बाब नहम

"उसने अपने हाथ उन्हें दिखाए"

(यूहन्ना 20:19-29)

फिलिप्पियों के ख़त में मुक़द्दस पौलुस मसीह के साथ अपनी रिफ़ाक़त और दोस्ती पैदा करने में तीन मनाज़िल का ज़िक्र करता है। अव़्वल मसीह का इल्म जो दोस्त व दुश्मन से निहायत तक्लीफ़-दह ज़राए से उसे हासिल हुआ। दोम उसने दमिशक़ को जाते हुए राह में ख़ुद मसीह को देखा और "उसके ज़िंदा होने की क़ुदरत" तजुर्बा किया। क्योंकि ज़िंदगी उसके लिए मसीह थी।

आख़िरकार वो मसीह की मुसीबत में शरीक होने का ज़िक्र करता है और उसको अपनी दोस्ती की आख़िरी मंज़िल कहता है। यानी मसीह के साथ क़ुर्बान होने की ज़िंदगी में शरीक होना और मसीह के सलीबी दुख के पियाले को औरों की ख़ातिर पीना बल्कि उनकी ख़ातिर मौत तक गवारा करना।

मसीह के आशिक़ के नज़दीक सलीब का अक्स एक हमागीर अक्स है जो ज़मानों और दुनिया के ममालिक पर हावी है हत्ता कि रोज़ मह्शर तक पहुंचता है। "तुम्हारी सलामती हो और ये कह कर उस ने अपने हाथ और पसली उन्हें दिखाई।" मसीह ने अपने शागिर्दों को जीत लेने के लिए ज़ख़्मों के दाग़ों को मुतल्लिक़न ना छुपाया। उसके जलाली बदन पर उसके ईज़ा उठाने के निशान मौजूद हैं। वो उसकी शनाख़्त के सबूत हैं। उस के ग़ालिब आने का ऐलान करते हैं और उस के शाहाना इख़्तियार और उसकी नजात बख़्श क़ुदरत की अलामत हैं "पस शागिर्द ख़ुदावंद को देख कर ख़ुश हुए येसु ने फिर उनसे कहा कि तुम्हारी सलामती हो। जिस तरह बाप ने मुझे भेजा है इसी तरह में भी तुम्हें भेजता हूँ।"

थौरवाल्डसन (Thorwaldsen) ने जो मुल़्क हॉलैंड का एक मशहूर संग तराश गुज़रा है इस नज़ारा को संग मरमर में तराशा है। कोपनहेगीन के एक गिर्जाघर में उस का तराशा हुआ ज़िंदा मसीह का बुत खड़ा है। वो अपने हाथ फैलाए अपने शागिर्दों को सुलह व सलामती के पैग़ाम की इशाअत के लिए रवाना कर रहा है । गिरजा के दोनो जानिब बारह शागिर्दों के छः बुत खड़े हैं। यहूदा इस्क्रियुती की जगह पौलुस लिए हुए है ये नज़ारा दिलो-दिमाग पर एक अजीब कैफ़ीयत पैदा करता है । मसीह सलीब पर नहीं बल्कि तख़्त-नशीन होने को तैयार है लेकिन ज़ख़्मों के दाग़ लिए हुए है। मुसव्वर की कारीगरी मसीह के लबों से उस दो गोना पैग़ाम की भी मज़हर है कि जिसका ज़िक्र इंजील यूहन्ना में आया है यानी तुम्हारी हो और जिस तरह बाप ने मुझे भेजा है इसी तरह मैं भी तुम्हें भेजता हूँ ।"

सलीब ना फ़क़त कफ़्फ़ारे की मज़हर है बल्कि वो एक निहायत आला नमूना भी पेश करती है वो हमारी "रूह के लिए इत्मीनान और सलामती का पैग़ाम है और हमें इज्तिहाद की दावत देती है। वो गुनहगार के लिए एक ख़ास मक़्सद के इलावा एक पैग़ाम भी रखती है। वो जिन्होंने एक मर्तबा मसीह के दाग़ों में सलीब का नज़ारा देख लिया है उनमें ज़रूर तब्दीली वाक़े होती है।"

मसीह सब के वास्ते मुआ कि जो जीते हैं वो आगे को अपने लिए ना जिएँ बल्कि उसके लिए जो उन के वास्ते मुआ और फिर जी उठा।" हमको उसी के ख़ून के वसीले से सलामती हासिल होती है और उसके नमूने से रिसालत ।

ये निहायत अजीब बात है कि मसीह ने अपने जी उठने के बाद अपने दाग़ अपने शागिर्दों को दिखाए। उन्होंने अमाउस में से रोटी तोड़ते वक़्त पहचान लिया। हालाँकि वो उसकी शक्ल व शबहात और उस की तर्ज़-ए-गुफ़्तगु से उसे ना पहचान सके। उसने अपने दाग़ दिखाकर अपने दस शागिर्दों को अपनी शनाख़्त कराई और अपने दुबारा ज़िंदा होने का क़ाइल किया उसके दाग़ों की वजह ही से एक हफ़्ता के बाद तोमा अपनी कम एतिक़ादी का क़ाइल हो कर बोल उठा। "ऐ मेरे ख़ुदावंद ऐ मेरा ख़ुदा" उसके हाथ और उस की पसली के दाग़ ही ख़ुदा के साथ हमारे मेल मिलाप की मुहर और निशान हैं और हमें ख़िदमत करने और क़ुर्बान होने की दावत देते हैं।

हेईन (Heine) नामी एक जर्मन शायर क़दीम दुनिया के देवताओं को अपने ज़ियाफ़त के कमरे में दुनिया को तस्ख़ीर और फ़तह किए हुए तख़्त नशीन तसव्वुर करता है । इन के सामने एक मुफ़लिस व ग़रीब दहक़ान सलीब के बोझ से दबा हुआ दाख़िल होता है और सलीब को मेज़ पर दे मारता है। शहवत और जफ़ा के देवता मायूस हो कर फ़ौरन मर जाते हैं। क़दीम दुनिया के देवता मौजूदा दुनिया की बातिल और फ़ानी खूबियां हैं। जब मसीह की सलीब का अक्स किसी शख़्स की ज़िंदगी पर पड़ता है तो उसी वक़्त वो पुरानी बातिल और फ़ानी खूबियां मादूम हो जाती हैं और उनके इव्ज़ एक अजीब नई ज़िंदगी मारज़-ए-वजूद में आती है जो ग़ैर-फ़ानी ख़ूबीयों पर मबनी होती है।

इन्जीली बयानात से मालूम होता है कि हमारे खुदावंद ने अपनी ज़बान-ए-मुबारक से दुनिया के मुताल्लिक़ चार फ़रमान दीए। मुक़द्दस मत्ती दुनिया की तमाम अक़्वाम को शागिर्द बनाने का सबब बताता है। "आस्मान और ज़मीन का कुल इख़्तयार मुझे दिया गया है। पस तुम जाकर" . . . . . मुक़द्दस मरकुस की जगह के मुताल्लिक़ हमारे ख़ुदावंद के ये अल्फ़ाज़ लिखता है "तुम दुनिया में जाकर सारी ख़ल्क़ के सामने इंजील की मुनादी करो।" मुक़द्दस लूक़ा उस ख़िदमत की तर्तीब पर ज़ोर देते हुए मसीह के अल्फ़ाज़ दोहराता है। "और यरूशलेम से शुरू करके सारी क़ौमों में तौबा और गुनाहों की माफ़ी उसके नाम से की जाएगी।" मुक़द्दस यूहन्ना सबसे अहम- तरीन बात पर ज़ोर देता है और उस रूह को ज़ाहिर करता है जो उस ख़िदमत में हमारी हिदायत करती और हम पर हुकूमत और इख़्तियार रखती है "जिस तरह बाप ने मुझे भेजा है। उसी तरह मैं तुम्हें भेजता हूँ।" नौकर अपने मालिक से बड़ा नहीं होता। हमें उसका हम ख़िदमत होना और उसी इख़्तियार के मातहत रहना है।

हमारा पैग़ाम भी वही है और इसी क़िस्म की तक्लीफ़ व मुसीबत हमें भी बर्दाश्त करनी है। यूहन्ना निहायत सादा अल्फ़ाज़ में बाद ताम्मुल ये कहता है। "उसने हमारे वास्ते अपनी जान दी और हम पर भी भाईयों के वास्ते जान देनी फ़र्ज़ है।"

सलीब ख़िदमत के लिए एक ज़बरदस्त मुहर्रिक है। येसु मसीह को अपने मिशन की ख़ातिर शहीदा पैदा करने के लिए फ़क़त अपने दाग़ दिखाने की ज़रूरत है "जब वो जिन्होंने उसे छेदा है उस पर नज़र करेंगे।" तो ख़ुदा हर एक पर क़ुर्बानी की रूह नाज़िल करेगा। और हर एक उससे पूछेगा कि तेरे हाथों पर क्या ज़ख़्म हैं तो वो जवाब देगा ये वो ज़ख़्म हैं जो मुझे अपने दोस्तों के घर से लगे (ज़करीया 12:10 व 13:16) जब येसु मसीह दमिशक़ की राह में साऊल पर ज़ाहिर हुआ तो ज़रूर उसने भी आस्मानी नूर की रोशनी में मेख़ों के निशान उस के हाथों में और भाले के निशान उसकी पसली में देखे होंगे। तू मुझे क्यों सताता है? "मसीह हूँ जिसे तू सताता है" . . . . . मैं उसे जता दूंगा कि उसे मेरे नाम की ख़ातिर किस क़दर दुख उठाना पड़ेगा।"

ये कोई ताज्जुब की बात नहीं कि मुक़द्दस पौलुस अपनी रसुली ख़िदमत और मसीह के दुख उठाने का बयान करते हुए एक अजीब लफ़्ज़ का इस्तिमाल करता है। ये लफ़्ज़ उस मुक़ाम के इलावा एक मर्तबा और इस्तिमाल हुआ है। ये एक यूनानी लफ़्ज़ है जिसके मअनी लूक़ा की इंजील में "नादारी किया गया है और कुलुस्सियों के ख़त में "कमी" मुक़द्दस लूक़ा की इंजील में हम उस बेवा का हाल पढ़ते हैं जिसने अपनी नादारी की हालत में जितनी पूँजी उस के पास थी खज़ाने में डाल दी। पौलुस रसूल भी इसी यूनानी लफ़्ज़ का इस्तिमाल करता है जिसके मअनी उस ख़त में "कमी किए गए हैं।" अब में इन दुखों के सबब से ख़ुश हूँ "जो तुम्हारी ख़ातिर उठाता हूँ और मसीह की मुसीबतों की कमी उसके बदन यानी कलीसिया की ख़ातिर अपने जिस्म में पूरी किए देता हूँ" कलवरी की नादारी या कमी !

अहले यहूद के नज़दीक दुख उठाना एक ऐसा मसला था जिसका हल करना मुश्किल था। लेकिन मसीही के लिए ये एक ख़ास मन्सब बन गया जिसमें वो अपने मौला का हिस्सादार हो सकता है। शाऊल यहूदी ने दुख उठाने के मसले को अय्यूब और उस के तीन दोस्तों की रूह से हल करना चाहा और वो लाएख़ल साबित हुआ। लेकिन पौलुस मसीही ने मसीह के दाग़ देखे और उस ने महसूस कर लिया कि यहोवाह का सादिक़ बंदा हमारे गुनाहों के लिए घायल किया गया और हमारी ही बदकारियों के बाईस कुचला गया। लिहाज़ा वो फ़रमाता है "इसलिए मसीह की ख़ातिर कमज़ोरीयों में बे अज़िय्यतों में, इहितयाजों में, सताए जाने में और तंगियों में ख़ुश हूँ।"

ज़िंदा मसीह का जलाल ये है कि हम उस के दाग़ों को पहचान लें और तोमा के साथ मिलकर मेख़ों के निशानों में अपनी उंगलियां डालें और कहें "बस काफ़ी है अब तू अपने ग़ुलाम को अपने कलाम के मुवाफ़िक़ सलामती से रुख़स्त देता है क्योंकि मेरी आँखों ने तेरी नजात देख ली है"

"ऐ मेरे ख़ुदावंद ऐ मेरे ख़ुदा ! पुर जलाल मुक़द्दसिन के लिए इससे बढ़कर और क्या ख़ुशी व मसर्रत हो सकती है और इस तजुर्बे से बेहतर तजुर्बा और कौनसा हो सकता है कि मसीह के दाग़ों को देखें और उस के हुज़ूर सरबसजूद हों। मर्यम मगदलेनी को भी मसीह के सर पर तेल मलते वक़्त ये नसीब ना हुआ कि उस के दाग़ों को चूमे, फ़लक पर मलाइक आर्ज़ूमंद हैं कि उनको देखें लेकिन जब वो उस नजात बख़्श मुहब्बत का मुलाहिज़ा करते हैं तो अपने चेहरों को छुपा लेते हैं।

"उस ने अपने हाथ......उन्हें दिखाए" क्या उसने अपने हाथ कभी आपको भी दिखाए! एसीसी के मुक़द्दस फ्रांसीस ने मसीह के दाग़ों पर ग़ौर करते वक़्त इस क़दर वक़्त सर्फ़ किया कि आख़िरकार उसके बदन पर नजातदिहंदा के निशान ज़ाहिर हो गए। लेकिन मसीह के दाग़ों से कहीं ज़्यादा मसीह की सलीब बर्दारी के सबूत उस की रोज़ाना ज़िंदगी में नुमायां थे।

जब एसीसी के बरनरड ने मुक़द्दस फ्रांसीस की पैरवी करने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की तो ये फ़ैसला हुआ कि वो बिशप साहिब के मकान पर जाएं। और वहां मास 1 में शामिल हों । फिर मुक़द्दस फ्रांसीस ने कहा "बाद अज़ नमाज़ हम दुआ में मशग़ूल रहेंगे और ख़ुदा की मिन्नत करेंगे कि तीन मर्तबा नमाज़ की किताब खोलने के ज़रीया से वो अपनी मर्ज़ी हम पर ज़ाहिर करे और हमें बताए कि हम कौनसा राह इख़्तियार करें "पहली मर्तबा किताब खोलने पर वो अल्फ़ाज़ निकले जो हमारे ख़ुदावंद ने उस नौजवान को जो उस से कामलीयत का दर्स लेने आया था फ़रमाए यानी "अगर तू कामिल होना चाहता है तो जा अपना माल व असबाब बेच कर ग़रीबों को दे . . . . . और आकर मेरे पीछे हो ले" (मत्ती 19:21) दूसरी मर्तबा किताब खोलने पर वो अल्फ़ाज़ निकले जो मसीह ने अपने शागिर्दों को मुनादी के लिए रवाना करते वक़्त फ़रमाए यानी "राह के लिए कुछ ना लेना ना लाठी ना झोली ना रुपया ना दो-दो कुर्ते रखना" (लूक़ा 9:3) तीसरी मर्तबा मरकुस 8:34 आयत निकली "अगर कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपनी ख़ुदी से इन्कार करे और अपनी सलीब उठाए और मेरे पीछे हो ले" फिर मुक़द्दस फ्रांसीस बरनर्ड से मुख़ातब हो कर कहने लगा "मसीह की सलाह को सुनो और उस पर अमल करो। हमारे ख़ुदावंद येसु मसीह का नाम मुबारक हो। जिसने अपनी मर्ज़ी हम पर ज़ाहिर की कि हम उस की मुक़द्दस इंजील के मुताबिक़ ज़िंदगी बसर करें।"

बादअज़ां उस ने और साथ के बाक़ी दरवेशों ने इंतिहाई दरवेशाना ज़िंदगी बसर करनी शुरू की और एक वीरान जज़ाम ख़ाना में सुकूनत इख़्तियार की बीमारों, मुफ़लिसों और बेकसों की इमदाद करते और वसीअ पैमाना पर इंजील जलील की बशारत का काम करते थे और हलक़ा रोज़ बरोज़ बढ़ता गया हत्ता कि उसमें मुल्हिद और अहले इस्लाम भी शामिल होने लगे। मिस्र में सुल्तान कामिल के रूबरू फ्रांसीस ने अपने ईमान की ख़ातिर मुसीबत बर्दाश्त करने के लिए मुस्तइद और रज़ामंद होने का सबूत दिया। दुनयावी फ़िक्रों से बेनयाज़, ख़िदमत में ख़ुश, उस का हुलुम , इसकी फ़िरोतनी और उसका बच्चों का सा ईमान मुनाज़िर क़ुदरत के लिए उसका शौक़, आम्मतुन्नास के लिए उस की बेहद मुहब्बत, यही उसके दाग़ थे यानी उसके जिस्म पर मसीह के ज़ख़्मों के निशान ।

एक मर्तबा एक मुस्लिम सूफ़ी से मेरी मुलाक़ात हुई । वो अहले-तसव्वुफ़ में से था और निहायत मुफ़लिसाना ज़िंदगी बसर करता था। जब में दाख़िल हुआ तो वो तस्बीह पढ़ रहा था जिसके निनानवे दानों से अल्लाह के निनानवे ख़ूबसूरत नाम मुराद हैं जब हम इन निनानवे नामों के ख़वास और एक तालिब-ए-ख़ुदा के नज़दीक इन नामों के मुतालिब पर गुफ़्तगु कर रहे थे और कह रहे थे कि अल-ग़ज़ाली और दीगर सुफ़याए किराम ने तालीम दी है कि हमें हक़  तआला की सिफ़ात पर ख़ूब ग़ौर करना चाहिए ताकि हम उसकी रहमत व शफ़क़त व महरबानी की नक़ल कर सकें । तो उस ने मेरी तरफ़ मुतवज्जा हो कर कहा "ये ज़रूर नहीं कि हम ख़ुदा के नामों को याद करने के लिए तस्बीह करें क्योंकि वो तो हमारे हाथों पर कुंदा हैं" फिर उसने अपने हाथ फैला कर अपनी हथेलियाँ मुझे दिखाई जिनमें अरबी आदाद 81 और 18 बाएं और दाएं हाथों में ख़ूब गहरे खुदे हुए हैं और जिन का मजमूआ निनानवे है। उस ने कहा "यही वजह है कि हम दुआ व इल्तिज़ा करते वक़्त अपने हाथ फैला कर ख़ुदा को उस की पुर-शफ़क़त सिफ़ात याद दिलाते हैं और उस से उस के फ़ज़्ल की इलतिमास करते हैं।"

मैंने मसीह के दाग़ों के मुताल्लिक़ उससे गुफ़्तगु की और उसे बताया कि उसने हमारे गुनाहों को सलीब पर उठा लिया "मैं तुझे ना भूलूँगा . . . . . देख मैंने तेरी तस्वीर अपनी हथेलियों पर खोदी हुई है।"

उन्होंने उसके हाथ और पांव को छेदा वो दाग़ उस के जलाली बदन पर अब तक मौजूद हैं और उन्हें जो उस के नाम से कहलाते हैं उस की शागिर्दी इख़्तियार करने की दावत देते।

उनकी रिसालत के लिए कसौटी का काम देते हैं। मसीह का पैरौ होना कोई आसान काम नहीं। उसके मुतालिबात निहायत सख़्त हैं जब तक कोई सब कुछ तर्क ना कर दे वो उसका शागिर्द नहीं हो सकता। ताज बग़ैर सलीब के हासिल करना ग़ैर-मुमकिन है।

मसीह ने अपने आपको हक़ीक़ी दीवार ज़ैतून या बलूत का दरख़्त नहीं कहा बल्कि हक़ीक़ी अंगूर की बेल कहा है। फ़क़त यही एक बेल है जो खन्बे से बाँधी जाती और दूसरों की ख़ातिर बाग़बान की मिक़राज़ का तख़्ता मश्क़ बना रहता है। हर एक शाख़ तराशी जाती है और जहां शिगाफ़ ज़्यादा गहरे आते हैं वहीं फल ज़्यादा लगने की उम्मीद भी ज़्यादा होती है।

हम मसीह की शराकत में शरीक होने के लिए बुलाए गए हैं। लेकिन ये शराकत तक्लीफ़ व मुसीबत की शराकत है। रोज़ अव़्वल ही से लेकर ये ज़मीन ज़ुल्मत और नूर की ताक़तों की आख़िरी ज़ोर-आज़माई के लिए एक मैदान मुक़र्रर हो चुकी है।

मसीह की शराकत ही असल रसूली तसलसुल है। शहीदों का ख़ून हर एक मुल्क और ज़माने में कलीसिया की बीच रहा है। पौलुस रसूल फ़रमाता है "आगे को कोई मुझे तक्लीफ़ ना दे क्योंकि मैं अपने जिस्म पर मसीह के दाग़ लिए फिरता हूँ।"

डेविड लोन्गसटन, हैनरी मार्टिन, मेरी सलीसर, जेम्स गिलमोर और कैथ फ़ाकज़ की सवानिह उम्रियाँ मेख़ों के दाग़ लिए हुए हैं। हमारी तजावीज़ का मलिया-मेट होना। हमारी उम्मीदों का नाउम्मीदी में तब्दील हो जाना हमारे तसव्वुरात का माज़ोम हो जाना हमारे फ़ैसलों का तक्लीफ़-दह साबित होना। हमारी ख़ुशीयों का रंज-वालम बन जाना और बाग़ गतसमनी में हमारा जांकनी की हालत में रहना ये सब अगर मसीह की सलीब उठाना नहीं तो और क्या हैं? दुआ का जवाब ना पाने पर सब्र करना। पोशीदगी में ख़ुद इंकारी करना। पेशवाई में तन्हा रहना ये सब तंबीहीं हैं और उनका हिस्सा हैं। जो हक़ीक़ी फ़र्ज़ंद हैं और हरामज़ादे नहीं। “हम हर वक़्त अपने बदन में मसीह की मौत लिए फिरते हैं । ख़ुदा के खादिमों की तरह हर बात से अपनी ख़ूबी ज़ाहिर करते हैं । बड़े सब्र से मुसीबतों से, इहितयाजों से, तंगियों से कोड़े खाने से क़ैद से, हंगामों से मेहनतों से बेदारियों से और फ़ाक़ों से ।"

आस्मान के बारह दर हैं और वो जिनके नाम शहर मुक़द्दस की बुनियाद पर कनुंदा हैं सब के सब अपने मालिक के दाग़ लिए हुए हैं। हर एक दर एक गौहर है। यानी गौहर क़ुर्बानी ।

कश्मीर के एक मिशनरी ने उस बदन के लिए जो सरापा ख़ुदा के आगे नज़र किया जा चुका है एक दुआ लिखी है । क्या ये हमारी दुआ नहीं हो सकती? "ऐ मालिक ! हम अपना गोश्त, अपनी हड्डियां, अपने आज़ो अपना बंद तेरी ख़िदमत के लिए पेश करते हैं । हमें उसे अपने जलाल के लिए इस्तिमाल करना सिखा। हमारी हिदायत कर कि हम उसे एक कल की तरह दरुस्त रख सकें जो बतौर एक अमानत किसी ख़ास मक़्सद के लिए हमारे सपुर्द की गई है। हमें सिखा कि हम उसे बलापस व पीश, सख़्ती और इस्तिक़लाल के साथ इस्तिमाल करें लेकिन बजा तौर पर नहीं और जब ये रफ़्ता-रफ़्ता फ़र्सूदा हो जाएगी तो ये बख़्श कि हम उस यक़ीन से ख़ुश हों कि ये तेरे लिए सर्फ़ हो रहा है - आमीन।"

"मसीह हमारा पशीर व मौत पर ग़ालिब आकर अज़लियत के दरवाज़े खोलता है जो हमारे लिए बंद थे और हमारी रूह को उन के अंदर दाख़िल होने देता है। उस हकीम अज़ली ने सलीब और गुर की राह से गुज़र कर और सच्चाई और हक़ की फ़िज़ा में दाख़िल हो कर हमें ये रास्ता दिखाया। ये राज़ बताया और क़ुदरत और इख़्तियार का वो लफ़्ज़ हमें सिखाया कि जिस के मुँह से निकलते ही आलम-ए-रूहानियत के दरवाज़े हम पर यक-दम खुल जाते हैं।

अगर जहान के नूर ने गुर की ज़ुल्मत को नूर में तब्दील ना कर दिया होता और उस घिनौने पन को जो जिस्म की नज़ाकत और क़ब्र की सख़्ती के बाहमी मेल से पैदा होता है। पाकीज़गी में ना बदल दिया होता तो वाक़ई उसने हमारे लिए कुछ भी ना किया होता आओ वो जगह देखो जहां कामिल मुहब्बत रखी गई थी ! (इक़तिबास अज़ पाथ औफ़ इटर्नल विज़डम" (अज़ली हिक्मत की राह) मन तस्नीफ़ जान कौरडीलियर)


 


1. रोमन कैथोलिक फ़िर्के की सुबह कि नमाज़