दावत ए इस्लाम

Dawat-i-Islam

दावत ए इस्लाम

अज़

जिसको जनाब पादरी जोएल डेविड साहिब मरहूम ने बाआनत पादरी एस-निहाल सिंग-बी-ए-जनाब सर विलीयम मियूर साहिब बहादुर-एल-एल-डी-की किताब मुस्लिम इन्वाइटेड टू रीड दी बाइबल से तर्जुमा किया

और

नार्थ इंडिया क्रिश्चन ट्रेक्ट एंड बुक सोसाईटी

इलाहबाद
ने
इंडियन क्रिश्चन प्रेस इलाहाबाद में तबअ करा के शाए किया
1903 ईस्वी

Sir William Muir

N.I.T.S.

Muslim’s Invited to Read the Bible

BY

The Late SIR WILLIAM  MUIR

(27 April 1819 – 11 July 1905)

Scottish Orientalist, scholar of Islam

दावत

कि अहले इस्लाम किताब अहले यहूद व नसारा का मुतालआ फ़रमाएं

क़ुरआन में तौरेत व इंजील की तारीफ़ आई है

मैं मुसलमानों की सोहबत में तक़रीबन चालीस बरस तक रहा हूँ और उन में मेरे बहुत से मुअज़्ज़िज़ अहबाब हैं मगर मैंने शाज़ोनादर उन के पास या उन के मकानों में कोई नुस्ख़ा तौरेत या इंजील का देखा और इस बात पर मुझे बड़ी हैरत है क्योंकि मेरे यार गारो आश्नाऐयाँ ग़मख़्वार हमेशा क़ुरआन की तिलावत किया करते हैं और इस में अहले-किताब के ईलाही नविश्तों की बराबर तारीफ़ आई है और उन मुकाशफ़ात आस्मानी की भी जो इन नविश्तों में शामिल हैं। जाये ताज्जुब है कि हम अपने अहबाब अहले इस्लाम को इन किताबों का मुतालआ करते नहीं देखते जिनकी तारीफ़ उन की इल्हामी किताब में शुरू से आख़िर तक पाई जाती है और जो इन बातों से पुर हैं जो मोमिनीन के हिदायत और रहनुमाई के लिए ज़रूर हैं मुझे बड़ा शतयाक़ है कि वो आप दर्याफ़्त कर लें कि इन के नबी की तालीम तौरात व इंजील की निस्बत कैसी सच्ची और बरहक़ है पस वो इस ग़रज़ के पूरा करने के लिए पाक नविश्तों के नुस्ख़ा जो बाआसानी दस्तयाब हो सकते हैं हासिल करें और उन का मुतालआ करके ग़ौर फ़रमाएं कि क़ुरआन में उन की ख़ूबी और मंजिलत की कैसी ज़बरदस्त शहादत पाई जाती है।

इसी ग़रज़ से मैं अपने अहबाब अहले इस्लाम की ख़िदमत में ये रिसाला पेश करता हूँ और मुल्तमिस हूँ कि वो मज़ामीन जे़ल पर ग़ौर फ़रमाएं :-

अव़्वल तौरेत, ज़बूर और इंजील की फ़ज़ीलत और उन के मिंजानिब अल्लाह होने के सबूत में क़ुरआन की चंद आयात पेश करूंगा।

दोम ये साबित करूंगा कि वो सहीफ़े जो अब हमारे पास मौजूद हैं कलाम-ए-ईलाही हैं जिनकी तारीफ़ व तौसिफ उन के नबी ने बारहा की है और यह कहा है कि उन पर गवाही देना मुझ पर फ़र्ज़ है।

सोम चंद नसीहतें अख़ज़ करूंगा जो बनी-आदम की दुनिया व अक़बा की बहबूदी के लिए नाज़िल हुए हैं।

उम्मीद है कि हमारे मुसलमान भाई जब बाइबल मुक़द्दस की तालीम की ख़ूबी देखेंगे और यह बात मालूम करेंगे कि ये तालीम किस क़दर उस सना व सिफ़त के मुताबिक़ है जो उन की निस्बत क़ुरआन में पाई जाती है तो ख़ुद उसे अपने पास रखेंगे और ये मानेंगे कि उनके नबी ने बाइबल के मानने और उस की तालीम पर चलने की हिदायत यहूदी और ग़ैर क़ौम दोनों पर हमेशा बड़े शद-ओ-मद से की है तो हमारे अक़ीदे और ईमान की जान पहचान कर क़दर करेंगे।

शहादत-ए-क़ुरआनी बरक़ुतुब-ए-रब्बानी यानी कुतुब-ए-मुक़द्दसा अहले यहूद व नसारा

क़ुरआन में किस कसरत के साथ ईलाही मुकाशफ़ात गुज़शता की निस्बत शहादत आई है

ऐ मुसलमान दोस्तो आप जो रोज़मर्रा क़ुरआन की तिलावत करते या उसे ज़बानी पढ़ते हो ज़रूर मालूम क्या होगा कि क़ुरआन अगली इल्हामी किताबों के हवालों से मामूर है इस में शुरू से आख़िर तक ये पाया जाता है कि वो ऐसी किताबें हैं कि आप लोगों के नबी के नसाएह व पन्द की ख़ास ग़रज़ ये थी कि उन्हें मोअतबर ठहराएँ और वह हमेशा इस बात की नसहीत करने पर मुस्तइद रहते थे कि यहूदी और ईसाईयों पर फ़र्ज़ है कि इन किताबों के अहकाम पर अमल करें। पस इस तरह की ग़ैर-मुतगय्यर शहादत जो कभी कहीं नज़र से गुज़री हो क़ुरआन में यूं आई है कि مُّصَدِّقٌ لِّمَا مَعَكُمْ यानी क़ुरआन उन सहीफ़ों की जो पेशतर नाज़िल हुए और तुम्हारे यानी यहूदी और ईसाईयों के पास या उनके हाथ में मौजूद हैं तस्दीक़ करता है ये शहादत क़ुरआन में अस्सी (80) दफ़ा आई है कि दो तीन हवालों से ज़्यादा पेश करना फ़ुज़ूल है इस लिए मैं चंद ही हवाले बतौर मिसाल अख़ज़ करता हूँ I

जबकि मक्का के बुतपरस्त बाशिंदों ने आपके नबी को शायर और मजनूं कहा तो उन को हिदायत हुई कि यूं जवाब दें :-

सुरह अल-सफ़्फ़ात "वो आया है साथ लेकर सच्चाई और तस्दीक़ करता है उन रसूलों की जो हुए उस से आगे।”

फिर सुरह बक़र में यहूदीयों से यूं ख़िताब किया है :-

"ऐ बनी-इस्राईल याद करो हमारा एहसान जो हमने किया तुम पर और पूरा करो क़रार मेरा और मेरा ही डर रखो और मानो जो कुछ हमने उतारा सच्च बताता तुम्हारे पास वाले को।”

और फिर सुरह निसा में यूं आया है :-

"ऐ किताब वालो ईमान लाओ उस पर जो हमने नाज़िल क्या सच्च बताता है तुम्हारे पास वाले को।”

अब कुछ ज़रूर नहीं कि मैं और हवाले पेश करूँ क्योंकि आप उस के रोज़मर्रा तिलावत करने से ख़ूब वाक़िफ़ हैं कि क़ुरआन में बीसियों मुक़ाम पर ऐसी शहादत आई है जो अगली किताबों की तस्दीक़ करती है । पस ऐ मेरे दोस्तो आप लोगों को बड़ी ताज़ीम के साथ इन पर लिहाज़ करना चाहिए जिनका तज़किरा इस क़दर आपके नबी ने किया है यानी ये कलाम-ए-ईलाही है जो इन्सानों की हिदायत के वास्ते आस्मान से उतरा है इस के मज़्मूनों से आप लोगों को आगाह होना लाज़िम है अब आगे मैं ज़ाहिर करूँगा कि क़ुरआन में हमारे सहाइफ़ आस्मानी की क्या-क्या तारीफ़ आई हैI

इस बयान में
कि तौरेत ज़बूर और इंजील की तारीफ़ क़ुरआन
में आई है और उनके मुतालआ करने का हुक्म अहले-
किताब को दिया गया है

अज़-बस-कि किताब मुक़द्दसा अहले यहूद-ओ-नसारा ऐसे अफ़्ज़ल हैं और उनकी निस्बत आपके नबी ने इस कसरत से शहादत दी है मैं चंद आयतें क़ुरआन से अख़ज़ करता हूँ जिनसे उनकी क़दर-ओ-मनज़िलत आश्कारा होती हैं ये आयतें बित्तफ़्सील एक किताब मुसम्मा बशहादत क़ुरआनी बरक़ुतुब रब्बानी में मुंदरज की गई हैं और वो नॉर्थ इंडिया ट्रेक्ट सोसाइटी इलाहाबाद की तरफ़ से तबअ की गई है और वहां से बाआसानी दस्तयाब हो सकती है शायद ये आपकी नज़र से गुज़री हो और अगर आप की नज़र से ना गुज़री हो तो उसे मेरी ख़ातिर से मंगा कर मुलाहिज़ा फ़रमाए यहां इतना ही ज़रूर है कि मैं इस में चंद ख़ास आयतें इस रिसाला में नक़्ल करूँ।

पहले उन आयतों को पेश करता हूँ जो कुतुब अहले यहूद पर शहादत देती हैं।

सुरह साफ्फात” और हमने एहसान किया मूसा और हारून पर और बचा दिया हमने उनकी और उनकी क़ौम को हर घबराहट से और उनकी मदद की हमने तार है वही ज़बर और दी उन को किताब वसीअ और समझाई उन को सीधी राह।

जबकि मक्का के बुत परस्तों ने क़ुरआन को रद्द किया और यह कहा कि ये एक लगू क़दीम है तो उस के जवाब में सुरह अह्क़ाफ़ में यूं आया है :-

हालाँकि इस से पहले किताब मूसा ईमान और रहमत है और ये किताब ज़बानी अरबी में उस की तस्दीक़ करती है ताकि मुतनब्बा करे गुनाहगारों को और बशारत है नेक करने वालों के लिए।

सुरह मर्यम” और बतहक़ीक़ हमने मूसा को हिदायत और विरासत में दी बनी-इस्राईल को किताब राह दिखाने वाली और याद दिलाने वाली समझ वालों को।

सुरह हूद” और उसके (मुहम्मद) क़ब्ल है किताब मूसा ईमान और रहमत ।

सुरह इनआम” फिर हमने मूसा को किताब दी जो अहसन बात पर कामिल है और हर शैय की तफ़्सील और हिदायत और रहमत है कि शायद ये लोग अपने रब से मिलने पर ईमान लावें।

सुरह क़िसस” और बतहक़ीक़ पहले ज़माने वालों के हलाक करने के बाद हम ने मूसा को किताब दी (कि जो) आदमीयों के वास्ते बसीरत और हिदायत और रहमत है शायद कि वो लोग नसीहत क़बूल करें।

सुरह अम्बिया” और बतहक़ीक़ हमने दिया मूसा और हारून को अल-फ़ुरक़ान (यानी) इम्तियाज़ और रोशनी और नसीहत और ख़ुदा परस्तों के वास्ते जो अपने रब से डरते हैं और उस घड़ी (यानी क़ियामत) से काँपते हैं।‘

सुरह माइदा हमने उतारी तौरेत इस में हिदायत और रोशनी उस पर हुक्म करते पैग़म्बर जो हुक्मबरदार थे यहूद को और दरवेश को और आलिम को इस वास्ते कि निगहबान ठहराए थे अल्लाह की किताब पर और उस के ख़बरदार थे।

सुरह बक़र उसने (जिब्रईल) तो उतारा है ये कलाम तेरे दिल पर अल्लाह के हुक्म से सच्च बतलाता है उस कलाम को जो आगे है और राह दिखाता है और ख़ुशी सुनाता है ईमान वालों को।”

सुरह सज्दा और तहक़ीक़ हमने दी मूसा को किताब पर तो शुब्ह में मत पड़ उसके माअनी हैं और हम ने बनाया उसे हिदायत करने वाली इस्राईल के वास्ते।

सुरह जासिया” और हम ने दी बनी-इस्राईल को किताब और हुकूमत और पैग़म्बरी।

सुरह इमरान” जब यहूदीयों से बह्स कर रहे थे तो आपके नबी ने इन से कहा कि "तौरेत को लाओ और जो कुछ कहते हो उस से साबित करो।”

“लाओ तौरेत को और तुम पढ़ो अगर सच्चे हो।”

फिर उसी सुरह में यूं आया है "कि तहक़ीक़ वो हिदायत अल्लाह की हिदायत है कि दिया जाएगा मुझे (मुहम्मद) मानिंद उसके जो दिया गया है तुमको जिसके मअनी ये हैं कि क़ुरआन तौरेत के मानिंद है।

सुरह अम्बिया” और बतहक़ीक़ हमने ज़िक्र यानी तौरेत के ज़बूर में लिखा है कि मेरे बंदगान रास्तबाज़ ज़मीन के वारिस होंगे।”

सुरह बनी-इस्राईल और सुरह निसा में और हम ने दिया मूसा को ज़बूर।”

अब हम उन आयतों को जो इंजील में खुदावंद ईसा मसीह की निस्बत पाई जाती हैं नक़्ल करते हैं।

सुरह बक़र" और दी हमने ईसा मर्यम के बेटे को (इल्हाम) सरीह और ज़ोर दिया उस को रूह पाक से।”

सुरह हदीद” और हमने भेजा नूह और इब्राहिम को और रखी दोनों की औलाद में पैग़म्बरी और किताब। फिर कोई उनमें से राह पर है और बहुतेरे उनमें बे हुक्म हैं और फिर पीछे भेजा ईसा मर्यम के बेटे को और उसको दी इंजील और रखी हमने उसके साथ चलने वालों के दिल में नरमी और महर।”

सुरह निसा मसीह जो है ईसा मर्यम का बेटा रसूल है अल्लाह का और उसका कलाम जो डाल दिया मर्यम की तरफ़ और रूह है उसके यहां की सौ मानो अल्लाह को और उसके रसूलों को।”

सुरह अम्बिया (फ़रिश्ता मर्यम से कहता है) "सिखलाएगा ख़ुदा उस (ईसा) को दानाई और किताब और (उसे मुक़र्रर करेगा) रसूल बनी-इस्राईल के लिए (और वो कहेगा) बतहक़ीक़ आया हूँ मैं तुम्हारे पास......ताकि तस्दीक़ करूँ सब कुछ जो मेरे पेशतर है तौरेत में और एक हिस्सा जो मना था तुमको तुम्हारे लिए हलाल ठहराऊं।”

फिर उसी सुरह में ये है :-

"कह ऐ अहले किताब! तुम नहीं क़ायम हो किसी चीज़ पर जब तक नहीं मानते हो तौरेत और इंजील को और उस पर जो उतारा ख़ुदा ने तुम पर।”

सुरह माइदा और पीछे भेजा हमने उन्हीं के क़दमों पर ईसा और मर्यम के बेटे को सच्च बताता तौरेत को जो आगे से थी और उसको दी हमने इंजील जिसमें है हिदायत और रोशनी और सच्ची करते अपनी अगली तौरेत को और राह बताती और नसीहत डरने वालों को और चाहीए कि हुक्म करें इंजील वाले उस पर जो अल्लाह से उतरा और कोई हुक्म ना करे अल्लाह के उतारे पर सौ वही लोग हैं बहकिम।”

और तुझ पर उतारी हमने किताब तहक़ीक़ सच्चा करती सब अगली किताबों को और सब पर शामिल।”

इनके सिवा बहुत सी आयतें अख़ज़ की जा सकती हैं लेकिन शायद यही काफ़ी हैं मगर तो भी एक और सुरह इमरान से नक़्ल करता हूँ :-

अल्लाह के सिवा किसी की बंदगी नहीं जीता है सब का थामने वाला। उतारी तुझ पर किताब तहक़ीक़। साबित करती अगली किताबों को और उतारी थी तौरेत और इंजील इस से पहले लोगों की हिदायत को और उतारा (फुर्क़ान) इन्साफ़ जो लोग मुन्किर हैं अल्लाह की आयतों से उनको सख़्त अज़ाब है और अल्लाह ज़बरदस्त है बदला देने वाला।

अब ऐ मेरे दोस्तो ग़ौर करने की जगह है कि क़ुरआन में किताब अहले यहूद और नसारा की कैसी शहादत आई है कि वो किताबें इन्सान की हिदायत के वास्ते आस्मान से नाज़िल हुई हैं ये भी मद्द-ए-नज़र रहे कि क़ुरआन में हुक्म है कि जो कोई शफ़ाअत ईलाही को ना माने तो इस को ख़ुदा तआला जो इंतिक़ाम लेता है होलनाक सज़ा देगा पस क्या इस से ये बात साबित नहीं होती है कि हम सब के लिए इन कुतुब के मुआयना और मुतालआ करने और इस तरह उनकी हिदायत से फ़ायदा उठाने की दावत आई है क्योंकि आप ही के नबी साफ़ फ़रमाते हैं कि सब लोगों के वास्ते इन किताबों में हिदायतें पाई जाती हैं। क्या उनसे दस्त-बरदार रहने या ग़फ़लत करने में गुनाह नहीं है? क्योंकि फिर यूं वारिद हुआ है कि "जो कोई ईमान नहीं लाता ख़ुदा पर उसके फ़रिश्तों पर और उसकी किताबों पर और उस के नबियों पर और उस पिछले दिन पर बतहक़ीक़ गुमराह हुआ है वो एक वसीअ और ख़तरनाक भूल में है सुरह निसा।”

लेकिन शायद आप फ़रमाएंगे कि हम क्योंकर जानें कि तौरेत और इंजील जो अब तुम हमारे सामने पेश करते हो वही तौरेत और इंजील हैं जिनकी निस्बत हम लोगों के नबी ने क़ुरआन में शहादत दी है मगर इस बात में मुतलक़ शक व शुबहा नहीं है और हमें उम्मीद है कि आइन्दा फ़स्ल में ये बात पाया सबूत को पहुंच जाएगी (और मैं यक़ीन करता हूँ) कि आपसे बग़ौर व तामिल और बे तरफ़दारी मुलाहिज़ा फ़रमाएंगे।

इस बाब में कि वो किताबें जो हमारे पास मौजूद हैं वही किताबें हैं जिन पर क़ुरआन में शहादत दी गई है

ये किताबें जो हमारे पास मौजूद हैं सच्ची और ग़ैर तहरीफ़ हैं यानी तौरेत ज़बूर और इंजील वही किताबें हैं जिनका ज़िक्र बार बार क़ुरआन में आया है कि ये कुतुब ईलाही हैं।

निस्बत सहाइफ़ अहले यहोदां सहीफ़ों को ज़माने क़दीम में वक़्तन-फ़-वक़्तन मुख़्तलिफ़ नबियों और अक़्लमंदों ने इल्हाम से ज़बान इब्रानी में क़लम-बंद क्या ये सहीफ़े सैकड़ों बरस पेशतर ज़हूर ईसा यानी तव्वुलुद मसीह मौऊद तक्मील को पहुंचे पस वो इस तरह ना फ़क़त यरूशलेम व मुल्क कनआन में उनके पास मौजूद थे बल्कि दूर दौर के मुल्कों और सारी रूमी सल्तनत में फैले हुए थे जैसे कि खूदिया लोग मुद्दत से मुंतशिर थे उनकी तिलावत हमेशा हर जगह इबादत ख़ानों में हुआ करती थी उनका तर्जुमा यही ज़बान यूनानी में हुआ था जिसका ज़िक्र जे़ल में किया जाएगा।

निस्बत सहाइफ़ नसारा :- उन को पैरौवान ईसा मसीह बाद उनकी वफ़ात व क़याम ज़ब्त तहरीर में लाए यानी आप के नबी के ज़ाहिर होने से पांच सौ बरस पेशतर ईसाईयों ने यहूदीयों के सहीफ़ों को कलाम-उल्लाह जान कर क़बूल किया और इस तरह अह्दे-अतीक़ व जदीद मिला कर उन की पूरी बाइबल हुई ये उन के घरों और ख़ानदानों और बराबर ब-वक़्त इबादत इन सब मुल्कों के गिरजों में जहां दीन ईसवी फैल गया था पढ़ी जाती थी पस् इस तरह ये नविश्ते ज़माना-वर-ज़माना आपके नबी के ज़माना तक चले आए लिहाज़ा ये वही अगली किताबें हैं जिनको क़ुरआन में किताब ईलाही क़रार दिया है।

ऐ मेरे दोस्तो ग़ौर करो यह वही किताबें हैं जिनकी क़ुरआन में तस्दीक़ की गई है और जो यहूदीयों और ईसाईयों के पास सातवीं सदी ईसवी में यानी आपके नबी के ज़माना और इस वक़्त में जब क़ुरआन नाज़िल हुआ मुरव्वज थीं।

यहूदी और ईसाई जो इन किताबों के हामिल थे आपके नबी के चारों तरफ़ रहते थे तीन यहूद फ़िर्क़े बनाम कनिकवा, नधीर, करीटज़ा, मदीना के नज़्दीक तीन शहर-पनाह दार बस्तीयों में रहते थे और कुल मुल्क अरब में बहुत से ईसाई और यहूदी बूद-ओ-बाश रखते थे मसलन इन शहरों में ख़ैबर, यमन और नजरान, फिर जामा अतराफ़ अरब से मदीना में एलची आया करते थे तवारीख़ से साबित है कि शहर नजरान से मुहम्मद साहिब के पास एलची भेजे गए इनमें दो ख़ास शख़्स थे यानी वहां का सरदार वक़्त अब्दुल मसीह जो बनी कीनदा में से था और उनका उस्क़ुफ़ जो बनी हारित में से था जब उन्होंने इस्लाम क़बूल करने से इन्कार किया तो आप लोगों के नबी और उनके दर्मियान गर्मजोशी से बह्स हुई जिसका तज़किरा क़ुरआन में यूं पाया जाता है :-

सुरह इमरान तहक़ीक़ ईसा की मिसाल अल्लाह के नज़्दीक जैसे मिसाल आदम की बनाया उस को मिट्टी से फिर कहा उस को हो जाओ वो हो गया हक़ बात है तेरे रब की तरफ़ से फिर तू मत रह शक में फिर जो कोई झगड़ा करे तुझसे इस बात में बाद उस के कि पहुंच चुका तुझको इल्म तो तू कह आओ बुलावें हम अपनी बेटी और तुम्हारे बेटे और अपनी औरतें तुम्हारी औरतें और अपनी जान और तुम्हारी जान फिर दुआ करें और लानत डालें अल्लाह के झूटों पर। यही है बयान तहक़ीक़...........फिर अगर क़बूल ना करें तो अल्लाह को मालूम हैं फ़साद करने वाले। तू कह ऐ किताब वालो आओ एक सीधी बात पर हमारे तुम्हारे दर्मियान की कि हम बंदगी ना करें और किसी की सिवाए अल्लाह के।

उसी सुरह में दूसरे मौक़ा पर ये ज़िक्र है कि जब यहूदीयों ने किसी अक़ीदे पर इनसे इख़्तिलाफ़ ज़ाहिर किया और यह दावा किया कि हमारी किताब में इस का सबूत है तो आपके नबी ने इन से कहा कि लाओ यहां अपनी तौरेत और पढ़ो उसे अगर तुम सच्चे हो।”

और फिर उसी सुरह में यूं आया है "क्या उन्हें देखा" तूने इन यहूदीयों को जिनको एक हिस्सा किताब का दिया गया उनसे कहा गया था कि लाओ ख़ुदा की किताब यानी तौरेत ताकि वही फ़ैसला करे उनके दर्मियान पर फिर उनने अपनी पीठ और भाग गए इस से ज़्यादा सबूत इस बात की निस्बत पेश करना मुम्किन है कि अगली किताबें जिनका ज़िक्र आप लोगों के नबी ने बार-बार किया है कि वो ख़ुदा का कलाम है वही अह्दे-अतीक़ और जदीद में जो यहूदीयों और ईसाईयों के पास जो कि इन के गिर्द-ओ-नवाह में रहते थे मौजूद थीं। 1

यहां कोई दाग़ उनके सहीफ़ों की सदाक़त के निस्बत नहीं लगाया गया है मगर सिर्फ उनका ग़लत हवाला देना लफ़्ज़ों का हटाना और ज़बान का मरोड़ना बयान किया गया है ये शिकायत जो कुछ हो सिर्फ़ यहूदीयों के निस्बत की गई है और ईसाईयों की निस्बत कहीं नहीं पाई जाती जो पुराने और नए दोनों अह्दनामे अपनी बाइबल हैं जो उनमें मुरव्वज रखते थे।

आपके नबी ना फ़क़त उन यहूदीयों और ईसाईयों से जो मुल्क अरब में रहते थे वाक़िफ़ थे बल्कि उन से भी (वाक़िफ़ थे) जो आस-पास के मुमल्कतों में पाए जाते थे उन्होंने ख़ुद दोबार सूरया में सफ़र किया था एक-बार बीस (20) बरस के सन में अपने चचा अबू-तालिब के हमराह गए थे और दूसरे बार ख़दीजा के हुक्म से इस से शादी करने के क़ब्ल जब और जगह की आड़थों में मुख़्तारकारी करते थे इस तरह उन को बहुत मौक़ा मिला था कि वहां के ईसाईयों को देखें और उनकी किताबों से जो उन के दर्मियान गिरजों और ख़ानिकाओं में पढ़ी जाती थीं वाक़िफ़ हों।

उनको बज़ात-ए-ख़ुद इन किताबों की बाबत दर्याफ़्त करने की ख़्वाहिश थी (जिसका ज़िक्र) सुरह हदीद में पाया जाता है।

मक्के के क़ुरैश लोगों से सताए जाने के बाइस सौ मुसलमान से ज़्यादा मर्द औरत और बच्चे सने हिज्री से पाँच छः बरस पहले हब्श के मसीही सल्तनत में बादशाह नजाशी (नीगस के पास पनाह लेने को भाग गए ये मुल़्क बहर-ए-कुल्जुम के इस पर वाक़ेअ है यहां वो कई बरस तक हिज्रत के बाद रहे और सच्च है कि बाअज़ उन में से इस अव़्वल ज़माने में हब्श की कलीसिया में शामिल भी हो गए और इस तरह उन्होंने ज़रूर बाइबल से ख़ौफ़ वाक़फ़ीयत हासिल की ये भी जानने के लायक़ है कि जब जिलावतन अपने मुल्क में वापिस आने लगे तो आपके नबी ने नजाशी बादशाह को पैग़ाम भेजा कि अबू सुफ़ियान की बेटी उम्म हबीबा की शादी का इंतिज़ाम उनके साथ किया जाये और जब वो औरों के साथ मदीना में वारिद हुई तो वो फ़ौरन उसे अपने निकाह में लाए।

आपके नबी और आस-पास की मुमलकतों के दर्मियान बहुत कुछ ख़त-ओ-किताबत होती रही सन सात हिज्री में उन्होंने गर्द नवाह के सब बड़े हाकिमों के पास एलची भेजे। मसलन क़ैसर हरकलीस और ग़स्सान के शहज़ादे हारित के पास फ़ारस और हब्श के बादशाहों मिस्र के हाकिम और यमामा के सरदार के पास और उन में दावत की कि इस्लाम क़बूल करें हालाँकि किसी ने इस दावत को क़बूल ना किया मगर बाअज़ ने इन एलचियों को इन मुल्कों की किताबों और तर्ज़ इबादत मुरव्वजा से वाक़िफ़ होने का मौक़ा मिला।

मासिवा इसके आपके नबी की हरम में यहूदी और ईसाई मज़्हब की औरतें उन की इज़दवाज मौजूद थीं उसका ज़िक्र हो चुका है कि बनी करतीज़ा एक यहूदी फ़िर्क़ा था जो मदीना शहर के मुत्तसिल रहता था क़ुरैशियों ने एक बड़ी फौज़ लेकर सन पाँच हिज्री में शहर मदीना पर हमला किया उस वक़्त अगरचे इस यहूदी फ़िर्क़े को दुश्मन ना समझा लेकिन इस की दोस्ती का इतना शक किया कि जब ग़नीम पसपा हुए तो उन्होंने उनके मर्दों में से जो शुमार में आठ या नौ सौ थे थोड़ों को जिन्होंने इस्लाम क़बूल किया छोड़ कर बाक़ीयों को तहतेग़ किया और उनकी औरतों को और बच्चों को लौंडी ग़ुलाम बनाया एक ख़ूबसूरत यहुदन बनाम रिहाना बग़रत हरम में दाख़िल की गई और चूँकि उसने इस्लाम को क़बूल ना किया और अपने मज़्हब पर क़ायम रही नबी उस को अपने निकाह में ना लाए पर यूँही घर में डाल लिया।

फिर दो बरस के बाद मिस्र के हाकिम मक़ूक़स ने जब इस्लाम क़बूल करने की निस्बत दावत पाई जिसका ज़िक्र पहले हो चुका है तो इस्लाम को क़बूल ना किया मगर अज़राह लुत्फ़ ये जवाब भेजा कि तेरा एलची साथ इज़्ज़त के क़बूल किया गया और मैं उसके हाथ दो बहनों को जिनकी क़िबती लोगों के दर्मियान बड़ी क़दर है और एक चौड़ा कपड़ा और एक ख़च्चर तेरे सवारी के लिए भेजता हूँ उम्मीद है कि तू क़बूल करेगा ये ख़च्चर सफ़ैद रंग का था जो मुल़्क अरब में नायाब था ये हमेशा आप लोगों के नबी की सवारी में रहा लेकिन ख़च्चर से कहीं ज़्यादा उन्होंने मर्यम को जो इन दो क़िबती लड़कीयों में ज़्यादा दिल-फ़रेब थी पसंद किया उसको फ़ौरन अपने निकाह में लाए और उससे एक बेटा पैदा हुआ जो हालत तफ़ूलियत में राही मुल्क-ए-बक़ा हुआ फिर उस ही साल जब ख़ैबर पर फ़त्ह पाई तो नबी ने सफिया यहुदन से निकाह किया जिसका शौहर बनाम कनाना उस मग़्लूब फ़िर्क़े का सरदार था और उस जंग में काम आ चुका था।

पस जब यहूदी और ईसाई अज़वाज उनके हरम में मौजूद थीं तो आप लोगों के नबी को बख़ूबी मालूम था कि वो किताबें जो उनके के पास मौजूद थीं कौन कौन और कैसी थीं और इसी वजह से उन किताबों की क़दर और मंजिलत का ज़िक्र बार-बार क़ुरआन में आया है।

ये बात याद रहे कि नबी की वफ़ात के दो बरस बाद मुसलमान फ़ौजें अरब से निकल कर सरिया और आस-पास के मुल्कों में फैल गईं और उन्होंने यहूदीयों और ईसाईयों की गिरोह की गिरोह को जबरन दाख़िल इस्लाम किया ये मुल़्क गिरजों और ख़ानक़ाहों और यहूदीयों के इबादत ख़ानों से मामूर था पस सभों ने मसीही क़ौम की किताबों को ज़रूर देखा और जाना होगा ये वही किताबें हैं जो उस वक़्त तमाम दुनिया में जारी थीं और जिन पर आपके नबी यानी मुहम्मद साहिब क़ुरआन में शहादत देते हैं।

वह शख़्स जो आपके नबी के हालात-ए-ज़िंदगी से वाक़िफ़ है और बहुत कुछ लिख सकता है लेकिन जो कुछ इस बात के सबूत में मैंने कहा इतना ही काफ़ी है कि बाइबल जो सातवीं सदी में अश्या-ए-यूरोप और अफ़्रीक़ा के बीच यहूदीयों और ईसाईयों के पास मौजूद थी वही ख़ुदा की किताब है जो पुश्त दर पुश्त गुज़रती हुई आप लोगों के नबी के ज़माना तक पहुंची और इसी तरह हमारे वक़्त तक आई है मुम्किन नहीं कि ये कोई और किताब हो मगर हम आगे बढ़कर उसका और सबूत देंगे कि ये शुरू से हमारे पास बिला-तहरीफ़ चली आती है।

इस सबूत में पुराने और नए अह्दनामे के सहीफ़े जो असल में यहूदीयों और ईसाईयों को इल्हाम से मिले बिला-तहरीफ़ हमारे पास मौजूद हैं


ये तस्लीम करने के बाद कि अह्दे-अतीक़ व जदीद के सहीफ़े वही हैं जिन पर आप लोगों के नबी ने क़ुरआन में शहादत दी है ये जान लेना आपके पसंद ख़ातिर होगा कि और शहादतें भी मिलती हैं जिनसे साबित होता है कि ये किताबें असल और हक़ीक़त में वही हैं जो शुरू में यहूदीयों और ईसाईयों को दी गईं पस हम बतौर इख़्तिसार उनके गुज़शता तवारीख़ और सदाक़त की शहादतों का तज़किरा करेंगे।

अव्वल तवारीख़ नुज़ूल- ईसा के सऊद के बाद मसीही दीन की बशारत यहूदीयों और ग़ैर क़ौमों के दर्मियान की गई और थोड़े ही अरसा में सारी कमरो-रदम में फैल गई मसीही जमातें और कलीसियाएं हर कहीं क़ायम हो गईं। 2

और इस तरह उन किताबों की जो मसीही ज़िंदगी और ईमान के तालीम से पुर हैं दोनों ख़ल्वती और आम इबादत के लिए बहुत ज़रूरत है पस इस लिए तैयार की गईं और इस सारी सरज़मीन में फैल गए इसमें ना फ़क़त इंजील और दीगर मसीही किताबें और ख़ुतूत शामिल हैं बल्कि यहूदीयों के वो सहीफ़े भी जो ज़माना दराज़ से यहूदीयों के इबादत ख़ानों में पढ़े जाते थे और इस तरह ज़हूर ईसा के लिए दुनिया तैयार की गई लिहाज़ा दोनों पुराने और नए अह्द नामे ईसाईयों के नज़्दीक मुसल्लम कलाम-ए-ख़ुदा माने जाते हैं इस तरह बाइबल मशरिक़ और मग़रिब में असली ज़बान में फैल गई और सब क़ौमों के दर्मियान क़ायम हो गई और यूं सारी दुनिया में मुरव्वज और मुस्तअमल होने की वजह से पुश्त-दर-पुश्त हम तक पहुंची जिस तरह क़ुरआन आप लोगों के नबी की वफ़ात से अब तक वही ग़ैर मुतबद्दल किताब पाई जाती है।

इसका भी ज़िक्र करना ज़रूर है कि दीन ईसवी की आग़ाज़ से क़रीब तीन सदीयों तक रूमी बुतपरस्त शाहंशाह हुक्मराँ रहे मगर असल मतन में इन की तरफ़ से किसी तरह की दस्त-अंदाज़ी और तब्दीली वाक़े ना हुई अगरचे पैरौओंन ईसा ने अक्सर ज़ुल्म सहे और शहीद हुए लेकिन उन की किताब को जो सारी दुनिया में फैली हुई थी नेस्त व नाबूद करने की कोशिश करना बेसूद व ग़ैर-मुम्किन था।

दोवेम बाइबल के तर्जुमे

एक ख़ास और भारी सबूत हमारे किताब की मुहफ़ाज़त का ये है कि शुरू ज़माने से उसका तर्जुमा इन मुल्कों के ज़बानों में हो गया था जिनमें दीन ईसवी रिवाज पा चुका था जहां लोग ख़ुद यूनानी या इब्रानी ज़बान बोलते थे वहां तर्जुमें की ज़रूरत ना थी लेकिन और सब मुल्कों में वहीं की ज़बानों में तर्जुमा बाइबल का कर दिया गया था क्योंकि ईसाईयों की ये आदत कभी नहीं रही है कि वो अपनी ख़ानगी और आम इबादतों में असल ज़बान की क़ैद रखें जिसमें वो किताबें लिखी गईं जैसा कि मेरे दोस्तों आप लोगों की कैफ़ीयत क़ुरआन की निस्बत है बाइबल हर कहीं असल ज़बानों यानी इब्रानी और यूनानी में पाई जाती है और उसे वो लोग पढ़ते हैं जो उन ज़बानों से वाक़िफ़ हैं लेकिन मसीही हमेशा ज़्यादा-तर बाइबल का तर्जुमा उनके ख़ास ख़ास ज़बानों में होता आया है ख़ल्वत और घर और गिरजों में पढ़ते थे इस तरह शुरू ज़माना से पाक कलाम का तर्जुमा लातीनी, क़िबती, सुर्यानी, अर्मनी, और हब्शी ज़बानों में किया गया और अभी तक मौजूद है और वो लोग हमेशा उन्हें अपने अपने ज़बानों में पढ़ते आए हैं पुराने अह्दनामे का सीप्टोवाज्नट तर्जुमा का ज़िक्र हम कर चुके हैं इस को यहूदीयों ने ज़बान यूनानी में सिकंदरीया शहर में आप लोगों के नबी से सदहा बरस पेशतर किया था।

ऐ नाज़रीन ये तर्जुमा अब मौजूद हैं और आप खूद या आपके आलिम उन्हें जांच सकते हैं इस तरह एक बड़ा सबूत इन सहीफ़ों के बेतहरीफ़ होने का तर्जुमों के मुक़ाबला करने से मिलता है क्योंकि ये तर्जुमा हालाँकि मुतफ़र्रिक़ ज़मानों और ज़बानों में किए गए तो भी उस असल के मुताबिक़ हैं पस असल में तब्दीली वाक़े नहीं हुई जैसा कि वो उस क़दीम ज़माने में था वैसा ही अब है क्योंकि सारे तर्जुमे एक ही असल मतन से किए गए और उसी के मुताबिक़ पाए जाते हैं अब ऐ दोस्तो मुझे बड़ी तमन्ना है कि आप इस ख़ास बात पर ग़ौर करेंगे कि इब्रानी और यूनानी ज़बानों में असल और यही तर्जुमा जो आपके नबी के वक़्त से मुद्दत दराज़ पेशतर किऐ गऐ दोनों अरबिस्तान सरिया हब्श और दीगर मुल्कों के ईसाईयों और यहूदीयों के पास मौजूद थे बल्कि सच्च तो यूं है कि कुल क़ौमों के पास जो नबी के गर्दवपीश रहती थीं पाऐ जाते थे पस ये वही किताबें हैं जो असली या तर्जुमा के हालत में रोज़मर्रा मुस्तक़िल थीं और जिन पर आप लोगों के नबी ने ये गवाही दी है कि वो ख़ुदा का कलाम है जो क़ुरआन के पेशतर नाज़िल हुआ।

पाक कलाम के पुराने नुस्ख़े आप वो क़लमी नुस्खे़ आज देख सकते हैं जो आपके नबी के ज़माने से क़ब्ल नक़्ल किऐ गऐ थे ऐसे नुस्खे़ इंजील के बहुत पाऐ जाते हैं मगर यहां पर उनकी निस्बत तहरीर करने की कुछ ज़रूरत नहीं है क्योंकि हम बाइबल के बाअज़ मुसल्लम नुस्ख़ों का बयान किऐ देते हैं जो आपके ज़्यादा पसंद ख़ातिर होगा शहर रुम में वटीकन नुस्ख़ा और सेंट पीटज़बर्ग में सटीक नुस्ख़ा (वो नुस्ख़ा जो सेंट पीटर्सबर्ग में मौजूद है शहनशाह कसटानटाईन के हुक्म से क़ुस्तुनतुनिया के एक गिरजाघर के लिऐ नक़्ल किया गया था और वहां एक मुद्दत तक रहा था अब मौजूद है) ये दोनों चौथी सदी के शुरू हिस्से में यानी आपके नबी की विलादत से क़रीब तीन सो बरस पेशतर नक़्ल किऐ गऐ थे फिर शहर पार्स में अफ़्राईमी नुस्ख़ा और शहर लंदन के इंग्लिस्तान की अजाइब ख़ाने में सिकंदरिया नुस्ख़ा अब तक मौजूद हैं ये दोनों पांचवीं सदी के लिखे हुऐ हैं और किऐ एक छट्टी सदी के लिखे हुऐ यूरोप और तुर्किस्तान में पाऐ जाते हैं।

ये सब जिल्दें मौजूद हैं जिसका जी चाहे आज देख ले उनसे इस बात का पूरा सबूत मिलता है कि ये सब के सब आपके नबी के ज़माने से पेशतर के लिखे हुऐ हुऐ हैं पस साबित होता है कि जो किताबें हम आपके सामने पेश करते हैं ज़रूर बिल ज़रूर वही नविश्ते हैं जिन पर उन्होंने बारहा शहादत दी कि वो फ़िल-हक़ीक़त ख़ुदा का कलाम है।

अगर ज़्यादा सबूत की ज़रूरत है तो इस सच्चाई का एक और बड़ा सबूत ये है कि पुराने और नऐ अह्द नामों के कुल हिस्सों से उन मुसन्निफ़ों ने जो इस्लाम के आग़ाज़ से पहले हुई अपने किताबों में इक़्तिबास किया है ऐसे बहुत मुसन्निफ़ गुज़रे हैं जिनकी तस्नीफ़ें अब तक पाई जाती हैं इन किताबों में इन मुसन्निफ़ों ने बाइबल मुक़द्दस से इक़्तिबास इस ग़रज़ से मुतवातिर किया है कि अपनी राएं दलाईल व नसीहतें बह सबूत मुनकशिफ़ करें। पस अगर दूर ना जाये तो दूसरी और तीसरी सदी में हम मसुनफ़ान टरटोलीन, आईरीनीस, ओरीजन, और दीगर मुसन्निफ़ों की किताबों में तौरेत और ज़बूर और इंजील के बहुत हवाले पाते हैं और चौथी सदी में ग्रेगरी बैसल एंब्रोज़, जेरोम, अगसटीन और बहुत और मुसन्निफ़ों के ये हवाला जो आपके नबी के ज़माना से बहुत पेशतर इन किताबों से इक़्तिबास किऐ गऐ। इन किताबों से जो हमारे पास हैं बिल्कुल मिलते। और इस तरह उनके हमशबीया होने से पूरा सबूत पहुंचता है कि ये किताबें वही हैं जिन पर क़ुरआन शहादत देता है।

यह बात मुश्किल नहीं है कि ख़ुद आप या आपके आलिम फ़ाज़िल अहबाब जो दुनिया की सैर करते हैं इन जुदागाना शहादतों की जो मैंने पेश कीं तस्दीक़ कर लें। ऐसी बातों का कहना जो जाहिल हमारी किताब मुक़द्दस की निस्बत कहते हैं ऐसी नादानी की बात है। जैसे कोई शख़्स क़ुरआन की सेहत पर शक करे आप इस से कहें कि अच्छा कि अगर तुमको शक व शुब्हा है तो तुम शहर दमिशक़ के मस्जिद अक़्सा में ख़ुद ख़लीफ़ा उस्मान के हाथ के नक़्ल किऐ हुऐ नुस्ख़ा क्यों ना देख लो या तुम इस शख़्स से कहोगे कि ज़मक़शारी और दीगर मुसन्निफ़ों की तफ़ासीर को देखिऐ जिनमें तुम्हारी किताब की हर एक आयत वैसे ही पाई जाती है जैसे क़ुरआन में मौजूद है। या तुम उसके सामने अपने नबी की ज़िंदगी की तवारीख़ें जो इब्ने इस्हाक़ और इब्ने हिशाम और मैदानी ने तस्नीफ़ की हैं पेश करोगे। या वो तवारीख़ें उसके सामने पेश करोगे जिनको तबरी और मकरीज़ी और इब्ने अतहर ने लिखा है जिनमें क़ुरआन की सदहा आयतें इक़्तिबास की हुई नज़र से गुज़रेंगी। और यूं वो शक करने वाला उलमा के नज़्दीक मौरिद तम्सख़र और मुज़हका ठहरेगा। पस ऐसा ही हाल हमारी बाइबल मुक़द्दस का है इस की सदाक़त की शहादत के निस्बत मज़ीद सबूत ये है कि इसके क़दीम तर्जुमा भी मौजूद हैं जो अहले इस्लाम के पास क़ुरआन की शहादत में नहीं पाऐ जाते। 3

बाइबल की असलीयत के निस्बत क्योंकर शक व शुब्हा हो सकता है। अगर कोई शख़्स ज़रा तक्लीफ़ उठाकर तहक़ीक़ करे तो उसे साफ़ मालूम हो जाऐगा। कि ऐसा शक व शुब्हा करना मह्ज़ बे-सबात व गलत है।

ऐ मेरे दोस्तो क्या मुनासिब नहीं कि आप ज़रा तक्लीफ़ उठाकर उन शहादतों को जांचें जिससे ये बात साबित होती है कि ये तौरेत व इंजील जिनके मुतालआ करने की आपको दावत दी जाती है वही तौरेत इंजील हैं जो शुरू ज़माना इस्लाम में मौजूद थीं क्योंकि आप इस हक़ीक़त को वाग़ुज़ाशत नहीं कर सकते कि आपके नबी ने क़ुरआन में बड़ी ताकीद के साथ अहले यहूद और अहले नसारा की निस्बत फ़रमाया है कि अगर तौरेत व इंजील के हुक्मों पर जो उनके ख़ुदावंद ने नाज़िल कीं क़ायम ना रहें या अमल ना करें तो उनकी कोई बुनियाद नहीं है।

पस जबकि आपके नबी साहिब ने इंजील के हुक्मों पर अमल करना ही हमारी रुहानी ज़िंदगी व सलामती के लिऐ एक अम्र ज़रूरी व लाज़मी ठहराया तो हम ईसाई ताज्जुब करते हैं कि आप इन पाक सहीफ़ों की ज़्यादा क़दर-ओ-मन्ज़िलत क्यों नहीं करते। हमारी दिली आरज़ू ये है कि आप उनकी जांच और तिलावत करेंगे क्योंकि जब आपके नबी ने उनकी तारीफ़ व तौसीफ की है कि बग़ैर उनकी हमारी कोई बुनियाद नहीं तो ज़रूर बिल-ज़रूर इस इल्हामी कलाम में आप भी बहुत कुछ पाएंगे जिसे आप पसंद करेंगे और फ़ायदा ख़ातिर-ख़्वाह उठाएँगे कि आपकी रुहानी ज़िंदगी में बड़ी तरक़्क़ी होगी। ज़रा इस अम्र पर लिहाज़ कीजिऐ कि क़ुरआन में इन किताबों की तारीफ़ में कैसे हैरत-अफ़्ज़ा व पुर-माअनी अल्फ़ाज़ अल्क़ाब आऐ हैं।

 

असल ज़बानी अरबी
किताब-उल्लाह ही
  तर्जुमा
किताब अल्लाह की
كِتَابَ اللَّهِ   किताब अल्लाह की
بَصَاۗىِٕرَ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَّرَحْمَةً
التَّوْرٰىۃِ وَہُدًى وَّمَوْعِظَۃً لِّلْمُتَّقِيْنَۭ
  इन्सान के वास्ते रोशनी और हिदायत और रहमत
किताब नूर और हिदायत और नसीहतें परहेज़गारों के लिऐ
وھدیٰ وذکرفی والالباب   हिदायत और तंबीह साहिब और अक़्ल व फ़हम के लिऐ
ضیا وذکر للمتقین   रोशनी और तंबीह मोमिनीन के लिऐ

जबकि क़ुरआन से ऐसी क़वी शहादत तौरेत, ज़बूर व इंजील के निस्बत दस्तयाब हो तो ऐ मेरे दोस्तो अब तुम्हें शक करने की जगह अब कहाँ रही ज़रा उन अल्क़ाबों पर जो क़ुरआन में पाक नविश्तों के निस्बत आई हैं ज़रा ग़ौर कीजिऐ।

इक़्तबासात
तौरात व ज़बूर व इंजील से

अब हम अपने दोस्तों के लिऐ चंद आयात तौरात व ज़बूर और इंजील से इक़्तिबास करके लिखते हैं ताकि उनको इन सहीफ़ों की ख़ूबी व फ़ज़ीलत मालूम हो जाऐ और अगर ये इक़्तिबास मुतालआ करने पर उनको पसंद आएं तो फिर इस रिसाला के ज़मीमा पर नज़र डालें ताकि उनको कलाम-ऐ-ख़ुदा से पूरी पूरी आगाही हो जाऐ।

शुरू में दो तीन मुक़ाम तौरात व ज़बूर से नक़्ल करता हूँ जिन को अम्बिया व मुसन्निफ़ ज़बूर ने खुदावंद मसीह की पैदाइश से सदहा साल क़ब्ल कलमबंद किया था। देखो कलाम जे़ल कितना ख़ूबसूरत है। ज़बूर 63:1-8- ऐ ख़ुदा तू मेरा ख़ुदा है मैं तड़के तुझको ढूँडूँगा मेरी जान तेरी प्यासी है और जिस्म ख़ुशक और धूप की जली हुई ज़मीन में। जहां पानी नहीं पड़ा मुश्ताक़ है ताकि तेरी क़ुदरत और तेरी हशमत को देखे। जैसा कि मैंने बैत क़ुद्दुस में देखा है। इसलिऐ कि तेरी मेहरबानी ज़िंदगी से बेहतर है। तो मेरे होंट तेरी सताइश करते रहेंगे। इसी तरह कि जब तक कि मैं जीता हूँ तुझको मुबारक कहा करूंगा और तेरा नाम ले लेके अपने हाथ उठाऊंगा। मेरी जान यूं सैर होगी गोया कि गूदा और चर्बी और मेरा मुँह ख़ुशी करते हुऐ होंटों से तेरी सताइश करेगा। जबकि मैं तुझे अपने बिस्तर पर याद करता हूँ। और रात के पहर दिन में तेरा ध्यान करता हूँ। इसलिऐ कि तू मेरा चारा हुआ पस मैं तेरे पैरों की छांवों तले ख़ुशी मनाऊँगा। मेरी जान तेरे पीछे लगी है तेरा दाहिना हाथ मुझको थामता है।

कलाम जे़ल यसअयाह नबी की किताब से हुआ है

बाब 2:1-3 :- और उस दिन तू कहेगा ऐ ख़ुदावंद में तेरी सताइश करूंगा कि अगरचे तू मुझसे नाख़ुश था पर तेरा ग़ुस्सा उतर गया और तूने मुझे तसल्ली दी। देखो ख़ुदा मेरी नजात है मैं इस पर तवक्कुल करूंगा और ना डरूँगा कि याह यहोवाह मेरा बूता और मेरा असरोद है और वो मेरी नजात हुआ है। सो तुम ख़ुश होके नजात के चश्मों से पानी भरोगे ।

और यह कलाम हबक्क़ुक़ नबी की किताब से है बाब 3:17-19 :-

हरचंद इंजीर का दरख़्त ना फूले और ताकों में मेवा ना लगें और जैतून के फल जाते रहें और खेतों में कुछ अनाज पैदा ना हो और गल्ला भेड़ साले में काट डाला जाये और गाय बैल थानों में ना रहें इस पर भी मैं ख़ुदावंद की याद में ख़ुशी करूंगा मैं अपनी नजात के ख़ुदा के सबब ख़ुशवक़त हूँगा।

अब ऐ अज़ीज़ दोस्तो मेरी दरख्वास्त आपसे ये है कि जे़ल की चंद आयतें हर दो इंजील शरीफ़ से मैं इक़्तिबास करता हूँ नज़र डालें।

खुदावंद मसीह ने फ़रमाया मुक़द्दस मत्ती की इंजील बाब 11:25-30 :-

उस वक़्त येसु कहने लगा ऐ बाप आस्मान और ज़मीन के मालिक मैं आपकी हम्द करता हूँ कि आपने ये बातें दानाओं और अक़्लमंदों से छुपाया और बच्चों पर ज़ाहिर किया। हाँ ऐ बाप कि यूँ ही तुझे पसंद आया। मेरे बाप की तरफ़ से सब कुछ मुझे सौंपा गया और कोई बेटे को नहीं जानता मगर बाप के और कोई बाप को नहीं जानता मगर बेटा और उसके जिस पर बेटा इसे ज़ाहिर किया चाहता है। ऐ तुम लोगों जो थके और बड़े बोझ से दबे हो सब मेरे पास आओ कि मैं तुम्हे आराम दूंगाI मेरा जुआ अपने ऊपर उठालो और मुझसे सीखो। क्योंकि मैं हलीम हूँ और दिल का फ़रोतन तो तुम्हारी जानें आराम पाएँगी। क्योंकि मेरा जुआ मुलाइम है और मेरा बोझ हल्का।

खुदावंद मसीह की तालीम मुक़द्दस मत्ती बाब 7:21 ना हर एक जो मुझे ख़ुदावंद ख़ुदावंद कहता है आस्मान की बादशाहत में शामिल होगा मगर वही जो मेरे बाप की जो आस्मान पर है इस की मर्ज़ी पर चलता है।

फिर मुक़द्दस मरक़ुस बाब 3:31-35 तक : उस वक़्त उसके भाई और उसकी माँ आई और बाहर खड़े रह कर उसे बुलवा भेजा। और जमात उसके आसपास बैठी थी और उन्होंने उससे कहा देख तेरी माँ और तेरे भाई बाहर तुझे तलब करते हैं। उसने उन्हें जवाब दिया कौन है मेरी माँ या मेरे भाई? और उन पर जो उसके आसपास बैठे थे नज़र करके कहा देखो मेरी माँ और मेरे भाई। इसलिए कि जो कोई खुदा कि मर्ज़ी पर चलता है मेरा भाई और मेरी बहन और मेरी माँ वही हैं।

यहया इब्ने ज़करिया की शहादत देखो मुक़द्दस युहन्ना बाब 1: आयत 29 :-

दूसरे दिन युहन्ना ने खुदावंद येसु मसीह को अपनी तरफ़ आते देखकर कहा देखो ये खुदा का बर्रा जो जहान का गुनाह उठा ले जाता है। 4

मुक़द्दस युहन्ना बाब 1:32-34 :-

और युहन्ना ने ये कहा कि मैंने रूह को कबूतर की तरह आस्मान से उतरते देखा और वो उस पर ठहर गया। और मैं तो उसे पहचानता ना था मगर जिसने मुझे पानी से इस्तिबाग़ देने को भेजा उसी ने मुझसे कहा कि जिस पर तुम रूह को उतरते और ठहरते देखो वही रूहुल-क़ुद्दुस से बप्तिस्मा देने वाला है । सो मैंने देखा और गवाही दी है कि ये खुदा का बेटा है ।

मत्ती बाब 3:17 :-

और देखो आस्मान से ये आवाज़ आई कि ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे मैं ख़ुश हूँ।

जे़ल में मसीही दीन का ख़ुलासा दर्ज है जो मुक़द्दस पौलुस ने तीतस बाब 2:11-14 ख़त में तहरीर फ़रमाया है :-

क्योंकि खुदा का फ़ज़्ल की जो सारे आदमीयों के लिए नजात-बख्श है ज़ाहिर हुवा है। और हमें सिखलाता है कि बेदीनी और दुनिया कि बुरी ख़्वाहिशों से इन्कार करके इस मौजूदा जहान में होशियारी और रास्ती दीन-दारी से ज़िंदगी गुज़ारें। और इस मुबारक उम्मीद यानी अपने बुज़ुर्ग ख़ुदा और अपने बचाने वाले खुदावंद येसु मसीह के ज़हूर जलील का इन्तिज़ार करें जिसने आपको हमारे बदले दियाI ताकि वह हमें सब तरह की बदकारियों से छोड़ दे और एक ख़ास उम्मत को जो नेकोकारी में सरगर्म होवे अपने लिए पाक करेI

और मुक़द्दस पतरस का क़ौल ये है पहला पतरस बाब 1:3-5 :-

हमारे खुदावंद येसु मसीह का खुदा और बाप मुबारक हो जिसने हमको अपनी बड़ी रहमत से येसु मसीह के मुर्दों में से जी उठने के बाइस जिंदा उम्मीद के लिए सरे नौव पैदा किया ताकि हम वह बेज़वाल और ना-आलूदा और गैर-फानी मीरास जो आस्मान पर तुम्हारे लिए रखी गई पाएं I जो ख़ुदा के फ़ज़्ल से ईमान के वसीले उस निजात तक जो आखीर वक़्त में जाहीर होने को तैयार है महफूज़ कि हुई हैI

और रसूल मक़्बूल युहन्ना पहला ख़त बाब 2:1-5
में यूं मर्क़ूम है

ऐ मेरे बच्चो ! मैं ये बातें तुम्हें लिखता हूँ कि तुम गुनाह ना करो और अगर कोई गुनाह करे तो येसु मसीह जो सादिक़ है बाप के पास हमारा शफ़ीअ है और वह हमारे गुनाहों का कफ्फारा है फ़क़त हमारे गुनाहों का नहीं बल्कि तमाम दुनिया के गुनाहों का यही अगर हम और उसके हुक्मों पर अमल करें तो हम इससे जानते हैं कि हमने उसको जाना वह जो कहता है कि मैं उसे जानता हूँ और हुक्मों पर अमल नही करता सो झुटा है और सच्चाई उसमें नहींI

मुक़द्दस याक़ूब बाब 1:17 व 27 में
यूं फ़रमाते हैं

हर अच्छी बख़शिश और हर कामिल इनाम ऊपर से है और नूरों के बानी की तरफ़ से उतरता है जिसमें बदलने मबर जाने का साया नहीं I वह दीनदारी जो ख़ुदा और बाप के आगे पाक और बेएब है सो यही है कि यतीमों और बेवाओं कि मुसीबत के वक़्त उनकी ख़बरगीरी करना और आपको दुनिया से बेदाग़ रखना I

अब ऐ दोस्तों आखरी दो आयतें मुक़द्दस यहुदाह के ख़त से भी पेश करता हूँ उनको मुलाहिज़ा फरमाएं :-

पहला बाब 24 व 25 :-

अब उसके लिए जो तुमको गिरने से बचा सकता है और अपने जलाल के हुज़ूर कामिल ख़ुशी से तुम्हे बेएब खड़ा कर सकता है जो खुदाए वाहीद हकीम और हमारा बचाने वाला, जलाल और हशमत और क़ुदरत और इख्तियारात से अबद तक होवे I अमीन

इख़्तिताम

ऐ मेरे अज़ीज़ो दोस्तो मैंने चंद इक़्तबासात तौरात व ज़बूर और इंजील से बदींग़र्ज़ पेश किऐ हैं कि आप उनका मुतालआ करें जिससे आपको इन किताबों की तालीम से वाक़फ़ीयत हासिल हो। ये मुबारक किताबें आपके मुलाहिज़ा के लिऐ मौजूद हैं उनका मुतालआ आप जिस वक़्त चाहें कर सकते हैं लेकिन मैंने इसी रिसाले के ज़मीमा में और मुक़ामात पाक नविश्तों से इक़्तिबास किये हैं कि आप उनका मुतालआ करें ताकि और भी ज़्यादा आगाही आपको कलाम ईलाही की तालीम से हो जाऐ।

ऐ अज़ीज़ो आप को ये बात ख़ूब याद रखनी मुनासिब है। ये सारी तालीम इस किताब की है जिस पर क़ुरआन साफ़ साफ़ शहादत देता है और ये कहता है कि ये तमाम व कमाल कलाम-ऐ-ईलाही है।

जिसका लक़ब किताब-ऐ-मुनीर, और इन्सानों के लिऐ हिदायात और मुत्तक़ियों के लिऐ वाअज़ व नसहीत व हिदायत है। वो लोग जो ख़ुदा के इल्हाम व मुकाशफ़ा से ग़ाफ़िल हैं और यह कहते हैं कि हम कलाम-ऐ-ईलाही के एक हिस्सा पर ईमान लाऐ और एक हिस्सा से मुन्किर हैं और दोनों के दर्मियान की राह पर चलते हैं ऐसों की निस्बत आप के नबी का ये क़ौल है कि वो ख़तरनाक और होलनाक हालत में गिरफ़्तार हैं। मगर वो लोग जो ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाऐ हैं और उन के दर्मियान कुछ फ़र्क़ नहीं करते उन को यक़ीनन ह्म अज्र अज़ीम देंगे।

ख़ुदा रहीम व करीम और बड़ा बख़्शने वाला है। सुरह निसा ऐ अज़ीज़ो दोस्तो क्या आप अपने पर ज़र्रा सी तक्लीफ़ उठाकर उन पाक नविश्तों का ख़ुद मुतालआ ना करेंगे और उनकी इल्हामी तालीम से मुस्तफ़ीद व मुस्तफैज़ ना होंगे?

आपने क़ुरआन-ऐ-मजीद में ये बयान ईसा इब्ने मरियम की निस्बत ज़रूर पढ़ा होगा जिसको मैं पहले इक़्तिबास कर चुका हूँ कि ईसा रसूलुल्लाह व रूहुल्लाह है। वो कलिमतुल्लाह है जिसको मर्यम बाकरा की तरफ़ मंसूब किया तुमने क़ुरआन में उसके मोजज़ों और करामात का भी हाल पढा होगा और यह भी ज़रूर नज़र से गुज़रा होगा कि उस पर इंजील नाज़िल हुई। अब हमें मुनासिब है कि इस की आस्मानी तालीम और मुकाशफ़ा से फ़ायदा उठाएं। हमें उसकी किताब आस्मानी इंजील की तिलावत करनी लाज़िम है और इसकी निस्बत ये जानना हम पर फ़र्ज़ है कि उसने एक जमात कसीर को चंद रोटियों से खिलाकर सैर किया। सदहा बल्कि हज़ार हाँ मरीज़ों को चंगा किया, लंगड़ों को पांव दीऐ, मफ़लूजों और मबरूसों को सेहत बख़्शी, तूफ़ान में समुंद्र पर चला। देवों को अपने सुख़न से निकाला। गूंगों को गोयाई की ताक़त और अँधों को बीनाई की क़ुदरत बख़्शी, दीवानों को शिफ़ा दी और मुर्दों को ज़िंदा किया। ऐ अज़ीज़ो दोस्तो उसकी तालीम पर ग़ौर करो। उसकी तम्सीलों पर सोचो। और उस तरीक़ा नजात को इख़्तियार करो जो कि उसने ईमानदारों के लिऐ तैयार किया है।

क्योंकि इस पाक किताब में ये साफ़ साफ़ लिखा है कि ईसा इब्ने मरियम आस्मान से इस दार-ऐ-फ़ानी में इसलिऐ आया कि गुनाहगारों के लिऐ अपनी जान दे और हमें ख़लासी बख़्शे। उसने इसलिऐ जामा इन्सान इख़्तियार किया है कि हमारा भाई बन कर हमारे लिऐ अपनी जान-निसार करे। पस वो इस दुनिया में ज़िंदा रहा और मर गया। फिर मुर्दों में से जी उठा और आस्मान पर चढ़ गया और अल्लाह तआला जलशाना व जलाला के दहने हाथ बैठा है कि हम गुनहगार ज़लील व ख़्वार इन्सानों को नजात अबदी व हयात जाविदानी व मीरास ग़ैर-फ़ानी बख़्शे।

ये सारा बयान इसी पाक किताब में जिसे बाइबल मुक़द्दस कहते हैं दर्ज है और जिसकी निस्बत आपके नबी ताकीदन अपनी ज़बान मुबारक से ये फ़रमाते हैं कि वो कलाम-उल्लाह है। ऐ दोस्तो क्या आप ख़ुद इस ख़ुशख़बरी का मुतालआ करके अपने तईं हलक़ा मोमिनीन में दाख़िल ना करेंगे और इस हक़ को ख़ुद तहक़ीक़ ना कर लेंगे जिस पर अंजहानी व आंनजहानी हयात व सरोर मौक़ूफ़ है?

और अगर हम ख़ुदा बाप के पास उस के मुबारक बेटे के नाम से आएं और दिली तौबा करें कि जो कुछ हमें करना था वो हमसे नहीं हुआ और जो कुछ करना ना था वो हमसे हुआ तो वो अपनी रहीमी व करीमी से हमारे गुनाहों को माफ़ करेगा और हमें इत्मीनान दिली व तस्कीन कलबी इनायत करेगा। आओ ऐ दोस्तो अब ताख़ीर ना करो मिसराअ ताजील ख़ूब नेस्त मगर दरअमल ख़ैर, जल्दी करो वक़्त को ग़नीमत जानो खुदावंद मसीह पर ईमान लाओ तो तुम विलादत सानी पाओगे क्योंकि ख़ुदा बाप ने ये वाअदा किया है कि जो उस के बेटे पर ईमान लाएंगे वो नया जन्म और रूह-उल-क़ूददस की हिदायत व अआनत पाएँगे। ये वाअदा ख़ुदा का कुल पैरवान ईसा कलाम-उल्लाह के साथ है। क्योंकि फ़क़त खुदावंद मसीह ही अकेला नजात- दिहंदा है। उसी के वसीले गुनहगार इन्सान ख़ुदा की बंदगी लायक़ तौर पर अदा कर सकता है और जन्नत के लायक़ बन सकता है। जो कोई खुदावंद मसीह पर ईमान लाता है वो रूह में तक़वियत पाता है। रास्तबाज़ी में मज़बूत हो जाता है। और अंदरूनी गुनाह से रिहाई पाकर शैतान लईन की क़ुदरत से नजात व ख़लासी हासिल करता है।

अब ज़रा इस पाक दावत पर गौर फ़रमाएं बाब 4:11-16 पस आओ हम कोशिश करें कि उस आराम में दाख़िल होवें ऐसा ना हो कि उस ना-फ़रमाअनी के नमूना पर कोई अमल करके गिर पड़े। क्योंकि ख़ुदा का कलाम ज़िंदा और तासीर करने वाला और हर एक दो धारी तलवार से तेज़-तर है और जान और रूह और बंद बंद और गूदे गूदे को जुदा करके गुज़र जाता है और दिल के ख़यालों और इरादों को जाँचता है । और कोई मख़्लूक़ उससे छिपी नहीं बल्कि जिससे हमको काम है सब कुछ उस की नज़रों में खुला हुआ और बे पर्दा है। पस जिस हालत में हमारा एक ऐसा बुज़ुर्ग सरदार काहिन जो अफलाक से गुज़र गया ख़ुदा का बेटा येसूअ है तो चाहिऐ कि हम अपने इक़रार पर साबित-क़दम रहें। क्योंकि हमारा ऐसा सरदार काहिन नहीं जो हमारी सुस्तियों में हमदर्द ना हो सके। बल्कि ऐसा जो सारी बातों में हमारे मानिंद आज़माया गया। पर उसने गुनाह ना किया। इसलिऐ आओ हम फ़ज़्ल के तख़्त के पास दिलेरी के साथ जाएं ताकि हम पर रहम होवे और फ़ज़्ल जो वक़्त पर मददगार हो हासिल करें। पस आओ हम आगे को अपने लिऐ ना जिएँ बल्कि मसीह की मुहब्बत के वास्ते अपनी ज़िंदगी बसर करें। क्योंकि उसने हमारे लिऐ अपनी जान फ़िदा की। ताकि हमको सारी शरारत व ख़बासत से पाक साफ़ करे कि हम उस की ख़िदमत के लिऐ एक ख़ास उम्मत और बर्गुज़ीदा क़ौम बन जाएं जो नेकोकारी में सरगर्म हों। इस जहाँ-ऐ-फ़ानी में अपनी हयात-ऐ-मुस्तआर ख़त्म करके आख़िरकार उस दयार मुक़द्दस में पहुंचे जहान गुनाह नहीं बल्कि फ़क़त मुहब्बत और ख़ुदाई ही अल-क़य्यूम की ख़िदमत व इबादत है।

रसूल मक़्बूल मुक़द्दस पौलुस का ये क़ौल हमारे मिस्दाक़ हो अब हम आईना से दहनदिलासा देखते हैं पर उस वक़्त रूबरू देखेंगे। इस वक़्त मेरा इल्म नाक़िस है पर उस वक़्त मैं बिल्कुल जानूंगा जिस तरह कि मैं सरासर पहचाना गया। फ़क़त

फिर और ये कलाम भी मुलाहिज़ा फ़रमाऐ मुकाशफ़ात बाब 7 आयत 15-17 :-

इसी वास्ते वह ख़ुदा के तख़्त के आगे हैं और उसकी हैकल में रात-दिन उस की बंदगी करते हैं और वोह जो तख़्त पर बैठा है उनके दरमियान सुकूनत करेगा। वह फिर भूखे नहीं होंगे और ना प्यासे और वह न धुप न कोई गर्मीं उठाएँगे क्योंकि बर्रा जो तख़्त के बीचो बीच है उनकी गल्लाबानी करेगा और उन्हें पानियों के ज़िंदा सुतून पास पहुंचाएगा और खुदा उनकी आँखों से हर एक आसूं पोछेगा I

ऐ दोस्तो ख़ुदा तुम्हारे और मेरे साथ ऐसा ही करेगा हम दोनों के दोनों अबदी हयात व सरोर में शरीक हों आमीन।

ज़मीमा
अहद-ऐ-अतीक़ व अहद-ए-जदीद से ज़ाइद
इक़्तबासात

उम्मीद है कि इन ज़ाइद इक़तिबासों के मुलाहिज़ा व मुतालआ करने से इस रिसाले के पढ़ने वालों को फ़ायदा होगा और वो उन को पढ़ कर इस बात के मुश्ताक़ होंगे कि बाइबल का मुतालआ करें और उसके मज़ामीन से वाक़िफ़ हो जाएं जे़ल में दस अहकाम जिसे हज़रत मूसा को कोह-ऐ-सेना पर दीऐ गऐ लिखे जाते हैं । देखो ख़ुरूज बाब 2: 3-17 :-

  1. मेरे हुज़ूर तेरे लिऐ दूसरा ख़ुदा ना हुऐ।
  2. तू अपने लिऐ कोई मूर्त या किसी चीज़ की सूरत जो ऊपर आस्मान पर या नीचे ज़मीन पर या पानी में ज़मीन के नीचे है मत बना। तो उनके आगे अपने तईं मत झुका और ना उनकी इबादत कर।
  3. तू ख़ुदावंद अपने ख़ुदा का नाम बेफ़ाइदा मत ले।
  4. तू सबत का दिन पाक रखने के लिऐ याद कर।
  5. तू अपने माँ बाप को इज़्ज़त दे।
  6. तू ख़ून मत कर।
  7. तू ज़िना मत कर।
  8. तू चोरी मत कर।
  9. तू अपने पड़ोसी पर झूटी गवाही मत दे ।
  10. तू अपने पड़ोसी के घर का लालच मत कर तू अपनी पड़ोसी की जोरू और उसके ग़ुलाम और उसकी लौंडी और उसके बेल और इस के गधे और किसी चीज़ का जो तेरे पड़ोसी की है लालच मत कर।

फिर किताब ज़बूर से मुलाहिज़ा फ़रमाऐ
ज़बूर 23 :-

ख़ुदावंद मेरा चौपान है मुझको कुछ कमी नहीं वो मुझे हरियाले चरागाहों में बिठलाता है। वो राहत के चश्मों की तरफ़ मुझे ले पहुँचाता है। वो मेरी जान फेर लाता है और अपने नाम के ख़ातिर मुझे सदाक़त की राहों में ले फिरता है। बल्कि जब मैं मौत के साया कि वादी में फिरूँ तो मुझे कुछ ख़ौफ़ व ख़तरा ना होगा क्योंकि तू मेरे साथ है। तेरी छड़ी और तेरी लाठी वही मेरी तसल्ली का बाइस है। तू मेरे दुश्मनों के रूबरू मेरे आगे दस्तर ख़वान बिछाता है तू मेरे सर पर तेल मलता मेरा पियाला लबरेज़ होके छलकता है। लाकलाम मेहरबानी और रहमत उम्र-भर मेरे साथ साथ चलेंगे और मैं हमेशा ख़ुदावंद के घर में रहूँगा।

फिर हज़रत दाऊद के गुनाह का इक़रार सुनिऐ और उसके शिकस्ता व ख़सता दिल की मुनाजात पर ध्यान कीजिऐ जो वो गुनाहों की माफ़ी के वास्ते बद्रगाह ईलाही करता है देखो ज़बूर 51:1-17 :-

ऐ ख़ुदा अपनी रहमदिली के मुताबिक़ मुझ पर शफ़क़त कर अपनी रहमतों की कसरत के मुवाफ़िक़ मेरे गुनाह मिटा दे। मेरी बुराई से मुझे ख़ूब धो और मेरी ख़ता से मुझे पाक कर। कि मैं अपने गुनाहों को मान लेता हूँ और मेरी ख़ता हमेशा मेरे सामने है मैंने तेरा ही गुनाह किया है और तेरी ही हुज़ूर बदी की है ताकि तू अपनी बातों में सादिक़ ठहरे और जो अदालत करे तो तू पाक ज़ाहिर हो। देखो मैंने बरुआई में सूरत पकड़ी और गुनाह के साथ मेरी जान ने मुझे पेट में लिया। देख तू अंदर की सच्चाई चाहता है सौ बातिन में मुझको दानाई सिखला। ज़ोफानसे से मुझे पाक कर कि मैं साफ़ हो जाऊं। मुझको धोओ कि मैं बर्फ़ से सफ़ैद होऊं। मुझे ख़ुशी और ख़ुर्रमी की ख़बर सुना कि मेरी हड्डियां जिन्हें तूने तोड़ डाला शादमान हों। मेरे गुनाहों से चशमपोशी कर और मेरी सारी बुराईयां मिटा डाल। ऐ ख़ुदा मेरे अंदर एक पाक-दिल पैदा कर और एक मुस्तक़ीम रूह मेरे बातिन में नऐ सरसे डाल मुझको अपने हुज़ूर से मत हाँक। और अपनी रूह पाक मुझसे ना निकाल अपनी नजात की शादमानी मुझको फिर इनायत कर और अपनी आज़ाद रूह से मुझको सँभाल। तब मैं ख़ताकारों को तेरी राहें सिखलाऊँगा और गुनहगार तेरी तरफ़ रुजू करेंगे। ऐ ख़ुदा मेरी नजात देने वाले ख़ुदा मुझे ख़ून के गुनाह से रिहाई दे कि मेरी ज़बान तेरी सदाक़त के गीत बुलंद आवाज़ से गाय। ऐ ख़ुदावंद मेरे लबों को खोल दे तो मेरा मुँह तेरी सताइश बयान करेगा। तो ज़बीहे से ख़ुश नहीं होता नहीं तो मैं देता सोख़्तनी क़ुर्बानी में तेरी ख़ुशनुदी नहीं। ख़ुदा के ज़बीहे शिकस्ता जान हैं दिल-शिकस्ता और ख़ाकसार को ऐ ख़ुदा तू हक़ीर ना जानेगा।

फिर यसअयाह नबी रोज़े कि निस्बत ये तालीम देता है देखो यसअयाह बाब 58:5-11 :-

क्या वो रोज़ा है जो मुझको पसंद है, ऐसा दिन कि इस में आदमी अपनी जान को कह दे और अपने सर को झाओ की तरह झुकाऐ और टाट और राख बिछाऐ?

क्या तुम रोज़ा और ऐसा दिन जो ख़ुदावंद का मंज़ूरे नज़र हो कहोगे क्या वो रोज़ा जो मैं चाहता हूँ ये नहीं कि ज़ुल्म की ज़ंजीरें तोड़ें और जुऐ के बंधन खोलें और मज़लूम को आज़ाद करें बल्कि हर एक जूऐ को तोड़ डालें। क्या ये नहीं कि तू अपनी रोटी भूकों को खिलाऐ और मिस्कीनों को जो आवारा हैं अपने घर में लाऐ और जब किसी को नंगा देखे तो उसे पहनाऐ और तू अपने हम-जिंस से रूपोशी ना करे। तब तेरी रोशनी सुबह की मानिंद फूटेगी। और तेरी आक़िबत की तरक़्क़ी जल्द ज़ाहिर होगी तेरी रास्तबाज़ी तेरे आगे चलेगी और ख़ुदावंद का जलाल तेरे गिर्द चमकेगा। तब तू पुकारेगा और ख़ुदावंद जवाब देगा तो चिल्लाएगा और वो बोल उठेगा मैं यहां हूँ। अगर तू इस जूऐ को और उंगलीयों से इशारा करने को और हर्ज़ा गोई को अपने दर्मियान से दूर करेगा। और अगर तू अपने दिल को भूके की तरफ़ माइल करे और तू आज़ुरदा दिल को सैर करे तो तेरा नूर तारीकी में तुलु करेगा और तेरी तीरगी दोपहर के मानिंद होगी। और ख़ुदावंद सदा तेरी रहनुमाई करेगा और ख़ुशक साली में तेरा जी भरेगा और तेरी हड्डीयों को पुरमग़्ज़ करेगा तू सेराब बाग़ के मानिंद होगा और पानी के चश्मे के मानिंद जिसका पानी ना घटे।

फिर देखो इसी नबी की किताब के बाब 57:15 को :-

जिसका नाम क़ुद्दूस है यूं फ़रमाता है कि मैं बुलंद और मुक़द्दस मकान में रहता हूँ और इस के साथ भी जो शिकस्ता-दिल और फ़रोतन ही कि आजिज़ों की रूह को जिलाऊं और ख़ाकसारों के दिल को ज़िंदा करूँ।

अब मैं अहद-ऐ-अतीक़ के आख़िरी नबी का क़ौल जिसको मलाकी कहते हैं पेश करता हूँ देखो मलाकी बाब 3:16-17 में जहां मर्क़ूम है :-

तब उन लोगों ने जो ख़ुदावंद से डरते थे आपस में बार-बार गुफ़्तगु की और ख़ुदावंद ने कान धर कर सुना और उनके लिऐ जो ख़ुदावंद से डरते और उन के नाम को याद रखते थे उस के आगे यादगारी का दफ़्तर लिखा गया और वो मेरा ख़ास ख़ज़ाना होंगे। उस दिन में जिसे मैंने मुक़र्रर किया है रब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है और जिस तरह कोई अपने बेटे पर जो इसका ख़िदमत गुज़ार है शफ़क़त करता है मैं उन पर शफ़क़त करूंगा।

अब ज़रा इंजील शरीफ़ की तरफ़ रुजू हो कर मसीह की तालीम पर ग़ौर कीजिऐ जो उसने दुआ की निस्बत हमें दी है मुक़द्दस मत्ती बाब 6:5-15 :-

जब तू दुआ मांगे रियाकारो की मानिंद ना हो क्योंकि वह इबादतखानों में और रास्तों के कोनो में खड़े होकर मांगने को दोस्त रखते हैं ताकि लोग उन्हें देखेंI मैं तुमसे सच कहता हूँ के वह अपना बदला पा चुकेI लेकिन जब तू दुआ मांगे अपनी कोठरी में जा और अपना दरवाज़ा बंद करके अपने बाप से जो पोशीदगी में है दुआ मांग और तेरा बाप जो पोशीदगी में देखता है ज़ाहिर में तुझे बदला देगा और जब दुआ मांगते हो गैर कौमों के मानिंद बेफाइदा बक बक मत करो क्योंकि वह समझते हैं के उनकी ज़्यादागोई से इनकी सुनी जाएगी, पर उनके मानिंद मत हो क्योंकि तुम्हारा बाप तुम्हारे मांगने के पहले जानता है कि तुम्हे किन किन चीजों कि ज़रूरत है पस तुम इस तरह दुआ मांगों ऐ हमारे बाप जो आस्मान पर है तेरे नाम कि तक़्दीस हो, तेरी बादशाहत आवे तेरी मर्ज़ी जिस तरह आस्मान पर है ज़मीन पर भी बर आवे हमारे रोजाना कि रोटी आज हमको बख्श और जिस तरह हम अपने क़र्ज़दारों को बख्शतें हैं तू अपने दीं हमको बख्श दे  और हमें आजमाइशों में न डाल बल्कि बुराई से बचा क्योंकि बादशाहत और क़ुदरत और जलाल हमेशा तेरे ही हैं आमीन I

अब खुदावंद मसीह की तम्सीलों में से एक तम्सील बतौर नमूना लिखता हूँ मुलाहिज़ा फ़रमाएं मुक़द्दस मत्ती बाब 25:1-13 :-

उस वक़्त आस्मान की बादशाही इन दस कुँवारियों की मानिंद होगी जो अपनी मशालें लेकर दुल्हा के इस्तिक़बाल को निकलें । उनमें पाँच बेवक़ूफ़ और पाँच अक़्लमंद थीं। जो बेवक़ूफ़ थीं उन्होंने अपनी मशालें तो ले लीं मगर तेल अपने साथ ना लिया । मगर अक़्लमंद ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी ले लिया। और जब दुल्हे ने देर लगाई तो सब ऊँघने लगीं और सौ गईं । आधी रात को धूम मची कि देखो दुल्हा आ गया ! उसके इस्तिक़बाल को निकलो। उस वक़्त वो सब कुंवारियां उठकर अपनी अपनी मशाल दरुस्त करने लगीं। और बेवक़ूफ़ों ने अक़्लमंदों से कहा अपने तेल में से कुछ हम को भी दे दो क्योंकि हमारी मशालें बुझी जाती हैं। अक़्लमंदों ने जवाब दिया कि शायद हमारे-तुम्हारे दोनों के लिऐ काफ़ी ना हो बेहतर ये कि बेचने वाले के पास जाकर अपने वास्ते मोल ले लो। जब वो मोल लेने जा रही थीं तो दुल्हा आ पहुंचा और जो तैयार थीं वो उस के साथ शादी के जश्न में अंदर चली गईं और दरवाज़ा बंद हो गया। फिर वो बाक़ी कुंवारियां भी आईं और यूँ कहने लगी ऐ मौला ! ऐ मौला हमारे लिऐ दरवाज़ा खोल दीजिऐ । उसने जवाब में कहा मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि मैं तुम को नहीं जानता पस जागते रहो क्योंकि तुम ना उसको जानते हो ना उस घड़ी को।

फिर इस दूसरी तम्सील को भी देखिऐ जो ताख़ीर के ख़तरे को बयान करती है मुक़द्दस लूका बाब 13:6-9 :-

इसके बाद आपने उन्हें एक तम्सील इर्शाद फ़रमाई किसी आदमी ने अपने अंगूर के बाग़ में इंजीर का दरख़्त लगा रखा था। वो इस में फल ढ़ूढ़ने आया मगर ना पाया। तब उसने बाग़बान से कहा देखो में पिछले तीन बरस से इस इंजीर के दरख़्त में फल ढ़ूढ़ने आता रहा हूँ और कुछ नहीं पा सका हूँ। उसे काट डालो । ये क्यों जगह घेरे हुऐ है ? लेकिन उसने जवाब में से कहा : मालिक ! इसे इस साल और बाक़ी रहने दें, में इस के इर्द गर्द खुदाई करके खाद डालूँगा। अगर ये आइन्दा फल लाया तो ख़ैर वर्ना इसे कटवा देना।

अब मुक़द्दस युहन्ना का बयान कलाम के निस्बत सुनिऐ युहन्ना बाब 1:1-14 :-

इब्तिदा में कलाम था और कलाम खुदा के साथ था और कलाम ही खुदा था। यही इब्तिदा में खुदा के साथ था। सब चीज़ें उस के वसीले से ख़ल्क़ हुईं और जो कुछ ख़ल्क़ हुआ है इस में से कोई चीज़ भी उस के बग़ैर ख़ल्क़ नहीं हुई। उस में ज़िंदगी थी और वो ज़िंदगी आदमीयों का नूर थी। और नूर तारीकी में चमकता है और तारीकी ने उसे क़बूल ना किया। एक आदमी यहया नाम आ मौजूद हुऐ और जो खुदा की तरफ़ से भेजे गऐ थे। ये शहादत देने को आऐ ताकि सब उसके वसीले से ईमान लाएं । वो ख़ुद तो नूर ना थे मगर नूर की शहादत देने को आऐ थे। हक़ीक़ी नूर जो हर एक आदमी को रोशन करता है दुनिया में आने को था। वो दुनिया में थे और दुनिया उसके वसीला से ख़ल्क़ हुई और दुनिया ने उसे ना पहचाना। वो अपने घर आऐ और उनके अपनों ने उन्हें क़बूल ना किया। जिन्होंने उनको क़बूल किया उसने उन्हें ख़ुदा के फ़र्ज़न्द बनने का हक़ बख़्शा यानी उन्हें जो आप पर ईमान लाते हैं आप ना ख़ून से ना जिस्म की ख़्वाहिश से ना इन्सान के इरादे से बल्कि ख़ुदा से पैदा हुऐ । ओर कलमा मुजस्सम हुआ और फ़ज़्ल और सच्चाई से मामूर हो कर हमारे दर्मियान रहा और हमने उनकी ऐसी अज़मत देखी जैसी ख़ुदा के महबूब की ।

अब मैंने बहुत आपकी समाअ ख़राशी की मगर ज़रा मसीही नजात व महब्बत का बयान भी जो पौलुस रसूल ने किया है मुलाहिज़ा कीजिऐ दखो पहला कुरुन्थियो बाब 13:1-7 :-

अगर मैं आदमीयों और फ़रिश्तों की ज़बानें बोलूँ और मुहब्बत ना करूँ तो मैं ठनठनाता पीतल या झंझाती झाँझ हूँ। और अगर मुझे नबुव्वत मिले और सब भेदों और कुल इल्म की वाक़फ़ीयत हो और मेरा ईमान यहां तक कामिल हो की पहाड़ों को हटा दूँ और मुहब्बत ना रखू तो मैं कुछ भी नहीं। और अगर अपना सारा माल ग़रीबों को खिला दूं या अपना बदन जलाने को दे दूं और मुहब्बत ना रखूं तो मुझे कुछ भी फ़ायदा नहीं। मुहब्बत साबिर है और मेहरबान, मुहब्बत हसद नहीं करती, मुहब्बत शेख़ी नहीं मारती और फूलती नहीं, नाज़ेबा काम नहीं करती, अपनी बेहतरी नहीं चाहती, झुँझलाती नहीं, बद-गुमानी नहीं करती, बदकारी से ख़ुश नहीं होती बल्कि सच्चाई से ख़ुश होती है, सब कुछ सह लेती है, सब कुछ यक़ीन करती है, सब बातों की उम्मीद रखती है, सब बातों की बर्दाश्त करती है। ग़रज़ ईमान, उम्मीद मुहब्बत ये तीनों दाइमी हैं मगर अफ़्ज़ल इनमें मुहब्बत है।

अब मुक़द्दस पौलुस रसूल का बयान क़ियामत के निस्बत जो पहला कुरंथियों बाब 15:32-58 में है मुलाहिज़ा हो :-

अगर मैं इन्सान की तरह इफ़सस में दरिंदों से लड़ा तो मुझे क्या फ़ायदा ? अगर मुर्दे ना ज़िंदा किऐ जाऐंगे तो आओ खाओ पियों क्योंकि कल तो मर ही जाऐंगे। फ़रेब ना खाओ, बुरी सोहबतें अच्छी आदतों को बिगाड़ देती हैं। सच्चे होने के लिऐ होश में आओ और गुनाह ना करो क्योंकि बाअज़ खुदा से नावाक़िफ़ हैं। मैं तुम्हें शर्म दिलाने को ये कहता हूँ। अब कोई ये कहेगा कि मुर्दे किस तरह जी उठते हैं और कैसे जिस्म के साथ आते हैं? ऐ नादान ! तुम ख़ुद जो कुछ बोते हो जब तक वो ना मर जाये ज़िंदा नहीं किया जाता। और जो तुम बोते हो ये वो जिस्म नहीं जो पैदा होने वाला है बल्कि सिर्फ़ दाना है। ख़्वाह गेहूँ का ख़्वाह किसी और चीज़ का। मगर ख़ुदा ने जैसा इरादा कर लिया वैसा ही इस को जिस्म देते हैं और हर एक बीज को इस का ख़ास जिस्म, सब गोश्त यकसाँ गोश्त नहीं बल्कि आदमीयों का गोश्त और है, चौपाईयों का गोश्त और, परिंदों का गोश्त और है मछलीयों का गोश्त और, आस्मानी भी जिस्म हैं और ज़मीनी भी मगर आस्मानियों की बुजु़र्गी और है ज़मीनियों की और, आफ़्ताब की बुजु़र्गी और है महताब की बुजु़र्गी और, सितारों की बुजु़र्गी और है क्योंकि सितारे, सितारे की बुजु़र्गी में फ़र्क़ है। मुर्दों की क़ियामत भी ऐसी ही है। जिस्म फ़ना की हालत में बोया जाता है और बक़ा की हालत में जी उठता है। बे-हुरमती की हालत में बोया जाता है और बुजु़र्गी की हालत में जी उठता है। कमज़ोरी की हालत में बोया जाता है और क़ुव्वत की हालत में जी उठता है। नफ़सानी जिस्म बोया जाता है और रुहानी जिस्म जी उठता है। जब नफ़सानी जिस्म है तो रुहानी जिस्म भी है। चुनांचे लिखा भी है कि पहला आदमी यानी आदम ज़िंदा-नफ़स बना पिछ्ला आदम ज़िंदगी बख़्शने वाली रूह बना। लेकिन रुहानी पहले ना था बल्कि नफ़सानी था। इस के बाद रुहानी हुआ। पहला आदि ज़मीन से यानी ख़ाकी था दूसरा आदमी आस्मानी है। जैसा वो ख़ाकी था वैसा ही और ख़ाकी भी हैं और जैसा वो आस्मानी है वैसा ही और आस्मानी भी हैं। और जिस तरह हम इस ख़ाकी की सूरत पर हुऐ उसी तरह उस आस्मानी की सूरत पर भी होंगे। ऐ दीनी भाईयों ! मेरा मतलब ये है कि गोश्त और ख़ून ख़ुदा की बादशाही के वारिस नहीं हो सकते और ना फ़ना बक़ा की वारिस हो सकती है। देखो मैं तुमसे राज़ की बात कहता हूँ। हम सब तो नहीं सोएँगे मगर सब बदल जाऐंगे। और यह एक दम में, एक पल में, पिछ्ला नर्सिंगा फूँकते ही होगा क्योंकि नर्सिंगा फूँका जाऐगा और मुर्दे ग़ैर-फ़ानी हालत में उठेंगे और हम बदल जाऐंगे। क्योंकि ज़रूर है कि ये फ़ानी जिस्म बक़ा का जामा पहने और यह मरने वाला जिस्म हयात अबदी का जामा पहने। और जब ये फ़ानी जिस्म बक़ा का जामा पहन चुकेगा और ये मरने वाला जिस्म हयात अबदी का जामा पहन चुकेगा तो वो क़ौल पूरा हो जाऐगा जो लिखा है कि मौत फ़त्ह का लुक़मा हो गई। ऐ मौत तेरी फ़त्ह कहाँ रही? ऐ मौत तेरा डंक कहाँ रहा? मौत का डंक गुनाह है और गुनाह का ज़ोर शरीयत है। मगर ख़ुदा का शुक्र है जो हमारे खुदावंद ईसा मसीह के वसीले से हम को फ़त्ह अता फ़रमाते हैं। पस ऐ दीनी भाईयों ! साबित क़दम और क़ायम रहो और ख़ुदा के काम में हमेशा अफ़्ज़ायश करते रहो क्योंकि ये जानते हो कि तुम्हारी मेहनत ख़ुदा में बेफ़ाइदा नहीं है।

वो भी सुनो जो मुक़द्दस युहन्ना रसूल कहता है कि 1युहन्ना 3:1 देखो ख़ुदा ने हमसे कैसी मुहब्बत की है कि हम ख़ुदा के फ़र्ज़ंद कहिलाए और हम हैं भी। दुनिया हमें इसलिऐ नहीं जानती कि उसने उन्हें भी नहीं जाना। अज़ीज़ो ! हम इस वक़्त ख़ुदा के फ़र्ज़ंद हैं और अभी तक ये ज़ाहिर नहीं हुआ कि हम क्या कुछ होंगे। इतना जानते हैं कि जब वो ज़ाहिर होंगे तो हम भी उनकी मानिंद होंगे क्योंकि उनको वैसा ही देखेंगे जैसा वो हैं। और जो कोई उनसे ये उम्मीद रखता है अपने आपको वैसा ही पाक करता है जैसे वो पाक हैं। जो कोई गुनाह करता है वो शराअ की मुख़ालिफ़त करता है और गुनाह शरियत कि मुख़ालिफ़त ही है। और तुम जानते हो कि वो इसलिऐ ज़ाहिर हुऐ थे कि गुनाहों को उठाले जाएं और उन की ज़ात में गुनाह नहीं। जो कोई उनमें क़ायम रहता है वह गुनाह नहीं करता। जो कोई गुनाह करता है ना उसने उन्हें देखा और ना जाना है।

आस्मानी मीरास की निस्बत मुक़द्दस पतरस रसूल का बयान गौरतलब है देखो 1 पतरस 1:3-5 :-

हमारे खुदावंद ईसा मसीह के ख़ुदा की हम्द हो जिन्होंने खुदावंद ईसा मसीह के मुर्दों में से जी उठने के बाइस अपनी बड़ी रहमत से हमें ज़िंदा उम्मीद के लिऐ नऐ सिरे से पैदा किया। ताकि एक ग़ैर-फ़ानी और बेदाग़ और लाज़वाल मीरास को हासिल करें। वो तुम्हारे वास्ते (जो ख़ुदा की क़ुदरत से ईमान के वसीले से इस नजात के लिऐ जो आख़िरी वक़्त में ज़ाहिर होने को तैयार है हिफ़ाज़त किऐ जाते हो) आस्मान पर महफ़ूज़ है।

आख़िर में मुक़द्दस युहन्ना रसूल मुकाशफ़ात की किताब में आस्मान का बयान यूं करता है देखो मुकाशफ़ात 21:22-24 :-

और मैंने इसमें कोई मुक़द्दस ना देखा इसलिऐ कि ख़ुदावंद ख़ुदा क़ादिर-ऐ-मुतलक़ और बर्रा उस का मुक़द्दस हैं। और इस शहर में सूरज या चांद की रोशनी की कुछ हाजत नहीं क्योंकि ख़ुदा तआला की बुजु़र्गी ने उसे रोशन कर रखा है और बर्रा उसका चिराग़ है। और कौमें उस की रोशनी में चलीं फिरेंगी और ज़मीन के बादशाह अपनी शानोशौकत का सामान इस में लाएँगे।

और 22:1,5,10,21 :-

फिर उसने आब-ऐ-हयात की एक साफ़ नदी मुझे दीखाई जो बिलौर की तरह शफ़्फ़ाफ़ और ख़ुदा और बर्रे के तख़्त से निकलती थी। और इस की सड़क के बीच और इस नदी के वार पार ज़िंदगी का दरख़्त था जो बारह किस्म के फल लाता और हर एक महीने में अपना फल देता था और इस दरख़्त के पत्ते क़ौमों की शिफ़ा के वास्ते थे। और फिर कोई लानत ना होगी और ख़ुदा और बर्रे का तख़्त इस में होगा और उसके बंदे उसकी बंदगी करेंगे। और वो उस का मुँह देखेंगे और उस का नाम उनके माथों पर होगा। और वहां रात ना होगी और वो चिराग़ और सूरज की रोशनी के मुहताज नहीं फिर उसने मुझसे कहा कि तू इस किताब की नबुव्वत की बातों पर मुहर मत रख क्योंकि नज़्दीक है जो नारास्त है सो नारास्त ही रहे और जो नजिस है सो नजिस ही रहे और जो रास्तबाज़ है सो रास्तबाज़ ही रहे और जो मुक़द्दस है सो मुक़द्दस ही रहे और देखो में जल्द आता हूँ और मेरा अज्र मेरे साथ है ताकि हर एक को उसके काम के मुवाफ़िक़ बदला दूँगा में अल्फ़ा और ओमेगा, इब्तिदा और इंतिहा अव़्वल और आख़िर हूँ। मुबारक वो हैं जो उसके हुक्मों पर अमल करते हैं ताकि ज़िंदगी के दरख़्त पर उनका इख़्तियार हो और वो इन दरवाज़ों से शहर में दाख़िल होए मगर कुत्ते और जादूगर और हरामकार और ख़ूनी और बुतपरस्ती और झूटी बात का हर एक पसंद करने और घड़ने वाला बाहर रहेगा। खुदावंद मसीह ने अपना फ़रिश्ता इस लिऐ भेजा कि जमाअतों के बारे में तुम्हारे आगे इन बातों की शहादत दे। मैं दाऊद की असल व नसल और सुबह का चमकता हुआ सितारा हूँ। और रूह और दुल्हन कहती हैं आ और सुनने वाला भी कहे आ। और जो प्यासा हो वो आऐ और जो कोई चाहे आब-ऐ-हयात मुफ़्त ले।

मैं हर एक आदमी के आगे जो इस किताब की नबुव्वत की बातें सुनता है शहादत देता हूँ कि अगर कोई आदमी उनमें कुछ बढ़ाऐ तो ख़ुदा इस किताब में लिखी हुई आफ़तें इस पर बड़ा देगा। और अगर कोई इस नबुव्वत की किताब की बातों में से कुछ निकाल डाले तो ख़ुदा इस ज़िंदगी के दरख़्त और मुक़द्दस शहर में से जिनका इस किताब में ज़िक्र है उसका हिस्सा निकाल डालेगा। जो इन बातों की शहादत देता है वो ये कहता है कि बेशक में जल्द आने वाला हूँ। आमीन। ऐ खुदावंद ईसा आईऐ। खुदावंद येसु का फ़ज़्ल मुक़द्दसों के साथ रहे। आमीन।

ग़ज़ल
जज़ाकल्लाह ये ख़ुशख़बरी मुझे जिसने सुनाई है
मसीहा ही के ख़ूँ से सारे इस्यानों की सफ़ाई है
हुआ कुंदा नगीना दिल पर जिसके नाम ईसा का
वहां शैतान से मलऊन की फिर कब रसाई है
मिला विरसा में हमको गुनाह लो बाप दादों से
यही देखो हमारे बावा-आदम की कमाई है
हज़ारों शुक्र ईसा का उठाया बार इस्याँ का
मुबारक हो तुम्हें लोगो मसीहा से रिहाई है
तूही सच्चा मुंजी है तू इकलौता ख़ुदा का है
मऐ ख़र सनद ए हक़ तूही ने हमको पिलाइ है
मुबारक फिर मुबारक फिर मुबारक नाम हो तेरा
दी अपनी जान तूने और हमारी जां छुड़ाई है
उसी की बंदगी आज़ादगी लारेयब है यारो
हमारी रूह तो इस ने गु़लामी से छुड़ाई है
कुचल डालूंगा ओ शैतां तुझे फ़ज़ल-ऐ-मसीहा से
नहीं तो जानता आसी को ईसा का सिपाही है
ग़ज़ल
दिला क्यों रोज़-ऐ-महशर से हिरासाँ और लर्ज़ां हूँ
वसीला मज़हर हक़ है उसी पे मैं तो नाज़ाँ हूँ
मेरा ईमां तो क़ायम है उसी बहर शफ़ाअत पर
तो फिर ऐश दवामी का दिला क्योंकर ना शायां हूँ
खड़ा हूँ बार इस्याँ का लिऐ सर पर ख़ुदावंदा
रिहाई दे मुझे ख़ालिक़ में गिर्यां और नालां हूँ
कहाँ जाऊं मैं ग़मदीदा गुनाहों से शर्मिंदा
ख़ुदा या रहम कर मुझ पर मैं पकड़े तेरा दामाँ हूँ
नदादी ज़ात मुतलक़ ने ना हो मायूस ऐ आसी
हयात-ऐ-दाइमी ले मुझसे में फ़र्ज़ंद यज़्दाँ हूँ

 


1. नोट- मैं यहां सुरह बक़रा, निसा, माइदा और इमरान के आयतों का हवाला देता हूँ जिनमें मक्का के यहूदीयों के निस्बत जब वो आप लोगों के नबी से बह्स करते थे लिखा है कि वो ग़लत हवाले पेश करते हैं ज़बान मरोड़ कर पढ़ते हैं और लफ़्ज़ों को उन के जगह से हटा कर पढ़ते हैं ताकि तुम जानो कि वो किताब ही में से है।

2.  नोट: इसका बयान रसूलों के आमाल में जो नए अह्दनामे का एक सहीफ़ा है पाया जाता है उसमें पन्टिकोस्ट के दिन रूहुल-क़ुद्दुस के नुज़ूल का बयान पढ़े और पतरस रसूल का दर्स जो उसने यहूदीयों को बाब दोम में और ग़ैर क़ौमों को बाब दहम में दिया है और फिर पौलुस और दीगर रसूलों की तहरीर मुलाहिज़ा कीजिए।

3. नोट कहते हैं कि ख़लीफ़ा उस्मान ने अपने हाथ से तीन नुस्ख़ा क़ुरआन के लिखे थे जिनमें से ऐक नुस्ख़ा दमिश्क़ के जामा मस्जिद में रखा हुआ था। वो आग से तल्फ़ हुआ। और दीगर नुस्ख़ाजात जो ख़लीफ़ा उस्मान के हुक्म से लिखे गऐ वोह मदीना व क़ाहिरा और दीगर शहरों में रख दिए गऐ और वो नुस्ख़ा जिस पर ख़ून लगा हुआ है शहीद होते वक़्त उसके हाथ में था बस्रा की मस्जिद में रखा है। क्या ईसाईयों और यहूदीयों के क़दीम नुस्खे़ उन से कमक़दर हैं?

4. नोट- येसु ख़ुदा का बर्रा कहलाता है जिससे ये मुराद है कि जिस तरह ईद फसह में साल साल बर्रा की क़ुर्बानी इस लिऐ होती थी कि लोगों के गुनाह माफ़ किऐ जाएं पस येसु बर्रा ख़ुदा हो कर सलीब पर मस्लूब हुआ कि हमारे गुनाह माफ़ किऐ जाएं हज़रत यहया इब्ने ज़करिया ये वही शख़्स है जिसका ज़िक्र क़ुरआन में पाया जाता है। कि बुढापे में येही बेटा ज़करिया के पैदा हुआ जैसा कि ख़ुदा ने वाअदा किया था सुरह आल-ऐ-इमरान को देखो। यहया के क़त्ल करने का इन दोनों गुनाहों में से ऐक गुनाह है जो क़ुरआन में सुरह बनी-इस्राईल में मज़्कूर है जो बनी-इस्राईल से सरज़द हुआ।