तीसरा बाब
ईसा मसीह मौऊद
फिर तीसरी बात हम ये देखते हैं कि ईसा इब्ने मर्यम क़ुरआन में अल-मसीह भी कहलाता है । चुनांचे सूरह इमरान की 46 वीं आयत में मर्क़ूम है :—
اسْمُهُ الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ
यानी उस का नाम अल-मसीह ईसा इब्ने मर्यम है I
मुसलमान इस जुमला को अक्सर बार-बार पढ़ते हैं लिहाज़ा हम उन से भरपूर पूछते हैं कि इस का क्या मतलब है ? इस का क्या बाइस है कि तमाम क़ुरआन में सिर्फ ईसा के हक़ में ऐसे वज़नी अल्फ़ाज़ इस्तिमाल किए गए हैं कि सिर्फ वही अकेला "अल-मसीह" कहलाता है? मसीह की मतलब है "मसह किया गया" और हम देख चुके हैं कि "ईसा" का तर्जुमा "बचाने वाला" है पस "ईसा अल-मसीह" का तर्जुमा हुआ मसह किया गया "बचाने वाला या ममसुह" नजातदिहंदा" ख़ुद हज़रत मुहम्मद के हक़ में भी क़ुरआन में कोई ऐसा बड़ा लक़ब पाया नहीं जाता। हज़रत मुहम्मद अपनी निस्बत ख़ुद कहते हैं कि "मैं महिज़ एक वाइज़ हूँ" (सूरह अन्कबूत की 50 वीं आयत) अगर इस रिसाले का पढ़ने वाला कुछ तकलीफ़ गवारा करके तौरेत और ज़बूर को ग़ौर से पढ़े तो उसे इन किताबों में दुनिया के नजात-दिहंदा मसीह के हक़ में बहुत सी पेशीनगोईयां मिलेंगी। इन पेशीन- गोइयों में से बहुत सी ज़ाहिर करती हैं कि मसीह तमाम दीगर अम्बिया से बुज़ुर्ग व बरतर होगा या दूसरे अल्फ़ाज़ में यूं कहें कि इस की ज़ात ईलाही होगी। मसलन एक 110 ज़बूर की पहली आयत में दाऊद नबी मसीह के बारे में पीशीनगोई करते वक़्त कहता है कि :—
"ख़ुदावंद ने मेरे ख़ुदावंद से कहा कि मेरी दाहिनी तरफ़ बैठ जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पांव की चौकी ना बना दूँ"
यहां हम देखते हैं कि दाऊद नबी ज़बूर में मसीह को अपना ख़ुदावंद कहता है और इस से साफ़ ज़ाहिर करता है कि मसीह इन्सान से बढ़कर और ईलाही था। ये बात काबिल-ए-ग़ौर है कि सय्यदना ईसा ने ख़ुद ज़बूर की मज़कूरा-बाला आयात को मसीह के हक़ में इस्तिमाल किया और इस से अपनी उलूहियत का सबूत दिया। चुनांचे इंजील मत्ती के 22 वें बाब की 41 से 45 आयत तक में मर्क़ूम है :—
और जब फ़रीसी जमा हुए तो येसु (ईसा) ने उनसे ये पूछा कि तुम मसीह के हक़ में क्या समझते हो? वो किस का बेटा है ? उन्होंने उससे कहा दाऊद का । उसने उनसे कहा पस दाऊद रूह की हिदायत से क्योंकर उसे ख़ुदावंद कहता है कि ख़ुदावंद ने मेरे ख़ुदावंद से कहा मेरी दाहिनी तरफ़ बैठ जब तक मैं तुम्हारे दुश्मनों को तुम्हारे पांव के नीचे ना कर दूं? पस जब दाऊद उस को खुदावंद कहता है तो वह उसका बेटा क्योंकर ठहरा ?
फिर यसायाह नबी की किताब के 7 वें बाब की 14 वीं आयत में मसीह के हक़ में यूं मर्क़ूम है कि :—
ख़ुदावंद तुम को एक निशान देगा देखो एक कुँवारी हामिला होगी और बेटा जनेगी। और उस का नाम इम्मानुएल (ख़ुदावंद हमारे साथ) रखेंगे"
ज़बूर और दीगर कुतुब अम्बिया के बहुत से मुक़ामात से निहायत सफ़ाई और सराहत के साथ मालूम होता है कि मसीह नबी, काहिन (इमाम), और बादशाह होगा और एक अजीब बईद-उल-फ़हम तौर से लोगों के गुनाहों के लिए अपनी जान देगा।
चुनांचे यसायाह नबी की किताब के 53 वें बाब में मुंदरज है :—
वो हमारे गुनाहों के लिए घायल किया गया और हमारी बदकारियों के बाइस कुचला गया। हमारी सलामती के लिए उस पर सियासत हुई और उस के मार खाने से हमने शिफ़ा पाई। हम सब भेड़ों की मानिंद भटक गए और हम में से हर एक अपनी अपनी राह को फिरा ख़ुदावंद ने हम सभों की बदकारी इस पर लादी।
अब मुक़ाम-ए-ग़ौर है कि बावजूद येकी यहूदीयों ने ईसा को मसीह मौऊद ना जाना। मसीह के हक़ में ये पेशीनगोईयां उनकी कुतुब मुक़द्दसा में पाई जाती हैं । लिहाज़ा हमारे पास इस बात का निहायत पुख़्ता सबूत है कि ये मुक़ामात जो उस की उलूहियत साबित करते हैं। उन किताबों में मसीहीयों ने दाख़िल नहीं कर दिए हैं और यह बात बिल्कुल ना-मुमकिन है कि यहूदीयों ने इन मुक़ामात को दाख़िल किया पस लाज़िम है जैसे वो फ़िल-हक़ीक़त हैं। ख़ुदा का कलाम तस्लीम कर लिए जाएं जो उस हय्युल-क़य्यूम ने अपने बर्गुज़ीदा बंदगान अम्बिया की मार्फ़त ज़ाहिर फ़रमाया। हक़ तो ये है कि यहूदीयों ने ख़ुद अपनी किताबों में मुंदरजा बाला मुक़ामात और ऐसे ही और बयानात को देखकर मसीह की बुजु़र्गी व अज़मत के बड़े बड़े ख़्यालात क़ायम किए और उसे तमाम दीगर अम्बिया पर तर्जीह दी।
चुनांचे यहूदी अहादीस, व रिवायात की किताबों में मसीह को "आस्मान से भेजा हुआ बादशाह" मूसा से बुज़ुर्गतर और फ़रिश्तगान से "बलंद पाया" लिखा है। किताब अख़नुअ में मसीह "ख़ुदा का बेटा" बयान किया गया है । हज़रत सुलेमान के मज़ामीर में उसे "गुनाह से आज़ाद" , "ख़ुदावंद" और रास्त बादशाह वग़ैरा बड़े बड़े अल्क़ाब से लक़ब किया है । यहूदीयों की ऐसी ग़ैर-मोअतबर किताबें मसीह के वजूद को इब्तदाए आलम से क़दीम तर मानती हैं और उसे अंजाम-कार आकर दुनिया का इन्साफ़ करने वाला क़रार देती हैं।
पस इन बातों से साफ़ ज़ाहिर होता है कि यहूदी लोग अपनी कुतुब मुक़द्दसा को बख़ूबी समझते थे और आने वाले मसीह की बेनज़ीर बुजु़र्गी व अज़मत से नावाक़िफ़ नहीं थे। क़ुरआन बार-बार ईसा को मसीह बयान करता है और पूरे तौर से उसे तमाम दीगर अम्बिया से बुज़ुर्ग व बरतर तस्लीम करता है उसे ये अल्क़ाब देता है मगर यह नहीं बताता कि ईसा की ऐसी इज़्ज़त व अज़मत क्यों है लेकिन बख़िलाफ़ इस के बाइबल में इस का पूरा बयान मिलता है कि ये कौन है जिसको ख़ुदा ने इस क़दर मुअज़्ज़िज़ व मुमताज़ फ़रमाया।
मुसलमान मुफ़स्सिरीन क़ुरआन भी तस्लीम करते हैं कि ऐसा बड़ा लक़ब किसी और को नहीं दिया गया। लेकिन वो तरह तरह से कोशिश करते हैं कि इस लक़ब के साफ़ और लाज़िम नतीजे से बचें। मसलन इमाम राज़ी साहिब फ़रमाते हैं कि :—
"ईसा को मसीह का लक़ब इस लिए दिया गया कि वो गुनाह के दाग़ से पाक व साफ़ रखा गया"
(जबकि दीगर अम्बिया में से किसी को यह लक़ब नहीं दिया गया तो क्या इस से ये साबित नहीं होता कि वो सब गुनेहगार थे)
फिर एक और मुफ़स्सिर अबू उमरू इब्नुलअला कहता है कि लफ़्ज़ "मसीह" से "बादशाह" मुराद है बैज़ावी कहता है :—
"वो इस लिए मसीह कहलाता है कि उस में बिलावास्ता ख़ुदाए ताअला की रूह है जो ज़ात व माहीयत में ख़ुदा के साथ एक है"
पस हम साफ़ देखते हैं कि काबिल-ए-एतिमाद व मुसलमान मुफ़स्सिरीन ईसा की बुजु़र्गी और फ़ज़ीलत के क़ाइल हैं और सिर्फ उसी एक नबी को "मसीह" के आली लक़ब का मुस्तहिक़ मानते हैं जिस आला रुत्बा पर क़ुरआन सय्यदना ईसा को बिठाता है और इस पर इंजील शरीफ़ से भी शहादत मिलती है चुनांचे मर्क़ूम है :—
इस लिए ख़ुदा ने भी उसे मसीह को सरफ़राज़ किया और उसे एक ऐसा नाम दिया जो सब नामों से बुलंद है"।