बाब चहारुम

"उन्होंने येसु को बाँधा, उन्होंने उसके मुँह पर थूका"


 

Crucifixion: Nails, Hammer, Wooden Cross
Crucifixion: Nails, Hammer, Wooden Cross

 

येसु मसीह अपनी सलीब उठा कर ऐन इसी तरह ले गया जिस तरह इज़्हाक़ पहाड़ पर लकड़ियाँ ले गया। येसु इसी तरह बाँधा गया जिस तरह इज़्हाक़ बाँधा जाकर मज़बह पर रखा गया।” और जब वो उस मुक़ाम पर जिसकी बाबत ख़ुदा ने उससे कहा था पहुंचे। तब वहां इब्राहीम ने एक क़ुर्बान-गाह बनाई और लकड़ियाँ चुनी और अपने बेटे इज़्हाक़ को बाँधा और उसे क़ुर्बान-गाह पर लकड़ी के ऊपर धर दिया" (पैदाइश 22:9)

पस अहले यहूद का इज़्हाक़ की उस क़ुर्बानी को इस क़दर एहमीयत देना और हर साल निहायत संजीदा तौर से कोह-ए-मौर्या के इस वाक़ये की याद को ताज़ा रखना बिला वजह ना था।

रासिख़ उल-एतक़ाद यहूदीयों का अक़ीदा उनके नए साल की मुक़र्ररा तरतीब-ए-नमाज़ में मर्क़ूम है और वो मुंदरजा ज़ैल है:—

"ए ख़ुदावंद ख़ुदा तू हमारे हक़ में अपना वो वाअदा याद फ़र्मा जो तूने हमारे बाप इब्राहीम से कोह-मौर्या पर किया था। उस की मुहब्बत पर ग़ौर फ़र्मा जो उस से उस वक़्त ज़ाहिर हुई जब उस ने अपने बेटे इज़्हाक़ को बांध कर क़ुर्बान गाह पर रखा। उस ने अपनी महर पिदरीको ज़ब्त किया ताकि तेरी मर्ज़ी अपने तमाम दिल से बजा लाए। इसी तरह तेरी मुहब्बत तेरे उस क़हर को जो हमारे ख़िलाफ़ भड़कता है फ़र्द करे और तेरी बड़ी ख़ूबी के बाईस तेरा ग़ज़ब व अताब तेरी क़ौम तेरे शहर और तेरी मीरास की तरफ़ से हट जाये । आज तू उस की औलाद के हक़ में इज़्हाक़ का बाँधा जाना याद कर ।"

डाक्टर मैक्स लैंड्सबर्ग (Dr. Max Landsberg) फ़रमाते हैं:—

"ज़माना की रफ़्तार के साथ अक़ीदे की एहमीयत भी बहुत बढ़ गई है। हगादीसी (Haggadistic)

कुतुब में इस की जानिब बेशुमार इशारात मौजूद हैं उसी की बिना पर मग़फ़िरत के हुक़ूक़ क़ायम करके रोज़ाना नमाज़ सुबह में दर्ज किए गए। जर्मन यहूदीयों के तौबा के अय्याम की नमाज़ों पर एक और हिस्से का इज़ाफ़ा किया गया जो अक़ीदा के नाम से नामज़द है।”

क्या ये दुआ मसीह के ज़माना में राइज थी? अक्सर औक़ात क़ुर्बानियां मज़बह के सींगों से बाँधी जाती थीं और ज़बिहा के बाँधे जाने के मौक़े पर ख़ास रसूम अदा की जाती थीं । हैकल की क़ुर्बानीयों से मुताल्लिक़ ख़्वाह कुछ ही रसूम राइज हूँ लेकिन मुम्किन है जब येसु को बाग़ गतसमनी से बांध कर ले जा रहे थे तो उस के शागिर्दों को ये ख़्याल गुज़रा हो कि "ख़ुदा का बर्रा" उस अज़ीमुश्शान क़ुर्बानी के लिए ले जाया जाता है। इज़्हाक़ की क़ुर्बानी जिसका महिज़ एक नमूना थी।

तीन इंजील नवीस बिलख़ूसूस मसीह के बाग़ में और पिलातुस के रूबरू बाँधे जाने का मुकर्रर बयान करते हैं। यूहन्ना मुक़द्दमा से पेशतर का बयान करते हुए यूं रक़म तराज़ है:—

"तब सिपाहीयों और उन के सूबेदारों और यहूदीयों के प्यादों ने येसु को पकड़ कर बांध लिया। और पहले उसे हन्ना के पास ले गए क्योंकि वो उस बरस के सरदार काहिन काइफ़ा का सुसर था....पस हन्ना ने उसे बाँधा हुआ सरदार काहिन के पास भेज दिया "वहां उन्होंने येसु को ठट्ठों में उड़ाया और उस के मुँह पर थूका फिर "जब सुबह हुई तो सब सरदार काहिनों और क़ौम के बुज़ुर्गों ने येसु के ख़िलाफ़ मश्वरा किया कि उसे मार डालें और उसे बांध कर ले गए और पिलातुस हाकिम के हवाला किया" (मत्ती 27: 1 ता 2)

मरकुस फ़रमाता है "सरदार काहिनों ने बुज़ुर्गों और फ़क़ीहों और सारे अदालत वालों समेत सलाह करके येसु को बंधवाया और ले जाकर पिलातुस के हवाले किया।”

पस हमारे ख़ुदावंद ने सबसे पेशतर बाग़ गतसमनी में ज़ैतून के दरख़्त के नीचे अपने हाथ फैलाए ताकि उसे बांध लें। पतरस का बे-निशाना तल्वार चलाना ही सिपाहीयों के डराने के लिए काफ़ी था । उन्होंने उस के हाथ बांध लिए जिस का आख़िरी काम ये था कि अपने हाथ बाँधे जाने से पेशतर मलख़स के कान को चंगा कर ले। शायद दुश्मनों ने पसे पुश्त उस के हाथ रस्सियों से बाँधे हों बादअज़ां उस के शागिर्द उसे अकेला छोड़कर फ़रार हो गए । इस तरह उस रात के होलनाक खेल का पहला सीन तमाम हुआ।

उसे यानी बंधे हुए येसु को कोई बड़ा फ़ासिला ना तै करना पड़ा वो उसे उसी दरावज़े से बाहर ले गए जिससे वो ईद फ़सह की इशा के बाद अपने शागिर्दों के हमराह बाग़ के अंदर दाख़िल हुआ था। वो उसे हन्ना के महल में ले गए जो गुज़शता साल सरदार काहिन था वहां सिपाहीयों ने उस के हाथ खोल दीए और अपने अपने घर चले गए। क्योंकि उस के बाद रूमी सिपाहीयों का कुछ ज़िक्र नहीं पाया जाता। यहां मसीह ने हन्ना और काइफ़ा के रूबरू उन के खु़फ़ीया और दिली बुग़्ज़ और हसद का तजुर्बा किया जिनके मुताल्लिक़ कहा गया है "हारून की औलाद निहायत गुस्ताख कमीने और शहवत-परस्त" जिनके नाम उन के हमअसरीन लानत के साथ दबी आवाज़ से अपनी ज़बान पर लाते थे। यहां हमारे ख़ुदावंद को मुँह पर पहला थप्पड़ लगाया गया। शायद वो किसी मुलाज़िम के हाथ से हो या छड़ी से हो।

लूक़ा के बयान के मुताबिक़ इस मुक़द्दमा की झूटी समाअत के बाद जो उन झूटे गवाहों के सामने हुई और मौत के फ़तवा के बाद कि जिसका फ़ैसला पहले ही हो चुका था। काइफ़ा के मुलाज़िमों और सिपाहीयों ने उस बेकस व लाचार क़ैदी येसु का मुज़हका उड़ाया उसे बेइज़्ज़त व ज़लील करके सख़्त बेरहमी से उस के साथ पेश आए । लेकिन इन तमाम तानाज़नी और ज़िल्लत व ख़वारी और ज़र्बों ने जो उस बेचारे तन्हा मुसीबतज़दा पर लगाई गईं।” जो दरहक़ीक़त बेकस व लाचार ना था बल्कि ख़ुद ही इरादतन मुक़ाबला ना करता था। जो वाक़ई शिकस्त ख़ूर्दा ना था। बल्कि बरअक्स उस के फ़क़त फ़साद से गुरेज़ करता था। जो दरअसल आजिज़ ना था बल्कि फ़क़त अपनी मर्ज़ी से आपको दुश्मनों के हवाले किए हुए था।”

ना फ़क़त इन्सानियत के सुफ़्लापन और उस की लानत को आलम आश्कारा किया बल्कि उन्हें मसीह इब्नुल्लाह पर डाल कर उन्हें बेख़-ओ-बिन से उखाड़ फेंका उस अस्ना में जब कि वो अपनी क़ौम के ज़रीया से ठुकराया जा रहा था और उन की नफ़रत और कीना का इज़्हार हो रहा था येसु बंधा खड़ा था।

दुनिया के आग़ाज़ से लेकर अब तक ऐसे हाथ पहले नहीं बाँधे गए थे। अहद-ए-अतीक़ के बंधे हुए हाथों का बयान येसु के ज़हन में रोशन था। क्या वो उस के सताने वालों को भी याद था ? क्या शमाउन ने अपने हाथों को अपनी रजामंदी से पेश किया। जब यूसुफ़ ने उसे ज़ामिन क़रार देकर क़ैद कर लिया। ताकि वो यानी यूसुफ़ अपने भाई बनीयामीन को फिर एक मर्तबा देख सके ? सूरमा सम्सून कई बार बाँधा गया। लेकिन उस ने उन के मुज़हका उड़ाया जिन्होंने उसे रस्सियों और बेद की छालों से बाँधा था। उस ने अपने बंधनों को इस तरह तोड़ा "जिस तरह सनके तार जिसमें आग से झुलसने की बू आए" तोड़े जाते हैं और ख़ुदा ने उसे उस वक़्त तक ना छोड़ा जब तक उस ने ख़ुदा को ना छोड़ा।

यर्मियाह रस्सियों से बाँधा हुआ ऐसे कुवें में फेंका गया था। जिसमें पानी के इव्ज़ कीचड़ था। लेकिन ख़ुदा ने उसे रिहाई बख़्शी। ख़ुदा ने दानियल के तीनों रफ़ीक़ों को बचाया जो बाँधे हुए आग की भट्टी में डाल दीए गए थे। इन सब के हाथ बाँधे गए लेकिन ये फ़क़त उन के जिस्मानी हाथ थे।

मसीह आग की भट्टी में उस चौथे शख़्स की मानिंद था जिसकी सूरत देवताओं के बेटे की सी थी। नहीं नहीं ख़ुदा के बेटे की सी । मसीह के हाथों पर नज़र करो ! चार्ल्स बेल (Charles Bell) अपने मशहूर-ओ-मारूफ़ मज़मून यानी "ख़ुतबा बर्दस्ते इन्सानी" (Essay on the Human Hand) में क़ुदरत में अजीबो-गरीब तर्कीब की मौजूदगी का सबूत देते हुए हाथों की बनावट का बयान करते हुए लिखता है कि:—

दस्त-ए-इन्सानी की तर्कीब व साख़त में बड़े से बड़े हैवान के पंजों के मुक़ाबले में कैसी अजीब व ज़बर्दस्त ताक़त मौजूद होती है कि वो इन्सानी हुनरमंदी और दस्त कारी के किस क़दर मुनासिब ए-हाल है लेकिन येसु के हाथों का बयान कौन कर सकता है जो दीगर इन्सानी हाथों की तरह पढ़े जा सकते हैं और जिनसे ना फ़क़त उस के एक कामिल शख़्सियत बल्कि कामिल औसाफ़ और चाल चलन के मालिक होने का पता चलता है। ये बंधे हुए हाथ कभी मासूम बच्चों के नन्हे नन्हे हाथों की मानिंद मुक़द्दसा मर्यम की छातीयों पर रखे जाते होंगे ये हाथ बढ़ई के काम को मेहनत व जफ़ा कुशी से अंजाम देते होंगे और शहर नासरत के दहक़ानों के लिए हलों को हल्का बना कर बैलों के लिए उनके बार को कम करते होंगे। हाँ ये हाथ कोढ़ीयों, लंगड़ों लुंजों और अँधों को शिफ़ा बख़्शने के लिए फैलाए जाते थे ये हाथ पुर मुहब्बत ओ पुर शफ़क़त थे। जब माएं अपने बच्चों को उस के पास लाती होंगी तो वो उन्हें गोद में लेकर उन्हीं हाथों को उन के सरों पर रख कर उन्हें बरकत देता होगा। उस की उंगलियां उन के नरम नरम रुख़्सारों और उन के ख़ूबसूरत बालों को मुहब्बत से छूती होंगी । यही हाथ थे जिन्होंने हैकल में मिट्टी गूँध कर एक मादरज़ाद नाबीना शख़्स की आँखों पर लगा कर उसे बीनाई बख़्शी थी। जिसके बाईस उन अक़्ल के अँधों का ग़ज़ब और कीना और भड़का और जिनकी कोर बातिनी येसु के अजीबो-गरीब कामों और उस के मोजज़ाना कलाम के बावजूद भी बराबर क़ायम रही। यही वो हाथ थे जिन्होंने रस्सियों को कूड़ा बनाया और जायज़ और वाजिब ग़ज़ब के साथ उन के लगाया जिन्होंने उस के बाप के घर को तिजारत का घर और चोरों का खोह बना लिया था। ये वो हाथ थे जिन्होंने मशरिक़ी मेहमान-नवाज़ी के दस्तूर के मुताबिक़ आख़िरी इशा के मौक़ा पर यहुदाह इस्क्रियुती को जिसने उसे पकड़वाया था निवाला दिया था। इन्ही हाथों से येसु ने ये जान कर कि बाप ने सब चीज़ें मेरे हाथ में कर दी हैं और मैं बाप के पास से आया हूँ और ख़ुदा ही के पास जाता हूँ तौलिया लिया और अपनी कमर बांध कर अपने शागिर्दों के पांव धोए थे बल्कि यहुदाह इस्क्रियुती के भी। यही वो हाथ थे जो सुनसान पहाड़ों की चोटियों पर दामें उठते थे। और आख़िरकार यही हाथ बाग़ गतसमनी में जानकनी की हालत में दुआ व शफ़ाअत के लिए जोड़े जाते थे। इस वक़्त ये बंधे हैं और कुछ अरसे के बाद इन में मेख़ें ठोंकी जाएँगी । इन्ही हाथों से शुक्र करते हुए येसु ने रोटी तोड़ी और पियाला उठाया जबकि उसने फ़रमाया "लो खाओ ये मेरा बदन है.......तुम सब इस में से पी लो क्योंकि अह्द का मेरा वो ख़ून है जो बहुतेरों के गुनाहों की माफ़ी के लिए बहाया जाता है।”

अब उस आख़िरी पेशीनगोई की तक्मील का वक़्त आ पहुंचा । उस का बदन जल्द तोड़े जाने को है और उस का अह्द का ख़ून गुनाहगारों के लिए बहाए जाने को है "और उन्हों ने येसु को बाँधा।” ऐ बाप उनको माफ़ कर कि ये जानते नहीं कि क्या करते हैं।”

जब पौलुस के बरख़िलाफ़ लोगों ने शोर मचाया कि उसे कोड़े लगाए जाएं तो रूमी पलटन के सरदार को मालूम था कि एक रूमी आदमी को बग़ैर फ़तवा लगाए कोड़े लगवाना खिलाफ-ए-क़ानून है "और पलटन का सरदार भी ये मालूम करके डर गया।” लेकिन ये लोग ना डरे।

इब्रानियों के ख़त के राक़िम ने मसीह के बाँधे जाने का बयान चशमदीद गवाहों से लिया था और उस ने अपने ज़माने के मर्दो ज़न का हाल लिखते हुए जो उन दिनों में अपने ईमान के बाईस क़ैद किए जाते थे यूं फ़रमाता है:—

"क़ैदीयों को इस तरह याद रखो कि गोया तुम उन के साथ क़ैद हो।”

लेकिन मसीह को याद करने वाला कोई ना था यहां तक कि पतरस ने भी उस की क़ैद से शर्मा कर ये कहा "मैं इस आदमी को नहीं जानता।”

वो कौन था जिसने हमारे नजातदिहंदा के हाथों को पहले बाग़ गतसमनी और फिर कमरा अदालत में बाँधा? क्या रूमी सिपाहीयों ने उस के हाथ बाँधे? हाँ उन्होंने ऐसा किया महिज़ सिपाहीयों की हैसियत में अपना फ़र्ज़ अदा कर रहे थे। क्या यहुदाह ने अपनी क़बीह और शर्म नाक हरकत पर उस अलामत-ए-ख़ौफ़ का इज़ाफ़ा किया? हम ये पढ़ते हैं कि बाद में "हन्ना ने उसे बंधा हुआ काइफ़ा सरदार काहिन के पास भेज दिया" क्या पिलातुस उस जुर्म का मुर्तक़िब ना ठहरा जब उसने क़ैदी को बंधा हुआ रहने दिया और उस को कोड़े लगवाने का हुक्म दिया। जिसका अभी मुक़द्दमा भी ना हुआ था और ना जिस पर हनूज़ फ़तवा लगा था और जिस में उसने कोई क़सूर ना पाया था।

देखो देखो उस मर्द-ए-ग़मनाक को ! यहां एक और प्रोमेथियुस (Prometheus) क़ैद है ये वो है जो बग़ैर धोका और फ़रेब दिए आस्मान से आग, ज़िंदगी और नूर लाता है। ये वो है जो इन्सान को अज़सर नो पैदाइश और उसे आस्मान की बेहतरीन और बीश बहा नेअमतें इनायत करता है। प्रोमेथियुस को तो तीस साल की सख़्त क़ैद के बाद हेर्कियुलिज़ (Hercules) ने रिहा किया था। मसीह को हन्ना, काइफ़ा, यहुदाह और मैंने और आपने बंधवाया था। वो अब तक क़ैदोबंद में मुब्तला है और उन्नीस सदीयों से बराबर अज़सर नौ सलीब पर खींचा जाता है। दस्त-बस्ता मसीह इस वक़्त हमारे पास मौजूद है राबर्ट किबल (Robert Keable) कहता है कि दस्त-बस्ता येसु नासरी अब तक क़रीब क़रीब नसफ़ दुनिया के गली कूचों में फिरता रहता है । जब कभी किसी जगह कोई बे-दस्त व पह लंगड़ा लुंजा बच्चा अपने वालदैन के गुनाह के बाईस इस रंज आलूद दुनिया में पैदा होता है तो मसीह को उस वक़्त फिर वो पियाला पीना पड़ता है जो टल नहीं सकता। हालाँकि उस के ऐसा करने से आख़िरकार बाप की मर्ज़ी कि "इन छोटों में से एक भी हलाक ना हो" पूरी होती है।

जहां कहीं कोई गुमराह और मस्लूल रूह भटकती फिरती है वहां ज़रूर कोई यहुदाह अपने ख़ुदावंद को चंद नफ़रती दिरहमों के इव्ज़ पकड़वाता है। जब कभी मसीह का कोई लाफ़ ज़न शागिर्द यारों और दोस्तों की मजलिस में बैठ कर अपनी कम हिम्मती और कम एतिक़ादी की वजह से आज़माईश के वक़्त अपने ख़ुदावंद का इन्कार करता है तो उस वक़्त मसीह फिर दुबारा अपने साथीयों और दोस्तों के दरमियान ज़लील व रुसवा किया जाता है।

बल्कि ये ज़रबें रूमी सिपाहीयों की ज़र्बों से शदीद तर होती हैं। लेकिन जहां कहीं क़सदन और इरादातन गुनाह किया जाता है वहां पर तो गोया मसीह को सलीब पर लटकाकर उस का दिल बिरछी से छेदा जाता है।

(2)

"उन्होंने उस के मुँह फिर थूका" उसके जिस्म पर नहीं बल्कि उस के मुँह पर थूका । यूनानी में जो लफ़्ज़ इस्तिमाल हुआ है वो बिलख़सूस उस हरकत की कमीनगी पर-ज़ोर देता है । मरकुस और यूहन्ना ने जहां मसीह के थूक कर मिट्टी सानने और उस नाबीना शख़्स की आँखों पर लगाने और उस को बीनाई बख़्शने का ज़िक्र किया है वहां एक और यूनानी लफ़्ज़ इस्तिमाल किया है (मरकुस 7:33, व 8:23, व यूहन्ना 9:6) थूकना ज़माना-ए-क़दीम से लेकर उस वक़्त तक दुनिया में बेइज़्ज़त करने के तरीक़ों में से एक तसव्वुर किया जाता है बाअज़ ऐसे जानवर हैं मसलन मेंढ़क बिल्ली और ज़हरीले फनीर साँप जिन्होंने शायद वहशी इन्सान को ये बेहूदा हरकत सिखाई हो।

मेरा एक हम ख़िदमत था जो मुद्दत दराज़ से मुल्क-ए-अरब में मिशनरी डाक्टर की हैसियत में ख़िदमत करके वहां के बाशिंदों के नज़दीक हर दिल-अज़ीज़ बन गया था। वो उस की इज़्ज़त व तोक़ीर भी करने लगे थे। एक रोज़ वो एक मकान में बैठा था कि सहरा से एक मुतअस्सिब वहाबी अंदर दाख़िल हुआ। वो ईलाज की ख़ातिर ना आया था बल्कि महिज़ इस लिए कि डाक्टर के मुँह पर थूके। मिशनरी ने फ़ौरन रास्त व वाजिब ग़ुस्सा और तमाम मरीज़ों की रजामंदी के साथ उस शख़्स को अपने जिस्मानी ज़ोर का ऐसा मज़ा चखाया जिसका वो बजा तौर पर मुस्तहिक़ था अहले-ए-मशरिक़ के नज़दीक उस से बढ़कर और कोई बेइज़्ज़ती नहीं। अह्देअतीक़ में इस की मिसालें मौजूद हैं "तब ख़ुदा ने मूसा को फ़रमाया कि अगर उस के बाप ने उस के मुँह पर थूका होता तो क्या वो सात दिन तक भी शर्मिंदा ना रहती ? (गिनती 12:14)। तो उस के भाई की जोरू बुज़ुर्गों के सामने उस के नज़्दीक आए और उस के पांव से जूती निकाले और उस के मुँह पर थूक दे और जवाब देकर और कहे कि उस शख़्स के साथ जो अपने भाई का घर ना बनाए यही किया जाएगा" (इस्तिसना 25:9) वो मुझसे घिन खाते वो मुझसे दूर भागते हैं और मेरे मुँह पर थूकने से बाज़ नहीं रहते" (अय्यूब 30:10)

इस पर हमें यशायाह नबी की पेशीनगोई का इज़ाफ़ा करना चाहिए जो उस ने मसीह के मुताल्लिक़ की थी जो सच्चाई और ख़ूबी से मामूर हो कर अपनी क़ौम की ज़िल्लत और बे इज़्ज़ती की बर्दाश्त करता है "ख़ुदावंद यहोवा ने मुझको उल्मा की ज़बान बख़्शी ताकि मैं जानूं कि उस की जो थकामाँदा है कलाम ही से कुमक करूँ। वो मुझे हर सुबह जगाता है और मेरा कान उभारता है कि आलिमों की तरह सुनूँ। ख़ुदावंद यहोवा मेरे कान खोलता है और मैं बाग़ी नहीं हूँ और ना बर्गशता होता । मैं अपनी पीठ मारने वालों को देता और अपने गाल उन को जो बाल को नोचते। मैं अपना मुँह रुस्वाई और थूक से नहीं छुपाता" (यशायाह 50: 4 ता 6)

क्या मसीह ने अपनी होलनाक मौत की पेशीनगोई करते हुए ख़ुद इस पेशीनगोई का हवाला ना दिया था ? देखो हम यरूशलेम को जाते हैं और इब्ने आदम सरदार काहिनों और फ़क़ीहों के हवाले किया जाएगा......और वो उसे ठट्ठों में उड़ाएंगे और उस पर थूकेंगे और उसे कोड़े मारेंगे और क़त्ल करेंगे" (मरकुस 10:33-34)

यहां पर हम उस इंतिहाई बेइज़्ज़ती को देखते हैं जो हमारे नजातदिहंदा के साथ रवा रखी गई । सटाकर का क़ौल है कि इन्सान की फ़ित्रत में निहायत मकरूह और क़बीह सिफ़ात पाई जाती हैं। जिन पर नज़र डालना ही ख़तरनाक होता है। मसीह की सिफ़ात-ए-कामला व हसना के मुक़ाबला में ही उस के मुख़ालिफ़ीन की सबसे क़बीह-ओ-बदतरीन ख़साइल ज़हूर में आएं। अब चूँकि वो इस दुश्मन के क़ब्जे में आ जाता है। जिसको वो बर्बाद करने आया था तो दुश्मन की तमाम क़बाहत व बदसुरती ज़ाहिर होती है और वो अपना तमाम ज़हर उगुल देता है ख़ूँख़ार दरिंदे की मानिंद दुश्मन अपने फाड़ डालने वाले पंजे से उस के गोश्त को नोचता है और अपनी नजिस और ग़लीज़ सांस उस के दहन मुबारक में फेंकता है।

इस का अंदाज़ा लगाना हमारे तसव्वुर व क़यास से बईद है कि उसके शाहाना मिज़ाज और उस की नाज़ुक तबीयत पर उस बे-हुरमती और रुस्वाई का क्या असर हुआ होगा। वो कौन लोग थे जो बार-बार उस ख़ौफ़नाक हरकत के मुर्तक़िब हुए ?

इन्जीली बयान से मालूम होता है कि सबसे पहले यहूदी उल्मा और हादियान ए दीन और उन के बाद उन के मुलाज़िम और रूमी पलटन के सिपाही थे। जिन्होंने उसे बेइज़्ज़त किया" (मत्ती 26:67, व 27:30)

क्या अहले एशिया ! क्या अहले यूरोप और क्या अहले शाम सबने अपने ग़ज़ब और हक़ारत को उस के पाक और मुबारक चेहरे पर थूक की सूरत में उगल दिया "ताकि हर एक का मुँह-बंद हो जाए और सारी दुनिया ख़ुदा के नज़दीक सज़ा के लायक़ ठहरे "लेकिन सबसे पहले ये उस की अपनी क़ौम ने किया और वो जो उसे बख़ूबी जानते थे बल्कि अपनी कुतुब-ए-मुक़द्दसा के पेश-ए-नज़र उस बेइज़्ज़ती के मआनी से भी ख़ूब वाक़िफ़ थे।

ये इस अम्र का क्या ही उम्दा सबूत है कि गुनाह और बे-दीनी निहायत ही बुरी तरह इन्सानी अक़्ल और इन्सानी ख़्यालात के तनज़्ज़ुल और पस्ती का बाईस होते हैं। किसी पर थूकना हक़ारत का इज़्हार है। उन के हसद और कीना का ज़हर उन के तारीक दिलों से बाहर निकला। इस नज़ारे की कैफ़ीयत जो नाक़ाबिल-ए-बयान है किसी मशहूर मुसव्विर मसलन रीमबरनट (Rembrandt) की तसावीर की तारीक पाईन से मुशाबेह है यानी उस नज़ारा की तारीक पाईन निगाह इन्सानी दिल की ज़ुल्मत और स्याही। उस की इंतिहाई शीतनीत और नेक और मुक़द्दस लोगों के ख़िलाफ़ उस की बुज़दिलाना हक़ारत के मुतरादिफ़ है।

जब तक उन्होंने उसे गिरफ़्तार करके बांध ना लिया और उस के चेहरे को छिपा ना लिया वो उस पर थूक ना सके उस वक़्त से लेकर अब तक बराबर इसी तरह होता चला आया है। तारीख़ में ऐसी बेशुमार मिसालें मौजूद हैं जहां लोगों ने मसीह और उस के शागिर्दों के चेहरों पर थूका। शहीदों के बयान की ख़ूनी दास्तान के एक एक वर्क़ पर ना फ़क़त ज़ुल्म बल्कि हक़ारत और बेइज़्ज़ती की अलामात मर्क़ूम हैं।

मुक़द्दस पौलुस ने भी इस का एहसास करते हुए कहा:—

"हम दुनिया के कोड़े और सारी चीज़ों की झड़न की मांद रहे"

जिस वक़्त कलईर वो का बर्नार्ड ये गा रहा था:—

इब्न ख़ुदा का जिस-दम आया ख़याल दिल में
बाक़ी रहा ना कुछ भी रंज व मलाल दिल में

तो बाअज़ लोग सलीबी जंगों और इन्क़ुइज़िशन (Inquisition) यानी मज़हबी अदालतों की सख़्ती और ज़ुल्म के बाईस लोगों को मसीह के नाम पर कुफ़्र बकने पर मजबूर कर रहे थे। कितने मुन्किरों, काफ़िरों और दहरियों ने अपनी दिली हक़ारत और नफ़रत का ग़ुबार येसु नासरी पर निकाला है। यहुदाह इस्क्रियुती के ज़माना से लेकर एक मुन्किर मसीह की अदावत से बढ़ी हुई किसी और मुख़ालिफ़ की अदावत अब तक देखने में नहीं आई।

नीरू ने मसीहीयों का ख़ून बहा कर सख़्त ज़ुल्म किया। लेकिन ये उस ग़ैज़ व ग़ज़ब की शिद्दत के मुक़ाबला में बिल्कुल हीच है जिसका मुज़ाहरा मुनहरिफ़ जूलियन ने मसीह के पैरौओं के बरख़िलाफ़ किया।” उसने पहले ख़ुद मसीह को क़बूल किया लेकिन बादअज़ां मुर्तद हो गया।

गिब्बन जो पहले प्रोटेस्टेंट और रोमन कैथोलिक था और आख़िर कार दोनों से फिर गया उस की एक और मिसाल है I

नीटशे (Nietzsche) तो यहां तक गिर गया कि उसने मसीह ख़ुदावंद के ख़िलाफ़ जो हर्ज़ा-सराई की है वो थूकने के मुतरादिफ़ है।"

मसीहीयत का तसव्वुरे ख़ुदा कि वो बीमारों का देवता और मिस्ल एक अन्कबूत है या ये कि वो रूह है ख़ुदा के तसव्वुरात में सबसे अर्ज़ल तसव्वुर है जिसका ख़्याल भी शायद ही किसी के दिल में आया हो। शायद वो ख़ुदा के हम-सूरत इन्सान का पस्ततरीं दर्जा का तसव्वुर हो।

बरअक्स इस के का ख़ुदा ज़िंदगी को ग़ैर-फ़ानी बनाए या उसे अज़सर नौ तब्दील करे वो ज़िंदगी की मतना क़ुज़ात की गहराइयों में ग़र्क़ हो गया। मैं मसीहीयत को एक सख़्त लानत समझता हूँ और उसे इंतिक़ाम लेने की बदख़ू और एक अज़ीम कलबी बर्गशतगी से ताबीर करता हूँ। जिस के लिए कोई तदाबीर काफ़ी मुज़िर, मकरूह और फ़रेबदह साबित नहीं हो सकतीं।

मैं उसे इन्सानियत का दाइमी बदनुमा दाग़ तसव्वुर करता हूँ क्या इन्सानी हसद व कीना इस से तजावुज़ कर सकता है?

लेकिन हम देखते हैं कि उस मंज़र में जहां मसीह ज़लील और बे-इज़्ज़त किया गया। ऐसा शैतानी बुग़्ज़ व किना कैसा बे-तासीर ठहरा। वहां उस ईलाही नजातदिहंदा की फ़तहमंदो ज़फ़रमंद ख़ुद-आगही का इज़्हार होता है। फ़तह का यक़ीन उस के मुबारक चेहरे से अयाँ है। उस ने फ़रमाया:—

"जब मेरे सबब से लोग तुम्हें लान-तान करेंगे और सताएँगे और हर तरह की बुरी बातें तुम्हारी निस्बत नाहक़ कहेंगे तो तुम मुबारक होगे। ख़ुशी करना और निहायत शादमान होना क्योंकि आस्मान पर तुम्हारा बड़ा अज्र है इसलिए कि लोगों ने उन नबियों को भी जो तुमसे पहले थे इसी तरह सताया था।”

उस शख़्स को देखो ! उसने हमारी ख़ातिर दुख उठाया और हमारे लिए नमूना छोड़ गया ताकि हम उस के नक़्शे क़दम पर चलें तुमने अब तक गुनाह के मुक़ाबला करने में अपनी जान नहीं लड़ाई । ज़रा उस पर ग़ौर करो जिसने मलामत किए जाने पर ख़ुद मलामत ना की।

एक लातीनी गीत का मज़मून मुंदरजा ज़ैल है:—

"वह कौन है जो मुसीबतज़दा है ? मसीह जो कलाम-ए-ख़ुदा और बाप की हिक्मत है। वो किस मुसीबत में मुब्तला है? कांटे, कोड़े, थूक और सलीब की बेइज़्ज़ती में जब ख़ुदा इस तौर से दुख उठा सकता है तो तू भी दुख उठाना सीख"


जान कारडीलियर अपनी किताब अल-मारूफ़ ग़ैर-फ़ानी हिक्मत की राह (The Path of Eternal Wisdom) में यूं लिखता है:—

"जो कुछ हम यहां देखते हैं वो ग़ैर-फ़ानी और दाइमी हिक्मत का लब्बे-लुबाब और उसकी माहीयत है। ये वो राज़ है जो ज़िंदगी में पिनहां है। ये वो कलाम है जो सब चीज़ों के दरमियान अबद तक क़ायम रहेगा। फ़ित्रत और इल्म दफ़न और मज़्हब । इल्म-ए-हुस्न-ओ-जमाल और मुहब्बत की मुख़्तलिफ़ अन्वा व अक़्साम की पुश्त में आख़िरकार उस ख़ल्क़ करने वाली बहादुरी और अलवालग़र्मी का मुलाहिज़ा करते हैं जो आख़िर दम तक बर्दाश्त करती है।

जब हमारी ख़ातिर जानकनी और ज़ईफ़ की हालत में से गुज़री । उसने किसी बात से गुरेज़ ना किया। फ़क़त इसलिए कि हमारी गुमराह रूहें ज़्यादा रोशनी हासिल करें। वो वाजिब-उल-वजूद और नाक़ाबिल तलाश उलूहियत जिसके तसव्वुर में हम बसते हैं बरहना की गई और अपनी इस मख़्लूक़ की कोर आँखों के सामने पेश की गई जो मुहब्बत करने या ना करने और नेकी व बदी दोनों के काबिल थी।”