दूसरा बाब

मसीह की पैदाइश

अब हम दूसरी बात ये देखते हैं कि क़ुरआन में मसीह का सबसे आम नाम "ईसा इब्ने मर्यम" है। देखो सूरह इमरान आयत 46:5 अगर क़ुरआन का बग़ौर मुताअला किया जाये तो ना सिर्फ यही साबित होता है कि क़ौम बनी-इस्राइल जिसमें मसीह पैदा हुआ रुए ज़मीन की तमाम दीगर अक़्वाम पर फ़ज़ीलत रखती है बल्कि ये भी कि ख़ुदा ए ताअला ने ईसा की माँ मर्यम मुतह्हरा को भी तमाम खातून-ए-जहान से बर्गुज़ीदा किया और उन पर फ़ज़ीलत बख़्शी चुनांचे सूरह इमरान की 42 आयत में मर्क़ूम है :—

يَا مَرْيَمُ إِنَّ اللّهَ اصْطَفَاكِ وَطَهَّرَكِ وَاصْطَفَاكِ عَلَى نِسَاء الْعَالَمِينَ

यानी ए मर्यम बेशक अल्लाह ने तुझे बर्गुज़ीदा किया और पाक किया और तुझे तमाम जहान की मस्तूरात में से चुन लिया I

क्या इस से ये बात बख़ूबी ज़ाहिर नहीं होती कि इस का बेटा ईसा सबसे बड़ा नबी होने वाला था? कैसी ख़ूबसूरती से इस की इस वाअदा से ततबीक़ होती है जो ख़ुदा ने इस्हाक़ से किया कि "तेरी नसल से दुनिया की सारी क़ौमें बरकत पाएँगी" जैसा कि हमारे मुसलमान अहबाब अक्सर कहा करते हैं कि अगर आख़िरी और सब से बड़े नबी हज़रत मुहम्मद है तो क्या “ख़ुदा ने तुझको तमाम जहान की मस्तूरात में से चुन लिया"। का जुमला बजाय मर्यम के हज़रत मुहम्मद की माँ आमना के हक़ में नहीं होना चाहिए?

अब हम पूछते हैं कि क़ुरआन में लफ़्ज़ ईसा क्या माअनी रखता है ? इस सवाल का जवाब इंजील शरीफ़ में तो मिल सकता है । क्योंकि इंजील मत्ती के पहले बाब की इक्कीसवीं आयत में ईसा का तर्जुमा "बचाने वाला" है। चुनांचे मर्क़ूम है:—

“तू इस का नाम येसु (ईसा) रखेगा क्योंकि वो अपने लोगों को उन के गुनाहों से बचाएगा”

जब मुसलमान भाईयों के सामने मसीह के दाअवे को ज़ोर से पेश किया जाता है तो अक्सर यूँ कहते हैं कि "हम भी मसीह पर ईमान रखते हैं" लेकिन क्या वो कभी उस के इस नाम के माअनी पर ग़ौर करते हैं ? जब मुसलमान क़ुरआन में मसीह की मोजज़ाना पैदाइश का बयान पढ़ते हैं कि वो क्योंकि ख़ुदा की क़ुदरत कामिला से कुँवारी मर्यम से पैदा हुआ तो क्या उन्हें कभी ख़्याल नहीं आता कि इस मोजज़ाना पैदाइश का क्या मतलब है? सूरह मर्यम की 19 आयत से 22 आयत तक यूं मर्क़ूम है :—

قَالَ إِنَّمَا أَنَا رَسُولُ رَبِّكِ لِأَهَبَ لَكِ غُلَامًا زَكِيًّا قَالَتْ أَنَّى يَكُونُ لِي غُلَامٌ وَلَمْ يَمْسَسْنِي بَشَرٌ وَلَمْ أَكُ بَغِيًّا قَالَ كَذَلِكِ قَالَ رَبُّكِ هُوَ عَلَيَّ هَيِّنٌ وَلِنَجْعَلَهُ آيَةً لِلنَّاسِ وَرَحْمَةً مِّنَّا وَكَانَ أَمْرًا مَّقْضِيًّافَحَمَلَتْهُ

यानी जिब्राईल ने कहा मैं यक़ीनन तेरे ख़ुदा की तरफ़ से तुझे एक पाकीज़ा बेटा बख़्शने के लिए भेजा गया हूँ। मर्यम ने कहा मेरे हाँ बेटा क्योंकर हो सकता है जबकि किसी मर्द ने मुझे नहीं जाना और मैं बदकार नहीं हूँ? फ़रिश्ते ने कहा तेरा ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है कि ये बात मुझ पर आसान है हम उसको लोगों के लिए निशान और अपनी तरफ़ से रहमत बनायेंगे ये बात मुक़द्दर हो चुकी है । (पस वो हामिला हो गई)।

तमाम जहान में कोई और नबी ऐसे मोजज़ाना तौर से पैदा नहीं हुआ। बेशक हज़रत-ए-आदम को ख़ुदा ने बे-माँ बाप पैदा किया लेकिन इबतिदा में ऐसा करना ज़रूरी था। ईसा की पैदाइश हम देखते हैं कि ख़ुदा ने अपने मुक़र्रर करदा कानून-ए-क़ुदरत के बर-ख़िलाफ़ और इस से बढ़कर अमल किया ताकि मसीह कुँवारी से पैदा हो।

ख़ुदा का ये फे़अल हरगिज़ बेमानी नहीं हो सकता। बल्कि हम जानते हैं कि इस से मसीह के इस ख़ास रिश्ता की तरफ़ इशारा होता है जो उस के सिवा कोई दूसरा नबी ख़ुदा से नहीं रखता। इंजील शरीफ़ में जो मसीह की पैदाइश का बयान मुंदरज है इस के मुताअला से इस रिश्ता की हक़ीक़त साफ़ मालूम हो जाती है। चुनांचे इंजील लूका के पहले बाब की 31, 32 आयत में मर्क़ूम है कि :—

जिब्राईल फ़रिश्ता ने आकर मर्यम से कहा देख तू हामिला होगी और बेटा जनेगी उस का नाम येसु (ईसा) रखना वो बुज़ुर्ग होगा और ख़ुदा ताअला का बेटा कहलाएगा

इस मुक़ाम से मालूम होता है कि ईसा को इस की मोजज़ाना पैदाइश के सबब से "इब्नुल्लाह" का बड़ा लक़ब मिला है। ये एक माक़ूल इस्तिलाह है जिससे एक ख़ास रिश्ता ज़ाहिर होता है और कलिमतुल्लाह भी ऐसी ही इस्तिलाह है जो क़ुरआन में ईसा के हक़ में इस्तिमाल की गई है। इन दोनों इस्तलाहों में से एक भी महिज़ लफ़्ज़ी व लूग़वी माअनों में नहीं ली जा सकती जिस्मानी इब्नीयत के ख़्याल के लिए हरगिज़ गुंजाइश नहीं है लेकिन हज़रत मुहम्मद ख़ुद और बहुत से उनकी पैरवी करने वाले इस सख़्त ग़लती के गढ़े में गिरते हैं अगर ग़ौर से क़ुरआन का मुताअला किया जाये तो मालूम हो जाएगी कि हज़रत मुहम्मद ने मसीह की ईलाही इब्नीयत की मसीही तालीम को जिस्मानी रिश्ते पर महमूल किया चुनांचे सूरह अनआम की 101 आयत में लिखा है :—

بَدِيعُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ أَنَّى يَكُونُ لَهُ وَلَدٌ وَلَمْ تَكُن لَّهُ صَاحِبَةٌ

यानी वो ज़मीन व आस्मान का ख़ालिक़ है इस की औलाद क्योंकर हो सकती है जबकि उस की कोई बीवी ही नहीं ?

और फिर सूरह मोअमीन की बानवीं आयत में मुंदरज है :—

مااتخذ اللہ من ولد

ख़ुदा के लिए कोई बेटा बेटी नहीं

एक बंगाली मुसलमान ने इसी किस्म की ग़लत-फ़हमी की बुनियाद पर एक किताब लिखी और इस में बड़ी कोशिश से साबित करना चाहा है कि मसीह ख़ुदा का (जिस्मानी ) बेटा नहीं हो सकता। लेकिन कोई मसीही भी इस को जिस्मानी बेटा नहीं कहता क्योंकि जिस्मानी इब्नियत की तालीम मसीहीयों के नज़दीक भी ऐसी ही घिनौनी और नफ़रत-अंगेज़ व कुफ्र-आमेज़ है । जैसे कि किसी अहले इस्लाम के लिए हो सकती है ।

मसीह की इब्नीयत पर हज़रत मुहम्मद का एतराज़ यक़ीनन इस बिना पर था कि इब्नीयत का इक़रार ख़ुदा की तौहीद की तालीम के बर-ख़िलाफ़ है लेकिन अगर इस मसले को ठीक तौर से समझ लिया जाये तो इस से तौहीद पर मुतलक़ हर्फ़ नहीं आता। अहले इस्लाम की तरह मसीही भी ख़ुदा को वह्दहू-ला-शरीक-ला मानते हैं ख़ुदा के बेटे बेटियां मानना जाहिलों और बे-दीनों का एतिक़ाद है क़ुरआन में इसका इस मौक़ा पर ज़िक्र है जहां लिखा है कि बाअज़ अहले-अरब ख़ुदा से बेटियां मंसूब करते थे।

ये एक अजीब हक़ीक़त है कि मसीह की इब्नीयत पर लिखते वक़्त मसीही मुसन्निफ़ीन ने कहीं भी लफ़्ज़ "वलद" का इस्तिमाल नहीं किया क्योंकि "वलद" जिस्मानी रिश्ते की तरफ़ इशारा करता है। बल्कि उन्हों ने हर जगह लफ़्ज़ "इब्न" लिखा है जो अरबी ज़बान में ग़ैर-जिस्मानी और रुहानी माअनों में भी अक्सर इस्तिमाल किया जाता है । हज़रत मुहम्मद ने मुंदरजा बाला आयात में इस बात पर-ज़ोर दिया है कि ख़ुदा का कोई बेटा यानी "वलद" नहीं हो सकता है लेकिन मसीही एतिक़ाद को पेश करते वक़्त ख़ास मुस्तसना दियानतदारी से लफ़्ज़ "इब्न" इस्तिमाल किया है। चुनांचे सूरह तौबा की 30 आयत में मर्क़ूम है :—

وَقَالَتْ النَّصَارَى الْمَسِيحُ ابْنُ

कहते हैं इस मुक़ाम पर मसीहीयों को ये सवाल करने का हक़ हासिल है कि अगर उसे “रूहुल्लाह” कहना जायज़ है तो "इब्नुल्लाह" कहना क्यों गुनाह है?

क़ुरआन ना सिर्फ मसीह की पैदाइश को मोजज़ाना बयान करता है बल्कि मसीह को तमाम मख़्लूक़ात के लिए एक निशान क़रार देता है। चुनांचे सूरह अम्बिया की 91 वीं आयत में मुंदरज है :—

وَجَعَلْنَاهَا وَابْنَهَا آيَةً لِّلْعَالَمِينَ

हमने उस को (मर्यम को) और इस के बेटे को तमाम मख़्लूक़ात के लिए निशान बनाया I

अगर हमारे मुसलमान भाई मसीह के बारे में जिस्मानी इब्नीयत का ख़्याल अपने दिलों से दूर कर दें तो इस्तिलाह "इब्नुल्लाह" के मुताल्लिक़ उनकी मुश्किल बहुत कुछ आसान हो जाएगी।जो मुसलमान क़ुरआन और अहादीस को अच्छी तरह से पढ़ते और बख़ूबी समझते हैं वो इतना तो ज़रूर मानेंगे कि इन किताबों में मसीह और ख़ुदा बाप के एक ऐसे बाहमी ख़ास रिश्ते की तरफ़ इशारात पाए जाते हैं जो किसी और नबी और ख़ुदा के दर्मियान पाया नहीं जाता मसलन मिश्कात अल-मसाबीह में लिखा है कि :—

हर एक इन्सान को उस की पैदाइश के वक़्त शैतान छू लेता है । लेकिन मर्यम और उस का बेटा इस से महफ़ूज़ हैं I

क्या इस हदीस से मसीह का मर्तबा दीगर तमाम अम्बिया से आला नहीं ठहरता ? और अगर ये हदीस सच्ची है तो क्या इस से इस अम्र की बख़ूबी तशरीह नहीं होती कि मर्यम और इस का बेटा क्यों तमाम मख़्लूक़ात के  निशान मुक़र्रर किए गए ?

बाअज़ मुसलमान मसीह को "इब्नुल्लाह" मानते हैं लेकिन साथ ही ये भी कहते हैं कि तमाम मुक़द्दस लोग "इब्नुल्लाह" या ख़ुदा के बेटे हैं। इस में बेशक कुछ सच्चाई पाई जाती है लेकिन ये सच्चाई पूरी नहीं है। क्योंकि बाइबल निहायत सफ़ाई और सराहत से बताती है कि मसीह की इब्नीयत दीगर मोमिनीन की सी नहीं है चुनांचे इंजील शरीफ़ में ईसा ख़ुदा का इकलौता बेटा कहलाता है। इस से साफ़ ज़ाहिर होता है कि ख़ुदा बाप के साथ उस का ऐसा ख़ास रिश्ता है जो किसी और का नहीं है। अगर कोई तास्सुब से ख़ाली हो कर इंजील शरीफ़ को पढ़े तो ज़रूर इस हक़ीक़त का क़ाइल हो जाएगा।

चुनांचे ईसा मसीह ने अपने हवारियों से पूछा तुम मुझे क्या कहते हो ? शमाउन पतरस ने जवाब में कहा "तू ज़िंदा ख़ुदा का बेटा मसीह है" ईसा ने जवाब में इस से कहा "मुबारक है तू शमाउन बर्युंस क्योंकि ये बात जिस्म और ख़ून से नहीं बल्कि मेरे बाप ने जो आस्मान पर है तुझ पर ज़ाहिर की है" (इंजील मत्ती 16: 15 ता 17)।

अगर मसीह भी ऐसा ही "इब्नुल्लाह" होता और मोमिनीन "इब्नुल्लाह" हैं तो फिर हम पूछते हैं कि मसीह के इस जवाब का क्या मतलब हो सकता है? इलावा-बरें हम जानते हैं कि यहूदी लोग ईसा को इसी लिए क़त्ल करना चाहते थे कि "वो ख़ुदा को ख़ास अपना बाप कह कर अपने आपको ख़ुदा के बराबर बनाता था" (युहन्ना 5:18)।

पस अज़हर-मिनश्शम्स है कि "इकलौते बेटे" की इस्तिलाह ईसा की इब्नीयत को दीगर मोमिनीन की इब्नीयत से मुख़्तलिफ़ और बालातर क़रार देती है कैसी अजीब बात है कि बावजूद इंजील शरीफ़ की साफ़ शहादत के बहुत से मुसलमान मुसन्निफ़ीन ये साबित करने की कोशिश करते हैं कि मसीह की इब्नीयत दीगर मोमिनीन की इब्नीयत की सी है लेकिन मसीह की मोजज़ाना पैदाइश का बयान जो क़ुरआन में मुंदरज है क्या इस से ये ज़ाहिर नहीं होता कि मसीह का ख़ुदा बाप से ऐसा रिश्ता है जो किसी और का नहीं हो सकता ! इस हक़ीक़त पर क़ुरआन में तो सिर्फ इशारात पाए जाते हैं लेकिन इंजील शरीफ़ में इस की तालीम बिल्कुल साफ़ है जहां मसीह ख़ुदा का "इकलौता बेटा" कहलाता है। क़ुरआन किसी और की ऐसी मोजज़ाना पैदाइश का ज़िक्र नहीं करता। लिहाज़ा बलिहाज़-ए-पैदाइश क़ुरआन भी मसीह को तमाम दीगर अम्बिया-अल्लाह पर फ़ज़ीलत और बरतरी देने में इंजील शरीफ़ से मुत्तफ़िक़ है I