Origins of the Qur'an by William Goldsack

यनाबि-उल-क़ुरआन

यानी असलिय्यत व माहिय्यत-ए-इस्लाम कि तहक़ीक़

अज़

पादरी डब्ल्यू गोल्डसेक साहिब

William Goldsack

THE ORIGINS OF THE QURAN

Rev William Goldsack

Australian Baptist Missionary and Apologist
1871–1957

जिसको

क्रिशचन लिट्रेचर सोसायटी फॉर इन्डिया ने शाया किया

1909 ईसवी

CHRISTIAN LITERATURE SOCIETY FOR INDIA,

PUNJAB BRANOH LUDHIANA 1909.

फ़हरिस्त-ए-मज़ामीन

  अबवाब मज़ामीन सफ़ा  
1 बदवी अक़ाइद व रसूम का क़ुरआन में इंदिराज  
2 यहूदी अक़ाइद व रसूम का क़ुरआन में इंदिराज  
3 मसीही अक़ाइद व रसूम का क़ुरआन में इंदिराज  
4 क़ुरआन के वो हिस्से जो बरवक़्त हाजत वज़ाअ किए गए  

दीबाचा

इस किताबचा में किसी तरह की नई तहक़ीक़ और जिद्दत का दावा नहीं बल्कि इस के बयानात ज़्यादा-तर गाईगर, टसडल, ज़वीमर, मियुर, सेल और इमाद-उद्दीन साहिबान की तसानीफ़ पर मबनी हैं। और इस से ग़रज़ यही है कि इन मुहक़्क़िक़ीन की तहक़ीक़ात कामला के नताइज निहायत मुख़्तसर और अर्ज़ां सूरत में अहले हिंद के ख़वांदा अस्हाब तक पहुंच जाएं।

पस अगर इस किताबचा के वसीला से कोई मुहक़्क़िक़ मुसलमान हज़रत मुहम्मद के तालीमकर्दा मज़हब की असलीयत को ज़्यादातर सफ़ाई और सहूलत से समझ लेगा तो इस की तस्नीफ़ का मतलब बर आएगा।

व-ग

तमहीद

लफ़्ज़ "क़ुरआन" अरबी मस्दर क़राअ से मुश्तक़ है जिसके मअनी पढ़ने या पढ़ा जाने के हैं। और यही लफ़्ज़ सूरह अल-अलक़ से लिया गया है। बयान किया जाता है कि पहले-पहल यही सूरह आँहज़रत पर नाज़िल हुई थी। इब्तिदा में यही लफ़्ज़ क़ुरआन के एक हिस्सा के लिए इस्तिमाल किया जाता था। लेकिन बाद में आँहज़रत के तमाम वही व इल्हाम के मजमूआ पर आइद हो गया। चुनांचे आज-कल इन्ही आख़िरी माअनों में इस्तिमाल होता है। आँहज़रत पर क़ुरआन के नाज़िल होने के बाब में अहादीस में बहुत सी अजीबो-गरीब हिकायात मुंदर्ज हैं। चुनांचे आपकी ज़ोजात में से अज़ीज़ तरीन बीबी आईशा से यूं रिवायत है कि "शुरू 1 में जो इल्हामात आँहज़रत को नसीब हुए वो सब सच्चे ख्वाब थे। आपके ख्वाब सुबह व सादिक़ की मानिंद रास्त साबित होते थे। इस के बाद आप तन्हाई पसंद करने लगे और कोह हिरा के ग़ार में मुंज़वी हो कर शब-ओ-रोज़ इबादत में मशग़ूल होते थे। यहां तक कि आख़िर एक दिन फ़रिश्ते ने आप पर ज़ाहिर हो कर कहा "पढ़" लेकिन आपने कहा "मैं पढ़ना नहीं जानता" । इस पर फ़रिश्ते ने आपको पकड़ कर इस क़दर दबाया कि इस से ज़्यादा की आप में बर्दाश्त ना थी। फिर आप को छोड़ दिया और दुबारा कहा “पढ़” आपने कहा "मैं पढ़ना नहीं जानता" तब फ़रिश्ते ने दुबारा आपको पकड़ कर इसी तरह दबाया और फिर छोड़कर कहा "पढ़" आपने फिर कह दिया मैं पढ़ना नहीं जानता। इस पर फ़रिश्ते ने तीसरी मर्तबा आपको पकड़ कर फिर वैसा ही दबाया और कहा:-

اقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَ خَلَقَ الْإِنسَانَ مِنْ عَلَقٍ اقْرَأْ وَرَبُّكَ الْأَكْرَمُ الَّذِي عَلَّمَ بِالْقَلَمِ عَلَّمَ الْإِنسَانَ مَا لَمْ يَعْلَمْ

तर्जुमा 2 : पढ़ अपने रब के नाम से जिसने खल्क़ किया। खल्क़ क्या इन्सान को लहू की फुटकी से। पढ़ और तेरा रब बड़ा करीम है जिसने क़लम का इस्तिमाल सिखाया। इन्सान को सिखाया जो कुछ वो ना जानता था।

तब आँहज़रत ने ख़ुद उन मुंदरजा बाला आयात को दुहराया और काँपते हुए बीबी ख़दीजा के पास वापिस आए और कहा "मुझे छुपा दो !! चुनांचे उन्हों ने आपको कपड़ों में लपेट दिया और तावक़ते के आपका ख़ौफ़ दूर ना हुआ लिपटे रहे"

इसी किस्म की अहादीसी हिकायात और क़ुरआन के मुकर्रर बयानात पर अहले-इस्लाम के इस अक़ीदा की बुनियाद है कि क़ुरआन ख़ुदा का अज़ली ग़ैर-मख़लूक़ कलाम है जो हज़रत जिब्राईल के वसीले से मोजज़ाना तौर पर हज़रत मुहम्मद पर नाज़िल हुआ।

कहते हैं कि क़ुरआन फ़लकुल-अफ़्लाक पर ख़ुदा ताअला के तख़्त के पास लौह-ए-महफ़ूज़ पर अज़ल ही से मर्क़ूम था और फिर माह-ए-रमज़ान में निचले आस्मान पर भेजा गया जहां से क़रीबन 23 बरस के अरसा में थोड़ा थोड़ा करके हज़रत मुहम्मद पर नाज़िल हुआ। क़ुरआन अपनी ईलाही असलियत के दाअवा से भरा पड़ा है और जो इन दाआवों को हक़ तस्लीम करने से इन्कार करते हैं उनके हक़ में भी क़ुरआन में बहुत सी लॉन तान मौजूद है। बुख़ारी शरीफ़ और बाअज़ दीगर रावियों ने ऐसी ऐसी अहादीस जमा की हैं जिनसे नुज़ूल-ए-क़ुरआन के मुख़्तलिफ़ तरीक़े मालूम होते हैं । बाद के मुफ़स्सिरीन व मुसन्निफिन मसलन जलाल-उद्दीन सीवती वग़ैरा ने इल्हाम वही के नुज़ूल के तरीक़ों की तक़सीम की है।

चुनांचे उनके नज़दीक इल्हाम फ़रिश्ते के वसीले से, इलक़ा से, ख्वाब से और बराह-ए-रास्त बिलावास्ता ख़ुदा व पैग़म्बर के बाहम हमकलाम होने से होता है। लेकिन हम इस मुक़ाम पर इन मुख़्तलिफ़ तरीक़ों पर बहस नहीं करेंगे। हम इस साफ़ हक़ीक़त का बयान करते हैं कि अहले इस्लाम के आम एतिक़ाद के लिहाज़ से कुल बनी-आदम में से बीस करोड़ क़ुरआन को ख़ुदा के मुँह के अल्फ़ाज़ मानते हैं। वो इस बात पर ईमान रखते हैं कि अज़ल ही से क़ुरआन आस्मान पर मौजूद था और फिर ख़ुदा के बर्गुज़ीदा नबी हज़रत मुहम्मद के वसीले से दुनिया में भेजा गया।

इस किताबचा का मक़सद यही है कि इस अज़ीम दाअवे को परखे और दर्याफ़्त करे कि क़ुरआन इस ईलाही इल्हाम के अक़ीदे व तसव्वुर से बिल्कुल ख़ाली साबित होता है या नहीं।

हर एक मुसलमान का दिल इस किस्म की तहक़ीक़ के ख़िलाफ़ बग़ावत करेगा और वो हरगिज़ इस बात को पसंद नहीं करेगा कि क़ुरआन शरीफ़ के बारे में इस तरह की छानबीन की जाये। लिहाज़ा हम इस मुक़ाम पर एक मुसलमान के अल्फ़ाज़ पेश करते हैं। सर सय्यद अहमद साहिब अपनी तफ़्सीर बाइबल में लिखते हैं कि :-

"मैं किसी तरह से इस वहमी अक़ीदा को तस्लीम नहीं कर सकता कि कुतुब आस्मानी, कुतुब अम्बिया-ए-सल्फ या क़ुरआन की सदाक़त व मिनजानिब-उल्लाह वग़ैरा होने के बाब में तहक़ीक़ व तदक़ीक़ नहीं करना चाहिए। क्या कोई ये ख़्याल करसकता है कि ख़ुदा की सबसे बड़ी बरकत यानी क़ुव्वत-ए-इस्तिदलाल जो इन्सान को दी गई है वो महिज़ बेफ़ाइदा व बे-सूद है और हम इस से काम नहीं ले सकते ? क्या हम बाक़याम-ए-होशोहवास और सिदक़ अक़ीदत से मसीही या मुहम्मदी होने का इक़रार कर सकते हैं दरहालीका हम अपने ईमान व एतक़ाद पर कोई दलील ना रखते हों ? जो किताब हमारी हिदायत व रहबरी के लिए हमको दी गई है क्या हम इस को परखने में अपनी अक़ल और अपने ज़हन व फ़हम को काम में ना लावें? बख़िलाफ़ इसके मेरी बड़ी आरज़ू है कि वो पाक फ़रिश्ते निहायत माक़ूल तौर पर बाअदब आज़ादगी के साथ ख़ूब परखे जाएं।"

हर एक मुसलमान को जिसे ये किताब पढ़ने का इत्तिफ़ाक़ हो लाज़िम है कि सर सय्यद अहमद के क़ौल के मुताबिक़ निहायत अदब और जायज़ आज़ादगी से इस किताब को परखे जिस पर उस के ईमान की बुनियाद है क्योंकि उस के इस मुहक़्क़िक़ाना इमतियाज़ के नताइज अबदी होंगे। हम तो ये मानते हैं और साबित भी करेंगे कि क़ुरआन महिज़ उन ख़लत-मलत तालीमात व हकायात का मजमूआ है जो हज़रत मुहम्मद के ज़माना में अरब में मुरव्वज थीं और जिन को आप ने किसी क़दर हसब मौक़ा व हसब मतलब अदल बदल करके वक़तन-फ़-वक़तन वही इलाही के नाम से पेश किया। इन हिकायात पर कुछ अवामिर व नवाही का भी इज़ाफ़ा किया गया था जो नाज़ुक वक़्तों में अशद जरूरतों के तक़ाज़े से वज़ाअ किए गए। लिहाज़ा हमारा इरादा है कि बिल-तर्तीब मुबाहिस-ए-जे़ल पर बेहस करें।:-

  1. क़ुरआन के वो हिस्से जो हज़रत मुहम्मद ने अपने वक़्त के बद्वी मज़ाहिब से बना लिए
  2. वो हिस्से जो यहूदी असल के हैं और बाइबल व रिवायात यहूद से लिए गए हैं
  3. वो हिस्से जो आँहज़रत ने अपने हम असर मसीहीयों से सीखे और
  4. क़ुरआन के वो हिस्से जो ख़ास ख़ास मवाक़े पर वज़ाअ किए गए और जिन से आँहज़रत की मुतग़ाइर व मतबाईन कार्यवाईयों की ताईद व तस्दीक़ की गई।

1. मिश्कात अल-मसाबिह

2. सुरह अलक़ पहली पाँच आयात