बाब हफ़तुम

"देखो ख़ुदा का बर्रा !"

वस्त एशिया से मसीह की एक जिला-वतन ख़ादिमा जिसने अहले-ए-इस्लाम के दरम्यान निहायत तन वही से तवील ख़िदमत की है यूं कहती है:—

"हम यहां इब्तिदाई बातों को सबसे आगे रखना सीखते हैं और फिर बतदरीज निहायत अक्लमंदी और इस्तिक़लाल के साथ अपने वाहिद मक़्सद तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। मेरी राय ये है कि हमें बैरूनी दुनिया को दिखाये बग़ैर ख़ामोशी के साथ ऐसा करना चाहिए। ताकि हम उस अंदरूनी दुनिया में जहां हमारे ख़ुदावंद ने हमें रखा है वाक़ई कुछ ख़िदमत अंजाम दे सकें। आजकल मसीह के नाम की गवाही देने के लिए हमें आज़ादी हासिल है लेकिन अंदेशा ये है कि किसी वक़्त भी ये आज़ादी हमसे छिन ना जाये। लिहाज़ा हमें निहायत दानिशमंदी के साथ वक़्त को ग़नीमतजान कर इसका मुनासिब व वाजिब इस्तिमाल करना चाहिए"

क्या हम मसीह के गवाह होने की हैसियत में ये सवाल नहीं पूछ सकते कि ये मक़्सद किया है? हमारे पैग़ाम का मर्कज़ किया है ? वो कौनसी हक़ीक़त है जिसे हमें ज़रूर ज़ाहिर करना है ? वो कौनसा ऐसा सरीह, आला व बरतर और मुतहर्रिक पैग़ाम है जो हमें ग़ैर-मसीही दुनिया को पहुंचाना है ? क्या वो पैग़ाम यूहन्ना इस्तबाग़ी के अल्फ़ाज़ से ज़ाहिर नहीं होता जो बनी इस्राइल के लिए एक नए पैग़ाम का पहुंचाने वाला था ? बनी इस्राइल और अहले इस्लाम में बहुत सी बातें मुशतर्का हैं । ब्याबान में पुकारने वाली एक आवाज़ ही पैग़ाम सुना रही है:—

"यानी देखो ख़ुदा का बर्रा !"

हेरोदेस की तेग़े आबदार ने यूहन्ना को जल्द जाम-ए-शहादत पिलाया और यूं उस से मसीह के पाक नाम की शहादत देने की आज़ादी ले ली गई । लेकिन जब तक उसे ये आज़ादी हासिल थी उसने इब्तिदाई बातों को पेश रखा।

ये क़ैसर तबरयास के अह्द का पंद्रहवां साल था। पिन्तुस पिलातुस यहुदियाह का हाकिम था। हेरोदेस गलील पर हुकमरान था और फिलिप्स और लाईसीयस (Lysias) चौथाई मुल्क के हाकिम थे। हन्ना और काइफ़ा के सपुर्द हैकल की इबादत और क़ुर्बानीयों का इंतिज़ाम था।

रूमी सल्तनत में बग़ावत के आसार नमूदार थे। बहुत नए फ़िरक़े और जमातें बन गई थीं जो अपने अपने फ़लसफ़े पेश कर रही थीं। लेकिन उनमें से एक में भी कोई ज़िंदा जावेद उम्मीद ना थी। लिहाज़ा ख़ुदा का कलाम ब्याबान में यूहन्ना पर ज़ाहिर हुआ और उसने जो कुछ सुना उस की मुनादी की यानी "देखो ख़ुदा का बर्रा !"

ये अल्फ़ाज़ यानी "ख़ुदा का बर्रा" हमारे ख़ुदावंद के लक़ब की सूरत में दो मर्तबा मुक़द्दस यूहन्ना और एक मर्तबा पतरस के पहले ख़त में मज़कूर हैं। मुक़द्दस यूहन्ना इस लक़ब को तसग़ीर की सूरत में मुकाशफ़ा की किताब में अट्ठाईस मर्तबा इस्तिमाल करता है । अगर हम इन मुक़ामात का मुताला करें तो हमें मालूम हो जाएगा कि उस शागिर्द के नज़दीक जो ख़ुदावंद मसीह के सीने पर सर रखकर तकिया करता था और जो दीगर शागिर्दों की निस्बत उसकी नजात बख़्श मुहब्बत के राज़ से बेशतर वाक़िफ़ था इन अल्फ़ाज़ को किस क़दर एहमीयत हासिल थी। ये अल्फ़ाज़ सबसे पेशतर यूहन्ना इस्तबाग़ी की गवाही में मज़कूर हैं जो उसने मसीह की निस्बत दी। "दूसरे दिन उसने येसु को अपनी तरफ़ आते देखकर कहा देखो ये ख़ुदा का बर्रा है जो दुनिया के गुनाह उठा ले जाता है" उसके अगले दिन फिर यरदन के उस पार शायद बैत- अन्या बैत उबारा में यूहन्ना और उस के शागिर्दों में से दो शख़्स खड़े थे उसने खुदावंद मसीह पर जो जा रहा था निगाह करके कहा "देखो ये ख़ुदा का बर्रा है।"

पतरस इस लक़ब को बिल्कुल इसी तरह तो नहीं इस्तिमाल करता लेकिन गुनाहों से ख़लासी हासिल करने के मुताल्लिक़ ज़िक्र करते हुए यूं कहता है कि:—

"ये फ़ानी सोने और चांदी के ज़रीया से नहीं हो सकती बल्कि एक बेऐब और बेदाग़ बर्रे यानी येसु के बेशक़ीमत ख़ून से।"

पतमस के जज़ीरे में यूहन्ना के मुकाशफ़ा के ज़रीया से दफअतन हमारी मुलाक़ात यहुदाह के क़बीले के इस बब्बर से होती है जो "ख़ुदा का बर्रा भी है" और मैंने उस तख़्त और चारों जानदारों और उन बुज़ुर्गों के बीच में गोया ज़बह किया हुआ एक बर्रा देखा" चौबीस बुज़ुर्ग उस बर्रे के सामने गिर पड़े (मुकाशफ़ा 5:8) और एक नया गीत गाने लगे और फ़रिश्ते जो शुमार में लाखों करोड़ों थे बुलंद आवाज़ से ये कहते सुनाई दिए "ज़बह किया हुआ बर्रा ही क़ुदरत और दौलत और हिक्मत और ताक़त और इज़्ज़त और तम्जीद के लायक़ है" तमाम मख़्लूक़ात भी जवाब में बर्रा की हम्दो इज़्ज़त के गीत गाती है।

फिर हम पढ़ते हैं कि बर्रा ख़ुदा की सात मुहरों में से एक को खौलता है और ख़ुदा का ग़ज़ब पे-दर-पे ज़ाहिर होता है। यहां तक कि लोग ख़ौफ़-ज़दा हो कर चिल्ला कर "पहाड़ों और चटानों से कहने लगे कि हम पर गिर पड़ो और हमें उस की नज़र से जो तख़्त पर बैठा हुआ है और बर्रा के ग़ज़ब से छिपा लो" (मुकाशफ़ा 6: 16)

नजात याफताह लोगों की एक बड़ी जमात सफ़ैद जामे पहने तख़्त और बर्रा के आगे खड़ी बड़ी आवाज़ से चिल्ला चिल्ला कर उस की तम्जीद के गीत गाती है। क्योंकि बर्रा जो तख़्त के बीच में है वो उन की गल्लाबानी करेगा और ख़ुदा उनकी आँखों के सब आँसू पोंछ देगा (मुकाशफ़ा 7: 10 व 17)

आगे चल कर हम देखते हैं कि किस तरह वो बर्रे के ख़ून के बाईस भाईयों पर इल्ज़ाम लगाने वाले पर ग़ालिब आए (12:11) और इसलिए भी कि इनके नाम बर्रे की किताब हयात में लिखे गए थे (13:8) फिर हम बर्रे को कोहे सिय्योन पर खड़ा देखते हैं (14:1) और वो जो औरतों के साथ आलूदा नहीं हुए बर्रे के पीछे पीछे चलते हैं क्योंकि वो ख़ुदा और बर्रे के लिए पहले फल होने के वास्ते आदमीयों में से ख़रीद लिए गए (14:4)

लेकिन वो जो उस हैवान की परस्तिस करते हैं बर्रे के सामने आगे और गंधक के अज़ाब में मुब्तला होते हैं (14:10) वो जो ग़ालिब आए थे बर्रे का गीत गाते हैं (15:3) वो जो उस हैवान के साथ हैं बर्रे से लड़ते हैं। लेकिन बर्रा उन पर ग़ालिब आता है क्योंकि वो ख़ुदावन्दों का ख़ुदावंद और बादशाहों का बादशाह है (17:13) इसके बाद आस्मान पर एक बड़ी भेड़ की आवाज़ ये कहते हुए सुनाई दी "हल्लेलुयाह इसलिए कि बर्रे की शादी आ पहुंची (19:7) "मुबारक हैं वो जो बर्रे की शादी में बुलाए गए हैं।" आख़िरी अबवाब में तमाम जलाल और बुजु़र्गी ख़ुदा के बर्रे को दी गई है जो दुनिया के गुनाह उठा ले जाता है । मुक़द्दस शहर बर्रे की दुल्हन है।

कुल रसूल बर्रे के रसूल हैं उस में कोई मुक़द्दस नहीं क्योंकि ख़ुदावंद ख़ुदा क़ादिर-ए-मुतलक़ और बर्रा उसका मुक़द्दस में (21:22) उस शहर में सूरज और चांद की कोई हाजत नहीं। क्योंकि ख़ुदा के जलाल ने उसे रोशन कर रखा है और बर्रा उस का चिराग़ है (21:23) उसमें कोई दाख़िल नहीं हो सकता मगर वो जिसके नाम बर्रे की किताब-ए-हयात में लिखे हैं (21:27) आब-ए-हयात का दरिया बर्रे के तख़्त से निकल कर सड़क के बीच में बहता है क्योंकि ख़ुदा का तख़्त बर्रे का तख़्त है और उस के बंदे उस का मुँह देखेंगे और उस का नाम (यानी येसु का नाम) उन के हाथों पर लिखा हुआ होगा (22: 1-3) "तू उसका नाम येसु रखना, क्योंकि वही अपने लोगों को उनके गुनाहों से नजात देगा।”

पस कौन इन मुतअद्दिद मुक़ामात की दलायल और उनके बेशुमार सबूतों के बावजूद कह सकता है कि येसु मसीह ख़ुदा का बर्रा हो कर गुनाहगारों का नजातदिहंदा, दुनिया का बचाने वाला, जलाल का बादशाह, आदिल मुंसिफ़ और क़ौमों का एक ही जोहर है और बाप की और उसकी एक ही सिफ़ात हैं और उसकी और बाप की एक ही शान, बुजु़र्गी और इख़्तियार है।

यह तमाम बातें यूहन्ना इस्तबाग़ी के अल्फ़ाज़ में मख़्फ़ी थीं जो उसने उस बेऐब येसु नासरी को देखकर यरदन के किनारे कहीं हालाँकि येसु अपने बपतिस्मा के वक़्त गुनाहगारों के साथ शुमार किया गया था। लेकिन बादअज़ां आस्मान पर से उस आवाज़ के आने के ज़रिये से कि "ये मेरा प्यार बेटा है जिससे में ख़ुश हूँ।” उस को जलाल बख़्शा गया (मत्ती 3:17)

यक़ीनन यूहन्ना ने यह अल्फ़ाज़ इस ख़्याल से कहे होंगे कि लोगों के उनके हक़ीक़ी मआनी समझ में आ जाऐं। उसने यह अल्फ़ाज़ चीसतान के तौर पर ना कहे बल्कि उसकी मुराद इन अल्फ़ाज़ से मसीह मौऊद को ज़ाहिर करना था। ग़ालिबन उसका मतलब यशायाह के 53 तिरेपनवें बाब के यहोवाह के सादिक़ बंदे से होगा जो हमारी बदकारीयाँ उठाता है और बर्रे की मानिंद ज़बह करने को ले जाया जाता है।

अगर इन अल्फ़ाज़ से महज़ येसु के हलीम और उसकी फ़िरोतनी की जानिब इशारा हो (जैसा कि जदीद-इलाहिय्यात के बाअज़ मोअतक़िद अपनी तहरीरों में दिखाने की कोशिश करते हैं) और उन में उस के कफ़्फ़ारा और क़ुर्बानी का अंसर शामिल ना किया जाये तो उससे इसी क़िस्म के दीगर मुक़ामात का ख़ून होता है।

गोडेट (Godet) अपनी राय ज़ाहिर करते हुए कहता है:—

"इसमें कुछ शक नहीं कि यूहन्ना को उस फ़र्क़ ने जो उसने येसु और अपने दरमियान देख लिया था राग़िब किया हो कि अह्दे-अतीक़ के जुमला अलक़ाब पर इस लक़ब को तर्जीह दे यानी "ख़ुदा का बर्रा" जो जहान के गुनाह उठाले जाता है।”

ये हैरानी की बात है कि ये लक़ब "बर्रा" जिससे उस मुबश्शिर ने येसु को सबसे पहले जाना वही है जिसको किताब-ए-मुकाशफ़ात में तर्जीह दी गई है। वो उस सुर को जो एक मर्तबा उसके सुर में समा गया तादमे-मर्ग अलापता रहा।"

ये शीरीं राग ख़ुद मसीह की अपनी और अव्वलीन तालीम में सुनाई देता है यानी उसने फ़रमाया कि वो इसलिए आया कि अपनी जान औरों के लिए फ़िद्या में दे और जिस तरह मूसा ने पीतल का साँप ब्याबान में लकड़ी पर उठाया इसी तरह इब्ने आदम भी हमारी नजात की ख़ातिर सलीब पर चढ़ाया जाएगा।

मसीह का कोई लक़ब या नाम मुख़्तलिफ़ कलीसियाओं की नमाज़ की किताब में इतनी मर्तबा नहीं आया जितनी दफ़ा ये नाम:—

"ऐ ख़ुदा के बर्रे जो जहान के गुनाह उठा ले जाता है अपना इत्मीनान हमें बख़्श।
ऐ ख़ुदा के बर्रे जो जहान के गुनाह उठाले जाता है हम पर रहम कर"

डेंटे (Dante) की तस्नीफ़ परगटूरियो (Purgatorio) में भी आवाज़ें यक ज़बाँ हो कर माफ़ी के लिए यही दुआ माँगती हुई सुनाई देती हैं "ख़ुदा का बर्रा" यही उन की तम्हीद है और फ़क़त इसी नाम को वो हम-आवाज़ हो कर गाती हैं।"

यूहन्ना इस्तबाग़ी मसीह की शख़्सियत पर अपनी तवज्जा मर्कूज़ रखता है। वो सीग़ा वाहिद इस्तिमाल करता है और कहता है "देख" हालाँकि मसीह तमाम दुनिया के गुनाह उठा ले जाता है तो भी हम में से हर एक को अपने ज़ाती गुनाह के दूर करने के लिए शख़्सी तौर पर मसीह को देखना है। "वही हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा है और ना सिर्फ हमारे गुनाहों का बल्कि तमाम दुनिया के गुनाहों का भी।"

येसु नासरी कोई शाहाना लिबास और शाही ताज पहने हुए ना था। वो नज्जार का बेटा था। लेकिन यूहन्ना रसूल ने उसमें वो जलाल देखा जो बाप के इकलौते का था। उसने उसे फ़ज़्ल व सच्चाई से मामूर देखा। वो ख़ुदा का बर्रा है। उसके वसीले से सब चीज़ें बनीं और कुल पर उस का इख़्तियार है। ख़ुदा ने अपने बेटे को दुनिया में भेजा और वो उसे प्यार करता है। उस क़ुर्बानी में इन्सान का कुछ ख़र्च नहीं होता। क्योंकि ख़ुदा ही अपनी सबसे बेहतरीन चीज़ देता है।

"देखो उस मर्द को !" ये अल्फ़ाज़ पिलातुस ने येसु की जानिब इशारा करते हुए कहे जब उसने उसे कांटों का ताज सर पर रखे हुए ज़ख़्मी और घायल और अर्ग़वानी चोग़ा पहने हुए देखा। यूहन्ना इस्तबाग़ी ने मसीह की ख़िदमत के आग़ाज़ ही में उसके बपतिस्मा के बाद कहा "देखो ख़ुदा का बर्रा ।"

दुनिया उस वक़्त से लेकर अब तक उसे देख रही है। क्योंकि वो तमाम तारीख़ उफ़ुक़ पर मुहीत है। वो छुप नहीं सकता। लोग तो उस पर नज़र करते और कन्नी कतरा कर गुज़र जाते हैं या उसे देख कर आख़िर दम तक उस की पैरवी करते हैं। सटडरट कैंडी (Studdert Kennedy) येसु का बयान करते हुए उस का नक़्शा बईना वैसे खींचता है जैसे मौजूदा दुनिया उसे देखती है। और कहता है:—

“वह अब भी अपनी ख़स्ता-हाल कलीसिया के साथ इसी तरह ज़लील व ख़्वार नज़र आता है जो सब्त के रोज़ तो होशाना के नारे बुलंद करती है लेकिन जुमा के दिन बाग़ गतसमनी में उसे अकेला छोड़कर फ़रार हो जाती है जो बड़े होने के मुताल्लिक़ बेहस तो करती है लेकिन थे मांदों के पांव धोने से अहितराज़ करती है जो पतरस की मानिंद पहले इक़रार तो करती है। लेकिन बाद में उसे पकड़वा देती है यानी अपने बेकस व लाचार ख़ादिमान-ए-दीन के एक गिरोह अज़ीम के साथ जिसमें मेरे जैसे कम अक़्ल बेवक़ूफ़ लोग शामिल हैं। जो इंजील की मुनादी तो करते हैं लेकिन उस की तालीम का असर अपनी ज़िंदगीयों में दिखाने से क़ासिर हैं। जो मुहब्बत करने की कोशिश तो करते हैं लेकिन दरअसल अवाम के दिल पसंद नहीं हो सकते। वो अब भी वैसा ही काबिल-ए-तज़हीक मालूम होता है जैसा उस वक़्त था कि जब उस के सर पर कांटों का ताज धरा था और उस की ज़ख़्मी पीठ पर जिससे सेल ख़ून जारी था एक ग़लीज़ अर्ग़वानी चोग़ा पहनाया गया था जब उस के हाथ में तम्सख़र के तौर पर असा के बजाय लाठी पकड़ाई गई थी। और उस के मुबारक चेहरे पर एक शराबी सिपाही का थूक बह रहा था। हाँ बईना वही मसीह जो तब था अब भी है। लेकिन मैं उससे ख़ौफ़ खाता हूँ क्योंकि मुझे ख़्याल है कि नई रोशनी का इन्सान अपने इंतिहाई वहशीपन और बरबरीयत के बावजूद अपने दिल में उस से डरता है इसलिए येसु इन्सान के दिल में एक क़िस्म की बेचैनी और इज़तिराब पैदा करता है वो इन्सान की ख़ुद-एतिमादी को दूर करता और उस के ग़रूर और तकब्बुर की बेख़कुनी करता है उसमें कुछ ऐसी क़ुदरत है कि साहिबे इक़तिदार भी उसे सज्दा करने को अपने तईं मजबूर पाते हैं हालाँकि सज्दा का सज़ावार फ़क़त ख़ुदा क़ादिर-ए-मुतलक़ है।"

मसीह वो बर्रा है जो ख़ुदा कफ़्फ़ारे के लिए मुहय्या करता है ताकि वो कफ़्फ़ारे की क़ुर्बानी ठहरे। इब्रानियों के ख़त की सरीह तालीम के मुताबिक़ हम मसीह में अह्देअतीक़ की तमाम तालीम की तक्मील देखते हैं। जो गुनाह के कफ़्फ़ारे के लिए ख़ून की क़ुर्बानी को लाज़िम क़रार देती है यहां पर तमाम इन्सानी रसूम और क़ुर्बानी से मुताल्लिक़ जुमला अहकाम का बुज़ुर्ग वाज़े और बानी मौजूद है यानी ख़ुदा का बर्रा जो तमाम अक़्वाम की आरज़ू और तमन्ना है।

इब्रानियों के ख़त का राक़िम कोह-ए-सीना के जलाल और कोह-ए-सिय्योन पर अख़्लाक़ी उसूल और क़वाइद देते वक़्त मज़ीद जलाल का मुक़ाबला करते हुए एक हैरत-अंगेज़ मेराज को पहुंचता है और यूं फ़रमाता है:—

"तुम ज़िंदा ख़ुदा के शहर यानी यरूशलेम के पास और लाखों फ़रिश्तों और उन पहलोठों की आम जमात यानी कलीसिया जिनके नाम आस्मान पर लिखे हैं और सब के मुंसिफ़ ख़ुदा और कामिल किए हुए रास्तबाज़ों की रूहों और नए अह्द के दर्मयानी येसु और छिड़काओ के उस ख़ून के पास आए हो जो हाबील की निस्बत बेहतर बातें करता है।”

ख़ून के बहाए जाने से गुनाहों की माफ़ी किस तरह होती है? क़ुर्बानी की रस्म शुरू क्योंकर हुई ? इसके आलमगीर होने की क्या वजह है ? ना फ़क़त मुल्क-ए-शाम के मज़्हब में बल्कि तमाम अक़्वाम की क़ुर्बानी से मुताल्लिक़ रसूमात में हम कफ़्फ़ारे के तीन बुनियादी उसूल पाते हैं यानी फ़िद्या इत्मीनान व दिल जमुई और आसूदगी व कफ़ाएत । ये सब सलीब पर मसीह की क़ुर्बानी में मौजूद हैं। मसीह इन ही मआनी में हमारे लिए मरा जिस तरह कोह-ए-मौर्या पर बेल इज़्हाक़ के इव्ज़ क़ुर्बानी चढ़ा मसीह की मौत से कामिल तसल्ली और ख़ातिर जमुई हो गई यानी अदल व इन्साफ़ का तक़ाज़ा पूरा हुआ माफ़ी हासिल हुई । उससे भी कहीं ज़्यादा जितनी चौखट पर ख़ून का निशान लगाने से हुई जब कि मलक-उल-मौत के मिस्र के पहलोठों को मारता हुआ गुज़र रहा था। मसीह की मौत काफ़ी है। वो दुबारा नहीं मरने का । उसने एक बार सलीब पर क़ुर्बान होने से "एक कामिल और काफ़ी क़ुर्बानी गुज़रानी और तमाम दुनिया के गुनाहों के लिए तसल्ली बख़्श ज़बीहा पेश कर दिया।”

टरमबल (Trumbull) "ख़ून के अह्द" के दिलचस्प मुताअले के दौरान में मुल्क-ए-शाम व रोम की इब्तिदाई तालीम का एक निहायत उम्दा ख़ुलासा पेश करता है जो अहद-ए-अतीक़ की तालीम से बहुत कुछ मुताबिक़त रखता है और वो कहता है कि "इन लोगों के नज़दीक ख़ून बहाए जाने के बग़ैर गुनाहों की माफ़ी और ख़ुदा से रिफ़ाक़त और इत्मीनान कलबी हासिल करना मुम्किन नहीं" यूहन्ना इस्तबाग़ी के मसीह को ख़ुदा का बर्रा कहने के मअनी को समझने के लिए हमें चाहिए कि अहद-ए-अतीक़ के सहाइफ़ का बग़ौर मुताला करें क्योंकि यही अहद-ए-जदीद के मौज़ू की बिना और असल हैं।

मुल्क-ए-शाम के इस वसीअ मज़हबी तसव्वुर को हम इस्लाम की क़दीम रस्म यानी अक़ीक़ा की क़ुर्बानी में पाते हैं। जिसको आँहज़रत ने जायज़ क़रार दिया। वो अनक़रीब आलमगीर रस्म है जो रासिख़-उल-एतक़ाद व रिवायात पर मबनी है और मराको से लेकर मुल्क-ए-चीन तक राइज है। रिवायात से मालूम होता है कि आँहज़रत ने ना फ़क़त अपने दोनो नवासों इमाम हसन और इमाम हुसैन के लिए ही अक़ीक़ा की क़ुर्बानी गुज़रानी बल्कि ख़ुद अपने लिए भी (इन नफ्सिही) वो दुआ जो सात दिन के बच्चे के गुनाहों की मग़फ़िरत के लिए बर्रा या बक्री के बच्चे कि क़ुर्बानी चढ़ाए जाने के मौक़ा पर मांगी जाती है मुंदरजा ज़ैल है:—

"ऐ ख़ुदा मेरे बच्चे फ़ुलां फ़ुलां नामी के लिए ये अक़ीक़ा की क़ुर्बानी गुज़रानी जाती है। उसका ख़ून उसके ख़ून के इव्ज़, उसका गोश्त उसके गोश्त के इव्ज़, उसकी हड्डी उसकी हड्डी के इव्ज़, उस का चमड़ा उसके चमड़े के इव्ज़ और उसके बाल उसके बाल के इव्ज़ ऐ ख़ुदा इसे मेरे बच्चे को दोज़ख़ की आग से बचाने का फ़िद्या बना क्योंकि फ़िल-हक़ीक़त मैंने उस की तरफ़ जिसने आस्मान व ज़मीन पैदा किए रुजू किया और मैं तुझ पर ईमान रखता हूँ। मैं इनमें से नहीं जो तेरी ज़ात वाहिद में दूसरों को तेरा शरीक ठहराते हैं। वाक़ई मेरी नमाज़ और मेरा नज़राना बल्कि मेरी ज़िंदगी और मौत ख़ुदा के लिए है जो मालिक-ए-हर दो-जहाँ है और लाशरीक है। मैंने यही तालीम पाई और मैं अहले इस्लाम में से हूँ।"

अहले  इस्लाम में भी फ़सह की मानिंद उस ज़बीहा की कोई हड्डी नहीं तोड़ी जाती। मुक़द्दस यूहन्ना इस ख़ास अम्र पर इशारा करता है जो नबुव्वत के तौर पर लफ़्ज़ बह लफ़्ज़ पूरा हुआ (यूहन्ना 19:36) क्योंकि उस ने कलवरी पर ख़ुदा के बर्रे को देखा जो जहान के गुनाह उठा ले जाता है।"

अहले-इस्लाम और दीगर ग़ैर-मसीही अक़्वाम के लिए इंजील का पैग़ाम इसी मुख़्तसर से जुमला में पाया जाता है। मसीह की सलीब इस्लामी अक़ीदे की ज़ंजीर की ग़ाईबी कड़ी है। मसीह की सलीबी मौत, उसकी ज़रूरत, उसके तारीख़ी वाक़या होने की हक़ीक़त उसके मआनी व मक़ासद, उसके नताइज, उसकी क़ुदरत और उसकी रिक़्क़त व दिलसोज़ी ये तमाम हक़ायक़ इस्लाम के अरबाब-ए-फ़िक्र व दानिश की चश्म-ए-बसीरत से पोशीदा रहे हैं। लेकिन ख़ुदा उन्हें बच्चों पर ज़ाहिर करता है।

जिस वक़्त मुतलाशी हक़ मसीह की सलीब के पास जाकर मस्लूब मसीह पर नज़र करता है तो उस वक़्त उस की तमाम मुश्किलात हल हो जाती हैं। इस्लाम में अफ्आल तसव्वुफ़ भी बावजूद अपनी कमालियत के सलीब के राज़ को ज़ाहिर करने में क़ासिर रहे हैं। बहुत सी रूहों के होलनाक अंजाम का यही सबब है जो मंज़िल-ए-मक़्सूद पर पहुंचे बग़ैर मुतवातिर भटकती रहती हैं। ग़ज़ाली, शोअरानी, जलाल उद्दीन अलरोमी, इब्न अलअरबी और इसी क़िस्म के बहुत से मुतलाश्यान-ए-हक़ एक तवील और ख़तरनाक राह पर सफ़र करते रहे हैं। गुनाह और तौबा मग़फ़िरत और ख़ुदा का दीदार हासिल करने के मुताल्लिक़ उनकी जो तालीम है अज़बस कि वो इंजील की तैयारी के लिए मुफ़ीद तो है । ताहम वो कलवरी की बुलंदीयों तक हरगिज़ हरगिज़ नहीं पहुँचती । यही वो मुक़ाम है जहां मुल्क अरब का "मुस्रिफ़ बेटा" ख़ुद भी राह से बिल्कुल गुमराह हो गया और बहुत से लोगों को गुमराह कर गया। अगर हम पैदाइश की किताब के अह्द से लेकर कोह कलवरी के दामन तक तमाम राह ख़ून के निशानों की पैरवी ना करेंगे तो ज़रूर गुमराह हो जाएंगे।

प्रिंसिपल फोरसिथ कहता है कि "रसूलों ने ख़ुदा से दुबारा मेल और सुलह का इन्हिसार हमेशा सलीब और येसु मसीह के ख़ून पर रखा है। अगर कभी हम ऐसा नहीं करते (जैसा कि मौजूदा ज़माना में बहुत से लोग कर रहे हैं) तो अहद-ए-जदीद की ख़ौफ़नाक तौहीन का इर्तिकाब करते हैं । ज़माना हाज़रा के बहुत से क़बीह और मज़मूम ख़्यालात और उनके हज़रत रसां असर की वजह ये है कि वो असल रुहानी मज़्हब होने का दावा करते हुए फ़क़त अहद-ए-जदीद ही को सिरे से नज़र-अंदाज करते हैं बल्कि उस के साथ ही तारीख़ी मसीहीयत को भी वो नाम निहाद नक़्क़ाद आला कि जिनका इन्हिसार एक उसूल या अंसर पर है या अपनी ज़ात माक़ूलात पर है या रुहानी तास्सुरात पर । हाँ यही वो हैं जो अहद-ए-जदीद को उस की मुकम्मल सूरत में तो नहीं मानते लेकिन उसके बाअज़ मुक़ामात की बहुत क़दरो एहतिराम करते हैं।

जब लोग मसीह की "सलीब के बग़ैर" इन्सानी जमात या इन्सानी ज़िंदगी की नजासत को पाकीज़गी में तब्दील करना चाहते हैं तो वो एक लाहासिल शैय के दर पे होते हैं । जब हम दुनिया के हक़ में ख़ुदा के फ़ज़्ल को पूरा होते हुए देखते हैं तो हम फ़ौरन ये कह सकते हैं कि तमाम हवादिस-ए-ज़माना बेहतरी के लिए हैं। ख़ुसूसन जब हम नए ख़्यालात और नए मवाक़े से दो-चार होते हैं । लेकिन जब यूहन्ना तौबा की मुनादी करता हुआ आया तो उस वक़्त पेशीन- गोइयों की तक्मील का वक़्त था। रूमी सल्तनत और यहूदी कलीसिया में बग़ावत के आसार नुमायां थे। बहुत तैयारीयां हो चुकी थीं। निहायत इंतिज़ार की साअत थी। साबिक़ नज़म व नसक़ के मुताल्लिक़ निहायत ना-उम्मीदी थी तो भी यूहन्ना ने उस नए ज़माना को एक जदीद तरीक़ नजात की मुनादी से शुरू किया। यानी "देखो ख़ुदा का बर्रा जो जहान के गुनाह उठाले जाता है।"

हम साबिक़ा निज़ाम की नजात के आर्ज़ूमंद हैं। लेकिन निहायत लाज़िम है कि ये नजात मसीह के ख़ून के ज़रीये से हो।

मसीह की सलीब ही दुनिया की उम्मीद है लेकिन मुतवातिर ख़तरा जो हमें दरपेश है ये है कि हम अपनी तजावीज़ पर बेशतर एतिमाद करते हैं और निहायत तकुब्बुराना अंदाज़ में उनका ज़िक्र किया करते हैं लोगों से हम ये कहना तो भूल जाते हैं । "देखो ख़ुदा का बर्रा !" पर दिखाते क्या हैं? अपनी बर्दारी ! नई तदबीरें ! नया मौक़ा !

एक अजीबो-गरीब तस्वीर जिसमें मसीह सलीब पर लटक रहा है और जो ये ज़ाहिर करती है कि उम्मीद फ़क़त इसी में है ऐसे हैरत-अंगेज़ तरीक़ पर और ख़ूबसूरत रंगों में कफ़्फ़ारा की आलमगीरी और उस की क़ुदरत का इज़्हार करती है कि मुम्किन नहीं कि उसका नक़्श ज़हन से मिट जाये । उस तस्वीर का क़िस्सा यूं है कि बलटीर हिरोनी (Blater Heroni) जो मुल़्क अबीसीनिया के शहर अदीस अबाबा मैं दरबार-ए-ख़ास व आम का सदर था उस ने सवीटज़रलेंड के एक मिशन स्कूल में तालीम पाई थी और अहदे जदीद का तर्जुमा भी अमहरी ज़बान में किया था दौरान जंग उसने बड़ी इज़्ज़त व मर्तबा हासिल किया था। अक़्वाम-ए-आलम के बाहमी अमन व सुलह के मुताल्लिक़ ग़ौर करते हुए उसे ख़्याल गुज़रा कि ये महिज़ मसीह की क़ुर्बानी के ज़रीये से मुम्किन है। फिर उसने चाहा कि अपनी अक़्ल के मुताबिक़ अपने तसव्वुर को ख़त व खाल की सूरत में ज़ाहिर करे चुनांचे उसने अपने ख़्यालात शहर पैरिस के एक मशहूर मुसव्विर के सपुर्द कर दिए जिसका नतीजा वो मशहूर-ओ-मारूफ़ सलीब की तस्वीर है जो ख़्यालात के एतबार से तो निहायत मुहीब है। लेकिन उस के मआनी बिल्कुल साफ़ व रोशन हैं।

तस्वीर मज़कूर निहायत दिलफ़रेब है और उसका पैग़ाम भी एक क़ाइल करने वाला पैग़ाम है हमारा नजात-दिहंदा दुनिया के मशरिक़ी व मग़रबी नसफ़ कुर्राह-ए-अर्ज़ के दरमियान सलीब पर लटक रहा है। उस की पाईन में बादलों से घिरा हुआ धुँदला आस्मान है। मुसीबतज़दा मस्लूब के सर पर ताज ख़ारदार के चौगिर्द आने वाली फ़तह का हाला है। और वो दुनिया के दोनों हिस्सों पर नज़र कर रहा है जिनकी ख़ातिर उसने अपनी जान दी। उस के ज़ख़्मी हाथों से ख़ून बह रहा है जिससे दुनिया के तमाम बर्र-ए-आज़म और जज़ीरे सुर्ख़ हो रहे हैं ये मसीह के ख़ून के वसीले से तमाम दुनिया की नजात की तस्वीर है जिसके नीचे तीन ज़बानों में ये आयत मर्क़ूम है:—

"ख़ुदा ने जहान को ऐसा प्यार किया कि उसने अपना इकलौता बेटा बख़्श दिया ताकि जो कोई उस पर ईमान लाए हलाक ना हो बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए।"

"सबसे आला और उम्दा ख़िदमत ये है कि हम मसीह मस्लूब की मुनादी करें। ख़्वाह वो मुनादी ख़ामोश मजमा में की जाये या मुनाज़राना रंग में। मगर वो इस यक़ीन के साथ कि फ़क़त यही ज़ख़्मी व फ़गारदिलों को शिफ़ा और ईमानदार को उसके रहे-सहे गुनाहों से मख़लिसी देने की एक राह है और फ़तह उसी कलीसिया की है चाहे वो दुनिया के किसी गोशा पर हो या उन घरों में हो जो जहां मसीहीयत अपने उरूज व कमाल पर है। हत्ता कि हमारी मिशनों के दूर-दराज़ और पुरतार यक ख़तों में ही क्यों ना हो जो निहायत संजीदगी और अक़ीदत के साथ उस क़दीम एतिक़ाद की तजदीद करे कि "ख़ुदा ने हम सबकी बदकारीयाँ उस पर लाद दीं" और वो ख़ुद उन अल्फ़ाज़ को ख़ुशी और ख़ुर्रमी के उस नग़मा में कि जिसकी सदाए बाज़गश्त से ज़मीन वा आस्मान गूंज उठेंगे । तब्दील कर देगा ।

"जिसने हमसे मुहब्बत रखी। जिसने अपने ख़ून के वसीले से हमको हमारे गुनाहों से मख़लिसी बख़्शी और हम को एक बादशाहत भी और अपने ख़ुदा और बाप के लिए काहिन भी बनाया। उसका जलाल और सल्तनत अबदलआबाद रहे" आमीन।

प्रिंसिपल जान कईरन्ज़। (John Cairns)