे पास मासिवाए उस के और कोई ख़ुशख़बरी नहीं कि मसीह हमारे लिए मरा और हमारी अदालत के लिए फिर ज़िंदा हुआ।
"ना तो हम तेरी ख़ाली गुर के पास खड़े हुए कि जिसमें तेरा जिस्म अतहर रखा गया। ना हम उस बालाखाना में बैठे ना राह चलते में कहीं हमने तुझे देखा। लेकिन हम जो फ़रिश्तों ने कहा सर आँखों से मानते हैं कि ज़िंदा को मुर्दों में क्यों ढूंडते हो?
ख़ुदावंद! तू अपने गाड़े ख़ूनी पसीने की ख़ातिर
अपनी रुहानी जान कुंदनी की ख़ातिर
अपने ख़ारदार और ज़ख़्मी सर की ख़ातिर
अपनी अशक बार आँखों की ख़ातिर
अपने तौहीन और तन्ज़ आमेज़ कलिमात से पुर कानों की ख़ातिर
अपने पित और सिरका से नम दहन की ख़ातिर
अपने उस चेहरे की ख़ातिर जिस पर थूका गया था
अपनी उस गर्दन की ख़ातिर जो सलीब के बार से ख़म हो रही थी
अपनी उस कमर की ख़ातिर जो कोड़ों की मार से ज़ख़्मी हो रही थी
अपने मजरूह हाथ और पांव की ख़ातिर
अपने छेदे हुए पहलू की ख़ातिर जिससे आब व खून रवां थे
और अपने ज़ख़्मी बदन की ख़ातिर जिससे जोय ख़ून जारी थी
अपने बंदे की बदी को माफ़ फ़र्मा और उसके तमाम गुनाहों की पर्दापोशी कर
(Lancelot Andrewes)