सातवाँ बाब

इस्लाम का बेगुनाह नबी

जैसा हम पहले भी इशारतन ज़िक्र कर आए हैं कि ईसा मसीह को इस्लाम ने अन्नबी मासूम की हैसियत में नूह, इब्राहीम, मूसा ,दाऊद और तमाम दीगर अम्बिया से बुज़ुर्ग व बरतर पेश किया है। इस्लाम ने इब्ने मर्यम को जो मुअज्जज़ अल्क़ाब दीए हैं उनका ख़ुलासा उस की शान के बयान में इस के "मासूम नबी" होने में मिलता है। क़ुरआन में लिखा है जिब्राईल फ़रिश्ता ने आकर मर्यम से यूं कहा :—

إِنَّمَا أَنَا رَسُولُ رَبِّكِ لِأَهَبَ لَكِ غُلَامًا زَكِيًّا

मैं तेरे ख़ुदा की तरफ़ से तुझे एक पाकीज़ा बेटा देने आया हूँ I

देखो सूरह मर्यम 20 वीं आयत। फिर सूरह इमरान की 36 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

وَإِنِّي سَمَّيْتُهَا مَرْيَمَ وِإِنِّي أُعِيذُهَا بِكَ وَذُرِّيَّتَهَا مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ

मैंने इस का नाम मर्यम रखा है और मैं इस को और इस की औलाद को ख़ुदा के सपुर्द करती हूँ। कि वो शैतान रजीम से महफ़ूज़ रहें I

हम देखते हैं कि इन मक़तबात के मुताबिक़ ईसा मसीह कुतुब इस्लाम में हर जगह बिल्कुल बेगुनाह बताया गया है । क़ुरआन व अहादीस में कहीं भी इस का कोई गुनाह मज़कूर नहीं है। हालाँकि बख़िलाफ़ उस के बाइबल और क़ुरआन दोनों में दीगर अम्बिया के गुनाहों पर बकसरत इशारात पाए जाते हैं और क़ुरआन में ख़ुद हज़रत मुहम्मद को बार-बार अपने गुनाहों की मग़फ़िरत मांगने का हुक्म मिलता है।

चुनांचे जे़ल में हम मिसाल के तौर पर क़ुरआन से चंद आयतें नक़ल करते हैं सूरह आराफ़ की 23 वीं आयत और 24 वीं आयत में आदम के गुनाह और इस की माफ़ी मांगने का ज़िक्र यूँ मुंदरज है :—

قَالاَ رَبَّنَا ظَلَمْنَا أَنفُسَنَا وَإِن لَّمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ

पस शैतान ने फ़रेब देकर उन को गिरा दिया......और उन्होंने कहा ए हमारे रब हमने ज़ुल्म किया अपनी जानों पर अगर तू हमको माफ़ ना करे और हम पर रहम ना फ़र्मा दे तो अलबत्ता हम खासीरीन में से हो जाएंगे I

इसी तरह से सूरह अम्बिया में इब्राहीम का गुनाह मज़कूर है लिखा है कि इब्राहीम ने बुत परस्तों के बहुत से बुत तोड़ डाले लेकिन सबसे बड़े को साबित रहने दिया। बाद में जब बुत परस्तों ने इब्राहीम को इस फे़अल का मुर्तक़िब क़रार दिया तो इस ने साफ़ इन्कार किया और कहा कि सबसे बड़े बुत ने छोटों को तोड़ डाला दीगर मुक़ामात में इस की मग़फ़िरत की दुआएं दर्ज हैं।

मूसा भी क़ुरआन में गुनेहगार की हैसियत में पेश किया गया चुनांचे सूरह क़िसस में मर्क़ूम है कि एक मिस्री को मार डालने के बाद मूसा ने यूं दुआ की :—

رَبِّ اِنِّىْ ظَلَمْتُ نَفْسِيْ فَاغْفِرْ لِيْ فَغَفَرَ لَهٗ

ए मेरे रब तहक़ीक़ मैंने अपनी जान पर ज़ुल्म किया मुझे माफ़ कर दे पस उसने उसे माफ़ कर दिया I

दाऊद ने गुनाह किया और अपने गुनाह की माफ़ी चाही। चुनांचे सूरह साद की 23 और 24 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

وَظَنَّ دَاوُودُ أَنَّمَا فَتَنَّاهُ فَاسْتَغْفَرَ رَبَّهُ وَخَرَّ رَاكِعًا وَأَنَابَ فَغَفَرْنَا لَهُ

और दाऊद ने मालूम किया कि हमने उसको आज़माया और इस ने अपने रब से मग़फ़िरत मांगी और गिर कर सज्दा किया और तौबा की पस हमने उसको माफ़ कर दिया।

हज़रत मुहम्मद को भी अपने गुनाहों की माफ़ी मांगने के लिए क़ुरआन में बार-बार हुक्म आया है। चुनांचे सूरह मुहम्मद की 21 वीं आयत में यूं मर्क़ूम है :—

وَاسْتَغْفِرْ لِذَنبِكَ وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ

ए मुहम्मद अपने गुनाहों के लिए मग़फ़िरत मांग और मोमिन मर्द व ज़न के लिए भी दुआ-ए-मग़्फ़िरत कर I

फिर सूरह फ़तह की पहली और दूसरी आयात में यूं लिखा है :—

لِيَغْفِرَ لَكَ اللَّهُ مَا تَقَدَّمَ مِن ذَنبِكَ وَمَا تَأَخَّرَ

ताकि ख़ुदा तेरे अगले पिछले गुनाह माफ़ करे I

फिर सूरह अहज़ाब की 37 वीं आयत में हज़रत मुहम्मद के एक ख़ास गुनाह का ज़िक्र पाया जाता है चुनांचे मर्कुम है :—

وَتُخْفِي فِي نَفْسِكَ مَا اللَّهُ مُبْدِيهِ وَتَخْشَى النَّاسَ وَاللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخْشَاهُ

और ए मुहम्मद तू अपने दिल में छुपाता था वो बात जिसको ख़ुदा ज़ाहिर करना चाहता था और तू लोगों से डरता था। हालाँकि तुझे ख़ुदा से ज़्यादा डरना चाहिए था।

हम दिखा चुके हैं कि अज़रूए क़ुरआन आदम, मूसा, दाऊद और हज़रत मुहम्मद सब के सब गुनेहगार थे और मज़ीद तहक़ीक़ात से मालूम होगा कि उन्होंने मंसब, रिसालत पर  मामूर होने के बाद गुनाह किए लेकिन यह एक हैरत-अफ़्ज़ा हक़ीक़त है कि बाइबल या क़ुरआन में कहीं भी ईसा "कलिमतुल्लाह" का कोई गुनाह मज़कूरा नहीं इस लिहाज़ से भी तमाम अम्बिया पर ईसा की फ़ज़ीलत साफ़ नज़र आती है अहादीस की शहादत भी ऐसी ही है। क्योंकि अगरचे उनमें बार-बार मज़कूर है कि हज़रत मुहम्मद अपने गुनाहों की मग़फ़िरत मांगता था तो भी बेगुनाह ईसा के हक़ में कहीं ऐसे......अल्फ़ाज़ नहीं पाए जाते बल्कि बख़िलाफ़ उस के मिश्कात और दीगर कुतुब अहादीस में जो हदीसें उस की पैदाइश के मुताल्लिक़ हैं उनसे साफ़ मालूम होता है कि वो पैदाइश ही से मासूम और बेगुनाह रखा गया।

मसीह की बेऐब पैदाइश के बारे में मुस्लिम की एक हदीस में यूं लिखा है कि :—

सिवाए मर्यम और इस के बेटे के हर एक इब्ने आदम को पैदाइश के वक़्त शैतान छू लेता है I

इमाम ग़ज़ाली से एक हदीस यूं मर्वी है कि :—

जब ईसा इब्ने मर्यम अलैहिस्सलाम तव्वुलुद हुआ तो शैतान के तमाम कारगुज़ारों ने आकर शैतान से कहा कि सुबह के वक़्त तमाम बुत सर-निगूँ थे। शैतान उस का सबब बिल्कुल ना समझ सका जब तक कि उसने दुनिया में फिर कर ये मालूम ना कर लिया कि अभी ईसा पैदा हुआ है और फ़रिश्तगान उस के गिर्द उस की पैदाइश पर ख़ुशीयां मना रहे हैं पस उसने वापिस आकर अपने शयातीन को बताया कि कल एक नबी पैदा हुआ था। इस से पेशतर हर एक इन्सान पर मैं हाज़िर होता था लेकिन इस की पैदाइश के मौक़ा में हाज़िर ना था ।

मसीह की बेगुनाही पर क़ुरआन और अहादीस की शहादत इंजील शरीफ़ से बिल्कुल मुताबिक़त रखती है क्योंकि इंजील इस से भी साफ़ अल्फ़ाज़ में "मसीह को मासूम और बेगुनाह करती है चुनांचे मर्क़ूम है :—

“इस में गुनाह ना था” (1 युहन्ना 3:5)

“उसने बिल्कुल कोई गुनाह ना किया”(पतरस)

मसीह ने ख़ुद अपने चलन की पाकीज़गी पर ज़ोर दे कर अपने दुश्मनों से कहा कि :—

"तुम में से कौन मुझ पर गुनाह साबित करता है?" (युहन्ना 8:46)

इस मज़मून की मज़ीद तहक़ीक़ात की अशद ज़रूरत पर हम बहुत कुछ कह चुके हैं और नाज़रीन से इलतिमास है कि आप एक ऐसे नतीजे पर पहुंचने की हत्त-उल-मक़दूर पूरी कोशिश करें जिससे इस ज़िंदगी में आपको दिली इतमीनान और आइन्दा ज़िन्दगी के बारे में कामिल उम्मीद हासिल हो। अगर आप मुसलमान हैं तो ज़रूर आप शफ़ाअत कनुंदा की ज़रूरत को समझते हैं और ग़ालिबन आप ख़्याल करते हैं कि हज़रत मुहम्मद आपकी शफाअत करके आपके गुनाहों को गुनाहों की सज़ा से बचा लेंगे लेकिन अज़ीज़-ए-मन क्या गुनेहगार दूसरे गुनेहगार की शफ़ाअत कर सकता है ?

ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता पस इस हालत में क्या इस पर भरोसा करना अक्लमंदी नहीं है जिसको बाइबल और क़ुरआन व अहादीस कामिल-तौर पर बेगुनाह क़रार देते हैं ?

फिर हम ये भी मालूम कर चुके हैं कि शफ़ाअत की अभी ज़रूरत है ईसा चूँकि आस्मान पर ज़िंदा है इस लिए वो शफ़ाअत कर सकता है। और चूँकि वो बेगुनाह है इस लिए वो शफ़ाअत करने का इख़्तियार रखता है।