चौथा बाब

मसीह कलिमतुल्लाह

चौथी बात हम ये देखते हैं कि ईसा मसीह क़ुरआन में कलिमतुल्लाह कहलाता है। चुनांचे सूरह निसा की 169 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

إِنَّمَا الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ رَسُولُ اللّهِ وَكَلِمَتُهُ أَلْقَاهَا إِلَى مَرْيَمَ

यक़ीनन मसीह ईसा इब्ने मर्यम अल्लाह का रसूल है और उस का कलिमा जो उसने मर्यम की तरफ़ डाल दिया।

ये आयत बहुत सफ़ाई से ईसा मसीह को तमाम दीगर अम्बिया से कहीं बुज़ुर्ग व बरतर साबित करती है और मुसलमान मुफ़स्सिरीन उस की तफ़्सीर करने में बहुत आजिज़ हैं।

हम इस लक़ब मसीह का उन अल्क़ाब से मुक़ाबला करेंगे जो मुसलामानों ने दीगर अम्बिया को दिए हैं इस से साफ़ नज़र आजाएगा कि मसीह दुसरे नबियों से किस क़दर आला व बाला है मसलन "आदम सफ़ीउल्लाह" यानी ख़ुदा का बर्गुज़ीदा नूह नबी-उल्लाह यानी ख़ुदा का नबी, इब्राहीम ख़लील-उल्लाह यानी ख़ुदा का दोस्त, मूसा कलीम-उल्लाह यानी ख़ुदा से कलाम करने वाला, और मुहम्मद रसूल-उल्लाह यानी ख़ुदा का पैग़ाम लाने वाला कहलाता है। ये तमाम अल्क़ाब हमारे जैसे कमज़ोर और ख़ाती आदमीयों को दिए जा सकते हैं लेकिन मसीह क़ुरआन में "कलिमतुल्लाह" कहलाता है ये ऐसा लक़ब है जो अज़-हद सफ़ाई और सराहत के साथ मसीह और ख़ुदा बाप में एक ख़ास रिश्ते पर दलालत करता है।

मुसलमान मुसन्निफ़ीन ने कई तरह से कोशिश की है कि "कलिमतुल्लाह" से जो ईसा की उलूहियत का साफ़ नतीजा निकलता है इस पर धूल डालें मसलन इमाम राज़ी और हाल के चंद मुसन्निफ़ीन हमको ये मनवाना चाहते हैं कि "कलिमतुल्लाह" से सिर्फ ये मुराद है कि ईसा ख़ुदा के हुक्म या "कलिमतुल्लाह" यानी कलाम से पैदा किया गया है। लेकिन आदम भी तो ख़ुदा के हुक्म से पैदा किया गया था क्या कोई मुसलमान आदम को "कलिमतुल्लाह" कहने की जुरआत करेगा ? इलावा-बरीं क़ुरआन की मज़कूरा बाला आयात में ये साफ़ बयान किया गया है कि ईसा “कलिमतुल्लाह”  था जो ख़ुदा ने मर्यम में डाल दिया और इमाम राज़ी के बे-बुनियाद बयान और तफ़्सीर की तर्दीद के लिए ये एक ही काफ़ी है। क्योंकि इस से साफ़ अयाँ है कि कलिमा मर्यम में डाला जाने से पेशतर भी मौजूद था हक़ीक़त यूं है कि खुदावंद ईसा का ये लक़ब सिर्फ इंजील शरीफ़ ही के मुताअला से समझ में आ सकता है।

क्योंकि इस में बड़ी सफ़ाई से बयान किया गया है कि ईसा "कलिमतुल्लाह" ईलाही है और मुजस्सम हो कर दुनिया में आने से पेशतर ख़ुदा के साथ मौजूद था। चुनांचे इंजील युहन्ना के 1 बाब की पहली आयत में मर्क़ूम है :—

इबतिदा में कलाम था और कलाम-ए-ख़ुदा के साथ था और कलाम ख़ुदा था और कलाम मुजस्सम हुआ और इस ने फ़ज़ल और सच्चाई से मामूर हो कर हमारे दर्मियान ख़ेमा किया और हमने उस का ऐसा जलाल देखा जैसे बाप के इकलौते का जलाल I

मुसलामानों की अहादीस में भी इस की शहादत मौजूद है । चुनांचे मिश्कात अल-मसाबीह के दफ़्तर अव्वल के चौथे बाब की तीसरी फ़सल में मुंदरज है :—

वोह (ईसा) अर्वाह में था। हमने उस को मर्यम में भेज दिया।

इसी किताब में अबी से मर्वी है कि मसीह की रूह मर्यम के मुँह से दाख़िल हुई अगरचे हमको ऐसी अहादीस व रिवायात की चंदाँ ज़रूरत नहीं तो भी उनसे इस क़दर ज़ाहिर होता है कि मोअतक़िदात इस्लाम में मसीह इस दुनिया में मुजस्सम हो कर आने से पेशतर मौजूद माना गया है ।

बाइबल और क़ुरआन दोनों ईसा को कलिमतुल्लाह कहते हैं और इस तरह से उसे तमाम दीगर अम्बिया से मुंतख़ब और मुमताज़ करके इस रिश्ते की तरफ़ इशारा करते हैं। जो उस में और ख़ुदा बाप में है।

इस मुक़ाम पर ये बात भी काबिल-ए-ग़ौर है कि क़ुरआन में बाइबल के लिए जो लफ्ज़ इस्तिमाल हुआ है वो वही नहीं है जो ईसा मसीह के हक़ में इस्तिमाल किया गया है चुनांचे सूरह बक़रा की 74 वीं आयत में लिखा है :—

وَقَدْ كَانَ فَرِيقٌ مِّنْهُمْ يَسْمَعُونَ كَلاَمَ اللّهِ

यानी और उन में से एक फ़रीक़ ख़ुदा का कलाम सुनता था

यहां पर लफ़्ज़ कलाम कुतुब इल्हामी के लिए इस्तिमाल किया गया है वो "कलमा" है इस के हक़ में "कलाम" कभी इस्तिमाल नहीं हुआ। चुनांचे सूरह इमरान की 45 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

يَا مَرْيَمُ إِنَّ اللّهَ يُبَشِّرُكِ بِكَلِمَةٍ

यानी ए मर्यम अल्लाह तुझे ख़ुशख़बरी भेजता है ,कलिमे से जो इस से है I

बाईंहमा मुफ़स्सिरीन हमसे ये मानने को कहते हैं कि कलिमतुल्लाह का आला लक़ब सिर्फ ये मअनी रखता है। कि मसीह ख़ुदा के हुक्म या कलाम से पैदा किया गया था। फिर मुंदरजा बाला आयत क़ुरआन में मसीह इस का कलिमा यानी "ख़ुदा का कलिमा" कहलाता है। अरबी से मालूम होता है कि इस से "अल-कलिमतुल्लाह" मुराद है ना सिर्फ कलमा-ए-ख़ुदा "कलिमतुल्लाह" ना महिज़ (کلمہ من کلمات اللہ) कलिमा मिन कलिमात अल्लाह पस साफ़ ज़ाहिर है कि ईसा “अल-कलिमतुल्लाह” या ख़ुदा का ख़ास इज़्हार सिर्फ इसी के वसीले से हम ख़ुदा की मर्ज़ी को मालूम कर सकते हैं किसी और नबी को ये लक़ब नहीं दिया गया। क्योंकि कोई और इस तौर से ख़ुदा कि मर्ज़ी को ज़ाहिर करने वाला नहीं है इसी लिए ईसा इंजील शरीफ़ में फ़रमाता है :—

“राह और हक़ और ज़िंदगी में हूँ। कोई बाप के पास नहीं आ सकता मगर मेरे वसीले से"

मेरे बाप की तरफ़ से सब कुछ मुझे सौंपा गया और कोई नहीं जानता कि बेटा कौन है सिवा बाप के और कोई नहीं जानता कि बाप कौन है सिवा बेटे के और इस शख़्स के जिस पर बेटा ज़ाहिर करना चाहे (लूका 1:22)।

हम ये दावा नहीं करते कि हम मसीह की उलूहियत का मसला पूरे तौर से समझते हैं क्योंकि इस से इसरार तस्लीस का ताल्लुक़ है लेकिन इस क़दर बख़ूबी सफ़ाई से देखते हैं कि ख़ुदा के "कलिमा" की ज़ात ईलाही होनी चाहिए । क्योंकि सिवाए ईलाही ज़ात के किसी और चीज़ से मसीह की मोजज़ाना पैदाइश का राज़ हरगिज़ नहीं खुलता। इंजील शरीफ़ से हम को ये मालूम होता है कि ख़ुदा के अज़ली कलाम ने कामिल इन्सानी ज़ात  की लेकिन साथ ही ईलाही ज़ात से आरी नहीं हुआ इस में इन्सानी ज़ात और ईलाही ज़ात बाहम मौजूद थीं जैसा किसी दरख़्त पर पैवंद लगाने से पैवंद और पैवंद शूदा दरख़्त की शाख़ें अपनी अपनी ज़ात में जुदा-जुदा हैं लेकिन फिर भी एक ही दरख़्त है ऐसा ही इंजील शरीफ़ में मर्क़ूम है कि :—

कलाम मुजस्सम हुआ और हमारे दर्मियान रहा I

और क़ुरआन में लिखा है कि :—

"ख़ुदा ने अपना कलिमा मर्यम में डाला"

पस ख़ुदा ने जो ख़ुद ईसा मसीह में हो कर बनी-आदम में बूद-ओ-बाश की। इस्लाम के बाअज़ फ़िरक़े मानते हैं कि एक ही शख़्स में इन्सानियत व उलुहियत जमा हो सकती है। चुनांचे शहरसतानी 2:76-77 में मर्क़ूम है कि फ़िर्क़ा अल-मशतबा का ऐसा एतिक़ाद था

ये कहना कि चूँकि हम मसीह के मुजस्सम होने को या उस की उलूहियत को समझ नहीं सकते लिहाज़ा हम इस को नहीं मानते कोई माक़ूल जवाब नहीं है। क्योंकि हम क़ियामत को भी नहीं समझते लेकिन इस पर ईमान रखते हैं जो कोई दाना है। वो ज़रूर इस संजीदा मसले पर बाइबल मुक़द्दस की साफ़ तालीम को क़बूल करेगा बेशक तस्लीस का मसला निहायत मुश्किल और सर मकतूम है लेकिन गो अक़्ल से बाला हो और गो अक़्ल में ना आ सके तो भी ख़िलाफ़ अक़्ल तो नहीं है हमारे मुसलमान भाई ख़ुद सिफ़ात ईलाही की कसरत को मानते हैं। मसलन उस का रहम, इन्साफ़, और क़ुदरत वग़ैरा और बड़ी दुरुस्ती से उसे (الصفات الحسنہ محموع) अल-सिफ़ात उलहसना महमुअ यानी तमाम नेक सिफ़ात का मजमूआ कहते हैं । अगर ख़ुदा की सिफ़ात में कसरत मुम्किन है तो इस की ज़ात में क्यों नामुमकिन है ? इन दोनों सूरतों में से एक में भी इस की वहदत पर हर्फ़ नहीं आता।

अली की ज़बानी रिवायत की गई है :—

من عرف نفسہ ،فقد عرف برہ

यानी जो अपने आपको जानता है वो अपने ख़ुदा को जानता है I

तौरेत में लिखा है कि ख़ुदा ने इन्सान को अपनी सूरत पर पैदा किया अब जाये ग़ौर है कि हम सब अपनी “रूह” “अक़्ल” और “नफ़्स” को “मैं” कहते हैं। ये चीज़ें मुख़्तलिफ़ हैं लेकिन शख़्सियत एक ही रहती है जबकि हम अपने आपको भी पूरे तौर से नहीं समझ सकते तो किस तरह मुम्किन हो सकता है कि लामहदूद ख़ुदा की ज़ात हमारी समझ में आ जाए ?

इलावा-बरीं क़ुरआन में ख़ुदा "अल-वदूद" यानी मुहिब कहलाता है इस से ज़ाहिर होता है कि ख़ुदा की ज़ात में "अल-वदूद" यानी हुब्ब की सिफ़त मौजूद है और चूँकि ख़ुदा की ज़ात ला-तब्दील व ग़ैर-मुतग़य्यर है इस लिए ये सिफ़त अज़ली है लेकिन हुब्ब के लिए महबूब का वजूद लाअबदी है पस हम पूछते हैं कि जहान व फ़रशतगान की पैदाइश से पेशतर ख़ुदा की हुब्ब का महबूब किया था?

क्या इन ख़्यालात से ये ज़ाहिर नहीं होता कि ख़ुदा की ज़ात वाहिद में कसरत मौजूद है और वाहिद में कसरत के अफ़राद बाहम मुहिब व महबूब हैं? क्या मुसलमान ये नहीं देखते कि ख़ुदा की सिफ़ात मुंदरजा क़ुरआन से ज़ात बारी ताअला की वहदत में कसरत का कुछ ना कुछ ख़्याल पाया जाता है जो मसीहीयों की तालीम तस्लीस की मानिंद है।

बाइबल सीखलाती है कि ख़ुदा की वहदत में तस्लीस मौजूद है और ईसा अक़ानीम सलासा में से एक उक़नूम है हमारे बहुत से मुसलमान भाई क़ुरआन की पैरवी करके तस्लीस की तालीम को रद्द करते और कहते हैं कि ये तालीम तौहीद के बर-ख़िलाफ़ है लेकिन अगर ग़ौर से क़ुरआन को पढ़ें तो साफ़ मालूम हो जाएगा कि हज़रत मुहम्मद ने जिस बात की बड़े ज़ोर से तर्दीद की वो शिर्क या ख़ुदाओं की कसरत की तालीम थी चुनांचे सूरह निसा की 169 वीं आयत में मर्क़ूम :—

تَقُولُواْ ثَلاَثَةٌ انتَهُواْ خَيْرًا لَّكُمْ إِنَّمَا اللّهُ إِلَـهٌ

यानी मत कहो तीन ख़ुदा हैं इस से बाज़ रहो। ये तुम्हारे लिए बेहतर होगा

ख़ुदा सिर्फ एक ही है I

मशहूर मुफ़स्सिरीन जलालीन ने समझा कि ये आयत शिर्क या बहुत से ख़ुदा मानने की तरफ़ इशारा करती है चुनांचे वो लिखते हैं :—

"ए अहले बाइबल तुम अपने दीन में कुफ़्र की पैरवी मत करो और ख़ुदा की बाबत सिवाए हक़ बात के कुछ और मत कहो शिर्क और क़ादीर मुतलक़ का बेटा बयान करने से बाज़ आओ"।

पस इस से साफ़ नज़र आता है कि क़ुरआन शिर्क और एक से ज़्यादा ख़ुदा मानने की तालीम की तरीदद करता है जो तालीम मसीही लोग ना मानते हैं और ना औरों को सिखाते हैं । ईसा मसीह गोया हर तरह की ग़लतफ़हमी को दूर करने की ग़रज़ से ख़ुदा की तौहीद का यूं बयान फ़रमाता है :—

“मैं और बाप (ख़ुदा) एक हैं” (युहन्ना 10:30)

सूरह माइदा से साफ़ मालूम होता है कि हज़रत मुहम्मद तस्लीस की तालीम को मुतलक़ ना समझ सके चुनांचे 116 वीं आयत में मर्क़ूम है :—

يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ أَأَنتَ قُلتَ لِلنَّاسِ اتَّخِذُونِي وَأُمِّيَ إِلَـهَيْنِ مِن دُونِ اللّهِ

ए ईसा इब्ने मर्यम क्या तूने लोगों से कहा कि ख़ुदा के सिवा मुझको और

मेरी माँ को दो ख़ुदा मानो?

सूरह माइदा में हज़रत मुहम्मद बड़ी कोशिश से इस बात को साबित करते हुए नज़र आते हैं कि मर्यम ईसा की माँ ख़ुदा नहीं और दलील ये पेश करते हैं कि वो खाना खाती थी !

ताहम बैज़ावी और दीगर अच्छे अच्छे मुसलमान मुफ़स्सिरीन मानते हैं कि मसीही तस्लीस अक़ानीम सलासा बाप, बेटा और रूह-उल-क़ूद्दूस हैं तस्लीस के बारे में जो ग़लत ख़्याल हज़रत का था वही इस ज़माना के बहुत से मुसलामानों का है वो सख़्त ग़लतफ़हमी से ये समझे बैठे हैं कि मसीही लोग तीन ख़ुदा मानते हैं और इस ग़लतफ़हमी के सबब से वो मसीहीयों की तालीम की कभी तहक़ीक़ात नहीं करते लेकिन बाअज़ मुसलमान कुछ-कुछ दुरुस्त ख़्याल रखते हैं चुनांचे डाक्टर इमादा उद्दीन साहिब हिदायत-अलमुस्लिमीन में लिखते हैं कि :—

फ़िर्क़ा सलहीयह के मुसलमान मानते हैं कि ख़ुदा की ज़ात-ए-वाहिद के अंदर तस्लीस की तालीम देना कुफ़्र नहीं है I

अगर ठीक तौर से समझ ली जाये तो तस्लीस की तालीम से ख़ुदा की तौहीद की मुख़ालिफ़त नहीं होती बल्कि "इब्नुल्लाह" के मुजस्सम होने का राज़ बख़ूबी समझ में आता है और कलिमतुल्लाह और रूहुल्लाह के मुश्किल अल्क़ाब की (जो मुसलमान मसीह के हक़ में इस्तिमाल करते हैं) तशरीह होती है। कलिमतुल्लाह ख़ुदा का सुख़न है और सुख़न ख़ुदा ऐसा ही क़दीम व अज़ली है जैसा ख़ुद ख़ुदा। इसी कलिमा ने कुँवारी मर्यम के रहम में मुजस्सम हो कर कामिल इन्सानी ज़ात इख़्तियार की।

चुनांचे लिखा है कि :—

येसु (ईसा) नासरी दीगर आदमीयों की तरह खाता पीता और ग़मगीन और थकामाँदा होता था। क्योंकि इन्सानी हैसियत में सिवाए गुनाह के और जो जो ख़्वाहिशें हम में हैं इस में भी थीं "कलिमतुल्लाह" जो ख़ुदा ने मर्यम में डाला उस के बारे में यही तालीम है और हर एक सच्चे मुसलमान पर अज़रोइ-ए-कलाम-ए-ख़ुदा उस को मानना लाज़िम ठहरता है "कलाम-उल्लाह" की शहादत को ना मानना और ख़ुदा की ज़ात व माहीयत की निस्बत छानबीन बेहूदगी और बे-दीनी है हज़रत मुहम्मद ने भी कहा है कि :—

ख़ुदा की बख़्शिशों का ख़्याल करो और इस की ज़ात के बारे में मत सोचो।

यक़ीनन तुम उस को नहीं समझ सकते

और फिर ये भी मर्वी है कि :—

हमने तेरी हक़ीक़त को नहीं जाना

एक और हदीस में ये दहशतनाक अल्फ़ाज़ पाए जाते हैं कि :—

البحث من ذات اللہ کفر

ख़ुदा की ज़ात पर बहस करना कुफ़्र है

कोई सच्ची तालीम अक़्ल के ख़िलाफ़ नहीं हो सकती हाँ अलबत्ता ये ज़रूर है कि जो बातें ख़ुदा की ज़ात से इलाक़ा रखती हैं वो हमारी कमज़ोर इन्सानी अक़्ल से बाहर और बाला हो सकती हैं। मुसलमान ख़ुद मानते हैं कि क़ुरआन के बाअज़ फ़िक़रे मुतशाबेह हैं और उन के मअनी इन्सान से पोशीदा हैं और क़ियामत के दिन तक वैसे ही पोशीदा रहेंगे चुनांचे हुरूफ़ अलिफ़ व लाम व मीम (الم) और ख़ुदा के मुँह और हाथों वग़ैरा के बयान में जो फ़िक्रात क़ुरआन में पाए जाते हैं पस जिस आज़ादी को मुसलमान अपने लिए जायज़ क़रार देते हैं उसे मसीहीयों के लिए क्यों नाजायज़ समझते हैं ?

हम भी तालीम तस्लीस और मसीह की उलूहियत को मुतशाबेह कह सकते हैं। लिहाज़ा उन तालीमात को पूरे तौर से समझ ना सकने के सबब से रद्द करना मुसलामानों के लिए माक़ूल बात नहीं है।

मसीही लोग बाइबल शरीफ़ की सनद पर ईसा मसीह की उलूहियत को मानते हैं और इस अम्र में वो अकेले नहीं बल्कि तमाम अम्बिया व रसूल भी उन के साथ यही ईमान रखते थे हम ज़िक्र कर चुके हैं कि मसीह के हक़ में बहुत सी पेशीनगोईयां ऐसी हैं जिनसे ज़ाहिर होता है कि इस का जलाल ईलाही जलाल से कम नहीं है चुनांचे हम एक दो ऐसी पेशीनगोइयों का हवाला देते हैं । यसायाह नबी की किताब के नौवीं बाब की छटी आयत में मर्क़ूम है :—

हमारे लिए एक बेटा तव्वुलुद हुआ। हमें एक बेटा बख़्शा गया सल्तनत उसके कंधे पर होगी और इस का नाम अजीब मुशीर ख़ुदाए क़ादिर अबदीयत का बाप सलामती का शहज़ादा होगा। उस की बादशाहत की तरक़्क़ी और सलामती का अंजाम अबदलआबाद तक है।

फिर दाऊद नबी मसीह से मुखातिब हो कर कहता है :—

“तेरा तख़्त अबद-उल-अबाद तक है”

मसीह के हवारी जिनको क़ुरआन "अंसार उल्लाह" के लक़ब से मुमताज़ करता है ईसा की उलूहियत पर ईमान रखते थे और यह इंजील शरीफ़ के बहुत से मुक़ामात से रोज़-ए-रौशन की तरह अयाँ है। चुनांचे लिखा है कि मसीह के शागिर्दों में से एक थोमा नामी ने इस के मुर्दों में से जी उठने को पहले ना माना लेकिन जब उसने मह्शूर मसीह को रूबरू देखा तो ताज़ा ईमान और ख़ुशी से माअमूर हो कर उसने कहा :—

“ए मेरे ख़ुदावंद ए मेरे ख़ुदा” ! ईसा ने जवाब दिया तू तो मुझे देखकर ईमान लाया है। मुबारक वो हैं जो बग़ैर देखे ईमान लाए (युहन्ना 20:29)

मुसलमान दोस्तो ! इस ईलाही "इब्नुल्लाह" पर ईमान लाना उसके नाम के तुफ़ैल से आप को हयात अबदी का वारिस बनाएगा। क्योंकि लिखा है कि :—

“खुदावंद ईसा पर ईमान ला और नजात पाएगा I”