आठवां बाब

मसीह मोजिज़ा कार

ख़त्म करने से पहले एक अम्र तवज्जोह तलब मालूम होता है ये अमरोह आला रुत्बा है जो क़ुरआन ने बलिहाज़ मोजिज़ात-ए-ईसा को दिया है क़ुरआन के कई मुक़ामात पर ईसा के मोअजज़ात मज़कूर हैं। चुनांचे सूरह माइदा की 109 वीं और 110 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

إِذْ قَالَ اللّهُ يَا عِيسى ابْنَ مَرْيَمَ اذْكُرْ نِعْمَتِي عَلَيْكَ وَعَلَى وَالِدَتِكَ إِذْ أَيَّدتُّكَ بِرُوحِ الْقُدُسِ تُكَلِّمُ النَّاسَ فِي الْمَهْدِ وَكَهْلاً وَإِذْ عَلَّمْتُكَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ وَإِذْ تَخْلُقُ مِنَ الطِّينِ كَهَيْئَةِ الطَّيْرِ بِإِذْنِي فَتَنفُخُ فِيهَا فَتَكُونُ طَيْرًا بِإِذْنِي وَتُبْرِىءُ الأَكْمَهَ وَالأَبْرَصَ بِإِذْنِي وَإِذْ تُخْرِجُ الْمَوتَى بِإِذْنِي

जब कहा अल्लाह ने ए ईसा मर्यम के बेटे याद कर मेरा एहसान अपने ऊपर और अपनी माँ पर जब मदद दी मैंने रूह पाक से तू कलाम करता था लोगों से गोद में और अधेड़ उम्र में और सिखाई मैंने तुझको किताब और पुख़्ता बातें और तौरात और इंजील और जब तू मिट्टी से जानवर की सूरत बनाता था मेरे हुक्म से और फिर इस में दम फूँकता था पस वो मेरे हुक्म से जानवर हो जाता था और मादर-ज़ाद अंधे को चंगा करता था और कौड़ी को मेरे हुक्म से (शिफ़ा देता था) और जब मुर्दे को मेरे हुक्म से निकाल खड़ा करता था ।

क़ुरआन की मुंदरजा-बाला आयात में ईसा मसीह के मोअजज़ात का बयान अज़-बस हैरत-अफ़्ज़ा है। क्योंकि उनमें ना सिर्फ यही लिखा है कि वो तरह तरह की बीमारीयों को दूर करता और मुर्दों को ज़िंदा करता था। बल्कि ये भी साफ़ लिखा है कि इस ने एक परिंदा ख़ल्क़ किया I

बाइबल और क़ुरआन में कहीं भी ये नहीं लिखा कि किसी और नबी ने ख़ल्क़ करने के काम में हिस्सा लिया। अगरचे दोनों किताबों में बहुत से नबियों के तरह तरह के मोअजज़ात बयान किए गए हैं ईसा के इस मोजिज़ा के बयान में क़ुरआन लफ्ज़ "ख़ल्क़" इस्तिमाल करता है जोकि ख़ुदा के दुनिया को पैदा करने के बयान में इस्तिमाल किया गया है कि क़ुरआन के हर एक साहिब फ़हम पढ़ने वाले को ये पढ़ कर हैरत होनी चाहिए क्योंकि इस बयान से तमाम अम्बिया पर ईसा की लाइन्तहा फ़ज़ीलत साबित होती है।

शायद कोई ये कहे कि क़ुरआन की मुंदरजा बाला आयात में सिर्फ ये लिखा है कि ईसा ने ख़ुदा के हुक्म से एक परिंदा ख़ल्क़ किया पस ख़ल्क़ करने की ताक़त मसीह की अपनी ताक़त ना थी। बिलफ़र्ज़ अगर हम इस बात को यूंही मान भी लें तो तोभी ये बात बिल्कुल सच्च है कि किसी और नबी के हक़ में ऐसे अल्फ़ाज़ इस्तिमाल नहीं किए गए ईसा की बुजु़र्गी व बरतरी और सब अम्बिया पर फ़ज़ीलत बदस्तूर क़ायम रहती है इलावा बरीं एक तरह से क़ुरआन की ये शहादत इंजील से मुताबिक़त रखती है। इंजील में मर्क़ूम है कि ईसा सब कुछ ख़ुदा की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ करता है चुनांचे ईसा ने ख़ुद कहा :—

"में अपनी तरफ़ से कुछ नहीं करता बल्कि जिस तरह बाप ने मुझे सिखाया" इसी तरह ये बातें कहता हूँ" (युहन्ना 8:28)

साथ ही इंजील हमें ये भी बताती है कि ईसा अपने आप में मोअजज़ात की ताक़त रखता था। लिहाज़ा वो तमाम दीगर अम्बिया से निराला और आला व बाला है वो फ़रमाता है :—

"मैं अपनी जान देता हूँ ताकि उसे फिर ले लूं। कोई उसे मुझसे छीनता नहीं बल्कि में उसे आप देता हूँ मुझे उस के देने का भी इख़्तियार है और इस के फिर लेने का भी इख़्तियार है" (युहन्ना 10:17 ता 18)

इंजील शरीफ़ में ईसा के और भी बहुत से मोअजज़े मुंदरज हैं मसलन बीमारों को चंगा करना। पानी पर चलना और मुर्दों को ज़िंदा करना वग़ैरा और उनसे उनके अमल में लाने का मक़सद भी मालूम होता है । चुनांचे ईसा ख़ुद फ़रमाते हैं कि इस के मोअजज़ात का एक ख़ास मक़सद ये था कि वो उस के मिंजानिब-अल्लाह होने पर मुहर हों। एक मौक़ा पर वो अपने मोअजज़ात की तरफ़ इशारा करके लोगों से कहता है कि :—

"जो काम बाप ने मुझे पूरे करने को दिए यानी ये काम जो मैं करता हूँ

वो मेरे गवाह हैं"। (युहन्ना 5:36)

हज़रत मुहम्मद ने भी इसी भारी हक़ीक़त की तालीम दी। चुनांचे मुस्लिम की एक हदीस में जिसका रावी अबू हुरैरा है लिखा है कि हज़रत मुहम्मद ने कहा :—

مامن الا بنیاوالااعطی من الایات مامثلہ امن علیہ

हर एक नबी को मोअजज़े दीए गए हैं ताकि लोग उस पर ईमान लाएं I

इस्लामी फ़िक़्ह की किताबों में भी यही सच्चाई सिखाई जाती है चुनांचे इमाम गज़ाली साफ़ कहता है। कि नबी की रिसालत का सबूत ये है कि वो मोअजज़े दिखा सकता हो।

یعرف صدق النبی بالمجزہ

अक़्ल इस बात पर शहादत देती है कि नए अह्दनामे के लिए जो नया इल्हाम या नई शरीयत लेकर आता है इसे शवाहिद की ज़रूरत है और अगर ईसा मसीह ऐसे निशान और सबूत ना दिखाता तो लोग तबअन उस की रिसालत पर शक लाते ।

इसी तरह से जब मूसा को तौरात मिली तो उसने भी बहुत से मोअजज़े दिखाए ताकि उस की रिसालत पर बैनदलील हो उनमें से बाअज़ क़ुरआन में मुंदरज हैं। बेशक बाअज़ नबियों ने कोई मोजिज़ा नहीं दिखाया मसलन युहन्ना बपतिस्मा देने वाला लेकिन इस का सबब साफ़ ये है कि युहन्ना बपतिस्मा देने वाला मूसा और मसीह की तरह कोई नई शरीयत नहीं लाया। वो सिर्फ़ मसीह का पेशरू और राह दुरुस्त करने वाला था। चुनांचे जब यहूदीयों ने युहन्ना से पूछा तू कौन है तो इस का जवाब इंजील में यूं मर्क़ूम है :—

मैं तो मसीह नहीं हूँ.....मैं ब्याबान में एक पुकारने वाले की आवाज़ हूँ कि तुम ख़ुदावंद की राह को सीधा करो.....तुम्हारे दर्मियान एक ऐसा शख़्स खड़ा है। जिसे तुम नहीं जानते यानी मेरे बाद का आने वाला जिसकी जूती का तस्मा भी मैं खोलने के लायक़ नहीं हूँ......देखो ख़ुदा का बर्रा जो जहान का गुनाह उठाले जाता है (युहन्ना 1:20-30)

युहन्ना कोई नई शरीयत नहीं लाया था। लिहाज़ा इसको मोअजज़ात की शहादत की ज़रूरत ना थी। लेकिन मसीह ने आकर इंजील सुनाई और बहुत से हैरत-ख़ेज़ मोअजज़े दिखाए ताकि लोग इस पर ईमान लाएं "इन्ही कामों की ख़ातिर" ।

इस अम्र पर सोचने से एक और क़ाबिल ए ग़ोर बात पेश आती है कि अगर हज़रत मुहम्मद ख़ुदा की तरफ़ से नई शरीयत और नए इल्हाम के साथ आए और जिस से बाअज़ मुसलामानों के ख़्याल के मुताबिक़ साबिक़ा इल्हाम और शरीयत की तंसीख़ हो गई तो अज़-हद ज़रूरी था कि मोअजज़े दिखाते ताकि उनके मिंजानिब-अल्लाह होने का सबूत मिलता। बेशक अहादीस में तो बहुत से मोअजज़े मुंदरज हैं लेकिन ये हदीसें हज़रत मुहम्मद की मौत से बहुत अरसा बाद की लिखी हुई हैं और बाहम मुतज़ाद और ग़ैर-मोअतबर हैं।

हज़रत मुहम्मद ने यूं कहा था कि जब कभी तुम मेरे हक़ में कुछ सुनो तो इस किताब को देखो जो मैं तुम्हारे साथ छोड़े जाता हूँ। अगर जो कुछ तुमने मेरे करने या कहने की निस्बत सुना है। इस में मज़कूर हुआ और इस के मुताबिक़ हो तो सच्च वर्ना वो बात जो मेरे करने या कहने की निस्बत बयान की गई है। झूट है में इस से बरी हूँ ना मैंने कभी उसे कहा और किया ।

अब मुनासिब है कि हज़रत मुहम्मद के इस फ़रमान के मुताबिक़ क़ुरआन देखें कि आया वो हज़रत मुहम्मद के मोअजज़ात पर शहादत देता है या नहीं। क़ुरआन की शहादत बिल्कुल साफ़ है और इस से ज़ाहिर होता है कि हज़रत मुहम्मद ने हमेशा मोजिज़ा दिखाने से इन्कार और अपने अजुज़ का इक़रार किया ।

क़ुरआन में इस अजुज़ व इन्कार के सबूत में बहुत सी आयात मुंदरज हैं लेकिन हम सिर्फ दो तीन से इस अम्र की तशरीह करेंगे कि इस से ना सिर्फ यही बात पूरे तौर से साबित होगी कि मोअजज़ात के लिहाज़ से हज़रत मुहम्मद मसीह से अज़हद कमतर हैं बल्कि उनका मुर्सल मिन-उल्लाह होने और नया इल्हाम व आखिरी शरियत लाने का दावा भी अज़बस मशकूक ठहरेगा ।

क़ुरआन से थोड़ी सी वाक़फ़ीयत यह बता देगी कि अरबों ने बार-बार हज़रत मुहम्मद से उन की नबुव्वत के सबूत में मोजिज़ा तलब किया लेकिन आपका जवाब हमेशा यही था कि मैं महिज़ एक वाइज़ हूँ और तुम्हारी ख़ाहिश के मुवाफ़िक़ मोजिज़ा दिखाने की क़ुदरत नहीं रखता चुनांचे सूरह रअद की 8 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

وَيَقُولُ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَوْلآ أُنزِلَ عَلَيْهِ آيَةٌ مِّن رَّبِّهِ إِنَّمَا أَنتَ مُنذِرٌ

काफ़िर कहते हैं कि ख़ुदा की तरफ़ से कोई निशान उस के पास क्यों नहीं भेजा गया? तू तो महिज़ एक वाइज़ है।

फिर सूरह अन्कबूत की 139 वीं आयत में यूं लिखा है :—

وَقَالُوا لَوْلَا أُنزِلَ عَلَيْهِ آيَاتٌ مِّن رَّبِّهِ قُلْ إِنَّمَا الْآيَاتُ عِندَ اللَّهِ وَإِنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُّبِينٌ

उन्होंने कहा उस के रब की तरफ़ से कोई निशान उस के पास क्यों नहीं भेजा गया ? तू कह निशान सिर्फ़ अल्लाह के पास हैं और मैं महिज़ एक साफ़ गो वाईज़ हूँ।

फिर सूरह बनी-इस्राइल में और भी साफ़ साफ़ बतलाया गया है कि हज़रत मुहम्मद ने मोअजज़ात क्यों ना दिखाये । चुनांचे 61 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

وَمَا مَنَعَنَا أَن نُّرْسِلَ بِالآيَاتِ إِلاَّ أَن كَذَّبَ بِهَا الأَوَّلُونَ

किसी चीज़ ने हमको इस से नहीं रोका कि तुझको निशानों के साथ भेजते सिवाए उस के कि पहली क़ौमों ने उनको झुठलाया।

इन आयात से बिल्कुल अज़हर-मिनश्शम्स है कि हज़रत मुहम्मद ने मोजिज़ा दिखाने से साफ़ इन्कार किया और अपने अजुज़ का इक़रार किया। आपने हमेशा ये फ़रमाया कि क़ुरआन ही एक काफ़ी मोजिज़ा है चुनांचे सूरह अन्कबूत की 50 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

أَوَلَمْ يَكْفِهِمْ أَنَّا أَنزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ

क्या उनको ये किफ़ायत नहीं करता कि हमने तुझ पर किताब नाज़िल की है?

क़ुरआन के बड़े-बड़े मुफ़स्सिरीन मसलन इमाम राज़ी और बैज़ावी वग़ैरा साफ़ मानते हैं कि क़ुरआन से हज़रत मुहम्मद के मोअजज़ात की नफ़ी साबित होती है चुनांचे सूरह बनी-इस्राइल की मज़कूरा बाला आयत की तफ़्सीर में बैज़ावी यूं लिखता है :—

“मतलब ये है कि क़ुरैश की दरख्वास्त के मुवाफ़िक़ हमने इस लिए तुझको मोअजज़ात के साथ नहीं भेजा कि पहली अक़्वाम यानी आद समुद ने इन को 1 झुठलाया वैसे ही अहले मक्का भी झुटलाएँगे और हमारी सुन्नत के मुताबिक़ बर्बाद किए जाऐंगे पस जब हमने देखा कि उनमें बाअज़ ईमान वाले या ईमान का बीज रखने वाले हैं तो हमने उनको हलाक करना ना चाहा”

क्या बैज़ावी हज़रत मुहम्मद के बग़ैर मोअजज़ात आने का साफ़ तौर से अज़रूए क़ुरआन ये सबब नहीं बताता कि ख़ुदा जानता था कि अगर मोअजज़ात भेजे भी तो अहले मक्का उनको झुटलाएँगे और नतीजतन हलाक होंगे लिहाज़ा उसने रहम फ़र्मा कर हज़रत मुहम्मद को मोअजज़ात से ख़ाली भेजा?

हुसैन भी अपनी मशहूर तफ़्सीर में यही बात लिखता है कि :—

ख़ुदा कहता है कि पहले ज़माने के लोगों ने मोअजज़ात तलब किए । और मैंने इनके लिए पत्थर से ऊंटनी निकाली और दीगर अक़्वाम के लिए भी तरह तरह के मोअजज़े किए गए। लेकिन उन्होंने इन को झुठलाया और नतीजतन हलाक हो गए। अब अगर उन लोगों को भी जैसा कि तलब करते हैं मोअजज़े दिखाऊँ तो हरगिज़ मुतमइन ना होंगे और ईमान नहीं लाएँगे और सज़ा के तौर पर उन को भी हलाक करूँगा। लेकिन मैंने ये इरादा कर रखा है कि इन को हलाक नहीं करूँगा क्योंकि इनकी औलाद से बहुत से नेक और रास्तबाज़ लोग पैदा होंगे ।

इमाम राज़ी कहता है कि :—

ख़ुदा ने अपने अम्बिया को ऐसे मोअजज़ात के साथ भेजा जो वक़्त और हालत के लिहाज़ से उन लोगों के लिए मुनासिब थे जिनके पास नबी भेजे गए। मसलन हज़रत-ए-मूसा के अय्याम में जादूगरी का बहुत ज़ोर था लिहाज़ा उस को इसी किस्म के मुनासिब-ए-हाल मोअजज़े दिए गए हज़रत-ए-ईसा के वक़्त में साईंस और अदवियात में लोग बहुत तरक़्क़ी कर रहे थे लिहाज़ा हज़रत-ए-ईसा बीमारों को शिफ़ा बख़्शने और मुर्दों को ज़िंदा करने के लिए भेजे गए । इसी तरह चूँकि हज़रत मुहम्मद के अय्याम में इंशापर्दाज़ी को बड़ा ज़ोर था उन को फ़साहत क़ुरआन बतौर मोजिज़ा अता की गई ।

इमाम साहिब के इस बयान से साफ़ ज़ाहिर है कि वो भी निहायत सफ़ाई से मानता है कि हज़रत मुहम्मद ने कोई मोजिज़ा नहीं दिखाया। क़ुरआन ही काफ़ी मोजिज़ा था।

इस मौक़ा पर एक नए मुफ़स्सिर के ख़्यालात का ज़िक्र करना दिलचस्पी से ख़ाली नहीं होगा। हिन्दुस्तान के मुसलमान अक्सर उनका ज़िक्र करते रहते हैं और सुल्तान रुम से वो कई ख़िताब भी हासिल कर चुके हैं ये हाल के मुफ़स्सिर लोरपोल क़ोलीम साहिब हैं।

अब हम देखें कि मास्टर क़ोलीम हज़रत मुहम्मद की मोजिज़ा दिखाने की क़ुदरत पर क्या कहते हैं हम लौरपोल ही के अल्फ़ाज़ को देखेंगे वो अपनी किताब “फ़ेथ आव इस्लाम” के बयालिस्वें सफ़हा पर लिखते हैं :—

"हज़रत मुहम्मद के दुश्मनों ने इस के जवाब में उनकी नबुव्वत के सबूत में मोजिज़ा तलब किया। लेकिन उन्हों ने मोजिज़ा दिखाने से इन्कार किया और कहा कि मैं सच्चाई फैलाने के लिए आया हूँ ना कि मोअजज़े दिखाने के लिए...इस बात का कोई सबूत नहीं मिलता कि हज़रत मुहम्मद.....ने अपने मिंजानिब-अल्लाह या अपनी तालीम को मनवाने और अम्बिया-अल्लाह में से होने के सबूत में कभी कोई मोजिज़ा दिखाया बल्कि बख़िलाफ़ उस के अक़्ल व फ़साहत पर कामिल भरोसा किया"।

पस जब क़ुरआन की तालीम और इस पर बड़े बड़े मुसलमान मुफ़स्सिरीन की शहादत से ये बात पाया सबूत को पहुंच गई कि हज़रत मुहम्मद ने कोई मोजिज़ा नहीं किया तो हर एक ज़ी-होश और ज़ी-फ़हम आदमी मोअजज़ात मुंदरजा अहादीस को रद्द करेगा क्योंकि वो महिज़ मस्नूई हिकायात और ख़िलाफ़ वाक़िया ठहरती हैं इस सूरत में सिर्फ क़ुरआन बाक़ी रहता है।

कई तरह से ये अम्र रोशन है कि क़ुरआन मोजिज़ा तसव्वुर नहीं हो सकता जब क़ुरआन हमारे पास मौजूद है तो उस के मोजिज़ा ना होने को दलायल से साबित करने की क्या ज़रूरत है ? क़ुरआन में लिखा है कि अरबों ने बार-बार हज़रत मुहम्मद से मोजिज़ा तलब किया क्या इसी से ये बात साफ़ साबित नहीं होती कि उनकी नज़र में क़ुरआन मोजिज़ा ना था ? फ़िल-हक़ीक़त क़ुरआन की इबारत और अरब के शोअरा और दीगर मुसन्निफ़ीन की तसानीफ़ में बहुत ही कम फ़र्क़ था। मसलन अमरा-उलक़ेस, मुतबन्ना और हरीरी वग़ैरा की तसानीफ़ ऐसी हैं बहुत से मुसलमान ख़्याल करते हैं कि तर्ज़ बयान और फ़साहत और बलाग़त के लिहाज़ से क़ुरआन के हमपाया तसानीफ़ हो सकती हैं और क़ुरआन की फ़साहत बमंज़िला मोजिज़ा नहीं मानी जा सकती।

चुनांचे फ़िर्क़ा मोतज़िला के मुसलमान कहते हैं :—

ان الناس قادرون علی مثل ھذا لقرآن فصاحتہ  ونظماً بلاغتہ

फ़साहत व बलाग़त और नज़म के लिहाज़ से क़ुरआन की हमपाया किताब तसनीफ़ करने पर इन्सान क़ादिर है I

फिर शहरस्तानी अपनी किताब दरबारा मुजद्दिद में लिखता है :—

البطالتہ اعجاز القرآن من جہت الفاصحتہ والابلاغتہ

वो फ़साहत व बलाग़त के बिना पर क़ुरआन को मोजिज़ा क़रार देने के ख़्याल को बातिल समझता था।

किताब अलमवाक़िफ़ में मर्क़ूम है कि हज़रत मुहम्मद के बाअज़ असहाब को क़ुरआन की बाअज़ आयात के हिस्सा क़ुरआन होने पर शक था मसलन इब्न मसऊद कहता था कि "सूरह फ़ातिहा क़ुरआन में नहीं है लेकिन अगर क़ुरआन की फ़साहत व बलाग़त इस दर्जा की होती कि इस का मुक़ाबला ना हो सकता और मोजिज़ा क़रार दी जा सकती तो उस के बारे में इस तरह के मुख़्तलिफ़ ख़्यालात ना पाए जाते ।

क़ुरआन के बाअज़ हिस्सों के बारे में इस किस्म के मुख़्तलिफ़ ख़्यालात का पाया जाना ही इस हक़ीक़त का काफ़ी सबूत है कि हज़रत मुहम्मद के ज़माना में क़ुरआन की हमपाया तसानीफ़ अरबी ज़बान में मौजूद थीं।

क़ुरआन को जमा करने के वक़्त जिन मुश्किलात का सामना हुआ उन से भी निहायत साफ़ तौर से मज़कूरा बाला नतीजा हासिल होता है किताब अलमवाक़िफ़ में लिखा है कि

जब क़ुरआन की आयात जमा की जा रही थीं अगर जमा करने वालों के पास कोई ऐसी आयत लाना जिससे वो वाक़िफ़ ना थे तो बड़ी तहक़ीक़ात के बाद (कि कब और कैसे मौक़ा पर नाज़िल हुई )। क़ुरआन में दख़ल की जाती थी।

पस इस से भी हर एक साहिब-ए-होश बखु़शी समझ सकता है कि अगर आयात क़ुरआन की फ़साहत व बलाग़त मोजिज़ा होती तो इस किस्म की सब तहक़ीक़ात बिल्कुल फुज़ूल और बे फ़ायदा थी। क़ुरआन की हर एक आयत अपनी फ़साहत व बलाग़त की ख़ूबी से फ़ौरन पहचानी जाती है।

बिलफ़र्ज़ अगर तस्लीम भी कर लिया जाये कि अरबी ज़बान में क़ुरआन फ़साहत व बलाग़त के लिहाज़ से लासानी किताब है तो इस से भी क़ुरआन मोजिज़ा नहीं ठहरता ये महिज़ ख़्याली पुलाव है और बस क्योंकि नाज़ुक ख़्याली और फ़साहत का बसा-औक़ात मामूली ख़ाकसार और आजिज़ लोगों में भी जलवा देखा गया है। मोजिज़ा और ही शैय है। मोजिज़ा हमारी महदूद अक़्ल और हमारे महदूद हवास के लिए मामूली कानून-ए-क़ुदरत से आला व बाला है लेकिन कोई किताब ख्वाह वो कैसी ही फ़साहत व बलाग़त से पुर हो मोजिज़ा नहीं मानी जा सकती हिन्दुस्तान में काली दास अपने तर्ज़ पर लासानी मुसन्निफ़ है क्या हमारे मुसलमान भाई कालीदास काफ़िर की तसानीफ़ को इल्हामी मानेंगे।

ये वाक़ई बड़े ताज्जुब की बात है कि जिसने आख़िर नबीय्यीन होने का दावा किया और जिसकी शरीयत ने तमाम पहले शराए को मंसूख़ कर दिया वो कोई मोजिज़ा ना दिखा सका । बल्कि उसने अपने अजुज़ का साफ़ इक़रार क्या इस से निहायत सफाई और सराहत के साथ इस किताब का ये दावा साबित होता है कि ख़ुद क़ुरआन की शहादत से ईसा मसीह तमाम दीगर अम्बिया से बुज़ुर्ग व बरतर है मुंसिफ़ मिज़ाज पढ़ने वाले को चाहिए कि निहायत दानाई और सरगर्मी से इन हक़ीक़तों का बाहम मवाज़ाना करे और अपने आपको उस के सपुर्द व ताबेह करे जिसका नाम सब नामों से बुलंद है।

ईसा मसीह इब्ने मर्यम की फ़ज़ीलत और बुजु़र्गी व बरतरी के सबूत में और बहुत कुछ लिखा जा सकता है लेकिन अब हम सिर्फ एक ही इक़तिबास पर क़नाअत करते हैं।

हज़रत मुहम्मद की अहादीस में जो मुसलामानों ही ने जमा की हैं ईसा मसीह के हक़ में यूं मर्क़ूम है :—

لیکوشکن ان ینزل فیکمہ ابن مریمہ علیہ الصلواتہ والسلام حکماً مقسطاً

बेशक इब्ने मर्यम अलैहि सलातो वस्सलाम रास्तकार मुंसिफ़ की हैसियत में तुम्हारे दर्मियान नाज़िल होगा I

हमने बाइबल और क़ुरआन को शुरू से आख़िर तक पढ़ा है और हज़रत मुहम्मद को बहुत सी अहादीस को भी पढ़ा है लेकिन ईसा के सिवा किसी और के हक़ में ऐसे अल्फ़ाज़ कहीं नहीं देखे हज़रत मुहम्मद के इन अल्फ़ाज़ की इंजील शरीफ़ से बहुत अच्छी तरह से ताईद व तस्दीक़ होती है चुनांचे लिखा है :—

जब इब्ने आदम (ईसा) अपने जलाल में आएगा और सब फ़रिश्ते उस के साथ आएँगे। तो उस वक़्त वो अपने जलाल के तख़्त पर बैठेगा और सब क़ौमें उस के सामने जमा की जाएँगी और वह एक को दूसरे से जुदा करेगा जैसा गल्लेबान भेड़ों को बकरीयों से जुदा करता है और भेड़ों को अपने दाहिने और बकरीयों को बाएं खड़ा करेगा (मत्ती 25:31-33)

जिस शख़्स को इंजील शरीफ़ और हज़रत मुहम्मद दोनों तमाम बनी-आदम का मुंसिफ क़रार देते हैं इस में पनाह गज़ीं होना हमारे लिए यक़ीनन बड़ी दानाई की बात होगी।

अब हम बख़ूबी साबित कर चुके हैं कि बाइबल की तरह क़ुरआन भी ईसा मसीह को तमाम दीगर अम्बिया से बुज़ुर्ग व बरतर क़रार देता है और इस को ऐसे अल्क़ाब से मुलक़्क़ब करता है जिनका कोई दूसरा शख़्स दावेदार नहीं है।

मसीह के ख़ानदान यानी बनी-इस्राइल से तमाम अक़्वाम के लिए बरकत का वाअदा है। मसीह की माँ ही एक ऐसी ख़ातून थी जिसको ख़ुदा ने तमाम खातून-ए-जहां पर तर्जीह और फ़ज़ीलत दी और सिर्फ उसको और इस के बेटे को तमाम मख़्लूक़ात के लिए निशान मुक़र्रर किया। सिर्फ मसीह के हक़ में ये कहा गया है कि वो मोजज़ाना तौर से पैदा हुआ क्योंकि वो कलिमतुल्लाह था जो कुँवारी मर्यम में मुजस्सम हुआ ।

मुसलमान सिवाए ईसा के किसी और को रूहुल्लाह के मुअज़्ज़िज़ लक़ब से मुलक़्क़ब नहीं करते और क़ुरआन किसी दूसरे को अल-मसीह के लक़ब से मुमताज़ नहीं करता। सिर्फ सय्यदना ईसा ही क़ुरआन और अहादीस में कामिल तौर पर बेगुनाह बयान किया गया है सिवाए उस के किसी दूसरे को क़ुरआन हर दो जहान में साहब-ए-इज़्ज़त क़रार नहीं देता। तवारीख़ इस्लाम में ईसा मसीह के मोअजज़ात बेनज़ीर हैं और हज़रत मुहम्मद ने भी उसके सिवाए किसी दूसरे को बनी-आदम के मुंसिफ़ के लक़ब से याद नहीं किया।

क़ुरआन मसीह की बुजु़र्गी और बरतरी की ख़ूब झलक दिखाता है लेकिन इसके ईलाही कमाल व जलाल को ज़ाहिर नहीं करता। दरवाज़ा तक ले जाता है लेकिन खोल कर दाख़िल नहीं होता । इश्तियाक़ की आग तो दिल में मुश्तइल करता है लेकिन मतलूब तक पहुंचा कर दिली आराम नहीं देता।

अब ए मुसलमान बिरादरान पढ़ने वालो क्या इस बड़े अहम मसले को जिस पर आपके अबदी नफ़ा व नुक़सान का इन्हिसार है बे हल किए ही छोड़ दोगे?

ख़ुदा ना करे कि आपसे ऐसा हो बल्कि अक़्ल का तक़ाज़ा ये है कि हम तौरात और इंजील को देखें जिनमें सय्यदना मसीह अपने जलाल के कमाल के साथ ख़ुदा के "इकलौते बेटे" की सूरत में नज़र आता है । क्या दीनदार मुसलमान हर-रोज़ ये दुआ नहीं करता कि :—

اهدِنَــــا الصِّرَاطَ المُستَقِيمَ صِرَاطَ الَّذِينَ أَنعَمتَ عَلَيهِمْ غَيرِ المَغضُوبِ عَلَيهِمْ وَلاَ الضَّالِّينَ

हिदायत कर हम को सीधी राह की । इन लोगों की राह जिन पर तूने इनाम किया ना उनकी जिन पर तो ग़ज़बनाक हुआ और ना गुमराहों की ?

वो कौन हैं जिन पर ख़ुदा ने इनाम किया ? क्या ज़माना-ए-क़दीम के अम्बिया मसलन इबराहीम, मूसा और दाऊद वग़ैरा नहीं हैं? ये बुज़ुर्ग ईमान की आँख से मसीह मौऊद की आमद का इंतिज़ार करते थे और बनी आदम की उम्मीद का दार-ओ-मदार इसी में देखते थे चुनांचे लिखा है कि ये सब ईमान की हालत में मरे और वाअदा की हुई चीज़ें ना पाई मगर दूर ही से उन्हें देखकर ख़ुश हुए और इक़रार किया कि हम ज़मीन पर परदेसी और मुसाफ़िर हैं I

पस हमको तौरात व ज़बूर और दीगर सहफ़ अम्बिया की तरफ़ मुतवज्जा होना चाहिए क्योंकि वहीं हमको ईमान की राह मिलेगी जिस पर ये बुज़ुर्ग चलते थे और वहीं हम उसको पाएंगे जिसका वो ज़िक्र करते थे इलावा बरीं जिस मसीह को क़ुरआन एसा आलीशान बयान करता है इस का पूरा मुकाशफ़ा इंजील शरीफ़ में है पस इंजील की तिलावत भी हम पर फ़र्ज़ है क्योंकि इसी तरह से पेशीनगोइयों के कामिल कनुंदा और राह-ए-हयात को पा लेंगे हम ख़ुद मसीह के संजीदा ,अल्फ़ाज़ को कभी ना भूलें वो इंजील शरीफ़ में फ़रमाता है कि :—

"राह-ए-हक़ और ज़िंदगी मैं हूँ कोई मेरे वसीले के बग़ैर बाप (ख़ुदा) के पास नहीं आता" (युहन्ना 14:6)

तमाम शुद


1.  अगर हज़रत मुहम्मद साहब-ए-मोजज़ात के साथ आते तो अहले मक्का भी आद और समुद की तरह मोजज़ात को झुठलाते और हलाक हो जाते।