बाब दहम

"उसके जी उठने की क़ुदरत"


 

Man kneeling before the Cross
Coming to the Savior

 

यूजीन बरननड की एक नादिर किताब है जो "होली स्टर डे" के नाम से कहलाती है। उसमें मसीह के ग्यारह शागिर्द दिखाए हैं जो अहले-यहूद के ख़ौफ़ से दरवाज़े बंद किए बैठे हैं। ना उन के बूशरों से बशाशत का नूर चमक रहा है और ना ख़ुशी का तबस्सुम उन के चेहरों पर नज़र आ रहा है। ये उन की ज़िंदगी की तारीक तरीं शाम है। येसु क़ब्र में मदफ़ून है और उन की उम्मीदें भी उसके साथ ही मदफ़ून हैं वो कह रहे हैं "हमको उम्मीद थी कि इस्राइल को मख़लिसी यही देगा। लेकिन अब हमारा यक़ीन जाता रहा । हमने गलील में झील के क़रीब उस के जलाल, और उस की क़ुदरत को देखा। गलगता में हमने उस का दर्दनाक चिल्लाना सुना और अपनी आँखों से उस की जांकनी भी देखी। फिर अरमतीह का यूसुफ़ उसकी लाश ले गया और हम ने उसे दफ़न किया बिलाशक येसु मर गया !"

पतरस अपने सर को अपने हाथों पर झुकाए बैठा है और यूहन्ना जिसके चेहरे से मुख़्तलिफ़ तबस्सुम के जज़्बात का इज़्हार हो रहा है उसे तसल्ली देने की बेसूद कोशिश कर रहा है। लेकिन जानता नहीं कि किस तरह तसल्ली व तशफ़ी करे उन में से हर एक मुस्तक़बिल के ख़्याल से नाउम्मीद है। मायूस पस्त-हिम्मत, परेशान हाल, सरासीमा व हैरान हो रहा है। हर एक के चेहरे से उन की मुशतर्का तक्लीफ़ और उन के रंज का असर अयाँ है। येसु मर गया है। "हमको उम्मीद थी कि इस्राइल को मख़लिसी यही देगा ।"

ख़ुदा का शुक्र हो कि इन्जीली बयान मसीह की मौत पर ख़त्म नहीं हो जाता वो उस की फ़तह की आवाज़ "पूरा हुआ" फिर भी ख़त्म नहीं होता और ना ही रसूली पैग़ाम का यहां ख़ात्मा होता है। मसीह की मौत के बाद उसकी क़ियामत हुई "मसीह जिस्म के एतबार से दाऊद की नसल से पैदा हुआ। लेकिन मुर्दों में से जी उठने की क़ुदरत के साथ ख़ुदा का बेटा ठहरा।"

मसीह हमारे गुनाहों के लिए मरा और तीसरे दिन किताब मुक़द्दस के बमूजब ज़िंदा किया गया।" मज़कूरा बाला अल्फ़ाज़ मुक़द्दस पौलुस के बयान का ख़ुलासा है। मसीह के ज़िंदा होने के मुताल्लिक़ पौलुस के ईमान की बुनियाद अव़्वल पेशीनगोईआं और वाअदे थे जो ये ज़ाहिर करते हैं कि मसीह जी उठेगा। दोम ज़िंदा नजातदिहंदा का बार-बार अपने आपको मुख़्तलिफ़ तरीक़ से ज़ाहिर करना। क्योंकि वाक़ई वो ज़िंदा हो गया था। पौलुस अपने बयानात में मसीह के ज़हूरों को तरतीबवार लेता है। और दमिशक़ की राह में मसीह के अपने ऊपर ज़ाहिर होने को अपना गवाह क़रार देता है और नतीजा निकालता है। "अगर मसीह नहीं जी उठा तो तुम्हारा ईमान बेफ़ाइदा है तुम अब तक अपने गुनाहों में गिरफ़्तार हो। बल्कि जो मसीह में सो गए हैं वो भी हलाक हुए अगर हम सिर्फ इसी ज़िंदगी में उम्मीद रखते हैं तो सारे आदमीयों से ज़्यादा बदनसीब हैं।"

हुडिनी डोबल तमाम सबूतों और बिलख़सूस उस सबूत की एहमीयत को चश्म-ए-बसीरत से देखकर यूं लिखता है "पौलुस रसूल का मसीह के ज़िंदा होने की हक़ीक़त को अपनी बशारत का बुनियादी उसूल क़रार देने की इंतिहाई फ़िक्र ही एक अज़ीमुश्शान सबूत है। जिसके बाईस पौलुस रसूल का अपना दिमाग़ भी एक सबूत बन जाता है। उसकी गवाही सौ गवाहियों की एक गवाही है और यही हाल दूसरे रसूलों का भी है। इनकी पहली बे-एतिक़ादी के मुक़ाबले में उनका मौजूदा यक़ीन व एतक़ाद और उन का क़ियामत को एक आला व अफ़ज़ल हक़ीक़त तसव्वुर करना ही नामालूम तारीख़ी हक़ीक़तों का एक ज़बरदस्त व बय्यन सबूत है।"

मसीह के ज़िंदा होने के इन्जीली बयान से मुताल्लिक़ एक निहायत अजीब बात ये है कि उन चशमदीद गवाहों के तमाम बयानात में हमारे खुदावंद के पैरौओं के शुकुक का ज़िक्र निहायत ज़ोर से किया जाता है। वो ख़ुद एक वहमी व शक्की हालत के ज़ेर-ए-असर थे इसलिए दूसरों की गवाही को फ़ौरन क़बूल करने के लिए तैयार ना रहे थे। औरतों ने "किसी से कुछ ना कहा" "क्योंकि डरती थीं (मरकुस 16:8) जब मर्यम मगदलीनी ने उन्हें बताया कि उसने मसीह को देखा तो उन्होंने "यक़ीन ना किया" (मरकुस 16:11) जब उन्होंने उसे गलील में पहाड़ पर देखा तो बाअज़ ने उसे सज्दा किया लेकिन "बाअज़ ने शक किया" (मत्ती 28:17) तोमा रसूल एक हफ़्ता तक शक करने के बाद क़ाइल हुआ।

लिहाज़ा मसीह के ज़िंदा होने के मुताल्लिक़ रसूलों का ईमान कुछ अंधा ईमान ना था बल्कि उस की बुनियाद चशमदीद वाक़ियात और ना काबिल-ए-तर्दीद शहादत पर क़ायम थी। उसने अपनी मस्लुबियत के बाद "बहुत से सबूतों से अपने आपको उन पर ज़िंदा ज़ाहिर भी किया। चुनांचे वो चालीस दिन तक उन्हें नज़र आता रहा . . . . . "और उन की तादाद जिन्होंने उसे ज़िंदा देखा पाँच सौ से ऊपर थी (आमाल 1:3 व 1 कुरन्थियो 15:6) मसीह के सऊद और पन्तीकोस्त के रोज़-ए-अज़ीम के बाद रसूली जमात के किसी शरीक के दिल में उसके मुताल्लिक़ ज़र्रा भर भी शक बाक़ी ना रहा। मसीह के ताअबद ज़िंदा होने से वो भी सब के सब तब्दील हो गए । उसका ज़िंदा होना उनकी ज़िंदा उम्मीद थी और ना फ़क़त उनके पैग़ाम बशारत में बल्कि उनके रोज़ाना तजुर्बा में भी मूजिब तहरीक I मुक़द्दस पतरस फ़रमाता है कि "उस को ख़ुदा ने तीसरे दिन जिलाया और ज़ाहिर भी कर दिया। ना कि सारी उम्मत पर बल्कि उन गवाहों पर जो आगे से ख़ुदा के चुने हुए थे। यानी हम पर जिन्होंने उसके मुर्दों में से जी उठने के बाद उसके साथ खाया पिया" (आमाल 10:40) पौलुस रसूल फ़रमाता है "वो कमज़ोरी के सबब से सलीब दिया गया लेकिन ख़ुदा की क़ुदरत के सबब से ज़िंदा है" (2 कुरन्थियो 13:4) यूहन्ना कहता है "येसु मसीह . . . . . जो सच्चा गवाह और मुर्दों में से जी उठने वालों में से पह्लोठा" है। हाँ वो अबद तक ज़िंदा रहेगा। मौत का अब उस पर कोई इख़्तियार नहीं क्योंकि उस ने मौत को नेस्त व नाबूद  कर दिया और अपने दुबारा जी उठने से ज़िंदगी और बक़ा की तालीम दी और यही वो क़ुदरत है जिससे मसीह में नई ज़िंदगी मिलती है वो हर एक ईमानदार के लिए जलाल की उम्मीद और गुनाह पर फ़तह पाने का भेद है। ईमानदार मसीह के साथ सलीब दिया जाता उसके साथ मरता और दफ़न होता है लेकिन फिर उसमें हो कर और उस के बाईस ज़िंदा हो जाता है।

सुब्हे क़यामत एक नई रोशनी यानी बक़ा का नूर सफ़ा आलम पर फैलाती है। चुनांचे हर एक चीज़ और हर एक इन्सान में इस ज़िंदा उम्मीद यानी क़ब्र पर ख़ुदा की क़ुदरत और फ़तहयाबी के ज़हूर के बाईस एक तब्दीली वाक़े होती है जो शख़्स मसीह में क़ायम होता है वो नया मख़्लूक़ बन जाता है। पुरानी चीज़ें जाती रहती हैं और सब कुछ सुबह-ए-क़ियामत की रोशनी में नया हो जाता है।

जब लोग ज़िंदा मसीह की हुज़ूरी को महसूस कर लेते हैं तो ज़िंदगी की क़द्रो क़ीमत का एक नया मेयार क़ायम हो जाता है। डेविड लोनगस्टन कहता है "अब से लेकर मैं अपनी किसी चीज़ पर अगर कोई क़ीमत लगाऊंगा तो उस निस्बत से जो मसीह की बादशाहत के मुक़र्रर मेयार के मुताबिक़ इसे हासिल है" मुक़द्दस यूहन्ना की इंजील में लिखा है कि "जिस जगह उसे सलीब दी गई वो एक बाग़ था और उस बाग़ में एक नई क़ब्र थी ।" वो बाग़ अब तक हमारा इंतिज़ार कर रहा है। रूह के तमाम फल वहां पकते हैं। उसके ज़िंदा होने की क़ुदरत इन्सान को तमाम दुनियावी तकलीफ़ात और ज़रूरीयात का मुक़ाबला करने के क़ाबिल बनाती है। क्योंकि उसके बंदों को ये यक़ीन होता है कि मसीह सब कुछ जानता और उन्हें प्यार करता है और उनकी इहितयाजों को रफ़ा कर सकता है। हज़रत इन्सान का दिल दो बातों का ख़्वाहिशमंद होता है। यानी गुनाह से नजात पाने का और अबदी ज़िंदगी हासिल करने का अगर मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब का बाहमी मुक़ाबला किया जाये तो एक निहायत अजीब बात मालूम होगी कि मौत के बाद ज़िंदा रहने की आलमगीर उम्मीदवार और अन्वा व अक़्साम की क़ुर्बानीयों और ज़िंदों के ज़रीये से देवताओं और ख़ुदाओं को राज़ी रखने की आलमगीरी सई व कोशीश क़रीब क़रीब हर मज़्हब में पाई जाती है। मसीह में इन हर दो कि तक्मील होती है । अगरचे वहशी अक़्वाम के दरमियान आइन्दा ज़िंदगी के मुताल्लिक़ जो ख़्यालात राइज हैं वो निहायत ख़ाम हैं तो भी वो मौजूद ज़रूर हैं और उन के मोतक़िदात में उन्हें ख़ास मर्तबा और फ़ौक़ियत हासिल है। औहाम परस्ती के नाम ही से माद्दी दुनिया पर रूह की फ़ज़ीलत ज़ाहिर होती है ना फ़क़त वहशी अक़्वाम के मज़ाहिब ही बल्कि बुत परस्तों और मुशरिकों के तमाम मज़ाहिब भी बकाए दवाम की तालीम देते हैं और फ़ित्रतन उन की तबीयत में अबदीयत और ग़ैर-फ़ानीयत के अक़ीदे की बहुत क़द्रो क़ीमत पाई जाती है।

लोग महिज़ मौजूदा इन्सानी ज़िंदगी की ज़ाती ख़ामीयों और उस के ग़ैर-मुकम्मल होने की वजह से ग़ैर-फ़ानीयत और बक़ा पर ईमान रखते हैं क्योंकि उन्होंने देख लिया कि बसा औक़ात कवाय इन्सानी में ज़ोफ़ आने के बाद भी हमारे जज़्बात मुहब्बत के पुरज़ोर मुतालिबात के बाईसे अख़्लाक़ व अतवार तरक़्क़ी करते हैं। मुहब्बत मौत से क़वी तर है। हमारे अंदर कायनात की उस आवाज़ की सदाए बाज़गश्त पैदा होती है और रूहें ख़ुद बख़ुद अपने अबदी मस्कन के वाहिद रास्ता पर बे-इख़्तियार खिची चली जाती हैं। तमाम अश्या ख़ुदा के दिल की तरफ़ रुजू करती हैं जो उनका मब्दा और मंबा और उन की इंतिहा भी है।

लोई पासेटोर कहता है "वो जो उस लामहदूद की हस्ती का ऐलान करता है और कोई नहीं जो ऐसा ना करे वो उस ऐलान में जुमला मज़ाहिब की तमाम मोजज़ाना बातों से कहीं ज़्यादा एजाज़ शरीक करता है। क्योंकि लामहदूद हस्ती का तसव्वुर इस दो गुना ख़सलत का इज़्हार करता यानी ये कि वो अपने आपको ज़बरदस्ती हम पर ज़ाहिर भी करती है और साथ ही हमारे फ़हम व इदराक से कहीं बालातर भी है लेकिन जब हमें उसका इदराक हासिल होता है तो हम सर-ए-तस्लीम ख़म करने के सिवा और कोई चारा नहीं पाते। मैं हर जगह दुनिया में इस लामहदूद हस्ती का नागुरेज़ इज़्हार देखता हूँ इसी के बाईस हर शख़्स के दिल की तह में एजाज़ का तसव्वुर मौजूद होता है "साईंस लामहदूद फ़िज़ा, लामहदूद ज़माना, लामहदूद आदाद, लामहदूद ज़िंदगी और लामहदूद हरकत का ज़िक्र करती है" उसने अबदीयत को भी उनके दिल में जागज़ीं किया" (वाइज़ 3:11)

मौत ज़िंदगी की ख़्वाहिश से ज़्यादा आम नहीं। इन्सानी रूह ज़िंदगी बल्कि कसरत के साथ ज़िंदगी की ख़्वाहिशमंद है । ऐसी ज़िंदगी जो मसीह ने अपनी जलाली क़ियामत और अपने सऊद के ज़रीये से ज़ाहिर की।

ये हक़ीक़त एटरोरीयह (इटली के वस्त में एक मुल्क है) के क़दीम बाशिंदों के मोतक़िदात, क़दीम मिस्रियों की मुर्दों की किताब (जो फ़िल-हक़ीक़त किताब-ए-हयात थी) मनु के धर्म शास्त्र की आख़िरी किताब जो मसला तनासुख़ और आख़िरी मुबारकबादी से मुताल्लिक़ है। अहले-इस्लाम की मशहूर-ओ-मारूफ़ किताबें जो मौत और सज़ा व जज़ा से भी मुताल्लिक़ हैं हत्ता कि निरवान के मुताल्लिक़ बुध मज़्हब के आलिमों के ख़्यालात से भी आश्कार होती हैं।

अबदी ज़िंदगी के लिए अक़्वाम-ए-आलम की ख़्वाहिश मसीह और फ़क़त मसीह ही में पूरी होती है इसलिए कि वो अपनी मौत और अपनी क़ियामत के ज़रीये से ज़िंदगी और बक़ा को दुनिया में लाया। उस ने हमें एक नादिर पैग़ाम दिया। हाँ ऐसा पैग़ाम जो बनीनौ इन्सान के मर्ज़ ख़ुसूसी यानी गुनाह और उस के अवाक़िब यानी रंज-वालम के ऐन हसबे-हाल है।

हर मुल़्क व क़ोम के हक़ीक़ी तालिबान-ए-हक़ एक नादीदनी दुनिया को देखते हैं । ख़ामोश आवाज़ें सुनते और ग़ैर महसूस हक़ीक़तों को अपने क़ब्जे में लाना चाहते हैं । इसलिए वो इस मसीही पैग़ाम की तरफ़ कभी राग़िब नहीं होंगे जो आइन्दा जहान के हालात से मुताल्लिक़ ना हो। मसीह ने लाज़र की क़ब्र के पास क़ियामत की ख़ुशख़बरी दी "क़ियामत और ज़िंदगी तो मैं हूँ जो मुझ पर ईमान लाता है गो वह मर जाये तो भी ज़िंदा रहेगा और जो कोई ज़िंदा है और मुझ पर ईमान लाता है वो अबद तक कभी नहीं मरेगा ।"

यही पौलुस की मुनादी की जान थी। वो मसीह और उसके ज़िंदा होने की मुनादी करता था। और किसी और ख़ुशख़बरी से वाक़िफ़ ना था। "अब ए भाईओ मैं तुम्हें वही ख़ुशख़बरी जताए देता हूँ जो पहले दे चुका हूँ जिसे तुमने क़बूल भी कर लिया था। और जिस पर क़ायम भी हो। इसी के वसीले से तुमको नजात भी मिलती है। बशर्ते के वो ख़ुशख़बरी जो मैंने तुम्हें दी थी याद रखते हो। वर्ना तुम्हारा ईमान लाना बेफ़ाइदा हुआ। चुनांचे मैंने सबसे पहले तुमको वही बात पहुंचा दी जो मुझे पहुंची थी कि मसीह किताब-ए-मुक़द्दस के बमूजब हमारे गुनाहों के लिए मुआ और दफ़न हुआ और तीसरे दिन किताब-ए-मुक़द्दस के बमूजब जी उठा...........और अगर मसीह नहीं जी उठा तो हमारी मुनादी भी बेफ़ाइदा और तुम्हारा ईमान भी बेफ़ाइदा। बल्कि हम ख़ुदा के झूटे गवाह ठहरे । क्योंकि हमने ख़ुदा की बाबत ये गवाही दी कि उसने मसीह को जिला दिया। हालाँकि नहीं जिलाया। अगर बिलफ़र्ज़ मुर्दे नहीं जी उठते" (1 कुरन्थियो 15:1-4, व 14,15)

मसीह मौत पर ग़ालिब आया। वो क़ब्र के ख़ौफ़ को दूर करता है। उसने इंजील में ज़िंदगी और बक़ा का दर्स हमें दिया। अगर फ़क़त इसी ज़िंदगी ही में मसीह हमारी उम्मीद है तो हमारा पैग़ाम और हम ख़ुद भी निहायत बदनसीब हैं। लेकिन नहीं हम तो मौत और गुनाह पर ग़ालिब आने वाले और जलाल के अबदी बादशाह के सफ़ीर और एलची हैं। हमारी इंजील फ़क़त इसी ज़िंदगी से मुताल्लिक़ नहीं बल्कि इसका ताल्लुक़ अबदीयत से है और इसी लिए इसकी क़द्रो क़ीमत भी बे-अंदाज़ा है हमारी तमाम मसीही तालीम गा हैं। हमारा कुल नज़म व मनक़। हमारी मसीही तदाबीर और तजावीज़ सब के सब हुसूल अंजाम के ज़राए हैं ये दरहक़ीक़त मदारिज व मनाज़िल हैं जो हमें उस घर तक पहुंचाते हैं जो हाथों से नहीं बनाया गया बल्कि जो आस्मान पर ग़ैर-फ़ानी मुक़ाम और जाये दवाम है।

मआशरी ख़िदमत भी अपना ज़ोरावर दर्जा रखती है क्योंकि मसीह शिकस्ता-दिलों को शिफ़ा देने और क़ैदीयों को रिहाई बख़्शने आया। गोहम इंजील के अख़्लाक़ी उसूलों और उन के ज़बरदस्त मुतालिबात को हरगिज़ नज़रअंदाज नहीं कर सकते लेकिन मुर्दों में से जी उठने की ख़ुशख़बरी से बढ़कर और कोई पैग़ाम दिलकश और दिलफ़रेब नहीं हो सकता।

बूलशोकों के ख़्याल के मुताबिक़ इंजील मुफ़लिसों और बेकसों के लिए कोई ख्व़ाब-आवर शै नहीं जो दौलतमंद और मुतमव्विल अश्ख़ास उन्हें जबरन पिला देते हैं। बल्कि इंजील उस हक़ीक़त का ऐलान करती है जो चीज़ें हम देखते हैं वो फ़ानी हैं। और उन-देखी अश्या ग़ैर-फ़ानी हैं। अब इस इन्साफ़ से ख़ाली दुनिया में शायद हमें मसीह के दुखों की शराकत में शरीक होना पड़े। लेकिन उस पर ईमान लाने के सबब हम मुर्दों में से जी उठने की नौबत तक पहुंच जाते हैं। "वो अपनी उस क़ुव्वत की तासीर के मुवाफ़िक़ जिससे सब चीज़ें अपने ताबे कर सकता है। हमारी पस्त हाली के बदन की शक्ल बदल कर अपने जलाल के बदन की सूरत पर बनाएगा" (फिलिप्पियों 2: 21)

वो ग़ैर-फ़ानी खूबियां जो उनमें छिपी होती हैं जो मसीह की मौत और उसकी क़ियामत पर ईमान लाते हैं रसूलों, कलीसिया के मुक़द्दसों और शहीदों की ख़ुशी और उनकी रूह की फ़र्हत का बाईस थीं। इसलिए कि वो दुनिया को हक़ीर व नाचीज़ जानते थे। उन्होंने दुनिया को मसीह के लिए जीत लिया और हर एक मुल्क में एक रुहानी बादशाहत की बिना डाली क्योंकि वो आस्मानी हुकूमत का हक़-ए-रईयत रखते थे। उन्होंने हर एक शहर में कलीसिया की बुनियाद रखी क्योंकि वो ख़ुद परदेसी और मुसाफ़िर थे और उस पायदार शहर की तलाश में थे। "जिसका मेअमार और बनाने वाला ख़ुदा है।"

मसीही इलाहिय्यात में अगर किसी सदाक़त पर इन दिनों निस्बतन ज़्यादा ज़ोर देने की ज़रूरत है तो वो क़यामत-ए-मसीह का अक़ीदा है। अगर हम ज़िंदा मसीह और अबदी ज़िंदगी के इस पैग़ाम को ग़ैर मसीही दुनिया में पहुंचा दें तो हम समझेंगे कि हमने फ़िल-हक़ीक़त अपनी इलाहिय्यात की रूह को पा लिया है और अब सही माअनों में राह तरक़्क़ी पर गामज़न हैं।

डाक्टर डीसमन (Dr. Deissman) फ़रमाते हैं कि क़रीबन गुज़शता तीस साल से येसु की मौत और उनकी क़ियामत की बशारत मुख़्तलिफ़ मसीही अक़्वाम की इलाहिय्यात में एक दिलचस्प मबहस बनी रही और मैं उसे मज़हबी तहक़ीक़ात में एक निहायत मुफ़ीद और अहम क़दम तसव्वुर करता हूँ। आज-कल हमें मौत और क़ियामत की तालीम पर अज़हद ज़ोर देना चाहिए । और इसका ऐलान करना कलीसिया का फ़र्ज़ अव्वलीन होना चाहिए। हम पर फ़र्ज़ है कि हम अपनी तवज्जाह को इस हक़ीक़त पर मर्कूज़ करें कि ख़ुदा की बादशाहत क़रीब है और कि ख़ुदा अदालत व नजात के ज़रीये अपनी कामिल हुकूमत के साथ आने वाला है और हमें अपने आपको रुहानी तौर से उस की आमद के लिए तैयार करना चाहिए क्योंकि "ख़ुदावंद आ रहा है।"

दरअसल यही हमारा मिशनरी पैग़ाम है यानी एक ऐसे शख़्स की ज़िंदा जावेद बशारत देना जो इस दुनिया में आया, सलीब दिया गया, मुर्दों में से जी उठा, आस्मान पर चढ़ गया और वहां से फिर आने वाला है। बैत-लहम, कलवरी ख़ाली क़ब्र बल्कि उन बादलों से भी जिन्होंने उसे छिपा लिया। ग़ैर फ़ानीयत और बक़ा का नूर दरख़शां है।

हम इस अज़ीमुश्शान बैज़वी शक्ल के रकबा को जो दुनिया के लिए हमारे पैग़ाम व ईमान पर मुहीत है। जिस क़दर चाहें वसीअ तसव्वुर कर सकते हैं । लेकिन मसीह की मौत और क़ियामत और इन्सान के अज़ली व अबदी अंजाम से इसका ताल्लुक़ हमेशा यही इसके दो मर्कज़ी नुक़्ते रहेंगे और यही क़ियामत की ख़ुशख़बरी है।


1

उस ने ये कुछ किया हमारे लिए
क्या उसे सज्दा भी करेंगे ना हम
वो है तैयार करने को ये कुछ
पस्त हिम्मत का दम् भरेंगे ना हम
आओ उस के हुज़ूर सज्दा में
करें हासिल सरवर सज्दा में
अपनी तकलीफों का गिरां तरबार
उस के क़दमों पे क्या धरेंगे ना हम

2

और इन आँखों से हमारी काश
शुक्र का उस के नूर रोशन हो
ख़ुश हूँ ताइब हूँ और बह इत्मीनान
तकिया उस पर दिली हमा-तन हो
और हम अपनी ज़िंदगानी भर
बल्कि बाद उसके जब ये हो आख़िर
हम्द के गीत गाने में हर वक़्त
ना थकावट हो और ना उलझन हो

3

ज़िंदगी मौत रंज व ग़म में भी
गुना की हालत अलम में भी
हाँ मेरे वास्ते वो काफ़ी है
है हमेशा हर एक दम में भी
यही अव़्वल है क्योंकि आख़िर है
यही आख़िर और अव्वलीं तर है
अव्वल हसत है मसीह भी
है यही आख़िर अदम में भी