छटा बाब

मसीह अकेला शफ़ाअत कनुंदाह

हम देख चुके हैं कि मसीह के हक़ में इस्लाम कैसी बड़ी शहादत देता है। लेकिन इंजील शरीफ़ की पूरी तालीम के बग़ैर हम इस को ठीक तौर से समझ नहीं सकते क्योंकि इंजील ही में ख़ुदा के अज़ली बेटे का जलाल कामिल तौर से ज़ाहिर किया गया है। क़ुरआन ईसा को एक और बड़े लक़ब से मुलक़्क़ब करता है यानी "हर दो-जहाँ में मुअज़्ज़िज़" कहता है। चुनांचे सूरह इमरान की 46 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

يَا مَرْيَمُ إِنَّ اللّهَ يُبَشِّرُكِ بِكَلِمَةٍ مِّنْهُ اسْمُهُ الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ وَجِيهًا فِي الدُّنْيَا وَالآخِرَةِ

यानी ए मर्यम यक़ीनन ख़ुदा तुझे ख़ुशख़बरी देता है कलिमा की जो इस से है और जिस का नाम मसीह ईसा इब्ने मर्यम है वो दुनिया व आख़रत में वजीहा है I

ऐसे बड़े बड़े अल्क़ाब क़ुरआन में किसी और नबी को नहीं दीए गए । उनसे एक ऐसी ख़ास निस्बत और ताल्लुक़ ज़ाहिर होता है जो ख़ुदा को किसी दूसरे से नहीं बड़े बड़े मशहूर इस्लामी मुफ़स्सिरीन-ए-क़ुरआन ने इस हक़ीक़त को पहचाना है वो मज़कूरा बाला आयत से मालूम करते हैं कि ईसा मसीह गुनेहगारों की शफ़ाअत करेगा।

चुनांचे बैज़ावी इस आयत की तफ़्सीर मैं कहता है :—

الوجا ھتہ فی الدنیا النبوتہ وفی الاخرتہ الشفاعتہ

दुनिया में नबुव्वत और आख़िरत में शफ़ाअत वजाहत है I

एक और मुफ़स्सिर ज़मखशरी अल-कशाफ़ में लिखता है :—

“इस दुनिया में नबुव्वत और तमाम लोगों पर तक़द्दुम और आख़िरत में शफ़ाअत व बहिश्त में आला दर्जा हासिल करने का नाम "वजाहत" है I”

दीगर अम्बिया पर मसीह की फ़ज़ीलत की तालीम भी बाइबल शरीफ़ में दी गई है चुनांचे इब्रानियों के तसीरे बाब की तीसरी आयत में मर्क़ूम है :—

बल्कि वो (मसीह) मूसा से इस क़दर ज़्यादा इज़्ज़त के लायक़ समझा गया जिस क़दर घर का बनाने वाला घर से ज़्यादा इज़्ज़तदार होताहै......और मूसा तो उस के सारे घर में ख़ादिम की तरह दयानतदार रहा ताकि आइन्दा बयान होने वाली बातों की गवाही दे लेकिन मसीह बेटे की तरह उस के घर का मुख़तार है"

बैज़ावी और ज़मखशरी लिखते हैं कि क़ुरआन ये तालीम देता है कि आख़िरत में मसीह गुनेह्गारों का शफ़ी होगा।

क्या कोई मुसलमान तमाम क़ुरआन में एक आयत भी बता सकता है कि जिसमें ये साफ़ बात मर्क़ूम हो कि क़ियामत के रोज़ हज़रत मुहम्मद या कोई और नबी शफ़ाअत कनुन्दा के तौर पर मुमताज़ होंगे ?

बेशक बाज़ मुसलमान कहते हैं कि मुहम्मद साहब शफ़ाअत करेंगे  और सूरह बनी-इस्राइल की 80 वीं आयत को इस की दलील पेश करते हैं इस में यूँ मर्क़ूम है :—

"शायद तेरा ख़ुदावंद तुझे एक आला रुत्बे पर सर्फ़राज़ करेगा"

इस आयत की इबारत ऐसी है कि कुछ साफ़ मतलब नहीं निकल सकता और बहुत से मोअतबर मुसलमान लिखते हैं कि इस में शफ़ाअत की तरफ़ कुछ भी इशारा नहीं है। हम्बली इस आयत का मतलब ये बयान करते हैं कि हज़रत मुहम्मद को तख्त-ए-ईलाही से क़रीब मुक़ाम का वाअदा दिया गया है ।

लेकिन क़ुरआन ख़ुद तमाम शकूक को रफ़ा करता है क्योंकि क़ुरआन में साफ़ लिखा है कि हज़रत मुहम्मद गुनेह्गारों की शफ़ाअत नहीं कर सकते । सूरह तौबा की 81 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

اسْتَغْفِرْ لَهُمْ أَوْ لاَ تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ إِن تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ سَبْعِينَ مَرَّةً فَلَن يَغْفِرَ اللّهُ لَهُمْ

तू उन के लिए मग़फ़िरत मांग या ना मांग अगर तू (ए मुहम्मद) उन के लिए सत्तर बार मग़फ़िरत मांगे तो भी अल्लाह उन को हरगिज़ माफ़ नहीं करेगा ।

फिर क़ुरआन में ये भी लिखा है कि जब अरबों ने लड़ाई के लिए हज़रत मुहम्मद के साथ जाने से इन्कार किया और बाद उस के पास आकर कहा कि हमारे लिए "मग़फ़िरत मांग" तो इस ने क़ुरआन के मुवाफ़िक़ यूं जवाब दिया कि :—

فَمَن يَمْلِكُ لَكُم مِّنَ اللَّهِ شَيْئًا إِنْ أَرَادَ بِكُمْ ضَرًّا أَوْ أَرَادَ بِكُمْ نَفْعًا

यानी कौन तुम्हारे लिए ख़ुदा से कुछ हासिल कर सकता है? ख्वाह वो तुमको दुख में डाले या नफ़ा पहुंचाने पर रज़ामंद हो (सूरह फ़तह आयत 11)

मुंदरजा-बाला आयतों में से पहली में रियाकारों का ज़िक्र है और दूसरी में मुसलमान मुख़ातब हैं। लिहाज़ा साफ़ ज़ाहिर है कि हज़रत मुहम्मद ना मोमिनों के शफ़ी हो सकते हैं ना काफ़िरों के बहुत से मुसलमान इस बात को मानते हैं कि मसलन फ़िर्क़ा ख़ारजिया के मुसलमान हज़रत मुहम्मद की शफ़ाअत से साफ़ इंकारी हैं। मोतज़िला कहते हैं कि हज़रत मुहम्मद बड़े बड़े गुनाहों वालों की शफ़ाअत नहीं कर सकेंगे (देखो हिदायत अलमुस्लिमीन 209 वग़ैरा) पस ये बात अज़हर-मिनश्शम्स है कि मुसलमान हज़रत मुहम्मद से हरगिज़ शफ़ाअत की उम्मीद नहीं रख सकते। बख़िलाफ़ उस के क़ुरआन ये तालीम देता है कि ईसा शफाअत करेगा और यह तालीम इंजील शरीफ़ में तशरीहन मुंदरज है और साफ़ लिखा है कि सय्यदना ईसा गुनेह्गारों का बड़ा शफ़ाअत कनुंदा है।

फिर क़ुरआन से ये भी साबित होता है कि शफ़ाअत की ज़रूरत अब है क़ियामत के रोज़ तो "गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं" की सी मिसाल होगी चुनांचे सूरह मर्यम की 90 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

لَا يَمْلِكُونَ الشَّفَاعَةَ إِلَّا مَنِ اتَّخَذَ عِندَ الرَّحْمَنِ عَهْدًا

कोई शफ़ाअत नहीं कर सकेगा सिवाए उस के जिसने ख़ुदा से अह्द लिया है।

इलावा-बरीं सूरह निसा की 17 वीं आयत में मर्क़ूम है कि :—

ऐसे लोगों की तौबा क़बूल नहीं होती जो बुरे काम करते जाते हैं यहां तक कि जब किसी ऐसे की मौत आ जाती है तो कहता है अब मैंने तौबा की और ना उनकी जो कुफ़्र मैं मरते हैं ये वो लोग हैं जिनके लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार किया है।

सूरह ज़ुमर में लिखा है :—

जिस पर अज़ाब का फ़तवा लग चुका और जो आग में पड़ गया क्या तू (ए मुहम्मद) उस को छुड़ा लेगा ?

क़ुरआन की ये तालीम ऐसी है कि हर एक ज़ी फ़हम और बाहोश आदमी उस को बख़ूबी समझ सकता है क्योंकि ये बिल्कुल साफ़ बात है कि अगर कोई शख़्स मरने तक यानी अपनी सारी उम्र गुनाह ही करता रहा है या दूसरे अल्फ़ाज़ में यूं कहें कि ख़ुदा से अह्द ना करे तो क़ियामत के रोज़ कोई शफ़ाअत उस को गुनाह की वाजिबी सज़ा से बचा ना सकेगी। पस इन्सान इस अम्र का मुहताज है कि इसी ज़िंदगी में इस का कोई ज़िंदा शफ़ाअत कनुंदा हो जिसकी मदद और क़ुदरत से ताक़त व फ़ज़ल हासिल करके अभी से रास्तबाज़ी और नेकोकारी की राहों में चलने लगे पस हम पूछते हैं कि वो ज़िंदा शफ़ाअत कनुंदा कौन हैं जिससे मदद पाकर हम गुनाह से महफ़ूज़ रहें और ख़ुदा की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ ज़िंदगी बसर करें?

हज़रत मुहम्मद तो अपनी क़ब्र में पड़े हैं और रोज़ क़ियामत तक वहीं पड़े रहेंगे हत्ता कि नर्सिंगा फूँका जाएगा और मुर्दे उठाए जाऐंगे लिहाज़ा अगर मान भी लिया जाये कि वो उस वक़्त शफ़ाअत कर सकेंगे तो क्या हासिल क्योंकि शफ़ाअत का तो मौक़ा ही नहीं रहेगा। क़ुरआन और इंजील की शहादत ईसा के हक़ में कैसी मुख़्तलिफ़ है "वो आलम आख़िरत में मुअज़्ज़िज़ है" क़ुरआन उस के हक़ में यूं कहता है :—

بل رفعہ اللہ الیہ

ख़ुदा ने उसे अपने पास ऊपर उठा लिया

तमाम मुसलमान ये मानते हैं कि मसीह आस्मान पर ज़िंदा है इस आयत से ये भी साफ़ ज़ाहिर है कि सय्यदना मसीह हज़रत मुहम्मद से बहुत ही बढ़कर और बुज़ुर्ग व बरतर है क्योंकि आस्मान पर ज़िंदा है।

बड़े बड़े मुफ़स्सिरीन क़ुरआन ने इस हक़ीक़त पर शहादत दी कि सय्यदना मसीह आस्मान पर ज़िंदा और अपने लोगों के लिए शफ़ाअत करता है। चुनांचे सूरह यासीन में हबीब नज्जार की हिकायत पाई जाती है । बैज़ावी उस के बारे में लिखता है कि :—

"पतरस ने एक सात दिन के मुर्दा लड़के को ज़िंदा किया जब इस से पूछा गया कि तूने आस्मान पर क्या देखा तो लड़के ने जवाब दिया कि मैंने ईसा मसीह को आस्मान पर अपने तीन शागिर्दों के लिए (यानी पतरस और इस साथी जो क़ैद में थे) सिफ़ारिश करते देखा है"।

इस अहम मज़मून पर इंजील शरीफ़ की तालीम बहुत ही साफ़ है और इस अम्र में ज़रा भी शक नहीं छोड़ती कि ईसा आस्मान पर ज़िंदा है और उन सबकी जो इस पर भरोसा रखते हैं सिफ़ारिश करता है चुनांचे लिखा है :—

ईसा जो ख़ुदा की दाहिनी तरफ़ है और हमारी शफ़ाअत भी करता है  (रोमीयों 8:34)

और कि वो (ईसा) उनकी शफ़ाअत के लिए हमेशा जीता रहेगा (इब्रानियों 7: 25)

मसीह आस्मान ही में दाखिल हुवा ताकि अब खुदा के रूबरू हमारी खातिर हाज़िर हो (इब्रानियों 9: 24)

पस इस से हम बख़ूबी समझ सकते हैं कि गुनेह्गारों की उम्मीद का लंगर सिर्फ़ मसीह ही है यानी वही ज़िंदा शफ़ाअत कनुंदा है जो हम को हमारी इस बेकसी और लाचारी की हालत में मदद दे सकता है।

ए अज़ीज़ बिरादरान अहले इस्लाम आप क्यों एक मुर्दा शख़्स पर भरोसा किए बैठे हैं और क्यों बेफ़ाइदा ये ख़्याल करते हैं कि क़ियामत के दिन वो शफ़ाअत करेगा? इस से पेशतर आपका अंजाम मुक़र्रर हो चुकेगा और उस वक़्त कोई शफ़ाअत कुछ काम ना आएगी हमें तो शफ़ाअत की अब ज़रूरत है। और जब बाइबल व क़ुरआन दोनों से सिर्फ ईसा मसीह ही शफ़ाअत करने वाला साबित होता है तो क्या ये दानाई की बात नहीं होगी कि हम भी इसी पर भरोसा करें?

शफ़ाअत के मुताल्लिक़ एक और काबिल-ए-ज़िक्र बात येह बाक़ी है कि शफ़ाअत कनुन्दा बेगुनाह होना चाहिए क्योंकि कोई गुनेहगार किसी दूसरे गुनेहगार की शफ़ाअत नहीं कर सकता हम ये साबित करेंगे कि अज़रुए बाइबल व क़ुरआन सय्यदना ईसा मसीह कामिल तौर से बेगुनाह था लिहाज़ा वो शफ़ाअत कर सकता है। चुनांचे इंजील शरीफ़ में मर्क़ूम है:—

अगर कोई गुनाह करे तो बाप के पास हमारा वकील मौजूद है “यानी ईसा मसीह रास्तबाज़” (1 युहन्ना 2:1)

इस आयत में वो दो बड़ी बातें जिन पर सच्ची शफ़ाअत का दार-ओ-मदार होना चाहिए निहायत साफ़-तौर से दिखाई गई हैं यानी (1) मसीह हमारा ज़िंदा वकील है और (2) वो बिल्कुल बेगुनाह है बख़िलाफ़ उस के अज़रूए क़ुरआन व अहादीस हज़रत मुहम्मद अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हुए नज़र आते हैं। अब हम साफ़ देखते हैं कि ईसा का "दुनिया व आख़िरत में साहब-ए-इज़्ज़त होना कैसा अज़हर-मिनश्शम्स है क्या ये बात बिल्कुल साफ़ नहीं कि ईसा इस लिहाज़ से भी तमाम दीगर अम्बिया से बुज़ुर्ग व बरतर नज़र आता है ? क्योंकि वो ज़िंदा और बेगुनाह शफ़ाअत कनुंदा है और जो इस पर भरोसा करते हैं अब उन के लिए आस्मान पर बैठा शफ़ाअत करता है।