बाब-ए-सिवुम

मसीही अक़ाइद व रसूम का क़ुरआन में इंदिराज

हम बयान कर चुके हैं कि हज़रत मुहम्मद के ख़्यालात का माख़ज़ ज़्यादा-तर या तो इस्लाम से पेशतर की अरबी बुत-परस्ती थी या तालमुदी यहूदियत I मसीहीयत के आप इस क़दर कर्ज़दार नहीं थे लेकिन फिर भी क़ुरआन शरीफ़ से ज़ाहिर होता है कि मसीहीयत ने भी आप पर बहुत कुछ तासीर की थी। चुनांचे सय्यदना ईसा मसीह का बार-बार निहायत ताज़ीम के साथ ज़िक्र हुआ है और लिखा है कि वो ख़ुदा की तरफ़ से नबी हो कर आए और ख़ुदा ने उन को इंजील दी। क़ुरआन शरीफ़ में मसीहीयों की तरफ़ इस क़दर इशारात हैं और उन का ऐसा बार-बार बयान हुआ है जिससे बे-शुबह ये मालूम होता है कि वो लोग इन अय्याम में अरब में बकसरत आबाद थे और आँहज़रत उन से बहुत दोस्ती रखते थे। चुनांचे आपने जो हिदायत अपने पैरुउन को दी इस से ये हक़ीक़त साफ़ खुल जाती है। आपने फ़रमाया :—

وَلَتَجِدَنَّ اَقْرَبَهُمْ مَّوَدَّةً لِّلَّذِيْنَ اٰمَنُوا الَّذِيْنَ قَالُوْٓا اِنَّا نَصٰرٰى

सूरह माइदा आयत 82 और तू पाएगा सबसे नज़दीक महब्बत में मुसलमानों की वो लोग जो कहते हैं कि हम नसारा हैं।

हज़रत मुहम्मद ने अल-मसीह के ईमानदारों की इस क़दर ताज़ीम व तकरीम और शुक्रगुज़ारी बेसबब नहीं की । जब अहले मक्का की सख़्ती मुसलमानों की बर्दाश्त के दर्जा से बहुत बढ़ गई तो एबीसिनिया की मसीही सलतनत ही थी जहां जाकर आँहज़रत के पैरु पनाह गजें हुए।

आँहज़रत को मुल्क-ए-अरब में भी और ख़ुसूसन सीरिया के सफरों में मसीही दीन की तालीम पाने का बहुत मौक़ा मिला। हम बयान कर चुके हैं कि वर्क़ा बीबी ख़दीजा का उम्म-ज़ाद भाई पहले मसीही था और मसीही दीन की तालीमात का आलिम था। फिर बाद में बहुत से मसीही मुहम्मदी हो गए और आप की लूट में आई हुई बीवी मर्यम भी आपके पास थी जिससे आप बाआसानी मसीही नविश्तों की बाबत कुछ सीख सकते थे। ख़ुसूसन ग़ैर-मोअतबर मुरव्वजा हकाइतीं तो ब-सहुलते तमाम आपके गोश गुज़ार हो सकती थीं। पस आँहज़रत के लिए इन मशरिक़ी मसीहीयों के मुरव्वजा अफ़्सानों को लेकर अपनी फ़सीह अरबी में सुनाना और इस पर वही आस्मानी का नाम चस्पाँ करना कुछ मुश्किल ना था। आँहज़रत के हम-असर ख़ूब जानते थे कि आपने ऐसा किया। चुनांचे उन्हों ने बसा-औक़ात बाअज़ मशहूर-ओ-मारूफ़ लोगों से मदद लेने का इल्ज़ाम भी आप पर लगाया। जैसा कि सूरह अल नहल की 103 और 105 आयत में यूं मुंदर्ज है :—

 يَقُولُونَ إِنَّمَا يُعَلِّمُهُ بَشَرٌ لِّسَانُ الَّذِي يُلْحِدُونَ إِلَيْهِ أَعْجَمِيٌّ وَهَذَا لِسَانٌ عَرَبِيٌّ مُّبِينٌ........ قَالُواْ إِنَّمَا أَنتَ مُفْتَرٍ

तर्जुमा: वो कहते हैं यक़ीनन उसको कोई सिखाता है। जिसकी तरफ़ वो इशारा करते हैं इस की ज़बान अरबी नहीं और ये (क़ुरआन) सरीह अरबी ज़बान है।

इस मशहूर आयत पर बैज़ावी की तफ़्सीर काबिल-ए-ग़ौर है। वो लिखता है :—

یعنون جبرالدومی غلام عامر ابن الحضرمی وقیل جبر اویسار کا نا لصنعان السیون بمکتہ ویقران التورات والانجیل وکان الرسول صلے اللہ علیہ وسلمہ یمہ علیھما ویسمع مایعر انہ

कहते हैं कि जिस शख़्स कि तरफ़ इशारा करते थे वो जबरा यूनानी आमिर इब्न हज़रमी का ग़ुलाम था। ये भी कहते हैं कि जबरा और एसारा दो शख़्स मक्का में तलवारें बनाया करते थे और तौरेत व इंजील पढ़ा करते थे और आँहज़रत की ये आदत हो गई थी कि उन के पास जाकर उनका पढ़ना सुनते थे।

फिर इमाम हुसैन यूं तफ़्सीर करता है :—

कहते हैं कि आमिर इब्न अल हज़रमी का एक जबरा नामी ग़ुलाम था (बाअज़ के नज़दीक दूसरे ग़ुलाम का नाम यसारा था) जो तौरेत व इंजील पढ़हा करता था और हज़रत मुहम्मद का कभी पास से गुज़र होता तो खड़ा हो कर सुनने लगता था।

अब ये बात निहाइत ही काबिल-ए-ग़ौर है कि जब आँहज़रत पर इल्ज़ाम लगाया गया तो आप ने साफ़ इन्कार करके अपनी बरीयत का इज़हार नहीं किया बल्कि आपका जवाब ये है कि जिनकी तरफ़ इशारा किया जाता है कि वो मेरी मदद करते हैं उन की तो ज़बान ही अजमी है और क़ुरआन ऐसी फ़सीह अरबी ज़बान में है कि वो ऐसी अरबी हरगिज़ नहीं लिख सकते । हम ये साबित करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं कि वो क़ुरआन की अरबी से अरबी लिख सकते थे बल्कि हमारा कहना ये है कि आँहज़रत ने इन यहूदीयों और मसीहीयों से जिनसे आप को मेल मुलाक़ात का इत्तिफ़ाक़ होता था बाइबल के क़िस्सों और मुरव्वजा ग़ैर-मोअतबर अफ़्सानों को सीखा और अपनी शायराना तबीअ से क़ुरैश की फ़सीह अरबी में इन को बयान किया जैसे कि वो अब क़ुरआन में मौजूद हैं। हम ये तो साफ़ साबित कर चुके हैं कि आँहज़रत को ऐसा करने का काफ़ी मौक़ा था।
इस किताबचा के आख़िरी बाब में हम ये दखाईएंगे कि आँहज़रत के ज़माने में जो यहूदी अरब में आबाद थे उन में बजाय कलाम-उलल्लाह के तवारीख़ी और सच्चे बयानात के ज़्यादा तर तालमुदी ग़ैर-मोअतबर क़िस्से व अफ़्साने मशहूर व मुरुज थे। जो मसीहीयत अरब में पाई जाती थी जब तक कि इस की हक़ीक़त को ना समझ लिया जाये तब तक ये समझना निहायत मुश्किल बल्कि नामुम्किन है कि इस की आँहज़रत पर किया तासीर हुई।

ज़मीन-ए-अरब "कुफ़्र व इलहाद की माँ" कहलाती थी। इस में शक नहीं कि रूमी सल्तनत ने बहुत से मसीही फ़िर्क़ों को उन के कुफ़र-ओ-इलहाद के सबब से मुल्क से ख़ारिज कर दिया और वह आकर अरब में आबाद हो गए चुनांचे अरब में आँहज़रत के ज़माना के मसीही तुहमात और क़ाबिल शर्म खराबियों में गिरफ़्तार थे। सच्चे दीन के इव्ज़ में पीर-परस्ती और मर्यम परस्ती का ज़ोर था और कलाम-ए-ख़ुदा यानी बाइबल के इव्ज़ में वहमी हिकायात व रिवायत की किताबें बकसरत राइज थीं किसी ने सही कहा कि अगर हज़रत मुहम्मद को सच्ची मसीहीयत से साबिक़ा पड़ता तो ग़ालिबन दुनिया में एक झूटा मज़हब कम होता और एक मसीही मुसलेह ज़्यादा हक़ीक़त ये है कि मसीहीयों के बिद्दती और मुल्हिद फ़िर्क़ों ने आँहज़रत को बरआशफ़ीता कर दिया और आप ने मसीहीयत को कुफ्र व शिर्क तसव्वुर कर के रद्द कर दिया। हज़रत मुहम्मद की बदक़िस्मती इस में थी कि आपने इन वहमी और बिद्दती फ़िर्क़ों से सच्ची मसीहीयत का अंदाज़ा लगाया और एक ऐसे दीन की बुनियाद रखी जो पुरानी यहूदियत की तरफ़ वापिस खींचता है।

बाइबल की सच्ची तालीम की जगह इन बर्गशता मसीहीयों में जो हिकायात व रिवायत मुरव्वज थीं अगर उन का क़ुरआनी अफ़्सानों से मुक़ाबला जाये तो बख़ूबी समझ में आ जाएगा कि हज़रत मुहम्मद ने इन में अक्सर को सच जाना और कलाम ख़ुदा या इंजील का जुज़ तसव्वुर करके क़ुरआन में दर्ज कर लिया। चुनांचे जे़ल में हम इस अम्र पर नज़ाइर व दलाइल पेश करेंगे।

सूरह अल-कहफ़ में एक निहायत ही अजीब और बईद उल-फ़हम हिकायात मुंदर्ज है। लिखा है कि सात जवान एक ग़ार में जाकर सो गए और तीन सौ नौ (309) साल के बाद बेदार हुए चुनांचे आठवीं से बारहवीं आयत और फिर पच्चीसवी आयत में यूं मर्क़ूम है :—

क्या तू ख़्याल करता है कि ग़ारा और खोह वाले हमारी क़ुदरतों में से अचम्भा थे जब जा बैठे वोह जवान इस खोह में । फिर बोले ए रब दे हमको अपने पास से महर और हमारे काम का बनाओ। फिर थपक दिए हमने उन के कान उस खोह में कई बरस गिनती के फिर हम ने इन को उठाया कि मालूम करें कि दो फ़िर्क़ों में से किस ने याद रखी है जितनी मुद्दत वो रहे.... और वह रहे अपनी खोह में तीन सौ नौ (309) साल।

यह अफ़साना जो बिल्कुल बे-बुनियाद और महिज़ लगु है आँहज़रत के ज़माना से मुद्दतों पेशतर ही से अरब में मशहूर था और सीरिया के एक बाशिंदे याक़ूब नामी की तसानीफ़ में पाया जाता था। ये याक़ूब सारोग का रहने वाला था और 521-ई में इंतिक़ाल कर गया था। उसने अफ़सोस के साथ नौजवानों का हाल यूं लिखा है :—

कि वो डीसीस रूमी बादशाह के ज़ुल्म से भाग कर एक ग़ार में जा छिपे। इन पर नींद ग़ालिब आई, चुनांचे वो सो गए और एक सौ छयानवे साल के बाद बेदार हुए तो मसीही दीन को हर जगह ग़ालिब व मुसल्लत पाया।

आँहज़रत ने अरब और सीरिया के मसीहीयों से अक्सर ये अफ़साना सुना होगा। आपने उस को सच्च ख़्याल करके जिब्राईल के सिर पर थोप दिया और लौह-ए-महफ़ूज़ की तहरीर व कलाम-उल्लाह के नाम से नामज़द कर दिया।

हज़रत मर्यम के बचपन की क़ुरआनी हिकायत भी मसीही असल की है। अनाजील में तो सय्यदना मसीह की वालिदा का बचपन मज़कूर नहीं लेकिन जिन बिद्दती और मुल्हिद नाम के मसीहीयों में इंजील शरीफ़ की सही तालीमात के इव्ज़ में तुहमात और मस्नूई अफ़्सानों का ज़ोर था और ख़ुदा की इबादत के इव्ज़ में मर्यम परस्ती राइज थी उन में मर्यम ताहिरा की बाबत बहुत सी तूल-तवील हिकायात व रिवायत मशहूर थीं। ये ग़ैर-मोअतबर हिकायात अरब के मसीहीयों में आम थीं और आँहज़रत उनसे यक़ीनन बख़ूबी वाक़िफ़ थे। रसूल अरबी इंजील की सही तालीम से बे-ख़बर थे और उन में ये लियाक़त व क़ाबिलियत ना थी कि इन बिद्दती मसीहीयों की ग़लतीयों की इस्लाह करते। लिहाज़ा कुछ ताज्जुब की बात नहीं कि आपने इन शुनीदा अफ़्सानों को क़ुरआन में दर्ज किया और वही आस्मानी के नाम की मुहर उन पर भी लगा दी और कहा कि ये इल्हाम पहली किताबों की ताईद व तस्दिक़ करता है।

सूरह आल-ए-इमरान से मालूम होता है कि मर्यम ज़ाहिरा अपने बचपन ही में बैतुल-मुक़द्दस में लाई गई और मसीह की पैदाइश के वक़्त तक वहीं रही। क़ुरआन बताता है कि उस की वहां की रिहायश के अय्याम के लिए क़ुरआ डाल कर उस का मुरब्बी मुंतख़ब किया गया चुनांचे लिखा है :—

وَمَا كُنْتَ لَدَيْهِمْ اِذْ يُلْقُوْنَ اَقْلَامَھُمْ اَيُّھُمْ يَكْفُلُ مَرْيَمَ  ۠

और तू उन के पास ना था जब वो अपने क़लम डाल कर दर्याफ़्त करते थे कि मर्यम का मुतकफ़्फ़िल कौन हो I

जिन्होंने इंजील शरीफ़ को पढ़ा है वो सब ख़ूब जानते हैं कि ये हिकायत इल्हामी कलाम में नहीं पाई जाती । लेकिन आँहज़रत के ज़माने के बिद्दती अरबी मसीहीयों की ग़ैर-मोअतबर किताबों में मुफ़स्सिल मुंदर्ज है। ये किताबें परोटीवागलीयुम याक़ूब और क़पती तवारीख़ से कहलाती हैं। पस साफ़ मालूम हो गया कि इस अफ़साना का माख़ज़ किया और कहाँ है। इन बिदअतियों की रिवायत की किताबों में मर्यम के मुरब्बी या शौहर बनने के लिए क़ुरआ डालने का बयान तवालत व तफ़सील के साथ पाया जाता है एक किताब में लिखा है कि जब मर्यम बारह बरस की हुई तो उस की आइन्दा ज़िंदगी की बाबत फ़ैसला करने के लिए काहिनों ने एक जलसा किया। इस वक़्त ख़ुदा का एक फ़रिश्ता ज़करीया के पास आ खड़ा हुआ और कहने लगा :—

"ए ज़करीया जा और क़ौम के तमाम बे ज़नों को जमा कर। वोह सब एक एक असा लाए और जिसको ख़ुदावंद ख़ुदा कोई निशान दिखाएगा वही मर्यम का शौहर बनेगा।

मर्यम ताहिरा के मुताल्लिक़ एक और हिकायत जो आँहज़रत ने ग़ैर-मोअतबर अनाजील या अपने जान पहचान मसीहीयों से सीखी वो खजूर के दरख़्त की हिकायत है जोकि सूरह मर्यम की 22 वीं आयत से 25 वीं आयत यूं मर्क़ूम है:—

فَاَجَاۗءَهَا الْمَخَاضُ اِلٰى جِذْعِ النَّخْلَةِ  ۚ قَالَتْ يٰلَيْتَنِيْ مِتُّ قَبْلَ ھٰذَا وَكُنْتُ نَسْيًا مَّنْسِيًّا  23 فَنَادٰىهَا مِنْ تَحْتِهَآ اَلَّا تَحْزَنِيْ قَدْ جَعَلَ رَبُّكِ تَحْتَكِ سَرِيًّا 24 وَهُزِّيْٓ اِلَيْكِ بِجِذْعِ النَّخْلَةِ تُسٰقِطْ عَلَيْكِ رُطَبًا جَنِيًّا 25

फिर पेट में लिया उसको और किनारे हुए उसको लेकर एक दूर के मकान में। पस ले आया उस को दरदज़ा खजूर के दरख़्त के नीचे। बोली काश के में इससे पेशतर मर जाती और फ़रामोश हो गई होती। आवाज़ दी उसको नीचे से कि ग़म ना खा। तेरे रब ने तेरे नीचे एक चशमा बना दिया है। और हिलाले अपनी तरफ़ खजूर की जड़ । इस से तुझ पर पक्की खजूरें गिरेंगी। अब खा और पी और आँख ठंडी रख।

लेकिन अनाजील से साफ़ मालूम होता है कि मसीह की विलादत बैतूल-लहम की एक सराय के अन्दर या क़रीब हुई थी। हज़रत मुहम्मद की इस हिकायत मुंदरजा क़ुरआन का माख़ज़ भी दर्याफ़्त हो सकता है क्योंकि बाअज़ बिद्दती मसीहीयों की कुतुब की रिवायत में मसीह की पैदाइश के बाब में बहुत सी ग़ैर-मोअतबर हिकायात मर्क़ूम व मश्हूर हैं। ये हिकायात अरब के मसीहीयों में बहुत राइज थीं और आँहज़रत के कानों तक ज़रूर पहुंच होंगी। आपने इन को बे-गुमान सही इन्जीली तहरीर तसव्वुर किया। एक ग़ैर-मोअतबर किताब मिसमाई बह तवारीख़ बूद-ओ-बाशे मर्यम व तफुलियत-ए-मसीह में खजूर के दरख़्त की हिकायत मुफ़स्सिल मिलती है। इस ग़ैर-मोअतबर हिकायत और क़ुरआनी बयान में बाअज़ ख़फ़ीफ़ इख़्तिलाफ़ात पाए जाते हैं लेकिन बख़ूबी मुक़ाबला करने और सोचने से ये राज़ मुनकशिफ़ हो जाता है कि क़ुरआनी बयान इसी मस्नूई हिकायत की नक़ल है जो आँहज़रत ने वही आस्मानी के नाम से पेश किया। इस मस्नूई हिकायत और क़ुरआनी क़िस्सा की मुशाबहत की तशरीह की ग़रज़ से हम मस्नूई हिकायत से कुछ जे़ल में नक़ल करते हैं। यीसू तुफ़ैल शिर-ख्वार के साथ मर्यम और यूसुफ़ के भाग जाने के बयान के बाद यूं लिखा है :—

और यूसुफ़ जल्दी करके मर्यम को खजूर के दरख़्त पास लाया और सवारी के जानवर से नीचे उतारा । जब मर्यम ने ज़मीन पर बैठ कर दरख़्त की तरफ़ ऊपर नज़र की तो उसे फल से लदा हुआ पाया और यूसुफ़ से कहा मैं चाहती हूँ कि अगर किसी तरह से मुम्किन हो तो इस खजूर का फल तोड़ें....इस पर शीरख़वार यीसू ने जो निहायत ख़ुश व खुर्रम अपनी माँ मर्यम की गोद में था खजूर के दरख़्त से कहा ए दरख़्त अपनी शाख़ों को झुका दे और अपने फल से मेरी माँ को आसूदा कर फ़ील-फ़ौर दरख़्त की चोटी झुक कर मर्यम के पांव से आ लगी और उन्होंने इस का फल तोड़ा और आसूदा हुए,.....और वह खजूर का दरख़्त फिर सीधा खड़ा हो गया और इस की जड़ों से निहायती ठंडे और अज़हद शीरीं पानी का चशमा जारी हो गया।

क़ुरआन को पढ़ने वाले सब जानते हैं कि इस में सय्यदना मसीह का बार-बार ज़िक्र आता है और इस की विलादत की निसबत बहुत सी हिकायात मुंदर्ज हैं जिनमें से बाअज़ का वजूद इंजील शरीफ़ में बिल्कुल नहीं मिलता। ये हिकायात भी खजूर के दरख़्त की हिकायत की तरह ग़ैर-मोअतबर रिवायत वग़ैरा की किताबों में मिलती हैं और उन से निहायत सफ़ाई व सराहत से मालूम होता है कि हज़रत मुहम्मद ने ये अफ़्साने कहाँ से लिए जिनको हसब-ए-ख़्वाहिश नई सूरत में दाख़िल क़ुरआन कर लिया।

इन अफ़्सानों में से एक में मसीह के बचपन के मोजज़ात का ज़िक्र है। चुनांचे सूरह अलमाइदा की एक सौं नों और दसवीं आयात में यूं  मुंदर्ज हैं :—

إِذْ قَالَ اللَّهُ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ اذْكُرْ نِعْمَتِي عَلَيْكَ وَعَلَى وَالِدَتِكَ إِذْ أَيَّدتُّكَ بِرُوحِ الْقُدُسِ تُكَلِّمُ النَّاسَ فِي الْمَهْدِ وَكَهْلاً وَإِذْ عَلَّمْتُكَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ وَإِذْ تَخْلُقُ مِنَ الطِّينِ كَهَيْئَةِ الطَّيْرِ بِإِذْنِي فَتَنفُخُ فِيهَا فَتَكُونُ طَيْرًا بِإِذْنِي

 तर्जुमा: जब कहेगा अल्लाह ए ईसा मर्यम के बेटे याद कर मेरा एहसान अपने ऊपर और अपनी माँ पर। जब मदद दी मैंने तुझको रूह पाक से तू कलाम करता था लोगों से गोद में और बड़ी उम्र में और जब सिखाई मैंने तुझको किताब और पक्की बातें और तौरेत और इंजील और जब तू बनाता था मिट्टी से जानवर की सूरत मेरे हुक्म से फिर दम फूँकता था इस में तो हो जाता था जानवर मेरे हुक्म से"

इस अफ़्साने का अनाजील में मुतलक़ ज़िक्र नहीं बल्कि बख़िलाफ़ उस के साफ़ यूं लिखा है कि सय्यदना ईसा का पहला मोअजिज़ा आम ख़िदमत के शुरू के बाद तीस बरस की उम्र में हुआ। चुनांचे यूहन्ना की इंजील के दूसरे बाब की ग्याहरवीं आयत में मर्क़ूम है :—

ये पहला मोअजिज़ा यीसू ने क़ाना-ए-गलील में दिखाकर अपना जलाल ज़ाहिर किया।

तामस इस्राइली ने जो मसीह के बचपन की इंजील लिखी और दीगर ऐसी ही चंद ग़ैर-मोअतबर झूटी तसानीफ़ से बख़ूबी मालूम होता है कि ये अफ़साना आँहज़रत के ज़माने के बिद्दती मसीहीयों में मशहूर था और आपने बसा-औक़ात उनसे सुना और सच्ची इंजील का जुज़ ख़्याल करके क़ुरआन में दर्ज कर लिया क्योंकि इन अफ़्सानों का क़ुरआनी क़िस्सों से मुशाबहत रखना इसी नतीजा पर पहुँचाता है। मुंदरजा-बाला क़ुरआनी अफ़्साने को याद रखिए और फिर तामस इस्राइली की झूटी इंजील को जिसे किसी मसीही फ़िर्क़े ने कभी इल्हामी नहीं माना पढ़िए। इस में लिखा है :—

यीसू जब पाँच साल का हुआ तो एक मर्तबा एक सड़क पर पानी के एक गंदे नाले के किनारे खेल रहा था। इस नाले के तमाम पानी को जमा करके सिर्फ एक लफ़्ज़ के फ़रमान से पाक व मसफ़ा कर दिया। फिर कुछ मिट्टी गूँध कर इस से बारह चिड़ियां बनाई और ताली बजाकर बुलंद आवाज़ से कहा उड़ जाओ। और चिड़ियां चहचहाती हुई परवाज़ कर गईं।

इसी झूटी इंजील में ये भी लिखा है कि सय्यदना मसीह ने गहवारे ही से अपनी माँ से कलाम किया और उसे अपनी नबुव्वत व रिसालत की ख़बर दी I

हज़रत मुहम्मद ने अपने वक़्त के बिद्दती और मुल्हिद मसीहीयों से बहुत से अफ़्साने सीखे और उन के अक़ाइद से आगाही हासिल की और वही अक़ाइद व हिकायात आपने क़ुरआन में दर्ज करके उन पर वही आस्मानी का नाम चस्पाँ कर दिया। इस के सबूत में और बहुत कुछ लिखा जा सकता है लेकिन चूँकि इस किताबचा में तवालत की गुंजाइश नहीं इस लिए हम सिर्फ एक ही और मिसाल पेश करेंगे। जो मज़ीद तहक़ीक़ात का मुश्ताक़ हो उसे चाहिए कि टसडल, सील और गाईगर साहिब की तसानीफ़ का मुताअला करे।

क़ुरआन में "मीज़ान" का बार-बार ज़िक्र आता है । लिखा है कि क़ियामत के दिन लोगों के आमाल तुलेंगे। जिनके आमाल का वज़न मीज़ान में ज़्यादा साबित होगा वो बहिश्त में दाख़िल होंगे और जिन के बदआमाल ज़्यादा निकलेंगे वो दोज़ख़ में जाएंगे । चुनांचे सूरह अलआराफ़ की सातवीं और आठवीं आयात में मर्क़ूम है :—

وَالْوَزْنُ يَوْمَئِذٍ الْحَقُّ فَمَن ثَقُلَتْ مَوَازِينُهُ فَأُولَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ وَمَنْ خَفَّتْ مَوَازِينُهُ فَأُولَئِكَ الَّذِينَ خَسِرُواْ أَنفُسَهُم بِمَا كَانُواْ بِآيَاتِنَا يَظْلِمُونَ

तर्जुमा: और तोल उस दिन ठीक है। सो जिनकी तौलें भारी पढ़ें वही हैं जिनका भला हुआ। और जिन की तौलें हल्की पढ़ें वही हैं जो हारे अपनी जान इस लिए कि हमारी आयतों से ज़बरदस्ती करते थे।

क़ुरआन का ये अक़ीदा "इब्राहिम की जाली इंजील" से लिया गया है जो कि ग़ालिबन दूसरी या तीसरी मसीही सदी में लिखी गई थी । इब्राहिम के आस्मान पर जाने की वहमी हिकायत मुंदर्ज है। लिखा है कि :—

इस ने वहां और अजाइबात के इलावा तख़्त अदालत को भी देखा । इस पर एक अजीब आदमी बैठा था। इस के आगे एक मेज़ थी जो बिल्कुल शफ़्फ़ाफ़ थी और उस की साख़त ख़ालिस सोने और बारीक कपड़े से थी। इस पर एक किताब रखी थी जिसकी मोटाई छः हाथ और चौड़ाई दस हाथ थी। इस की दाएं बाएं जानिब दो फ़रिश्ते काग़ज़ और क़लम दवात लिए खड़े थे। और मेज़ के सामने एक निहायत नूरानी फ़रिश्ता तराज़ू लिए बैठा था और वह अजीब आदमी जो तख़्त नशीन था ख़ुद रूहों का इन्साफ़ कर रहा था लेकिन दाएं बाएं के दोनो फ़रिश्ते लिखते जाते थे। दाएं जानिब का फ़रिश्ता नेक-आमाल लिखता था और बाएं तरफ़ का फ़रिश्ता गुनाह दर्ज करता था। और जो मेज़ के सामने तराज़ू लिए बैठा था रूहों को तोल रहा था।

क़ुरआन की और बहुत सी तालीमात मसलन मसीह की मौत की नफ़ी और मसीही तस्लीस को बाप बेटा और मर्यम तीन जुदा-जुदा ख़ुदा क़रार देना हज़रत मुहम्मद ने इन नास्तिक और बिद्दती मसीहीयों से सीखी थीं जो आप के ज़माना में मुल्क अरब में बकसरत आबाद थे अब इस अम्र के सबूत में बहुत कुछ कहा जा चुका है कि क़ुरआन के बहुत से अक़ाइद व क़सस ग़ैर-मोअतबर और जाली मसीही रिवायत की किताबों से लिए गए हैं और क़ुरआन का ये दावा कि मैं कुतुब-ए-पेशीन यानी  तौरात व ज़बूर और इंजील का मुसद्दिक़ हूँ बिल्कुल बे-बुनियाद बातिल है।