मकाल्मा

माबैन

पादरी सुल्तान मुहम्मद खान साहिब अफ़गान

और

ख्वाजा कमाल-उद्दीन साहिब बी ए मुस्लिम मिशनरीज़

7- अप्रैल 1924 ई .

पादरी साहिब साइल - ख़्वाजा साहिब कल आपने फ़रमाया था कि जो ख़ता सहव वाक़े हो । इस की कोई सज़ा नहीं । आदम ने एक ख़ता की वो ख़ता सहवन वाक़ेअ हुई या क़सदन और उस की सज़ा मुरत्तिब हुई या ना । लेकिन जब उस ने एक फे़अल खिलाफ-ए-अम्र रब्बी किया तो गुनाह हो चुका । क्या आप मानते हैं कि आदम से गुनाह हुआ ?

ख़्वाजा साहिब मुजीब - जो फे़अल सहवन वाक़ेअ हो वो गुफरान तले आ जाता है जब कोई नुक़्स अपने नताइज पैदा करता है । तो उसके नुक़्स ज़ाहिर कर दिए जाते हैं । आदम जिस जन्नत में था । मैं उसे कोई मकान या जगह नहीं मानता । वो सिर्फ एक हालत थी । क़वा (قویٰ) का आला दर्जा का कमाल ही जन्नत था । क़ुरआन में जहां सज़ा का ज़िक्र है । वहां लफ़्ज़ अख़ज़ (اخذ) आया है । आदम ने भूल से एक काम किया । और ख़ुदा ने फ़ौरन उस की निस्बत उसे इत्तिला कर दी । और नुक़्स ज़ाहिर हो गया और आदम सँभल गया ।

पादरी साहिब - शराअ के ख़िलाफ़ जो फे़अल हो वो गुनाह है । अब वो सहवन वक़ूअ में आया या क़सदन । अब इन्सान उसके नताइज को अंदरूनी क़वा (قویٰ) से रद्द करे या वो सबब ख़ारिजी से रोका जाये बहर-सूरत फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून वाक़ेअ हो चुका । आदम ने एक फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून किया अगर बिलफ़र्ज़ ख़ुदा के याद दिलाने से आदम ने नताइज को रोक भी लिया तो वो भी गुनाह कर चुका ।

ख़्वाजा साहिब - जब एक फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून वाक़ेअ हो तो या वो नसिया (نسیہ) का और या इरादे का नतीजा है । अगर नसिया (نسیہ) का नतीजा हो तो गुफरान के तले आ जाएगा । और नतीजे को रोक देना ही गुफरान है । अगर फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून बालाइरादा हुआ । तो उसका लाज़िमी नतीजा सज़ा है । जन्नत और दोज़ख़ कोई मकान नहीं है । क़वा (قویٰ) के दुरुस्त चलने का नतीजा जन्नत है और इस के ख़िलाफ़ दोज़ख़ है । आदम ने नसिया (نسیہ) से ख़ता की । लिहाज़ा इसका नतीजा रोक दिया गया ।

पादरी साहिब - आपने क़वा (قویٰ) का ज़िक्र किया है । तो जब क़वा (قویٰ) दुरुस्त राह पर नहीं चलते तो वो एक नतीजा पैदा करते हैं । और यही सज़ा है । पस आपने सज़ा को मान लिया ।

ख़्वाजा साहिब - बात ये है कि एक आदमी ऐसी ख़ुराक खाता है । कि इस से जिस्म को नुक़्सान पहुंचे । मगर बसा-औक़ात जिस्म की अंदरूनी क़ुव्वतें ही उसके असर को रोक देती हैं । और नतीजा ज़ाहिर नहीं होता । इसी तरह ख़ुदा के इत्तिला देने से आदम सँभल गया । पस सज़ा ना हुई । ग़लती से वाक़ेअ शूदा ख़ता का दफ़ईया ख़ुद बख़ुद हो जाता है । ख़ुदा का अदल किसी क़ानून के मातहत नहीं जब वो देखता है । कि सहवन गुनाह हो गया । तो वो माफ़ कर देता है । सज़ा ज़िम्मादारी नाअकुल पर है । एक क़ानून से नावाक़िफ़ या बच्चे ने गुनाह किया । तो ख़ुदा उसे सज़ा नहीं देता । बच्चा क़ानून नहीं समझ सकता । एक शख़्स भूल गया या किसी ने क़ानून को ग़लत समझा । तो ख़ुदा मिसल इन्सानी हाकिम के क़ानून का मज्बूर नहीं है । किसी फे़अल की सज़ा तब नतीजा पैदा करती है जब कि कोई क़ुव्वत-ए-मुख़ालिफ़ मौजूद ना हो । पस जब ख़ुदा ने बख़्श दिया । तो आदम को सज़ा ना हुई ।

पादरी साहिब - आदम ने क़ानून के ख़िलाफ़ फे़अल किया । आप कहते हैं कि इसका क्या गया । मगर याद रहे कि किसी शैय का इज़ाला उसके वजूद के बाद हुआ करता है मर्ज़ का इज़ाला तब होता है । कि मर्ज़ पैदा हो चुका हो । जब ये कहें कि ख़ुदा ने आदम के गुनाह को बख़्श दिया । तो इसका ये मतलब है कि आदम ने गुनाह किया ।

ख़्वाजा साहिब - मगर बाज़-औक़ात एक फे़अल वाक़ेअ हो जाता है । मगर उसके नताइज ज़हूर में नहीं आते । या अंदरूनी तौर पर इस का इज़ाला हो जाता है । ज़रूर नहीं कि नताइज ज़हूर पज़ीर हो ।

पादरी साहिब - बहुत अच्छा उसे हम भी मानते हैं । मगर इससे एक बात साबित हो गई कि आदम से गुनाह हुआ । ये पहला मरहला तै हो गया ।

दूसरा मरहला

पादरी साहिब - आदम से गुनाह के सरज़द होने को तो आप ने तस्लीम कर लिया । अब अम्र ज़ेर-ए-बहस ये रहा कि आदम को सज़ा हुई या ना । पस मालूम हो कि क़ुरआन में लिखा है । فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ عَنْهَا (2:34) यानी शैतान ने आदम व हव्वा को तनज़्ज़ुल कर दिया । इस से मालूम होता है कि भूल ना थी बल्कि ख़ारिजी अस्बाब से ऐसा हुआ । शैतान ने वरग़लाया और ख़ुदा के ख़िलाफ़ बहकाया । क्योंकि मुताबिक़ आयत وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا (20:114) आदम मुस्तक़िल अलइरादा ना था । पस वो बहकाने में आ गया । अब हम इस बहकावट में आ जाने को भूल नहीं कह सकते । शैतान आदम पर ग़ालिब आया और आदम ने मुस्तक़िल अलइरादा ना होने से गुनाह किया । और जन्नत से निकाल दिया गया । और क़ुरआन आदम के इस फे़अल की सज़ा में उसे बयान करता है । यही हमारा अक़ीदा है कि आदम ने गुनाह किया और सज़ा पाई ।

ख़्वाजा साहिब - क्या ये ज़रूर है कि जो फे़अल सरज़द हो वो नसिया (نسیہ) ना होगा?

पादरी साहिब - निस्यान (نسیان) के मअनी हैं । किसी शैय की सूरत का ज़हन से महव हो जाना । मगर आदम के मुआमला में ये हाल नहीं । मसलन आपने मुझे चाय का पियाला देना चाहा । और मैंने इन्कार किया । तर्ग़ीब व तहरीस या रोब दाब या और किसी तरह से आख़िर मुझे इन्कार को तर्क करना पड़ेगा तो उसे मज्बूरी कहेंगे । ना कि निस्यान (نسیان) ।

ख़्वाजा साहिब - मगर तर्ग़ीबात से भी नसिया (نسیہ) पैदा हो जाता है क्योंकि आदम को एक अम्र की इत्तिला दी गई । जो तर्ग़ीबात की मौजूदगी में बिल्कुल दिमाग़ से महव हो गई । पस शैतान ने आदम को नसिया (نسیہ) करा दिया ।

पादरी साहिब - ना नसिया (نسیہ) बल्कि गुमराही ।

ख़्वाजा साहिब - मगर गुमराही तो ये है कि मैं ग़लत राह पर चलूं मगर आदम के मुआमला में ये हो सकता है । कि हालात-ए-गिर्द-ओ-पेश से वो भूल गया ।

पादरी साहिब - नसिया (نسیہ) भूल जाना होता है । मगर गुमराही ख़ारिजी अस्बाब की मज्बूरी से हुआ करती है ।

ख़्वाजा साहिब - गुमराही तीन क़िस्म की होती है (1) ख़ारजी तास्सुरात तले भूल जाना (2) सहीह राह से हट जाना और (3) इरादे से ख़ता करना । मगर ज़िम्मेदारियाँ हर सेह की जुदा-जुदा हैं जैसी कि गुमराही की तीन मुख़्तलिफ़ सूरतें हैं । वैसी ही ज़िम्मावारी हर एक की मुख़्तलिफ़ होगी ।

पादरी साहिब - मगर शैतान व आदम के दर्मियान तो ख़ास मुकालमा इसी दरख़्त-ए-ममनूआ ही की बाबत था । इसी लिए क़ुरआन में आया है । وَعَصَى آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَى (20: 119) यानी आदम ने रब की नाफ़रमानी की ग़वा (غویٰ) नसिया (نسیہ) के लिए नहीं आ सकता ।

)ख़्वाजा साहिब ने इस मौक़े पर मौलवी मुहम्मद अली तफ़्सीर क़ुरआन को मंगाया । और कई मिनट तक उस का मुतालआ करने के बाद फ़रमाया(

ख़्वाजा साहिब - मगर मुझे यहां शैतान की कोई बह्स आदम से नहीं मिलती ।

पादरी साहिब -

وَلَقَدْ عَهِدْنَا إِلَى آدَمَ مِن قَبْلُ فَنَسِيَ وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا فَقُلْنَا يَا آدَمُ إِنَّ هَذَا عَدُوٌّ لَّكَ وَلِزَوْجِكَ فَلَا يُخْرِجَنَّكُمَا مِنَ الْجَنَّةِ فَتَشْقَى إِنَّ لَكَ أَلَّا تَجُوعَ فِيهَا وَلَا تَعْرَى وَأَنَّكَ لَا تَظْمَأُ فِيهَا وَلَا تَضْحَى فَوَسْوَسَ إِلَيْهِ الشَّيْطَانُ قَالَ يَا آدَمُ هَلْ أَدُلُّكَ عَلَى شَجَرَةِ الْخُلْدِ وَمُلْكٍ لَّا يَبْلَى

हमने आदम से इससे पहले एक अह्द किया था सो वो भूल गया और हमने इस में इस्तिक़लाल ना पाया....फिर हमने आदम से कहा इब्लीस तेरा और तेरी ज़ौजा का दुश्मन है । सो कहीं दोनों को जन्नत से ना निकलवा दे । फिर तो तक्लीफ़ में पड़े....फिर शैतान ने आदम के दिल में डाला । बोला ऐ आदम क्या मैं तुझे सदा जीने का दरख़्त और वह सल्तनत जो कहीं ना हो बताऊं? (20:114 ता 119) । इस के मुताबिक़ आदम को बताया गया था कि शैतान तुम्हारा दुश्मन है । फिर शैतान ने इन को वरग़लाया ।

ख़्वाजा साहिब - मगर यह किस तरह मालूम हुआ कि जब शैतान ने इस से सदा जीने के दरख़्त का ज़िक्र किया तो उसे ख़ुदा की बात याद थी?

पादरी साहिब - आदम के सामने जब ख़ास वही मसअला ज़ेर-ए-बहस आया जिससे ख़ुदा ने मना किया था । तो ज़रूर है कि उसे ख़ुदा का हुक्म याद आ गया । अगर बावजूद मुकालमा के भी भूल गया । तो ग़वा (غویٰ) कहना हरगिज़ मुनासिब ना था । यानी कि इस ने ख़ुदा की ना-फ़रमानी की ।

ख़्वाजा साहिब - ग़वा (غویٰ) के मअनी क्या हैं?

पादरी साहिब - ग़वा (غویٰ) बाग़ी होना ।

ख़्वाजा साहिब - चूँकि पहले लिखा है कि आदम भूल गया था । पस जब शैतान ने इस को वरग़लाया तो ज़रूर नहीं कि उस वक़्त आदम को ख़ुदा का हुक्म याद आ गया । ना शैतान ने ख़ुदा का हुक्म ही याद दिलाया था । पस वो भुला हुआ था जबकि शैतान ने उसे वरग़लाया, मुद्दत गुज़र गई थी और आदम को ख़ुदा का हुक्म भूल चुका था । एक बच्चा आन वाहिद में भूल जाता है । इमकान नसिया (نسیہ) का हो सकता है ।

पादरी साहिब - शैतान ख़ुदा के बिलमुक़ाबिल पेश करता है कि ऐ आदम क्या मैं तुझे सदा जीने का दरख़्त और वह सल्तनत जो कहीं ना हो बताऊं ? ख़ुदा ने जिस दरख़्त की निस्बत पहले नज़्दीक ना जाने का हुक्म दिया था । अब उसी का ज़िक्र शैतान करता है । तो क्यों उसे याद ना आया था? ख़ुदा ने कहा था । وَلَا تَقْرَبَا ہٰذِہِ الشَّجَرَۃَ  शैतान भी शिजरतू-उल-ख़ुलद का ही ज़िक्र करता है शैतान ने अचानक आदम पर हमला नहीं किया । बल्कि इस से मुहब्बत करता हुआ कहता है कि मैं तुझे शिजरत-उल-ख़ुलद बताऊं ? यहां अल माहूद ज़हनी है । पस लाज़िमन शैतान के मुकालमा ने अम्र ईलाही की याद को ताज़ा कर दिया । ख़ुदा ने कहा था कि इस दरख़्त के क़रीब ना जाना । वर्ना ज़ालिमों में से हो जाओगे । और अब शैतान कहता है कि ये दरख़्त सदा की ज़िंदगी है । अब दोनों ने इस में से हरीस हो कर खाया । ये आदम की भूल नहीं है । इसी लिए नाफ़रमानी का लफ़्ज़ आया है । और इसलिए सज़ा भी मुरत्तिब हो गई । लिखा है कि فَأَكَلَا مِنْهَا فَبَدَتْ لَهُمَا سَوْآتُهُمَا وَطَفِقَا يَخْصِفَانِ عَلَيْهِمَا مِن وَرَقِ الْجَنَّةِ  फिर इन दोनों ने इस में से खाया । और उनकी उर्यानी उन पर ज़ाहिर हो गई । और दोनों अपने ऊपर बाग़ के पत्ते टांगने लगे" अगर ख़ता सहवन वाक़ेअ हुई तो सज़ा क्यों दी गई?

ख़्वाजा साहिब - मगर यह कैसे साबित हुआ कि बाग़ में एक ही ऐसा दरख़्त था? लफ़्ज़ जन्नत के मअनी हैं कई बाग़ फिर दरख़्त भी मुतअद्दिद होंगे । हो सकता है कि शैतान ने किसी और दरख़्त का ज़िक्र क्या हो । जिससे ख़ुदा ने मना ना किया था ।

पादरी साहिब - अल माहूद ज़हनी है । और हज़ा शिजरा और (ہذا شجرہ) (1) शिजरत-उल-ख़ुलद (شجرہ الخلد) दोनों में अल (ال) तारीफ़ी आया है । यानी वही दरख़्त जिस से ख़ुदा ने मना किया था । (2) मज़ीदबराँ शिजरा के जो आख़िर में ह ة)) है । वो वहदत की अलामत है । यानी एक ही दरख़्त था (3) फिर लफ़्ज़ ख़ुलद (خالد) भी इसी दावे की ताईद में है, दरख़्त की तख़सीस ज़ाहिर व साबित है । और (4) सबसे बढ़कर ये कि सज़ा का मुरत्तिब हो जाना भी साबित करता है । कि इस एक ही दरख़्त का ज़िक्र था आपने फ़रमाया था कि जो फाल-ए-नसिया (نسیہ) से हो । इस पर सज़ा नहीं होती ।

ख़्वाजा साहिब - क्या अल (أل) से कोई माहूद ज़हनी है?

पादरी साहिब - तो क्या ऐसे बहुत से दरख़्त थे या एक ही था?

ख़्वाजा साहिब - एक आदमी ने ज़हर ख़ा लिया जिसका नतीजा हलाकत था । मगर फ़ील-फ़ौर ईलाज किया गया । और नतीजा ज़ाहिर ना हुआ । इसी तरह आदम ने गुनाह किया । मगर चूँकि भूल से था ख़ुदा ने माफ़ कर दिया । मर्ज़ के ज़हूर और दफ़ईया मर्ज़ के दरमयानी अरसा को सज़ा नहीं कह सकते । क्योंकि सज़ा का इशारा मुकम्मल सज़ा नहीं होती । अज़ाब का टाला जाना बुज़ुर्ग सवाब है । और अज़ाब का ना होना गुफरान है । गुफरान में ग़लती का एहसास ज़रूर होता है । मगर आदम की सज़ा मुकम्मल सज़ा ना थी वो मह्ज़ मबादियात-ए-सज़ा ही थे ।

पादरी साहिब - فَاَخْرَجَہُمَا مِـمَّا كَانَا فِيْہِ  यानी इन दोनों को वहां से जिसमें वो थे । निकाल दिया अब जन्नत कोई मकान हो या क़वा (قویٰ) फ़ित्री का कमाल बहर-ए-हाल इस हालत से आदम को निकाल दिया गया । और इस हालत से निकल जाना ही सज़ा है । सज़ा तीन क़िस्म की थी । अव्वल वो वहां से ख़ारिज किए गए । दोम उन की उर्यानी ज़ाहिर हो गई । सोम उनका दुनिया में एक दूसरे से अदावत करना ।

ख़्वाजा साहिब - वो क़वा (قویٰ) जो सहीह हालत में थे । वो अपने हाल पर ना रहे । मगर ये बहुत ही क़लील अरसे के लिए हुआ । मसलन में बैठां हूँ और उम्दगी से देख रहा हूँ । एक दम आंधी आती है । और मेरी आँखों में पड़ कर थोड़ी देर के लिए उन को बंद कर देती है मगर जों ही कि आंधी दूर हो गई मेरी आँखें फिर खुल गईं । बईना निहायत से निहायत क़लील अरसा के लिए आदम की सहीह हालत ना रही । क्योंकि आदम बहुत मजमूई नाक़ाबिल ख़ता ना था ।

पादरी साहिब - बस आपने मान लिया कि आदम इस हालत पर ना रहा जिसमें पैदा किया गया था । पस सज़ा भी हो चुकी ।

अब तीसरा मरहला

ये है कि आदम व हव्वा के बयान में तस्नियाह का सीग़ा चला आता है । मसलन तू और तेरी औरत जन्नत में रह और तुम दोनों इस दरख़्त के पास ना जाना कि तुम दोनो ज़ालिम ना हो जाना । फिर शैतान ने इन दोनों को वरग़लाया । इन दोनों को वहां से निकाल दिया । बार-बार दो का ज़िक्र चला आता है मगर जब सज़ा मिलती है । तो ख़ुदा कहता है قُلْنَا اهْبِطُواْ مِنْهَا جَمِيعاً (2:36) तुम सब यहां से नीचे उतरो, क़सूर करते हैं । दो शख़्स तो इस के क्या मअनी कि सज़ा मिलती है । सबको? आदम व हव्वा की सज़ा मजमूआ पर मुंतक़िल होती है । सबसे मुराद कौन हैं?

ख़्वाजा साहिब - आदम और सब + आदम में हमारी मिसल गुनाह की तमाम इस्तिदादें मौजूद थीं ।

पादरी साहिब - जब आदम की और हमारी फ़ित्रत एक है तो सीग़ा तस्नियाह (تثنية) को छोड़कर जमा क्यों इस्तिमाल किया?

ख़्वाजा साहिब - ये वाक़ेअ नहीं । क़ुरआनी क़िसस मह्ज़ हिदायात के तौर पर हैं ना कि वो वुक़ूआत हक़्क़ा हैं । उनसे सिर्फ ये मक़्सूद है कि अगर ऐसा करोगे । तो ये सज़ा मिलेगी । जमा का सीग़ा इसलिए आया कि आदम में गुनाह की इस्तिदादें थीं और हम में वो वाक़ियात के तौर पर ज़हूर में आती हैं ।

पादरी साहिब - मगर आदम व हव्वा के बयान में तस्नियाहह (تثنية) का सीग़ा आते आते एक दम जमा का सीग़ा क्यों आया?

ख़्वाजा साहिब - इस से मुराद आदम की ज़ुर्रियत यानी नस्ल आइन्दा है ।

पादरी साहिब - आपका ये कहना कि क़िसस क़ुरआन में नहीं हैं मगर मैं कहता हूँ कि अगर क़ुरआन से क़िसस को निकाल दें तो रह ही क्या जाएगा? चूँकि ये क़िसस कुतुब ग़ैर क़ुरआन में आ चुके हैं पस उनको निकाल कर जो हिस्सा क़ुरआन का बाक़ी रह जाये में इसको हमारा क़ुरआन कहूंगा और बार बार मेरे दिल में ऐसा करने का इरादा आया है ।

इस पर गुफ़्तगु ख़त्म हुई और इधर उधर की बातें हो कर रुख़स्त हुए । ख़्वाजा साहिब ने इसमें मुंदरजा ज़ैल उमूर तस्लीम किए हैं :-

  1. आदम से एक फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून सरज़द हो गया ।
  2. गुफरान में ग़लती का एहसास व इस्तख़सार होता है ।
  3. आदम की ना-फ़रमानी की सज़ा उसे मिल गई कि वो असली हालत पर ना रहा ।
  4. आदम व हव्वा को जो ना-फ़रमानी की सज़ा मिली । इस में उनकी ज़ुर्रियत भी शामिल है ।

पस ख़्वाजा साहिब ने आदम अव्वल के गुनाहों में गिरने और उसकी वजह से औलाद-ए-आदम पर सज़ा का हुक्म होने को तस्लीम करके मसीही सदाक़त की बय्यन व अज़हर-मिनश-शम्स फ़त्ह का इज़्हार किया । ख़ुदा करे कि उनकी आँखें खुल जाएं और मौरूसी गुनाह के लिए जो कफ़्फ़ारा ख़ुदा ने अज़ल से मुक़र्रर किया है । उस पर ईमान ले आएं । अब इससे बढ़कर और कौनसा निशान-ए-ईलाही चाहिए । अब बताएं कि निशाँ को देख कर इन्कार कब तक पेश जाएगा (नूर अफ़्शां 5:24 30-23)