बाब सूओम

क़िरअत  इब्न मस्ऊद

जो क़ुरआन हज़रत उस्मान ने तालीफ़ करवाया उस की तख़रीब व तहरीफ़ के दलायल में से चंद हक़ायक़ मुताल्लिक़ा तालीफ़ इब्न मस्ऊद भी काबिल-ए-ज़िक्र हैं । मिश्कात अलमसाबीह के चौबीसवें हिस्से के बीसवीं बाब में एक हदीस मुंदरज है जिसमें रसूलुल्लाह ने दस निहायत बुज़ुर्ग वफ़ादार सहाबा के नाम बताए हैं और फ़रमाया है कि वो यक़ीनन नजात याफताह हैं । चुनांचे ये दस बुज़ुर्ग तवारीख़ में "अशरह मुबश्शरा 1 कहलाते हैं अबदुल्लाह इब्न मस्ऊद इन्हीं में से एक था । वो निहायत बड़ा आलिम फ़ाज़िल और रसूलुल्लाह का दोस्त बयान किया गया है।

चुनांचे मिश्कात में आँहज़रत की एक हदीस यूं मुंदरज है :-

حَدَّثَنَا حَفْصُ بْنُ عُمَرَ حَدَّثَنَا شُعْبَةُ عَنْ عَمْرٍو عَنْ إِبْرَاهِيمَ عَنْ مَسْرُوقٍ ذَکَرَ عَبْدُ اللَّهِ بْنُ عَمْرٍو عَبْدَ اللَّهِ بْنَ مَسْعُودٍ فَقَالَ لَا أَزَالُ أُحِبُّهُ سَمِعْتُ النَّبِيَّ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ خُذُوا الْقُرْآنَ مِنْ أَرْبَعَةٍ مِنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ مَسْعُودٍ وَسَالِمٍ وَمُعَاذِ بْنِ جَبَلٍ وَأُبَيِّ بْنِ کَعْبٍ

यानी अबदुल्लाह इब्न उमर ने बयान किया कि रसूल सलअम ने फ़रमाया कि इन चार यानी अबदुल्लाह इब्न मस्ऊद, सालिम मौला इब्न हुज़ैफ़ा अबी इब्न काब और मुआज़ इब्न जबल से क़ुरआन सीखो"।

इस हदीस से और ऐसी ही और अहादीस से साबित होता है कि इब्न मस्ऊद आँहज़रत का वफ़ादार पैरु था और उस ने आँहज़रत से बड़ी होश्यारी से क़ुरआन सीखा था । एक और हदीस मुन्दरिजाह मुस्लिम में मर्क़ूम है कि एक दफ़ा इब्न मस्ऊद ने कहा "मुझे ख़ुदा के नाम की क़सम है कि ख़ुदा की किताब में कोई सूरत ऐसी नहीं जो में नहीं जानता और जिस के वही का मुझे इल्म नहीं। एक आयत भी ऐसी नहीं है जो मुझे याद ना हो"।

फिर एक और हदीस में इब्न मस्ऊद यूं कहता हुआ पेश किया गया है "रसूलुल्लाह के अस्हाब ख़ूब जानते हैं कि मैं इन सबसे बेहतर क़ुरआन जानता हूँ। इलावा-बरें एक हदीस हज़रत उमर से यूं मर्वी है:-

" رسول اللہ صلعمہ قال من احب ان یقراوالقران عضاً کماانزل فیلقرہ علی قراة بن ام عبد"

यानी रसूल सलअम ने फ़रमाया जो कोई क़ुरआन को वैसा ही पढ़ना चाहे जैसा नाज़िल हुआ था उसे चाहीए कि इब्न उम अब्द (अबदुल्लाह इब्न मस्ऊद) की तरह पढ़े"।

इन अहादीस मुख़्तलिफ़ा की शहादात-ए-मुतअद्दाह से साफ़ अयाँ है कि इब्न मस्ऊद की क़िरअत -ए-क़ुरआन सही क़िरअत थी और कम से कम उस वक़्त तख़रीब व तहरीफ़ और इफ़्रात व तफ़रीत से पाक थी। लेकिन बाअयहनमा एक निहायत हैरत-अफ़्ज़ा अम्र पेश आता है कि इब्न मस्ऊद हज़रत उस्मान की तस्दीक़ व तरदीद और नज़रसानी क़ुरआन का सख़्त मुख़ालिफ़ था। इस ने उस्मान के तालीफ़ कर्दा क़ुरआन को नामंज़ूर किया और अपना मक़बूज़ा क़ुरआन उसे देने से साफ़ इनकार किया । ना फ़क़त यही बल्कि जब हज़रत उस्मान ने अपने तालीफ़-कर्दा क़ुरआन को राइज करने और दीगर तमाम नुस्ख़ों को जमा करने और जलाने का हुक्म-जारी किया तो इब्न मस्ऊद ने अपने शागिर्दों यानी अहले इराक़ को फ़ौरन ये सलाह दी कि अपने क़ुरआन छुपा लेवें और जलाए जाने के लिए हरगिज़ ना दें"। चुनांचे इस ने कहा " یا اھل العراق اکتموا المصاحف التی عندکمہ وغلقھا"۔  यानी ए अहले इराक़ अपने क़ुरआन छुपालो और उन को मुक़फ़्फ़ल रखो"। लिखा है कि ख़लीफ़ा उस्मान ने इब्न मस्ऊद का क़ुरआन ज़बरदस्ती से छीन कर जला दिया और उस को ऐसी सख़्त ज़द्द-ओ-कूब की कि वो रसूलुल्लाह का सहाबी चंद ही रोज़ में मर गया । लेकिन ये हक़ीक़त हमेशा के लिए क़ायम है कि इब्न मस्ऊद ने फ़क़त उस्मान के हस्बे-ख़्वाहिश तालीफ़-कर्दा क़ुरआन को मंज़ूर करने और अपना क़ुरआन देने से इनकार किया बल्कि जो क़ुरआन इस ने रसूलुल्लाह से सीखा था उसी को पढ़ने की अपने तमाम पैरुवान को हिदायत की । ये तमाम क़ब्ज़ा इस अम्र की निहायत बय्यन दलील है कि हज़रत उस्मान का तालीफ़ कर्दा क़ुरआन इब्न मस्ऊद के क़ुरआन व क़िरअत से बहुत मुख़्तलिफ़ था क्योंकि सिवाए इस हक़ीक़त को हक़ तस्लीम करने के कोई और सबब नज़र नहीं आता कि हज़रत उस्मान ने इब्न मस्ऊद जैसे दीनदार आलिम मुतजह्हिर से ऐसी बदसुलूकी क्यों की इसी रिसाले में हम आगे चल कर दिखाएँगे कि उस्मान इब्न मस्ऊद के क़ुरआन कैसे बड़े बाहमी तख़ालुफ़ से पुर थे । इस वक़्त फ़क़त इतना कहना काफ़ी होगा कि इब्न मस्ऊद के क़ुरआन में सुरह फ़ातिहा, सुरह तलाक़ और सुरह नास तीनों नदारद थीं । ख़लीफ़ा उस्मान की ये ज़ुर्रात व बेबाकी हैरत-अफ़्ज़ा है कि इस ने रसूलुल्लाह का सिखाया हुआ क़ुरआन इस तरह से बर्बाद कर दिया और उस के एवज़ में इस से मुख़्तलिफ़ क़ुरआन तालीफ़ करके राइज किया ।

अगरचे हज़रत उस्मान ने अपने तालीफ़ कर्दा क़ुरआन के सिवा दीगर तमाम नुस्ख़ों को नेस्त व नाबूद करने के लिए बड़े जाबिराना वसाइल से काम लिया तो भी अहले इराक़ में सालहसाल तक इब्न मस्ऊद की क़िरअत राइज रही। चुनांचे 38 हिज्री में इब्न मस्ऊद के क़ुरआन की एक जिल्द बग़दाद में पाई गई। मुक़ाबला करने से इस में और हज़रत उम्मान वाले क़ुरआन में बहुत तख़ालुफ़ पाया गया और फ़रेब ख़ूर्दा लोगों ने बड़े जोश में आकर उसे फ़ौरन जला दिया ।

हज़रत उस्मान का क़ुरआन ना फ़क़त इब्न मस्ऊद के नुस्खे़ से मुतफ़ावत हुआ बल्कि हज़रत अबू-बक्र की तरदीद व तस्दीक़ कर्दा तालीफ़ के भी ख़िलाफ़ निकला अहादीस में मर्क़ूम है कि अबू-बक्र की वफ़ात के बाद अबू-बक्र का तालीफ़ कर्दा क़ुरआन हज़रत हफ़्सा की हिफ़ाज़त में रहा लेकिन जब वो भी वफ़ात पा गई तो मदीना के हाकिम मरवान ने इस के भाई इब्न उमर से वो क़ुरआन मंगवा कर फ़ौरन जला दिया और कहा कि :-

"अगर उस की इशाअत हो तो लोग दोनों नुस्ख़ों में बाहमी तख़ालुफ़ देखकर शक करने लगेंगे"।

पस इन वाक़ियात से अज़हर-मिन-श्शम्स है कि जो क़ुरआन अब तमाम इस्लामी व ग़ैर इस्लामी ममालिक में राइज है वो हज़रत अबू-बक्र, इब्न मस्ऊद और हज़रत अली के जमा-कर्दा क़ुरआन तीनों में से एक के साथ भी मुताबिक़त नहीं रखता फ़िल-हक़ीक़त मौजूदा मुरव्वजा क़ुरआन में जैसा कि इस किताब में साबित किया जाएगा ऐसी काट छांट और तख़रीब व तहरीफ़ हो चुकी है कि अब उसे काबिल-ए-एतिमाद और काबिल क़बूल जानना और हज़रत मुहम्मद का सिखाया हुआ कामिल क़ुरआन मानना बिल्कुल नामुम्किन है।


1.  यानी वह दस जिन्होंने ख़ुशी कि खबर सुनी