बाब सोम

"और उन्होंने उस की आँखें बंद कीं"

(लूक़ा 22:64 + मरकुस 14:65 + मत्ती 26:68)

तारीख़ के मुताबिक़ मसीह का दुख उठाना एक देरीना वाक़ेया है। वो एक मर्तबा गुनाहों की ख़ातिर मर चुका और हर रोज़ नहीं मरता। मौत का अब उस पर कोई इख़्तियार नहीं। लेकिन रूहानी तौर से उस का दुख बराबर बरक़रार है। रुहानी तौर से वो इन्सान की माहीयत में हर-रोज़ दुख उठाता है। हम उसे अज़सर नौ सलीब पर खींचते हैं । हम मुतवातिर मसीह से सरकशी व रुगरदानी करते हैं। उसे फ़रामोश करते उस का इन्कार करते । उस की आँखें बंद करके उस पर थूकते हैं। उसे कोड़े मारते । उस का मुज़हका उड़ाते और उसे सलीब देते हैं।

साथ मस्लूब हुआ हूँ। होरशीयश बोनर (Horatius Bonar) ने हम सबकी तरफ़ से किया ख़ूब और सच्च कहा है:—

 


"मैं ही तो था जिसने मसीह का खून-ए-पाक बहाया और उसे सलीब पर कीलें जड़ीं।

हाँ मैं ही तो था जिसने ख़ुदा के मसीह को सलीब दी। और उस के ठठा करने वालों में शामिल हुआ I

मैं महसूस करता हूँ कि उस ग़ौग़ाई अबनोह कसीर मैं भी एक हूँ और उन नाशाइस्ता और करख़त आवाज़ों के दरमियान में अपनी आवाज़ ख़ूब पहचानता हूँ।


 

सलीब के चौगिर्द में एक बड़ा मजमा देखता हूँ जो उस सितम-रसीदा शख़्स की आह-ए-पुर दर्द का तमस्खर करता है। लेकिन वो मुझे अपनी ही आवाज़ मालूम पड़ती है गोया अकेला मैं ही हूँ जो उस का मुज़हका उड़ा रहा हूँ।”

"और जो आदमी येसु को गिरफ़्तार किए हुए थे। उसको ठट्ठे में उड़ाते और मारते थे और उस की आँखें बंद करके उसे ये कह कर पूछते थे नबुव्वत से बता तुझे किस ने मारा"?

तब बाअज़ उस पर थूकते और उस का मुँह ढाँकने और उस के मुक्के मारने और उसे कहने लगे नबुव्वत की बातें सुना ! और प्यादों ने उसे तमांचे मार मार के अपने क़ब्ज़े में ले लिया।”

दुनिया के मश्हूर और नामवर मुसव्विरों ने बजुज़ इस ख़ास वाक़ेया के मसीह के दुख उठाने के दीगर तमाम वाक़ियात की तस्वीर खींची है। लेकिन ये नज़ारा इस क़दर होलनाक और पुरमाअनी है कि हैरत होती है कि किसी मुसव्विर के मोए क़लम ने क्यों उस अजीबो गरीब नज़ारा के मआनी गहराई का नक़्शा नहीं खींचा।

सुब्ह-ए-सादिक़ से पेशतर का आलम है और काइफ़ा के महल का सेहन तमाम जगह माहताब की रोशनी से मुनव्वर हो रहा है और आग जो हाज़िरीन को गर्म रखने के लिए रोशन की गई है सेहन में चहार सो अपने शोलों का अक्स फेंक रही है। ऐन दरमियान में चशम बस्ता मसीह को बिठाया गया है। उस के चौगिर्द ऐसे लोगों का मजमा है जो अपनी नफ़रत के बाईस बिल्कुल अंधे हो रहे हैं। इस मजमें के बाअज़ शुरका ग़ालिबन सनहीडर्न के ख़िदमत गुज़ार और सरदार काहिन के भाड़े के टट्टू थे। और ग़ालिबन सब मसीह के हम क़ौम ही होंगे। बाअज़ ने इन में से ज़रूर मसीह को देखा होगा और उस का कलाम भी सुना होगा और शायद उस के मोजज़ात का भी मुशाहिदा किया होगा। बाग़ गतसमनी में वो उस की निगाह से गुरेज़ करते रहे लेकिन यहां वो उस की आँखें बंद करके उस का मुज़हका उड़ा रहे हैं।

आह! उन के दिलों पर किस क़दर ज़ुल्मत तारी हो गई होगी जो उन्होंने ऐसा किया और मसीह के साथ ऐसा सुलूक जायज़ क़रार दिया ! आह ! क्या यह मुहब्बत और सदाक़त का इन्तिहाई अदम-ए-एहसास नहीं? और क्या ये पाकीज़गी के हुस्न व जमाल की तरफ़ कोरचशमी और अंधापन नहीं मुक़ाम-ए-सद-अफ़्सोस है कि ये शर्मनाक सुलूक उन्होंने उस येसु नासरी के साथ किया जिसने यरूशलेम में एक नाबीना शख़्स को बीनाई बख़्शी थी। उन्होंने उस की आँखों पर पट्टी बाँधी ! क्या मलख़ूस भी उन के दरमियान था और क्या काइफ़ा ने उस में हिस्सा लिया था ! क्या पतरस ने बाहर जाकर ज़ारज़ार रोने से पेशतर इस नज़ारे को देखा था?

बाद में उसने इस ख़ौफ़नाक रात का हाल बयान किया जब वो आग ताप रहा था लेकिन उस की रूह काँप रही थी:—

"क्योंकि मसीह भी तुम्हारे वास्ते दुख उठाकर तुम्हें एक नमूना दे गया है.......................और ना उस के मुँह से कोई मक्र की बात निकली। ना वो गालियां ख़ा कर गाली देता था और ना दुख पाकर किसी को धमकाता था। बल्कि अपने आपको सच्चे इन्साफ़ करने वाले के सपुर्द करता था.............और उसी के मार खाने से तुमने शिफ़ा पाई"

हाँ पतरस ने कुछ फ़ासले पर से ज़रूर उस का मुशाहिदा क्या होगा क्योंकि उस वाकिया की शर्मिंदगी और जानकनी से उस का दिल निहायत अफ़्सुर्दा व बेक़रार था। येसु की आख़िरी निगाह पेशतर इससे कि उस की आँखें बाँधी गईं। पतरस पर थी जिसने मुलाज़मीन के रूबरू अपने ख़ुदावंद का इन्कार किया था।

ख़्वाह मसीह की मौत और उस के दुख उठाने का बयान कितना ही मुख़्तसर क्यों ना हो हम इस बुज़दिली, ज़ुल्म और बईद-उज़-अक़्ल और गैरवाजिब हसद का अंदाज़ा लगा सकते हैं जो हमारे नजातदिहंदा के साथ रवा रखे गए। क्या वजह थी कि उन्होंने उस की आँखों पर पट्टी बाँधी? क्या इस की ये वजह ना थी कि उस की आँखों में उनकी बे-एतिक़ादी के बाईस एक पाकीज़ा इस्तिजाब और उन की जहालत के सबब तरस मौजूद था लेकिन बावजूद इस के इन से एक ऐसा नूर रोशन था जो शोला नाज़ बन कर उन के ज़मीरों को जला रहा था। वो उस को रूबरू देखने की ताब ना ला सके।

पस बाक़ौल मुक़द्दस मरकुस "बाअज़ ने उस पर थूकना शुरू किया।” बाअज़ ने "जब उसे ठट्ठों में उड़ा चुके तो उस पर से अर्ग़वानी चोग़ा उतार कर उसी के कपड़े उसे पहनाए" उनकी बुज़दिली

का मुक़ाबला फ़क़त उनका हसद कर सकता था। उन्होंने उसे मारा और उन्होंने उसे ठट्ठों में उड़ाया और "उन्होंने ताने और बहुत सी बातें उस के ख़िलाफ़ कीं।”

उनका हसद बईद अज़ अक़्ल और ग़ैर वाजिब था। उन्होंने ऐसे मौक़े पर सबूत के लिए इसरार किया। जहां सबूत की कुछ ज़रूरत ही ना थी। उन्होंने नबुव्वत का फ़ालगोई से मुक़ाबला किया। और चशम बस्ता क़ैदी और आजिज़ येसु मसीह को पत्थर मार मार कर चाहा कि वो उन की मुत्तफ़िक़ा तकफ़ीर के मुताल्लिक़ जुदागाना तौर पर बताए और इस तरीक़ से उन्होंने नबुव्वत की कसर-ए-शान की। उन्होंने कहा "नबुव्वत से हमें बता कि तुझे किस ने मारा।” किसी एक शख़्स ने उसे नहीं मारा था बल्कि एक क़ौम और तमाम इन्सानी नसल ने उसे मारा था।”

“वोह मर्द-ए-ग़मनाक और रंज-आशना हुआ और वो लोग गोया उस से रुपोश थे।” या गोया जब हम आप उस से रुपोश ना हो सके तो हम ने उस की आँखों पर पट्टी बाँधी और उस के चेहरे को छुपा दिया।

ज़मानों की बे-एतिक़ादी और कुफ्र इस वाक़िये से वाबस्ता है बाअज़ हमेशा से डरते रहे हैं और इस वजह से उन्होंने मसीह के चेहरे को देखना ना चाहा तारीख़ से ज़ाहिर होता है कि लोग मसीह का इक़रार करने से ये कह कर गुरेज़ करते रहे हैं कि वो महिज़ एक अफ़साने की हैसियत रखता है। पस इसलिए उन्होंने उस के चेहरे पर निगाह करने से इन्कार किया।

किस क़दर मशहूर तारीखें और मदारिस की दर्सी कुतुब महिज़ एक ना-मुकम्मल और सरसरी से बयान से मसीह की आँखों पर पट्टी बांधती हैं !

बे-एतिक़ादी बाइबल के औराक़ को बंद करके आँखों पर पट्टी बांधती है और इस तौर से उस के मुबारक पैग़ाम को बच्चों तक पहुंचने से रोकती है। या ये कह कर उसे अलमारी के तख़्ते पर पड़ा रहने देती है कि "ये एक मुस्तनद तस्नीफ़ है जिसके मुताल्लिक़ सबको इल्म है लेकिन कोई इसका मुताला नहीं करता।” लोग मिंब्बरों पर से और अपने बिद्दत आमेज़ ख़्यालात की नशरो इशाअत से मसीह की आँखों पर पट्टी बाँधते हैं और बाद अज़ां उस के नबुव्वती मन्सब और उस के मसीहयाई जलाल का मुज़हका उड़ाते हैं जब कुफ़्र और अल्हाद मुनज्जी आलमयान की आँखों पर पट्टी बांध चुकते हैं तब वो उस के मुँह पर थप्पड़ मारते हैं"

वालटीयर (Voltaire), नीटशे (Nietzsche), और रीनान (Renan), बेबल (Bebel), पेन (Paine), इंगरसोल (Ingersoll) और इसी क़ुमाश के दीगर अश्ख़ास ने जो हालाँकि मज़कूरा बाला मुल्हदीन की मानिंद मशहूर ना थे लेकिन तो भी अक़ाइद उन के हम ज़बान और हम ख़्याल थे। इस अम्र पर इत्तिफ़ाक़ किया है कि पहले मसीह की आँख पर पट्टी बांधे और फिर उस की उलूहियत का इन्कार करें। यानी इस से पेशतर कि वो उस के जलाल और उस की अज़मत पर हमला करें उस के चेहरा को छुपा दें।

शहर थीगीयुर (Theguir) रमेन का ज़ाद बोम है और एक ख़ानक़ाह से मुताल्लिक़ क़दीम शहर है। उस के बाशिंदे निहायत नेक और दीन-दार हैं। वो जो दी दरिया के साहिल पर एक कोह पर वाक़ेअ है। ऐन लब-ए-दरया एक ऐसे मुक़ाम पर जिस पर हर राह गुज़रने वाले की नज़र यक-दम पड़ती है सफ़ैद पत्थर की एक मोरी बनी है जिसमें पूरे क़द के तीन सलीब नस्ब हैं और दर्मयानी सलीब के नीचे तीन ज़बानों में ये अल्फ़ाज़ कुंदा हैं:—

"ये आदमी बेशक ख़ुदा का बेटा था" इस कलवरी के मुताल्लिक़ क़िस्सा मशहूर है कि जब रेनन की शान में उस का बुत शहर के कैथडर्ल के क़रुब में नस्ब किया गया तो बाअज़ ने अपने इज़्हार-ए-नाराज़गी के लिए उस कलवरी को बनवाया था।

इस चशम बस्ता मसीह की तसलीब का इन्जीली बयान निहायत दर्दनाक है और उस का मुताला करते हुए दिल को बहुत रंज और सदमा होता है। लेकिन जब इस बात पर ग़ौर करते हैं कि किस तरह उन्नीस सदीयों तक बराबर लोग उसे चशम बस्ता करके ठट्ठों में उड़ाते रहे हैं। तो हमारे ग़म व अलम की कोई इंतिहा नहीं रहती।

नीटशे के मुंदरजा ज़ैल अल्फ़ाज़ से बढ़कर कुफ़्र आमेज़ और रंज आलूद अल्फ़ाज़ और क्या हो सकते हैं "इंजील या ख़ुशख़बरी" का ख़ातमा सलीब पर हो गया। वो जो उस के बाद इंजील कहलाई वो उस इंजील के बरअक्स थी जो मसीह की ज़िंदगी से वाबस्ता थी। दरहक़ीक़त वो बद और मनहूस ख़बर थी।” हालाँकि नटीशे बाज़-औक़ात ख़ुद मसीह की ज़ात के मुताल्लिक़ निहायत मुशफ़िक़ाना तरीक़ से इशारा करता है और शाज़ोनादर ही "यहूदीयों के इस मुख़्तसर से फ़िर्क़ा के बानी" की मज़म्मत करता है लेकिन तो भी वो मसीहीयत के नाम से और पौलुस रसूल के नाम से जो इंजील जलील का मुबश्शिर था सख़्त मुतनफ़्फ़िर था।

कुफ़्र व बेदीनी का हसद अस्र हाज़िरह में भी ठीक वैसे ही नुमायां है जैसे काइफ़ा के कमरा अदालत में था। लोग मसीह से गुरेज़ नहीं कर सकते। उस का चेहरा अज़बस जाज़िब-ए-तवज्जोह है। उस की आँखें शोला आतिश की मानिंद हैं। या तो वो इन्सान को अपनी जानिब खींच लेता है या वो उस से बिल्कुल दूर हो जाता है। मसीह का ये वस्फ़ ख़ुसूसी ज़माना गुज़श्ता

की तरह अब तक बरक़रार है।

"क्या यही वह चेहरा है जिसकी दहश्त से सराफ़ीम आलम-ए-बाला पर अपना मुँह छिपा लेते हैं ? क्या यही वो चेहरा है जिस पर कोई दाग़ या झुर्री नहीं। हाँ वो चेहरा जो मुहब्बत का चेहरा है? बिलाशक यही वह चेहरा है जो गो अब बदनुमा और बे जान है ताहम तमाम मख़्लूक़ात की मुहब्बत के लिए मुकतफ़ी है। जिससे मुहब्बत ईलाही का इक़तिज़ा पूरा हो गया है। हाँ वो चेहरा येसु मसीह का चेहरा पाक है।”

अह्देअतीक़ के मुक़द्दसिन अज़बस आर्ज़ूमंद थे कि ख़ुदा के जलाल का दीदार उस के मसीह के चेहरे से हासिल करें यही मूसा की दुआ थी। यही दाऊद की उम्मीद थी। यही यशायाह की तमन्ना थी "कब तक तू अपना मुँह मुझसे छुपाएगा?” अपने बंदे को अपने चेहरा का जलवा दिखला।” अपने ममसोह के चेहरे को मत फिरा।” मुझे से मुँह ना मोड़ नहीं तो मैं इन की मानिंद हो जाऊंगा जो गढ़े में गिरते हैं। “जब यशायाह ने उस का जलाल देखा और उस की मुसीबत का बयान किया तो उसने उस ख़ौफ़नाक दिन की पेशीनगोई इन अल्फ़ाज़ में की”:—

“मैं अपनी पीठ मारने वालों को देता और अपने गाल उन को जो बाल को नोचते । मैं अपना मुँह रुस्वाई और थूक से नहीं छुपाता" “वह मर्द-ए-ग़मनाक और रंज का आश्ना हुआ लोग उस से गोया रुपोश थे।” “बल्कि तुम्हारी बदकारीयाँ तुम्हारे और तुम्हारे ख़ुदा के दरमियान जुदाई करती हैं और तुम्हारे गुनाहों ने उसे तुमसे रुपोश किया।” इन्होंने इस की आँखों पर पट्टी बाँधी।”

और शायद यशायाह की पेशीनगोई यूं पूरी हुई:—

“अंधा कौन है मगर मेरा बन्दा ? और कौन ऐसा बहरा है जैसे मेरा रसूल जिसे मैं भेजूँगा। अंधा कौन है जैसा कि वो जो कामिल है और ख़ुदावंद के ख़ादिम की मानिंद अंधा कौन है?”

जब हम ऐसे अल्फ़ाज़ पर ग़ौर करते हैं तो उस वक़्त हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि येसु मसीह कैसी सख़्त मुसीबत और तक्लीफ़ की हालत में से गुज़रा होगा। जब उसने चशम बस्ता हो कर उम्दन व क़सदन कुफ़्र व बेदीनी व जहालत का शख़्सी तजुर्बा हासिल क्या होगा। बेदीनी और कुफ्र की बे-एतिक़ादी कोई नई बात नहीं। ज़मानों के शुरू से लोग अम्बिया किराम से जिन्होंने ख़ुदा की शहादत दी है ऐसे सबूत तलब करते रहे हैं जो आज तक उस चर्ख़-ए-कुहन के नीचे कभी किसी बात के लिए तलब नहीं किए गए जब कभी ये कहा गया है कि मसीह पर ईमान लाओ तो इस क़िस्म के सवालात का अंबार लग जाता है। मसलन उस के मोजज़ात कहाँ हैं? क्या वो कोई निशानात ज़ाहिर करता था? हम क्यों उस के कलाम पर ईमान लाएं ? क्या उस की कोई पेशीनगोई पूरी हुई है? “हमारे पैग़ाम पर कौन एतिक़ाद लाया और ख़ुदावंद का बाज़ू किस पर ज़ाहिर हुआ?”

हम या तो मसीह से मुँह फेर लेते हैं या ख़ुद उसे चशम बस्ता कर देते हैं और यूं क़ाइल हुए बग़ैर या इत्मीनान-ए-कुल्ली हासिल किए बग़ैर रह जाते हैं। सरदार काहिन के मुलाज़िमों ने कुछ ना देखा था। लेकिन इस की एक निगाह ने पतरस की ज़मीर पर ऐसा असर किया था कि वो निहायत रंजीदा और नादिम हो गया था। उस के लिए तौबा मुम्किन हुई क्योंकि उसने मसीह की आँखों पर पट्टी ना बाँधी थी और इसी तरह बराबर होता चला आया है जेरेमी टेलर (Jeremy Taylor) ने भी अपने वाअज़ में जो मुक़द्दसिन के ईमान और सब्र के मुताल्लिक़ है इसी ख़्याल को मद्द-ए-नज़र रखा है।

"उस की मौत दफ़अतन और यक-बारगी ना हुई । बल्कि वो एक बर्रा था जो दुनिया के शुरू से ज़बह किया गया था। क्योंकि वो बक़ौल मुक़द्दस पविलियनस हाबील में क़त्ल किया गया था। वो नूह की सूरत में समन्दर कि रुकी लहरों से टकराया गया था। जब इब्राहीम अपने शहर से बुलाया गया और वहां से निकल कर आवारा फिरा तो मसीह ही उस की ज़ात में फिरता रहा । इज़्हाक़ की सूरत में क़ुर्बानी के लिए नज़्र किया गया । याक़ूब की सूरत में सताया गया । यूसुफ़ की सूरत में बेचा गया। सम्सून की सूरत में अंधा किया गया। मूसा की सूरत में उस की तौहीन हुई । यशायाह की सूरत में आरे से चीरा गया। यर्मियाह नबी की सूरत में कुवें में डाला गया क्योंकि ये सब मसीह की मुसीबत के नमूने और निशान थे। फिर उस का दुख उस के ज़िंदा होने के बाद जारी रहा। क्योंकि वही अपने बंदों की ज़ात में सताया जाता है।

वही तमाम बदकारों के इन्कार की बर्दाश्त करता है वही ज़िंदगी का मालिक है जो अपने खादिमों की मुसीबत और तक्लीफ़, सरकशों की बग़ावत, मुनहरिफ़ों और मुनकिरों के इन्कार और ज़ालिमों के ज़ुल्म, ग़ासिबों की बे इंसाफ़ी और कलीसिया की इज़ारसानी के वक़्त बेइज़्ज़त किया जाता और दुबारा सलीब पर खींचा जाता है। मुक़द्दस स्तिफनुस में वही पथराओ किया गया। मुक़द्दस बरतलमाई की सूरत में उसी कि जिल्द खींची गई। मुक़द्दस लौरंस की सूरत में वही आग के शोलों पर बरीयां किया गया मुक़द्दस इग्नतियुस (Ignatius) की ज़ात में वही शेरों के आगे डाला गया। पोली कॉर्प की सूरत में जलाया गया और वही उस झील में सर्दी के बाईस यख़ हो गया जहां कपदोकीयह के चालीस शहीद खड़े किए गए ।

मुक़द्दस हिलेरी (St. Hilary) का क़ौल है कि मसीह की मौत की साकरीमन्ट हरगिज़ पूरी नहीं हो सकती जब तक इन्सानियत की तमाम मसाइब बर्दाश्त ना की जाएं।

पस अगर हमारे ज़माना में भी लोग हमारे मुनज्जी को रुपोश करते या उस को बेइज़्ज़त करते और उस का मुज़हका उड़ाते हैं तो हमें ये देखकर हैरत-ज़दा नहीं होना चाहिए । ख़्वाह हज़रत मुहम्मद का मक़्सद कुछ भी हो और ख़्वाह उसने और कुछ किया हो या ना किया हो उसने मसीह को रुपोश ज़रूर किया है। गोया मसीह यानी आफ्ताब-ए-सदाक़त पर मुहम्मद स. यानी माह-ए-मक्का का गरहन लगा है।

हर नया मज़्हब या फ़लसफ़ा जदीद लोगों को इंजील से मुनहरिफ़ करता है तब ही कामयाब होता है जब पहले मसीह को रुपोश कर ले। वो जो उस की आँखों में एक बार देख लेते हैं उन्हें किसी और नूर की ज़रूरत नहीं रहती वो जिन्होंने उस के चेहरे का दीदार हासिल कर लिया किसी और

हादी और रहनुमा की पैरवी करना पसंद नहीं करते।”

अगर हमारी ख़बरी पर पर्दा पड़ा है तो हलाक होने वालों ही के वास्ते पड़ा है यानी उन बेईमानों के वास्ते जिनकी अक़्लों को इस जहान के ख़ुदा ने अंधा कर दिया है ताकि मसीह जो ख़ुदा की सूरत है। उसके जलाल की सूरत की रोशनी उन पर ना पड़े। क्योंकि हम अपनी नहीं बल्कि येसु मसीह की तब्लीग़ करते हैं कि वो ख़ुदावंद है। और अपने हक़ में ये कहते हैं कि येसु की ख़ातिर

तुम्हारे ग़ुलाम हैं इसलिए कि ख़ुदा ही है जिसने फ़रमाया कि तारीकी में से नूर चमके और वोही हमारे दिलों में चमकाता कि ख़ुदा के जलाल की पहचान का नूर येसु मसीह के चेहरे से जलवागर हो।”

वोह जो अक़्ल की आँखें बंद करके तारीकी में चलते हैं अक्सर औक़ात ख़ुद पहले मसीह को रुपोश करने से रोशनी को छुपा देते हैं। ख़्वाह इन अल्फ़ाज़ "यानी दुनिया के सरदार" का मतलब कुछ ही हो लेकिन उस में यक़ीनन वो शैतानी इख़्तियार ज़रूर शामिल है जो लोगों को हमारे नजातदिहंदा के जलाल का मुशाहिदा करने से बाज़ रखता है और वो ज़माना की उस रूह से मुताल्लिक़ है जो बिद्दती ख़्यालात दुनियादारी के मसाइल और अक़ीदे अय्याराना चालें और फ़ित्ना साज़ियाँ, नजिस और नापाक तहरीकें और मुरव्वजा अक़ाइद जो ज़माना में शक व शुबहा और कुफ़्र व बेदीनी का माहौल पैदा करके ईमान की बेख़कुनी करती है।

कोर बातिनी बेदीनी की पेशरू बल्कि उस का मूजिब है। कोरबातिनी इंजील पर पर्दा डालने, ख़ुदा के सरीह और रोशन कलाम को पेचीदा बनाने और सदाक़त की जानिब से आँखें मूंद लेने का नतीजा है। मसीह ने फ़रमाया है:—

"मैं दुनिया में अदालत के लिए आया हूँ ताकि जो नहीं देखते वो देखें और जो देखते हैं वो अंधे हो जाएं"

फिर एक मर्तबा चशम बस्ता मसीह की उस दर्दनाक तस्वीर पर ग़ौर करो जो सनहीडर्न के बदमआशों के दरमियान खींची गई है। इस चेहरे पर नज़र करो जो सुब्ह-ए-सादिक़ और उलूहियत के नूर से मुनव्वर है। लेकिन चशम बस्ता है और थप्पड़ों की मार से उस के सुर्ख़ रुखसारों से जोवे ख़ून जारी है। ज़बूर नवीस फ़रमाता है अपने मसीह के मुँह पर निगाह रख और यहां पर हम उस के चेहरे को मुसीबतज़दा नजातदिहंदा की असली सूरत में देखते हैं:—

देख वो मर्द ग़मनाक जो मारा कुटा, सताया हुआ, ज़लील किया हुआ और बंधा हुआ है लेकिन अपनी ज़बान से एक आवाज़ तक नहीं निकालता और जां निसारी ली ख़ामोशी ने उस के लबों पर मोहर-ए-सुकूत लगा दी है।”

“हमें नबुव्वत से बता कि किस ने तुझे मारा।” इस आयत का जवाब हम अपने दिलों से तलब करें। मसीह ने फ़क़त इस लिए मुसीबत ना उठाई कि हमें गुनाह और इस की लानत से रिहा करे बल्कि वो दुख उठा कर हमें एक नमूना दे गया है ताकि उस के नक़्श-ए-क़दम पर चलें। अपनी मस्लुबियत के एक एक वाक़्ये से दुनिया का सलीब बर्दार हमारे कानों में ये कह रहा है "मेरी पैरवी करो जुरात और दिलेरी के साथ ज़िंदगी गुज़रानौ और हर एक मुसीबत का बग़ैर कुड़-कुड़ाए कमाल आजिज़ी और बुरदबारी के साथ मुक़ाबला करो रंज व अलम और ग़ुस्सा व ग़ज़ब दिल-शिकन ज़जर-ओ-तौबीख़ को ख़ुशी से क़बूल करो अपने ऐब लगाने वालों के सामने ख़ामोश खड़े रहो। इंजील और मेरी दिलेरी से बर्दाश्त करो मेरे साथ नाकामयाबी के पियाले में से पीने से इन्कार ना करो जो अक्सर औक़ात जाम-ए-मौत से भी मलख़तर हौता है यानी तज़हीक की जानकनी जो मौत की जानकनी से भी ज़्यादा पुरदर्द और अलमनाक होती है।”

जब हम अदालत के कमरे और चशम बस्ता मसीह पर नज़र डालते हैं और देखते हैं कि किस तरह उस ने उन गुनाहगारों की मुख़ालिफ़त और तौहीन की बर्दाश्त की तो उस वक़्त हम अपनी मलामत और हक़ारत को बर्दाश्त करने में पस्त-हिम्मत और आज़ुरदा-ख़ातिर नहीं होंगे।” जब मेरे सबब लोग तुम्हें लान-तान करेंगे और हर तरह की बुरी बातें तुम्हारी निस्बत नाहक़ कहेंगे तो तुम मुबारक होगे। ख़ुशी करना और निहायत शादमान होना क्योंकि आस्मान पर तुम्हारा अज्र बड़ा है। इसलिए लोगों ने नबियों को भी जो तुमसे पहले थे इसी तरह सताया था।”

ये आख़िरी और सबसे अज़ीम ख़ुशख़बरी है हाँ ये उन की ख़ुशख़बरी है जो मसीह की अज़ इब्तिदा-ता-इंतिहा पैरवी करते हैं। यानी गतसमनी से लेकर गलगता तक।

ख़ुदा के दोस्तों की खु़फ़ीया जमात में शरीक होने की पहली शर्त ये है कि हम दुनिया की मस्नद अदालत के सामने उस के हमराह खड़े हों और दुनिया के मज़्हब उस की तहज़ीब और उसके इख़्तियार हुकूमत के हाथों कभी तो उस के साथ ठट्ठों में उड़ाए जाएं। कभी उन की ख़ुशनुदी भी हासिल कर लें और कभी बाहमी ग़लत-फ़हमियों का भी शिकार हो जाएं हिक़मतों के हाथों जिनको दुनिया ने हक़ीक़त को मोरीद-ए-इल्ज़ाम ठहराने के लिए मयार मुक़र्रर कर रखा है।

जब हम ये ऐलान करते हैं कि दुनिया इस क़ाबिल नहीं कि वो हमें वो हक़ीक़ी बादशाहत दे सके जिसकी हम तलाश कर रहे हैं उस वक़्त हम दुनिया की हम्दर्दी खो बैठे हैं और उस की हिस्स-ए-मुश्तरक की तौहीन करते हैं। वो मस्नद अदालत के रुबरु इस ख़्याल के साथ दाख़िल होती है कि हमारी तबीयत के सरकश अंसर के साथ अक्लमंदी से पेश आएगी और हमारी बेवक़ूफ़ी की बर्दाश्त करेगी। फिर जहालत, काहिली और बुज़दिली बड़ी तस्कीन से हमें मलामत करती हैं जिस तरह से कि उन्होंने अव्वल और वाहिद बेऐब हस्ती की की थी। (इक़तिबास अज़ "दी पाथ औफ़ इटर्नल विज़डम" मन तस्नीफ़ जान करडीलियर)।